सोने की स्वर्णिम यात्रा
सोने की स्वर्णिम यात्रा
1. दुनिया में सोना कब, कैसे आया?
भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक सोना सबसे पुरानी धातु है। एक संभावना यह है कि 13 अरब साल पहले दो विशालकाय तारों की टक्कर के फलस्वरूप हुए विस्फोट के बाद जो कण पैदा हुए, उसी से ब्रह्मांड में सोना अस्तित्व में आया था। यानी जब 4.6 अरब साल पहले पृथ्वी का निर्माण हुआ, तभी से सोना इस पर मौजूद था। प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक रॉबर्ट बॉयल के अनुसार सोना ऐसी पहली धातु थी, जिसके बारे में हमारे मानव पूर्वजों ने जाना होगा। उन्हें पता चला होगा कि इसे कोई भी आकार दिया जा सकता है और यह आसानी से नष्ट नहीं होता। इसके प्रतिआकर्षण की यहीं से शुरुआत हुई होगी।
2. पहली बार खोज कहां हुई थी ?
भूगर्भशास्त्रियों और इतिहासकारों के अनुसार सोने के शुरुआती टुकड़े 40,000 ईसा पूर्व स्पेन की गुफाओं में पाए गए थे। लेकिन 4,600 ईसा पूर्व बुल्गारिया के वरना चैल्कोलिधिक नेक्रोपोलिस की कनगाहों में सोने की जो कलाकृतियां मिलीं, उन्हें आधिकारिक तौर पर सोने की प्रथम खोज माना जाता है। 3,300 ईसा पूर्व से 1,200 ईसा पूर्व के दौर को सोने का स्वर्णकाल माना जाता है। मिस्र से लेकर प्राचीन चीन, प्राचीन अमेरिका और यूरोप के दूर-दराज के इलाकों तक ने सोने को अपनाया।
3. स्वर्ण खनन उद्योग कब बना?
प्राचीन मिस्र में सोने के शिल्प, खनन और भव्य आभूषणों की परंपरा सबसे अधिक विकसित हुई। वहीं पर 1900 ईसा पूर्व सबसे पहले सोने का लिखित उल्लेख पाया गया। लगभग 1332 ईसा पूर्व तूतनखामुन के शासनकाल तक मिस्र में स्वर्ण खनन एक प्रमुख उद्योग बन चुका था। नूबिया जो आज के दक्षिणी मिस्र और सूडान के क्षेत्र में स्थित था, सोने का मुख्य स्रोत था। लगभग 1500 ईसा पूर्व प्राचीन मिस्र ने सोने को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए पहली आधिकारिक विनिमय मुद्रा के रूप में अपनाया था।

4. उपनिवेशों का जनक कैसे बना?
दक्षिण और मध्य अमेरिका के इंका तथा एज्टेक साम्राज्यों के पास सोने के विशाल भंडार थे। लेकिन उन संस्कृतियों में सोने को कोई विशेष अहमियत नहीं थी। इसकी अहमियत को सबसे पहले स्पेन ने पहचाना। 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस की अमेरिका की खोज ने स्पेन को उन सोने के भंडारों पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया। यहीं से उपनिवेशी शासनों की शुरुआत मानी जाती है। स्पेन भारी मात्रा में सोना अपने यहां ले गया, जिसने उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया। यही काम बाद में अंग्रेजों ने किया। वे भी भारत जैसे देशों से सोना-चांदी अपने देश ले गए।
5. भारत क्यों था सोने की चिड़िया
17वीं सदी तक दुनिया की कुल जीडीपी का 25 फीसदी हिस्सा भारत के पास था। सोने-चांदी के विशाल भंडार भी हुआ करते थे। शिक्षा-संस्कृति व ज्ञान के मामले में भी भारत सिरमौर था। इन वजहों से उसे ‘गोल्डन बर्ड’ (सोने की चिड़िया) की संज्ञा दी गई थी। मुगलकाल में भारत में सिक्कों, आभूषणों व खजानों के रूप में सोने का अनुमानित भंडार 500 से 1000 टन के आसपास था। लेकिन अंग्रेजों ने सिस्टेमैटिक तरीके से काफी सारा सोना धीरे-धीरे ब्रिटेन भेज दिया। आर्थिक इतिहासकार उत्सा पटनायक के अनुसार 1765 से 1938 तक ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत से करीब 45 ट्रिलियन डॉलर का धन ब्रिटेन भेजा। इसमें से 9-14 ट्रिलियन सोना व चांदी के रूप में था। नादिर शाह जैसे आक्रमणकारी भी भारी मात्रा में सोना-चांदी भारत से लूटकर ले गए।
6. क्या है सोने का विज्ञान?
रसायन विज्ञान में सोने को ‘नोबल मेटल’ कहा जाता है। नोबल मेटल वे धातुएं होती हैं, जो बहुत कम प्रतिक्रिया करती हैं, यानी अन्य पदार्थों जैसे हवा, पानी, एसिड या ऑक्सीजन के साथ मिलने से भी इसकी चमक लगभग नहीं बदलती। लोहे या तांबे के विपरीत, सोने पर जंग भी नहीं लगता। सोना बिजली को आसानी से और स्थिरता से प्रवाहित करता है, इसलिए चिप्स और वायरिंग में इस्तेमाल के लिए इसे आदर्श धातु माना जाता है। सोना मानव शरीर के लिए हानिकारक भी नहीं है। इसलिए दांतों में, कानों को छिदवाने में और मेडिकल इम्प्लांट्स आदि में इसका उपयोग किया जाता है। स्वर्ण भस्म का इस्तेमाल तो आयुर्वेदिक औषधि के तौर पर सदियों से होते आया है।

7. करेंसी के बदले सोना रखना ?
किसी समय सभी देश अपनी करेंसी के बदले में सोना रखते थे। शुरुआत 1819 में ब्रिटेन ने की थी। उसने ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ अपनाया, यानी उसकी मुद्रा की कीमत को सोने की कीमत से जोड़ा गया। लेकिन 1931 में ब्रिटेन ने गोल्ड स्टैंडर्ड छोड़ दिया। 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में डॉलर का दबदबा स्थापित हुआ। डॉलर को सोने से जोड़ा गया और प्रति 35 डॉलर की कीमत 1 औंस (28.34 ग्राम) सोना तय की गई। हालांकि 1971 में अमेरिका ने भी गोल्ड स्टैंडर्ड को खत्म कर दिया।
8. कैसे तय होती है कीमत?।
सोने की कीमतें दुनिया भर के बाजारों में ट्रेडिंग के जरिए तयसहोती हैं। लंदन स्थित ‘लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन’
हर दिन दो बार सोने की ‘स्पॉट प्राइस’ निर्धारित करता है,सजो मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। यही पूरी दुनिया
के लिए एक मानक बन जाता है। न्यूयॉर्क स्थित कॉमेक्स में सोने का फ्यूचर्स ट्रेड होता है, यानी भविष्य की कीमतों पर सौदे होते हैं। भारत में इंडियन बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन देशभर के ज्वेलर्स और ट्रेडर्स से डेटा लेकर रोजाना के लिए रेट जारी करता है।
9. शेयर बाजार से कैसा है नाता ?
सोना और शेयर बाजार आमतौर पर (हालांकि हमेशा नहीं) विपरीत दिशा में चलते हैं। जब शेयर बाजार अस्थिर होता है या गिरता है तो निवेशक सोने को सुरक्षित विकल्प मानकर खरीदते हैं। इससे सोने की कीमतें बढ़ती हैं। जब शेयर बाजार अच्छा प्रदर्शन करता है तो निवेशक सोना बेचकर इक्विटी में पैसे लगाते हैं। इससे सोने की कीमत गिरती है। इस साल जहां अक्टूबर 24 से सितंबर 25 तक सोने ने करीब 70% का रिटर्न दिया है तो इक्विटीस म्युचूअल फंड का रिटर्न एक साल में निगेटिव रहा है।
10. क्या है सोने का भविष्य ?
कमोडिटी रिसर्च यूनिट (सीआरयू) के जाने-माने मेटल असेस एनालिस्ट ओलिवर ब्लेजडन के अनुसार 2025
में सोने का उत्पादन 3,250 मीट्रिक टन रहेगा। यह उत्पादन में चरम की स्थिति रहेगी। यानी इसके बाद धीरे- धीरे उत्पादन में गिरावट आती जाएगी। उनके मुताबिक 2030 तक सोने के वैश्विक उत्पादन में 17 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। चूंकि सोने के भंडार सीमितसहैं और मांग ज्यादा, इसलिए भविष्य में सोना और भी महंगा हो सकता है।
सोने का सबसे प्राचीन मुकुट
सोने का सबसे प्राचीन मुकुट, वजन 605 ग्राम ‘आयरन क्राउन ऑफ लोम्बार्डी’ सबसे प्राचीन स्वर्ण मुकुट है। यह करीब 2,000 वर्ष पुराना माना जाता है। इसे इटली के मोंजा कैथेड्रल में सुरक्षित रखा गया है। 605 ग्राम वजनी इस मुकुट में 22 रत्न जड़े हुए हैं।
धरती पर कितना सोना ?
धरती पर है 2,44,000 मीट्रिक टन सोना यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार अब तक 1,87,000 मीट्रिक टन सोना निकाला जा चुका है। अगर अब तक निकला सारा सोना एक घन (क्यूब) में रखा जाए तो उसकी प्रत्येक भुजा 75 फीट चौड़ी होगी। वैसे धरती के भीतर अब भी लगभग 57,000 मीट्रिक टन सोना बाकी है। यानी कुल मिलाकर धरती पर इस समय करीबन 2,44,000 मीट्रिक टन सोना (उत्पादित और खदानों के भीतर) मौजूद हैं। लंदन गोल्ड फिक्सिंग के अनुसार, अब तक निकले 1,87,000 मीट्रिक टन सोने की कीमत करीब 16 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है।
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