ईरानः आधी दुनिया हो गई दुश्मन ….!

ईरानः आधी दुनिया हो गई दुश्मन ….!

1 अप्रैल को सीरिया स्थित ईरानी दूतावास के पास इजरायली सेना की एयरस्ट्राइक में ईरान के दो शीर्ष आर्मी कमाडरों समेत 13 लोग मारे गए थे। इसके बाद से ही इजरायल पर हमले की आशंकाएं जताई जाने लगी थीं। ईरान ने 14 दिन के बाद यानी 14 अप्रैल की रात को 300 से भी अधिक मिसाइलों के साथ इजरायल पर हमला बोल दिया। एक समय तो ऐसा लगा कि दुनिया एक और युद्ध के मुहाने पर पहुंच गई है। शुक्र है, ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसके बाद से स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में बनी हुई है। 

मजहबी क्रांति के साथ शुरू हुई थीं समस्याएं..

1979 से पहले ईरान के अमेरिका से लेकर इजरायल तक तमाम देशों के साथ रिश्ते बड़े मधुर हुआ करते थे। बदलाव आया 1979 से जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई। वहाँ 1926 से राज करने वाले पहलवी राजवंश को उखाड़ फेका गया। वहां राजवंश की जगह इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का जन्म हुआ। सत्ता असल ताकत इस क्रांति के अगुवा रहे धार्मिक नेता अयातुल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी के हाथों में आ गई और उन्होंने सभी पश्चिमी देशों से संबंध समाप्त कर फिलिस्तीनियों के साथ खड़े होने की घोषणा कर दी।

आतंकी समूहों से ईरान के करीबी संबंध…

लेबनान के हिज्बल्लाह, इराक के शियामिलिशिया गुट, फिलिस्तीनियों के हमास और यमन के हूती समूहों को ईरान वर्षों से न केवल सैद्धांतिक तौर पर, बल्कि हथियारों आदि से भी समर्थन देते आया है। ईरान इन समूहों के लिए एक तरह से संरक्षक का काम करता है। ये वे ग्रूप हैं जो अमेरिका, पश्चिमी देशों और इजरायल को अपने शत्रु के रूप में देखते हैं। इससे ईरान अपने आप इन तमाम देशों से कट जाता है।

ईरान में अमेरिका और इजरायल के खिलाफ ऐसे प्रदर्शन आम हैं। इसी महीने1 अप्रैल को सीरिया स्थित ईरानी दूतावास के पास हुए हमले में ईरान के दो शीर्ष आर्मी कमांइरों की मौत हो गई थी। इस पर ईरान में राष्ट्र व्यापी प्रतिक्रिया आई थी।बाद में इसी का नतीजाइजरायल पर मिसाइल हमले के रूप में आया था।

कैसे प्रमुख देशों के साथ बिगड़ते  गए रिश्ते…

1.अमेरिका

धार्मिक क्रांति के पहले ईरान अमेरिका का आर्थिक, प्रौद्योगिकी और सैन्य साझेदार था। ईरान को पहला परमाणु रिएक्टर भी अमेरिका ने ही दिया था। लेकिन पहले धार्मिक क्रांति और फिर नवंबर 1979 में ईरानी छात्रों के एक समूह द्वारा अमेरिकी दुतावास में कार्य करने वाले 52 डिप्लोमेट्स को बंदी बनाने की घटना ने दोनों देशों के बीच संबंध खत्म कर दिए। अमेरिका ने 7 अप्रैल 1980 को ईरान के साथ तमाम संबंधों को समाप्त करने का औपचारिक एलान किया था। तब से ही दोनों के बीच कोई रिश्ते नहीं हैं। अमेरिका को ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर भी चिंता रही है और इसीलिए वह उस पर कई सालों से आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं।

2. सऊदी अरब

ईरान और सऊदी अरब दोनों करीब 45 साल से एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं । दोनों मध्यपूर्व में क्षेत्रीय ताकत हैं। एक-दूसरे के पड़ोसी इन दोनों देशों में क्षेत्रीय प्रभुत्व की लड़ाई तो है ही, धार्मिक मतभेद भी इनमें संघर्ष को बढ़ाता है। इनमें आपसी संघर्ष की जड़ में ईरान की इस्लामिक क्रांति है। 1979 से पहले तक सऊदी अरब खुद को मुस्लिम जगत का नेता मानता था,लेकिन इस क्रांति से उसे चुनौती मिलने लगी।अरब देशों में 2010 के दशक में हुए आदोलनों के कारण पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता  का फायदा उठाते हुए ईरान और सऊदी अरब दोनों ने सीरिया, बहरीन और यमन जैसे देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की।

सबसे ताकतवर ईसाई प्रभुत्व वाले अमेरिका व ब्रिटेन, मध्य पूर्व की धुरी रहे यहूदियों के देश इजरायल और मुस्लिम असर के हिसाब से सबसे अहम सऊदी अरब तथा मुस्लिम आबादी के हिसाब से विश्व के नंबर दो देश पाकिस्तान, यानी लगभंग तमाम दिशाओं में मौजूद देशों के साथ ईरान के रिश्ते आउट ऑफ ट्रैक चल रहे हैं।

3. पाकिस्तान 

मुस्लिम आबादी के हिसाब से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश पाकिस्तान के साथ भी ईरान के रिश्ते बीते एक दशक से उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 2012 में पाकिस्तान में जैश-अल-अदल गठित हुआ था। इसे ईरान आतंकी संगठन मानता है। यह ईरान में रहने वाले अल्पसंख्यक सुन्नीयों के हक में आवाज उठाने का दावा करता है। यह 2013 से ही ईरानी सीमा सुरक्षा बलों को निशाना बनाते आ रहा है। ईरान में 95% शिया रहते हैं, जिन पर वहां के अल्पसंख्यक सुन्नीयों साथ भेदभाव करने के आरोप पाकिस्तानी सुन्नी संगठन लगाते आए हैं। उधर ईरान का आरोप है कि इन संगठनों को पाकिस्तानी सेना से भी मदद मिलती है।

4.इज़रायल

ईरान ऐसा दुसरा मुस्लिम देश था, जिसने इज़रायल को मान्यता दी थी। लेकिन अप्रैल 1979 में अयातुल्लाह खोमेनी के ईरान वापस लौटते ही ईरान ने इजरायल के साथ सारे संबंध तोड़ लिए थे। हालांकि इसके बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध इतने निचले स्तर पर नहीं आए थे। यहां तक कि 1980 में इराक द्वारा ईरान पर किए गए अचानक हमले के बाद इजरायल ने कथित तौर पर ईरान की सैन्य और लॉजिक्टिक्स सहायता भी की थी। संबंध बिगड़ने शुरू हुए 1985 से। साल 2006 के लेबनान युद्ध के बाद से दोनों के संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए, जब ईरानियन रिवोल्यूशनरी गार्ड्स पर आरोप लगे कि इजरायल पर हमले के लिए उसने हिजबुल्लाह को सीधे मदद दी। इसके बाद से ही दोनों एक -दूसरे के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर में व्यस्त हैं ।

5. यूरोपीय संघ-यूके

ईरान के यूरापीय देशों के साथ भी संबंध बड़े असामान्य हैं। मानवाधिकारों को लेकर इरान का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। यूरोपीय सबसे पहले 2011 में ईरान मैं इन्हीं गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन की वजह से उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाए थे। तब से इन उपायों को हर साल बढ़ाया जाता रहा है। इससे पहले यूक्रेन पर रूसी हमले को ईरान द्वारा उचित ठहराने पर भी यूरोपीय संघ द्वारा ईरान के खिलाफ कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं। अब यूरोपीय संघ से अलग हो चुके ब्रिटेन ने भी 13 अप्रेल के ताजे हमले के प्रति नाराजगी जताते हुए ईरान के खिलाफ अनेक| व्यापारिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।

ईरान टाइमलाइन

1921

एक सैन्य अफसर रेज़ा शाह ने कजार वंश का तख्ता पलट कर सत्ता हथिया ली। इन्होंने आठ करोड़ की आबादी वाले ईरान को आधुनिक बनाने के लिए कई  कदम उठाए।

1926

रेज़ा खान को औपचारिक रूप सेकिंग धोषित किया गया। उन्होंनेअपने नाम में पहलवी जोड़ लिया । इस तरह पहलवी राजवंश की स्थापना की।

1935

पर्शिया का नाम ईरान कर दिया गया। रेज़ा शाह की छवि शासक से तानाशाह की बन गई।

1941

रेज़ा खान के पुत्र मोहम्मद रेजा शाह पहलवी ईरान के शासक बने।

1963

मो. रेज़ा शाह ने ईरान का पश्चिमीकरण करने के लिए द व्हाइट रिवोल्यूशन लागू किया।अयातुल्लाह खोमेनी की अगुवाई में इसका विरोध किया गया।

1979

इस्लामिक क्रांति हुई। खोमेनी देश के शीर्षस्थ थार्मिक नेता बने।

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