बौद्धिक संपदा (Intellectual Property)

बौद्धिक संपदा

TRIPS- Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights 

बौद्धिक सम्पदा से तात्पर्य है मनुष्य के मस्तिष्क द्वारा उत्पादित कृतियाँ साहित्यिक व कलात्मक कार्य, चित्र, डिजाइन, नाम, प्रतीक आदि, जिनका व्यावसायिक प्रयोग किया जाता है।

दूसरे शब्दों में, बौद्धिक सम्पदा अधिकार से आशय है व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या किसी संस्था द्वारा किये गए किसी सृजन मद्देनजर उस व्योक्ति या व्याक्तियां के समूह या संस्था को प्रदान गया अधिकार। इस अधिकार के तहत संबंधित व्यक्ति, समूह,संस्था को स्वयं द्वारा किय गए सृजन का एक निश्चित अवधि तक विशिष्ट उपयोग का अधिकार होता है।

बद्धिक सम्पदा अधिकार को सामान्यत: दो भागों में विभाजित या जाता है- प्रथम औद्योगिक सम्पदा तथा द्वितीय कॉपीराइट व संबद्ध अधिकार।

औद्योगिक सम्पदा को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- पहला, इसमें आविष्कार (जिन्हें पेटेंट द्वारा संरक्षण दिया जाता है) तथा औद्योगिक डिज़ाइन, ट्रेड सीक्रेट रखे जाते हैं। इस संरक्षण का उद्देश्य नवीन तकनीक के विकास में निवेश को प्रोत्साहित करना है। इसके जरिये निश्चित अवधि तक संरक्षण प्रदान किया जाता है।(सामान्यत: पेटेंट 20 वर्षों के लिये दिये जाते हैं)। दूसरा, इसमें विशिष्ट चिह्ल प्रयुक्त होता है, जैसे ट्रेडमार्क जो किसी एक व्यवसाय की वस्तुओं और सेवाओं को दूसरे व्यवसाय की वस्तुओं और सेवाओं से अलग करता है। इसी प्रकार, भौगोलिक सूचकांक होता है, जो किसी वस्तु के मूल उत्पादन स्थान को दर्शाता है और उस स्थान की विशिष्ट भौगोलिक दशाओं का संबंध उस वस्तु के साथ स्थापित करता है। ऐसे विशिष्ट चिह्नों के संरक्षण का उद्देश्य न्यायपूर्ण प्रतिस्पद्धा को प्रोत्साहित करना और इसे बनाए रखना तथा उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करना होता है, जिससे उनके पास विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के बीच विकल्प चुनने का अवसर होता है। यह संरक्षण अनिश्चित काल के लिये दिया जा सकता है।

कॉपीराइट किसी साहित्यिक कृति अथवा कलाकृति यथा फिल्म, संगीत, लेखन-कार्य, पेंटिंग, मुर्तिकला, कंप्यूटर प्रोग्राम आदि के संबंध में लेखक/निमर्माता को कानूनी रूप से एक निश्चित अवधि के लिये अनन्य अधिकार प्रदान करता है। सामान्यत: यह प्रतिलिपि का अधिकार होता है। सामान्य रूप से कॉपीराइट निर्माता के पूरे जीवनकाल तथा उसकी मृत्यु के बाद 50 से 100 वर्षा तक के लिये प्रदान किया जाता है। कॉपीराइट एवं संबद्ध अधिकारों के जरियें कार्यक्रम प्रस्ततकत्ताओं (जैसे अभिनेता, गायक एवं संगीतकार) साउड रिकॉर्डिंगकरर्ता तथा ब्रॉडकास्टंग संगठनों के अधिकारों को भी संरक्षित किया जाता है।

पेटेंट

किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह या संस्था को किसी आविष्कार या प्रक्रियागत विकास के संबंध में प्रदत्त कानूनी अधिकार पेटेंट कहलाता है।

पेटेंट, आविष्कार के प्रयोग या उपयोग का अधिकार नहीं है, बल्की यह अन्य लोगों को पेटेंट किये गए आविष्कार के उत्पादन, उपयोग, बिक्री, बिक्री का प्रस्ताव, आयात आदि को रोकता है। आविष्कार को प्रोत्साहन देने के लिये पेटेंट कानून के तहत सीमित समय तक संरक्षण दिया जाता है। सामान्यत; पेटेंट के लिये 20 वर्षों का संरक्षण दिया जाता है।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के ट्रिप्स (TRIPS-Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights) समझोते विश्व व्यापार संगठन के सदस्य राष्ट्रों के बीच किसी आविष्कार के लिये पेटेंट की सुविधा है, जोकि कम-से-कम 20 वर्षों के लिये उपलब्ध होती है।

ट्रप्सि से संबंधित समझौता 1986 94 के उरूग्वे दौर की वार्ता में किया गया। ट्रिप्स के माध्यम से पहली बार बहपक्षीय व्यापार प्रणाली में बौद्धिक सम्पदा के नियमों को सम्मिलित किया गया। वस्तुतः बौद्धिक सम्पदा’ अधिकारों के संरक्षण और इन्हें लागू करने से संबंधित प्रावधान पूरे विश्व में भिन्नता रखते थे। व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण अंग होने के कारण ‘बौदि्धिक सम्पदा’ अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक जगत में तनाव का एक कारण बन गया। अत: बद्धिक सम्पदा अधिकारों से संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत व्यापारिक नियमों की आवश्यकता महसूस की गई और इन्हीं परिस्थितियों में ट्रिप्स समझौता लाया गया ताकि पूरे विश्व में बौद्धक सम्पदा अधिकारों को न्यायपूर्ण संरक्षण मिल सके।

बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से सम्बद्ध व्यापार विवादों को दूर करने के लिये अब विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत विवाद निपटान प्रणाली की व्यवस्था की गई है। ट्रिप्सि समझौते में पॉँच मुख्य बिन्दुओं को समाहित किया गया है, जो निम्नलिखित हैं-

व्यापार व्यवस्था के मौलिक सिद्धांतों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को किस प्रकार लागू किया जाना चाहिये।

बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को पर्याप्ति संरक्षण किस प्रकार दिया जाए। विभिन्न देश अपने भौगोलिक क्षेत्र में उन अधिकारों को किस प्रकार लागू करें। नई व्यवस्था प्रारंभ होने की अवधि के दौरान विशेष संक्रमणकालीन व्यवस्था को लागू करना।

डब्त्यूटीओ के सदस्य देशों के बीच बौद्धिक सम्पदा विवादों का निपटारा किस प्रकार किया जाए।

ट्रिप्स समझोते में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत यह भी निहित है कि बौद्धिक सम्पदा संरक्षण तकनीकी नवाचार व तकनीकी स्थानांतरण दोनों स्तरों पर प्रदान किये जाएंगे। समझौते के अनुसार उत्पादकों और उपयोगकर्ताओं दोनों को लाभान्वित होना चाहिये और आर्थिक-सामाजिक कल्याण को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। ट्रिप्स समझौते के तहत यह सुनिश्चत किया गया है कि बर्न अधिवेशन (स्विट्जरलैण्ड) के मद्देनजर कम्प्यूटर कार्यक्रमों को साहित्यिक कृत्य के रूप में समझा जाएगा। इसमें यह भी निहित है कि डाटाबेस को किस प्रकार संरक्षित किया जाए।

समझौते के अनुसार आविष्कारों के लिये पेटेंट संरक्षण न्यूनतम 20 वर्षों का होना चाहिये। यह भी कहा गया है कि लगभग तकनीक के सभी क्षेत्रों में उत्पादों और प्रक्रियाओं को पेटेंट का संरक्षण मिलना चाहिये। यदि लोक व्यवस्था या नैतिकता के मह्देनजर किसी पेटेंट के वाणिज्यिक दोहन को निषेधित किया जाता है तो सरकार, पेटेंट जारी करने को अस्वीकृत कर सकती है। 

समझौते के तहत पेटेंट – धारक द्वारा उपयोग किये जाने वाले न्यूनतम अधिकारों का उल्लेख किया गया है, लेकिन इसके भी कुछ अपवाद हैं। जैसे यदि वह अपने उत्पाद को बाज़ार में आपूर्ति करने में विफल रहता है तो उसके पेटेंट अधिकार वापस लिये जा सकते हैं। समझौते में कहा गया है कि सरकार ‘अनिवार्य लाइसेंस’ जारी कर दूसरे प्रतिस्पद्धी को उस उत्पाद के उत्पादन की अनुमति दे सकती है परंतु इसके लिये कुछ शर्तें लगाई जाती हैं , ताकि पेटेंटधारक के वैधानिक हित सुरक्षित रहें।

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ट्रेडमार्क

किसी एक उत्पाद या सेवा को अन्य उत्पाद या सेवा से पृथक करने वाले चिह्न, डिजाइन या अभिव्यक्ति ट्रेडमार्क कहे जाते हैं। ट्रेडमाक स्वामित्व का अधिकार किसी व्यक्ति, व्यापार संगठन या वैधानिक

एण्टिटी का होता है। किसी वस्तु या सेवा का टेरेडमार्क होने से उपभोक्ता उसकी पहचान, उसकी प्रकृति और गुणवत्ता के आधार पर कर सकता है। ट्रेडमार्क एक शब्द, शब्दों के समूह, अक्षरों के समूह, संख्याओं के समूह के रूप में हो सकता है। यह चित्र , चिह्ल, त्रिविर्मीय चिह, श्रव्य चिह्न जैसे संगीतमय ध्वनि या विशिष्ट प्रकार के रंग के रूप में हो सकता है।

भारत विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन (WIPO) के अंतर्राष्ट्रीय ट्रेडमार्क प्रणाली का सदस्य है। इसके लिये भारत ने मैड्रिड प्रोटोकॉल को अपनी स्वीकृति प्रदान की है। भारत के संदर्भ में यह संधि 8, जुलाई 2013 से लागू हुई। इससे भारतीय कंपनियों को प्रोटोकॉल से सम्बद्ध सदस्य देशों में केवल एक आवेदन के जरिये ट्रेडमार्क पंजीकरण कराने का अवसर मिल सकेगा। साथ ही विदेशी कंपनियों को भी भारत में यह सुविधा मिल सकेगी। ट्रेडमार्क वस्तु एवं सेवा की गुणवत्ता का प्रतीक होता है। अज के बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक युग में तो ट्रेडमार्क ही ऐसा माध्यम है, जिसके जरिये ग्राहक कंपनी के उत्पादों और सेवाओं के मध्य विभेद कर सकता है।

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