भारत-चीन: साझेदारी !
भारत-चीन: साझेदारी
हाल ही के वैश्विक घटनाक्रमों ने भारत और चीन के बीच सहयोग की संभावना को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। अमेरिका ने हाल ही में भारत के कुछ उत्पादों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जबकि वह चीन पर पहले से ही ट्रेड, टेक्नोलॉजी और भू-राजनीतिक दबाव बना रहा है। इस पृष्ठभूमि में दोनों एशियाई शक्तियों के लिए एक साथ सहयोग की व्यापक संभावनाएँ हैं ।
इन 4 क्षेत्रों में हो सकता है सहयोग
1. व्यापार : भारत के लिए जरूरी
भारत और चीन दोनों के बीच व्यापार में सतत बढ़ोतरी
होते आई है। साल 2020 के गलवान घाटी विवाद के बाद भी इसमें कमी नहीं आई, क्योंकि यह दोनों के ही हित में है। चूंकि भारत इंटरमिडिएट गुड्स (कच्चे माल) के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए वह इस स्थिति में नहीं है कि चीन से जो निर्यात हो रहे हैं, उन्हें दर किनार कर सके। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर व्यापार में कमी आती है,तो भारत के आर्थिक विकास पर इसका सीधा असर पड़ेगा। यह चीन के भी हित में इसलिए है, क्योंकि कुल करीब 135 अरब डॉलर के व्यापार में से 99 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस उसके पक्ष में है।
2. तकनीक: चीन की बड़ी छलांग
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इमर्जिंग टेक्नोलॉजी में चीन ने बहुत बड़ी छलांग लगाई है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) भी शामिल है। चीन ने इन तकनीकों में काफी निवेश किया है और इस वजह से वह अमेरिका को टक्कर देता भी दिखाई पड़ रहा है। लेकिन इसमें भारत को चीन से कोई बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह ऐसा क्षेत्र है, जो आने वाले समय में ग्लोबल बैलेंस पावर को डिफाइन करेगा। चीन किसी भी कीमत पर भारत की उस क्षेत्र में मदद नहीं करेगा, जिसमें भारत की तकनीकी दक्षताओं में इजाफा हो।
3. ग्रीन एनजीं : मिलकर काम संभव , इस क्षेत्र में भारत और चीन दोनों ही अपने-अपने तरह से प्रयासरत हैं। इस क्षेत्र में दोनों के साथ मिलकर काम करने की काफी नी संभावनाएं हैं, क्योंकि दोनों ही बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और ग्रीन फ्यूचर की तरफ बढ़ना चाहती हैं और लगातार बढ़ भी रही हैं। इन दोनों ने अपने-अपने मानदंड व लक्ष्य बनाए हैं और इनको पूरा करने के लिए जरूरी है कि ये एक साथ काम करें। इसी में इनका फायदा है। फिर जलवायु परिवर्तन की समस्या है, जिसका खामियाजा भी दोनों देशों को भुगतना पड़ सकता है। जब तक ये हरित ऊर्जा में साथ मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक इस समस्या का समाधान ढूंढना मुश्किल होगा।
4, शिक्षा-संस्कृति: काफी संभावना
यह ऐसी चीज है, जो गलवान विवाद के बाद पूरी तरह कटगई थी। इसमें पुनरुद्धार की संभावना थी और जो धीरे-धीरे हो भी रहा है। यह फिर से लौटेगा, अगर चीन सीमा मसलों को लेकर दोबारा से कोई गल्लती नहीं करे। चीन के खिलाफ भारत में एक माहौल है। यहां लोगों में उसके प्रति बहुत ज्यादा गर्मजोशी नहीं है। लेकिन शिक्षा और संस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए दोनों देश एक-दूसरे को समझने की बेहतर कोशिश कर सकते हैं और करनी भी चाहिए। लेकिन यह भी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि केवल इससे सामरिक संबंधों में कोई बहुत बड़ा बदलाव आ जाएगा।

युद्ध क्यों हुआ था? 1962: चीन ने क्यों किया था एक तरफा युद्ध विराम?
21 नवंबर 1962 को चीन ने भारत के साथ युद्धविराम घोषित कर दिया, जबकि वह स्पष्ट रूप से बढ़त पर था। यह युद्ध भारत के लिए गहरा सदमा था, खासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की छवि को इससे चोट पहुंची थी। चीन के लिए यह न सिर्फ भारत, बल्कि पश्चिमी दुनिया के लिए भी अपनी ताकत का प्रदर्शन था।
1962 के युद्ध के कई कारण थे। 1950 में जब तिब्बत बफर के तौर पर हटा तो चीन ने बॉर्डर एरिया पर नियंत्रण करने की कोशिश की। इस समय चीन को भारत तिब्बत के एक समर्थक के तौर पर नजर आया। फिर चीन ने अक्साई चीन को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की। इसको लेकर विवाद का शुरुआत हुई और इस तरह यह एक युद्ध में तब्दील हो गया। युद्ध की एक की एक परोक्ष वजह और भी मानी जाती है। उस समय चीन में माओ जेडोंग की ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ नीति, जिसका उद्देश्य देश को कृषि प्रधान से बाहर निकालकर आधुनिक राष्ट्र बनाना था, के प्रति जनता में असंतोष था। युद्ध का मकसद उनकी घटती लोकप्रियता पर परदा डालना भी था।
चीन बनाम भारत – इन 4 क्षेत्रों में है चुनौती
1. सीमा विवादः कोई उम्मीद नहीं
चीन भारत के सामने हमेशा एक सामरिक चुनौती खड़ी करता है और खड़ी करता रहेगा। सीमा विवाद इसका एक हिस्सा है। गलवान में जिस पाईंट पर झड़प हुई थी, वहां से दोनों सेनाएं पीछे हट गई हैं, लेकिन क्षेत्र पूरी तरह से खाली नहीं हुआ है। दोनों ने जिस तरह से सीमाओं पर अपनी-अपनी सेनाओं को मोबेलाइज किया है, उससे लगता नहीं है कि इस प्रक्रिया में कोई तेजी आएगी।
2, बीआरआई: वेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव घेरने का प्रयास
भारत के सामने एक दूसरी बड़ी चुनौती है चीन द्वारा शुरूकिया गया वेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)। इसके जरिए उसने भारत के चारों ओर इंफ़रास्ट्रक्चर का जाल बिछा दिया है। इससे चीन की सैन्य क्षमता हिंद महासागर तक आ गई है। तो चीन केवल आर्थिक व सैन्य ताकत ही नहीं,बीआरआई द्वारा भी भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है।
3.अविश्वास : एक गहरी खाई
दोनों के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई है जिसे पाटने में बहुत समय और में लगेगा। हाल ही में ऑब्जर्वर रिसर्चफाउंडेशन (ओआरएफ) ने भारतीय युवाओं के बीच एक सर्वे किया था। उसमें पाया गया कि चीन पर अविश्वास करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है और अविश्वास की यह धारा आम लोगों से लेकर सत्ता तक जाती है। चीन को लेकर यह स्थिति बनी रहेगी।
4. पाकिस्तान: चीन का मोहरा
चीन जिस तरह से पाकिस्तान के साथ सहयोग करता है, यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है। चीन ने कभी भी पाकिस्तान को दूसरे दर्जे का नहीं माना है। उसने हमेशा यही कोशिश की है कि दक्षिण एशिया में वह पाकिस्तान को भारत के समकक्ष रखे। उसकी नीति यह है कि भारत सदैव दक्षिण एशियाई देश के तौर पर बंधा हुआ नजर आए और उसे तोड़कर वैश्विक शक्ति के तौर पर खड़ा न हो पाए।
भारत -चीन तुलनात्मक स्थिती
1.आर्थिक शक्ति
चीनः विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। 19-20 ट्रिलियन डॉलर है, वैश्विक मैन्युफैक्वरिंग में इसका 30% हिस्सा रखता है।
* भारतः चौथी सबसे बड़ीअर्थव्यवस्था। जीडीपी 4.1ट्रिलियन डॉलर, लेकिन 6.5% के साथ सबसे तेज विकास दर। सबसे अधिक युवा आबादी भी यहीं।
* मायने क्या? अर्थव्यवस्था के आकार में चीन आगे,लेकिन विकास दर, जनसांख्यिकीय लाभ और भविष्य की संभावनाओं में भारत बेहतर स्थिति में है।
2. सामरिक शक्ति
*चीनः 220 अरब डॉलर का रक्षा बजट। सक्रिय सैन्य कर्मियों की संख्या 20 से 22 लाख। सिप्री के अनुसार 600 से अधिक न्यूक्लियर वारहेड्स।
* भारतः लगभग 82 अरब डॉलर का रक्षा बजट। सक्रिय सैन्य कर्मियोंकी संख्या लगभग 14 लाख। सिप्री के अनुसार 180 न्यूक्लियर वारहेड्स।
* मायने क्या? सेना की संख्या, बजट और आधुनिक तकनीकों में चीन को स्पष्ट बढ़ता लेकिन भारत का परमाणु शक्ति सम्पन्न होना बैलेंस का काम करता है।
3.भू-रणनीतिक प्रभाव
* चीनः हिंद महासागर में व्यापक प्रभाव। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए पड़ोसी देशों पर प्रभुत्व स्थापित करके भारत को घेरने का प्रयास।
* भारतः हिंद महासागर में नौसेना की मौजूदगी बढ़ा रहा है। 2035 तक 175 जहाज तैनात करने का लक्ष्य। क्वाड-ब्रिक्स से संतुलन बनाने में सक्रिय।
* मायने क्या ?: समुद्री शक्ति और वैश्विक सामरिक नीति में चीन बड़ा खिलाड़ी है, लेकिन भारत की स्ट्रेटेजिक पोजिशन उसे चीन से मुकाबले में बराबरी पर ले आती है।
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