FOR PSC MAINS EXAM

FOR PSC MAINS EXAM

बेतवा नदी

• यह नदी मध्य प्रदेश में भोपाल के दक्षिण पश्चिम से निकलती है। निकलने के पश्चात भोपाल, ग्वालियर, झाँसी, औरय्या और जालौन से होती हुई हमीरपुर के निकट यह यमुना नदी में मिल जाती है।
• इस नदी की कुल लम्बाई 480 किमी. है।

विंध्याचल पर्वत से भोपाल नगर के पास से बेतवा नदी का निकास हुआ है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कुल 480 किलोमीटर की यात्रा करके यह नदी उत्तर प्रदेश के हमीरपुर नगर के निकट यमुना नदी में मिल जाती है।

बेतवा भारत के मध्य प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह यमुना की सहायक नदी है। यह मध्य-प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, जालौल आदि जिलों में होकर बहती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसकी सम्पूर्ण लम्बाई 480 किलोमीटर है। यह हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसके किनारे सांची और विदिशा के प्रसिद्ध व सांस्कृतिक नगर स्थित हैं।

बेतवा प्राचीन नदियों में से एक मानी गयी है। बेतवा नदी घाटी की नागर सभ्यता लगभग पाँच हजार वर्ष पुरानी है। एक समय निश्चित ही बंगला की तरह इधर भी जरूर बेंत (संस्कृत में वेत्र) पैदा होता होगा, तभी तो नदी का नाम वेत्रवती पड़ा होगा। बेतवा तथा धसान बुन्देलखण्ड के पठार की प्रमुख नदियाँ हैं जिसमें बेतवा उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा रेखा बनाती है। इसे बुन्देलखण्ड की गंगा भी कहा जाता है। इसका जन्म रायसेन जिले के कुमरा गाँव के समीप विन्ध्याचल पर्वत से होता है। यह अपने उद्गम से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा की ओर बहती है। इतना ही नहीं बेतवा नदी पूर्वी मालवा के बहुत से हिस्सों का पानी लेकर अपने पथ पर प्रवाहित होती है। इसकी सहायक नदियाँ बीना और धसान दाहिनी ओर से और बायीं ओर से सिंध इसमें मिलती हैं। सिन्ध गुना जिले को दो समान भागों में बाँटती हुई बहती है। बेतवा की सहायक बीना नदी सागर जिले की पश्चिमी सीमा के पास राहतगढ़ कस्बे के समीप भालकुण्ड नामक 38 मीटर गहरा जलप्रपात बनाती है। गुना के बाद बेतवा की दिशा उत्तर से उत्तर-पूर्व हो जाती है। यह नदी मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश की सीमा बनाती हुई माताटीला बाँध के नीचे झरर घाट तक बहती है। उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध शहर झाँसी में बेतवा 17 किलोमीटर तक प्रवाहमान रहती है। जालौन जिले के दक्षिणी सीमा पर सलाघाट स्थान पर बेतवा नदी का विहंगम दृश्य दर्शनीय है।

इसका जलग्रहण क्षेत्र प्रायः पूर्वी मालवा है। इसी क्षेत्र का यह जल ग्रहण करते हुए उत्तर की ओर गमन करती है। 380 किमी की जीवन यात्रा में यह विदिशा, सागर, गुना, झाँसी एवं टीकमगढ़ जिले की उत्तरी-पश्चिमी सीमा के समीप से बहती हुई हमीरपुर के पास यमुना नदी में अपनी इहलीला समाप्त कर देती है।

बेतवा के उद्गम स्थान पर विभिन्न दिशाओं से तीन नाले एक साथ मिलते हैं। 1 मीटर व्यास का एक गड्ढा यहां सदाबहार पानी से भरा रहता है। एक जो इसका मूल उद्गम है। बेत्रवती के नाम के पीछे एक मान्यता यह भी हो सकती है कि इस स्थान पर पहले कभी बेत (संस्कृत नाम) पैदा हुआ है, यहाँ बेत के सघन वन होंगे। इसीलिए इसका नाम बेत्रवती पड़ा है। बेतवा की तुलना पं. बनारसी दास चतुर्वेदी ने जर्मन की राइन नदी से की है।

जगदीश्वर

बेतवा नदी के किनारे प्रसिद्ध स्थान विदिशा (साँची), झाँसी, ओरछा, गुना और चिरगाँव बसे हुए हैं। साँची में विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप है, जहाँ विश्वभर के बौद्ध भिक्षु और बौद्ध भक्त यहाँ आराधना, साधना और दर्शन लाभ के लिए आते हैं। सांची के पुरावशेषों की खोज सर्वप्रथम 1818 में जनरल टेलर ने की थी। साँची को काकणाय, काकणाद वोट, वोटश्री पर्वत भी कहा जाता है। मौर्य सम्राट अशोक की पत्नी श्रीदेवी विदिशा की निवासी थीं, जिनकी इच्छा के मुताबिक यहाँ सम्राट अशोक ने एक स्तूप विहार और एकाश्म स्तम्भ का निर्माण कराया था। साँची में बौद्ध धर्म के हीनयान और महायान के पुरावशेष भी हैं।

शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती ने विदिशा पर शासन किया था। जिसकी राजधानी कुशावती थी। मौर्य सम्राट अशोक ने विदिशा के महाश्रेष्ठि की पुत्री श्रीदेवी से विवाह किया था, जिससे उसे पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा प्राप्त हुए थे। अशोक ने साँची (विदिशा), भरहुत (सतना) एवं कसरावद (निमाड़) में स्तूप तथा रूपनाथ (जबलपुर), वंसनगर, पवाया, एरण, रामगढ़ (अम्बिकापुर) में स्तम्भ स्थापित कराये थे। हिन्द-यूनानी एण्टायलकीड्स के दूत हेलियाडोरस ने विदिशा में एक विष्णु स्तम्भ स्थापित कराया था जिसमें उसने स्वयं को ‘परम भागवत’ कहा है। पुष्यमित्र शुंग ने सांची के स्तूप का विस्तार कराया था। सातवाहन वंश एवं भारशिव वंश के राजाओं ने विदिशा पर राज किया।

ओरछा

ओरछा बुन्देली शासकों के वैभव का प्रमुख केन्द्र रहा है यहाँ जहाँगीर महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर, बुन्देलकालीन छतरियाँ, तुंगारण्य, कवि केशव का निवास स्थान, महात्मा गांधी भस्मि विसर्जन स्थल, चन्द्रशेखर आजाद गुफा, रायप्रवीण महल, शीश महल, दीवाने आम, पालकी महल, छारद्वारी एवं बजरिया के हनुमान मंदिर आदि अन्य स्थान देखने योग्य हैं। मैथिलीशरण गुप्त ने ओरछा का गुणगान इन शब्दों में किया है-

कहाँ आज यह अतुल ओरछा, हाय! धूलि में धाम मिले।
चुने-चुनाये चिन्ह मिले कुछ, सुने-सुनाये नाम मिले।
फिर भी आना व्यर्थ हुआ क्या तुंगारण्य? यहाँ तुझमें?
नेत्ररंजनी वेत्रवती पर हमें हमारे राम मिले।

ओरछा के अन्य दर्शनीय स्थलों में जहाँगीर महल-जिसे जहाँगीर ने अपने विश्राम के लिए ओरछा के दुर्ग में एक सुन्दर महल बनवाया था जिसे जहाँगीर महल कहते हैं। यह बेतवा के मनोरम तट पर स्थित एक भव्य और ऐतिहासिक महल है।

राजमन्दिर

बेतवा नदी के द्वीप में राजा वीर सिंह जूदेव ने एक विशाल महल बनवाया था जो अत्यधिक सुन्दर और कलात्मक है।
ओरछा दुर्ग

मानिकपुर झाँसी रेल-मार्ग पर बेतवा नदी पर बुन्देलवंशीय राजाओं ने यह महल बनवाया था। जो राजाओं के शौर्य, पराक्रम और वीरतापूर्ण गौरव गाथाओं का गुणगान कर रहा है। ओरछा महल के भीतर अनेक प्राचीन मन्दिर हैं जिनमें चतुर्भुज मंदिर, रामराजा मन्दिर और लक्ष्मीनारायण मन्दिर बुन्देला नरेशों की कलाप्रियता के प्रतिमान हैं।

बेतवा को पुराणों में ‘कलौ गंगा बेत्रवती भागीरथी’ कहा गया है। आचार्य क्षितीन्द्र मोहन सेन ‘हमारी बुन्देलखण्ड की यात्रा’ नामक लेख में कहते हैं कि- ‘बेत्रवती ने अपने चंचल प्रवाहों से सारे बुन्देलखण्ड को सिक्त कर रखा है।’

ओरछा सात मील के परकोटे पर बसा पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगर है। जो सोलहवीं शताब्दी में बुन्देला राजाओं की राजधानी था।
कंचना घाट

बेतवा का कंचना घाट नाम इस कारण पड़ा क्योंकि इस घाट पर स्त्रियों के स्नान करने पर उनके स्वर्ण आभूषणों के क्षरण से प्रतिदिन लगभग सवा मन सोना घिसकर बह जाता था।

ओरछा के रामराजा मन्दिर में आज भी बाल भोग लगता है और भोग के रूप में पान का बीड़ा, इत्र का फाहा एवं मिष्टान्न भक्तों को प्रदान किया जाता है। राम को राजा मानकर प्रतिदिन प्रातः एवं संध्याकाल में शासकीय तौर पर उन्हें तोपों से सलामी दी जाती है तथा पुलिस इस मंदिर में हमेशा तैनात रहती है। यहाँ राम वनवासी रूप में न होकर राजा के रूप में अपने दरबार में विराजमान हैं। इसलिए यह रामराजा मंदिर कहलाता है। राजा के रूप में देश में राम के मंदिर बहुत कम हैं।

वास्तव में यह स्थान मंदिर के वास्तु शास्त्र के आधार पर निर्मित नहीं है। यह गणेश कुँवरि रानी का महल था जो एक जनश्रुति के आधार पर मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया। ऐसी मान्यता है कि रामराजा सरकार को गणेश कुँवरि अयोध्या की सरयू नदी की जलराशि के मध्य से पुष्य नक्षत्र में पैदल चलकर अपनी गोद में लेकर ओरछा आयी थीं।

रामलला रानी के साथ तीन शर्तों के आधार पर आये थे। पहली शर्त पुष्य नक्षत्र में लेकर चलने की थी। दूसरी शर्त-अगर रानी उन्हें किसी स्थान पर रख देंगी तो वे फिर वहाँ से उठेंगे नहीं और अन्तिम शर्त थी ओरछा में आने के बाद वहाँ के राजा राम ही होंगे। दूसरी शर्त के आधार पर रानी ने रामलला को मंदिर के बजाय भूलवश अपने महल में रख दिया था। अतः वे वहीं प्रतिस्थापित हो गये।

चंदेरी                                             READ CONTINUAL…       WWW.EXAM GUIDER.COM

इस नगर से बेतवा और उर्वशी नदियाँ प्रवाहित होती हैं। चंदेरी समुद्र तल से 1700 फुट की ऊँचाई पर स्थित अशोक नगर जिला से 50 किलोमीटर दूर है। महाभारत के हैहयवंशी शिशुपाल चेदि नरेश ने इसे बसाया था। इसी कारण शायद यह चंदेरी कहलाया होगा। इस ऐतिहासिक नगर ने प्राचीनकाल में अनेक आक्रमण झेले, जैसे-महमूद गजनवी, नसरुद्दीन खिलजी के सेनापति अमिलमुल, फिरोजशाह तुगलक, सिकन्दर और बाबर आदि। यहाँ की साड़ियाँ और जरी की कारीगरी का कार्य जग-जाहिर है।

देवगढ़

उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले से 33 किलोमीटर की दूरी पर बेतवा के तट पर विन्ध्याचल की दक्षिण-पश्चिम पर्वत श्रृँखला पर देवगढ़ स्थित है। इसका प्राचीन नाम लुअच्छागिरि है। पहले प्रतिहारों और बाद में चंदेलों ने इस पर शासन किया। देवगढ़ में ही बेतवा के किनारे 19 मान स्तम्भ और दीवालों पर उत्कीर्ण 200 अभिलेख हैं। जैन मंदिरों के ध्वंसावशेष यहाँ बहुतायत में विद्यमान हैं। गुप्तकालीन दशावतार मंदिर भी दर्शनीय हैं। यहाँ बहुतायत में विद्यमान हैं। गुप्तकालीन दशावतार मंदिर भी दर्शनीय हैं यहाँ 41 जैन मंदिर हैं। यहाँ प्रतिहार, कल्चुरि और चंदेलों के शासनकाल की प्रतिमाएँ और अभिलेख बिखरे पड़े हैं। पुरातत्व की दृष्टि से देवगढ़ जग प्रसिद्ध है। बिखरी हुई मूर्तियों को संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। बेतवा तट पर तीसरा स्थान रणछोड़ जी है। यह स्थल धौर्रा से लगभग 5 किलोमीटर दूर है। रणछोड़ जी मंदिर में विष्णु और लक्ष्मी की प्रतिमाएं हैं। यहाँ हनुमान जी की भव्य मुर्ति भी है। लेकिन यह मंदिर शिखरहीन है। इस मंदिर के अतिरिक्त यहाँ और भी मंदिरों के पुरावशेष हैं जो हमारी समृद्धि का कहानी कहते हैं। देवगढ़ पुरातत्वविदों का एक महत्वपूर्ण कला केंद्र है। पुरातत्व सम्पदा से सम्पन्न है देवगढ़। इसे बेतवा नदी का आइसलैण्ड कहा जाता है।

बुन्देलखण्ड के पठारी प्रदेश की प्रमुख नदी बेतवा है जो मालवा का जल अपने साथ प्रवाहित कर नरहर कगार को देवगढ़ के पास काटकर एक सुन्दर गुफा का निर्माण करती है। इस पठार प्रदेश से सिंध, केन, पहुज और धसान नदियाँ प्रवाहित होती है।

विदिशा के चारों तरफ बहती बेत्रवती नदी में स्नान के समय विलासिनियों के कुचतट के स्फालन (हिलने) से उसकी तरंग श्रेणी चूर्ण-विचूर्ण हो जाती थी और रक्षकों द्वारा स्नानार्थ आनीत विजाता स्त्रियों के अग्रभाग में लिप्त सिंदूर के फैलने से सांध्य आकाश की भाँति उसका पानी लाल हो जाया करता था और उसका तट देश उन्मत कलहंस मण्डली के कोलाहल से सदा मुखरित रहता था।

एल नीनो (El Nino)

एल-नीनो स्पैनिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- शिशु यानी छोटा बालक। वैज्ञानिक अर्थ में, एल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस समुद्री घटना का नाम है जो दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित इक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती है। यह समुद्र में होने वाली उथलपुथल है और इससे समुद्र के सतही जल का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है। अक्सर इसकी शुरूआत दिसंबर में क्रिसमस के आस पास होती है। ये ईसा मसीह के जन्म का समय है। और शायद इसी कारण इस घटना का नाम एल-नीनो पड़ गया जो शिशु ईसा का प्रतीक है। जब समुद्र का सतही जल ज्यादा गर्म होने लगता है तो वह सतह पर ही रहता है। इस घटना के तहत समुद्र के नीचे का पानी ऊपर आने के प्राकृतिक क्रम में रुकावट पैदा होती है। सामान्यत: समुद्र में गहराई से ऊपर आने वाला जल अपने साथ काफी मात्रा में मछलियों के लिए खाद्य पदार्थ लाता है। यह क्रिया एल-नीनो के कारण रुक जाती है। इससे मछलियां मरने लगती हैं और मछुआरों के लिए यह समय सबसे दुखदायी होता है। एक बार शुरू होने पर यह प्रक्रिया कई सप्ताह या महीनों चलती है। एल-नीनो अक्सर दस साल में दो बार आती है और कभी-कभी तीन बार भी। एल-नीनो हवाओं के दिशा बदलने, कमजोर पड़ने तथा समुद्र के सतही जल के ताप में बढ़ोतरी की विशेष भूमिका निभाती है। एल-नीनो का एक प्रभाव यह होता है कि वर्षा के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं। परिणामस्वरूप विश्व के ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होने लगती है। कभी-कभी इसके विपरीत भी होता है।

ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत में समुद्र तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव को एल नीनो कहा जाता है जो पूरे विश्व के मौसम को अस्त-व्यस्त कर देता है। यह बार-बार घटित होने वाली मौसमी घटना है जो प्रमुख रूप से दक्षिण अमेरिका के प्रशान्त तट को प्रभावित करता है परंतु इस का समूचे विश्व के मौसम पर नाटकीय प्रभाव पड़ता है।

‘एल-नीन्यो’ के रूप में उच्चरित इस शब्द का स्पैनिश भाषा में अर्थ होता है ‘बालक’ एवं इसे ऐसा नाम पेरू के मछुआरों द्वारा बाल ईसा के नाम पर किया गया है क्योंकि ईसका प्रभाव सामान्यतः क्रिसमस के आस-पास अनुभव किया जाता है। इसमें प्रशांत महासागर का जल आवधिक रूप से गर्म होता है जिसका परिणाम मौसम की अत्यंतता के रूप में होता है। एल नीनो का सटीक कारण, तीव्रता एवं अवधि की सही-सही जानकारी नहीं है। गर्म एल नीनो की अवस्था सामान्यतः लगभग 8-10 महीनों तक बनी रहती है।

चुटका में परमाणु बिजली-घर

मंडला जिले के चुटका में परमाणु बिजली-घर प्रस्तावित है। 1400 मेगावाट क्षमता वाले दो परमाणु संयंत्र लगाने की योजना है। लेकिन स्थानीय जनता इसे किसी भी कीमत पर नहीं चाहती और पूरी ताकत से इसका विरोध कर रही है। उन्हें विस्थापन के दर्द का अहसास है। इस इलाके के डेढ़ सौ से ज्यादा गांव 90 के दशक में बरगी बांध से उजड़ चुके हैं और न तो उन्हें पर्याप्त मुआवजा मिला है न ही ज़मीन। वादे हमेशा की तरह वादे ही रह गए और गांव के गांव बर्बाद हो गए।

यह अत्यंत निर्धन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। पहाड़ और जंगलों के बीच आदिवासी रहते हैं। नर्मदा नदी और बरगी बांध के किनारे होने के बावजूद इनके खेत प्यासे हैं। बारिश की खेती व डूब की खेती (यह खेती जैसे-जैसे जलाशय का पानी खाली होता जाता है, उस जमीन में की जाती है) करते हैं। कोदो, कुटकी, ज्वार, मक्का जैसे मोटे अनाज होते हैं। लेकिन इससे गुजारा नहीं होता। बडी संख्या में इधर-उधर पलायन करना भी पड़ता है। लेकिन रोज़गार, पढाई-लिखाई की व्यवस्था न करने के बजाय फिर एक बार इन पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन वे दोबारा विस्थापित होने के लिए तैयार नहीं हैं।
चुटका परमाणु बिजली-घर से तीन गांव विस्थापित होंगे और एक गांव को आवासीय कॉलोनी के लिए उजाड़ा जाएगा। और करीब 20 किलोमीटर दायरे के कई गांव इससे प्रभावित होंगे।

वायु प्रदूषण

आधुनिकता तथा विकास ने, बीते वर्षों में वायु को प्रदूषित कर दिया है। उद्योग, वाहन, प्रदूषण में वृद्धि, शहरीकरण कुछ प्रमुख घटक हैं। जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है। ताप विद्युत गृह, सीमेंट, लोहे के उद्योग, तेल शोधक उद्योग, खान, पैट्रोरासायनिक उद्योग, वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।         READ CONTINUAL…       WWW.EXAM GUIDER.COM

वायु प्रदूषण के कुछ ऐसे प्रकृति जन्य कारण भी हैं जो मनुष्य के वष में नहीं है। मरूस्थलों में उठने वाले रेतीले तूफान, जंगलों में लग जाने वाली आग एवं घास के जलने से उत्पन्न धुऑं कुछ ऐसे रसायनों को जन्म देता है, जिससे वायु प्रदूषित हो जाती है, प्रदूषण का स्रोत कोई भी देष हो सकता है पर उसका प्रभाव, सब जगह पड़ता है। अंटार्कटिका में पाये गये कीटाणुनाशक रसायन, जहाँ कि वो कभी भी प्रयोग में नहीं लाया गया, इसकी गम्भीरता को दर्शाता है कि वायु से होकर, प्रदूषण एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच सकता है।

प्रमुख वायु प्रदूषण तथा उनके स्रोत

कार्बन मोनो आक्साइड (CO) यह गंधहीन, रंगहीन गैस है। जो कि पेट्रोल, डीजल तथा कार्बन युक्त ईंधन के पूरी तरह न जलने से उत्पन्न होती है। यह हमारे प्रतिक्रिया तंत्र को प्रभावित करती है और हमें नींद में ले जाकर भ्रमित करती है।

कार्बन डाई आक्साइड (CO2) यह प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है जो मानव द्वारा कोयला, तेल तथा अन्य प्राकृतिक गैसों के जलाने से उत्पन्न होती है।

क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) यह वे गैसें हैं जो कि प्रमुखत: फ्रिज तथा एयरकंडीशनिंग यंत्रों से निकलती हैं। यह ऊपर वातावरण में पहुँचकर अन्य गैसों के साथ मिल कर ‘ओजोन पर्त’ को प्रभावित करती है जो कि सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकने का कार्य करती हैं।

लैड यह पेट्रोल, डीजल, लैड बैटरियां, बाल रंगने के उत्पादों आदि में पाया जाता है और प्रमुख रूप से बच्चों को प्रभावित करता है। यह रासायनिक तंत्र को प्रभावित करता है। कैंसर को जन्म दे सकता है तथा अन्य पाचन सम्बन्धित बीमारियाँ पैदा करता है।

ओजोन यह वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पायी जाती है। यह महत्वपूर्ण गैस, हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती हैं। लेकिन पृथ्वी पर यह एक अत्यन्त हानिकारक प्रदूषक है। वाहन तथा उद्योग, इसके सतह पर उत्पन्न होने के प्रमुख कारण है। उससे ऑंखों में खुजली जलन पैदा होती है, पानी आता है। यह हमारी सर्दी और न्यूमोनिया के प्रति प्रतिरोधक शक्ति को कम करती हैं।

नाइट्रोजन आक्साइड (Nox) यह धुऑं पैदा करती है। अम्लीय वर्षा को जन्म देती है। यह पेट्रोल, डीजल, कोयले को जलाने से उत्पन्न होती है। यह गैस बच्चों को, सर्दियों में साँस की बीमारियों के प्रति, संवेदनशील बनाती है।

सस्पेन्ड पर्टीकुलेट मैटर (SPM) कभी कभी हवा में धुऑं-धूल वाष्प के कण लटके रहते हैं। यही धुँध पैदा करते हैं तथा दूर तक देखने की सीमा को कम कर देते हैं। इन्हीं के महीन कण, साँस लेने से अपने फेंफड़ों में चले जाते हैं, जिससे श्वसन क्रिया तंत्र प्रभावित हो जाता है।

सल्फर डाई आक्साइड (SO2) यह कोयले के जलने से बनती है। विशेष रूप से तापीय विद्युत उत्पादन तथा अन्य उद्योगों के कारण पैदा होती रहती है। यह धुंध, कोहरे, अम्लीय वर्षा को जन्म देती है और तरह-तरह की फेफड़ों की बीमारी पैदा करती है।

भारत, पाकिस्तान और चीन का जल विवाद

पानी आज दुनियां का सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। सही बात है कि पानी ही जीवन है। इस वर्ष भारत में एक ऐसी अप्रत्याशित तबाही हुई है जिसका संबंध पानी से है पानी बचाओं का नारा जरूरी है लेकिन यह काफी नहीं है। पानी का कुप्रबंध चारों तरफ दिखाई दे रहा है। इसे रोकना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। पानी को प्रदूषण से बचाना, पानी का सही तरीके से उपयोग करना और उसके ड्रेनेज की सही व्यवस्था करना हमारी सोच तथा हमारी जीवन पद्धति के आवश्यक भाग होने चाहिए।

जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भी पानी पर ध्यान जाता है। जलवायु परिवर्तन कई तरह की तबाही कर सकता है जिसमें वर्षा की अनिश्चितता के साथ-साथ बाढ़ों की बढ़ोतरी हो सकती हैं। हमारी नदियां बुरी तरह प्रदूषित हो रही हैं। हिमालय से जल प्राप्त करने वाली नदियां भी सूख रही हैं। हिमालय के ग्लेशियर पिघलने के कारण गंगा कैसे बचेगी? वैसे गंगा तो आज भी एक गंदा, बड़ा नाला बन गई है जिसमें गंदगी के साथ-साथ रसायन और औद्योगिक कचरा भी डाला जा रहा है। सारी शुद्धता और पवित्रता को हमने खत्म कर दिया है। गंगा केवल भारत की नदी नहीं है। इसका उद्गम भारत में नहीं है। यह भारत में बहती-बहती बंगलादेश में जाकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। पानी के बंटवारे को लेकर दोनों देशों में कई बार तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। नेपाल और भूटान से भी जल परियाजनाओं को लेकर, बिजली परियोजनाओं को लेकर, कई तरह के विवाद हैं। पिछले वर्ष नेपाल से आये पानी ने बिहार के कुछ भागों में जबरदस्त तबाही मचाई थी।          READ CONTINUAL…       WWW.EXAM GUIDER.COM

भारत-पाकिस्तान वार्ताओं के सफल होने में एक बड़ी बाधा पानी को लेकर है। इन्डस वाटर ट्रीटी के बावजूद पाकिस्तान कश्मीर में पानी के लिए भी प्रत्यक्ष युद्ध लड़ रहा है। विश्व बैंक ने तीन पूर्वी नदियां सतलुज, व्यास और रवि भारत को दी तथा तीन पश्चिमी नदियां चिनाब, झेलम और इन्डस पाकिस्तान को दी थीं। इस संधि को लेकर भी विवाद है, इसकी व्याख्या को लेकर विवाद है, इसके प्रभावों को लेकर भी विवाद है। चीन पाकिस्तान का पक्का मित्र है और कई वर्षों से चीन द्वारा महान तिब्बती नदियों पर बांध बनाने व अन्य परियोजनाओं बनाने की खबरें भारत को चिन्तित करती रही हैं। ब्रह्मपुत्र को लेकर काफी चिंता है। भारत की हिमालयी नदियों का पानी चीन की भूमि से आता है। इस तरह पानी एक एशियाई मसला है तथा भारत तथा पाकिस्तान दोनों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है।

भारत में भी पानी को लेकर अन्तर्राज्यीय विवाद बीच-बीच में उफान पर आ जाते हैं। कावेरी विवाद, रावी-व्यास विवाद, नर्मदा विवाद इसमें से ज्यादा उल्लेखनीय हैं। इन विवादों से कई जटिल सवाल जुड़े हैं। फिर इनको तय करने के लिए कोई गंभीर प्रयास राज्यों के दबावों या न्यायिक हस्तक्षेप के कारण नहीं किये गये हैं। समय आ गया है कि हम इस पर सोचें तथा इन मसलों को सुलझायें। हर राज्य के लिए पानी का और नदियों का सवाल प्रतिष्ठा का प्रश्न भी है, जनता की मांग भी है। जनसाधारण की आवश्यकता से सोचना चाहिए और अनुच्छेद 262 के अन्तर्गत बनाये इंटर-स्टेट वाटर ट्राइब्यूनल के अधिकारों को बढ़ाया जाना चाहिए किंतु भारत की एकता और अखंडता की बातें किसी भी स्थिति में नहीं होनी चाहिए। पानी न तो एक क्षेत्र का मामला है न एक राज्य का, न एक देश का। पानी एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है जो भविष्य में अधिक विकट स्वरूप धारण करेगी। दुनियां में मिलने वाले पानी का केवल दो प्रतिशत पानी ही पीने लायक है। पानी पीने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है और पानी मितव्ययता मानव स्वभाव से गायब होती जा रही है। पानी के लिए विश्व युद्ध होगा या नहीं, युद्ध से भी अधिक भयंकर तबाही भी आ सकती है।

You may also like...

error: Content is protected !!