जुवेनाइल एक्ट 

जुवेनाइल एक्ट 

जुवेनाइल शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जिसकी आयु 18 साल से कम है इसका अर्थ हुआ कि यह 18 साल से कम उमर के बच्चों के लिए जुवेनाइल शब्द प्रयोग में लाया जाता है | भारतीय दंड संहिता (IPC) के अनुसार 7 वर्ष से काम उम्र के बच्चे को किसी भी अपराध के लिए सजा नहीं दी जा सकती ऐसा भारतीय दंड संहिता कीषधारा 82 में उल्लेखित है| लेकिन सरकार द्वारा अगस्त 2014 में लोकसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल को पेश करने और उसमे नए संशोधन के दवारा जुवेनाइल शब्द के लिए उम्र को 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया है।

(जुवेनाइल एक्ट) किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 इस बात की रूपरेखा निर्धारित करता है, के जो बच्चे गैर कानूनी कार्य कर देते हैं और जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवस्यकता होती है, उनके साथ किस तरह से पेश आया जाए। नए विधेयक के तहत 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोर अपराधियों को वयस्क मानने का प्रावधान किया गया है। यहाँ गौर करने वाली बात हैं कि इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक, जघन्य अपराधों में लिप्त पाए गए किशोर अपराधियों को जेल की सजा दी सकती है। हालांकि उसे उम्र कैद या फांसी की सजा नहीं होगी  वही पहले वाले कानून के मुताबिक किशोर की उम्र 16 की बजाय 18 वर्ष की थी।

यहाँ आपको ये जानना चाहिए कि किसी भी बच्चे की उम्र जब 18 साल से कम होती है, तो उसका मुकदमा अदालत की जगह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में चलता है। दोषी पाए जाने पर उस किशोर को अधिकतम 3 साल के लिए किशोर सुधार गृह भेजा जाता है। कानून में मुताबिक बदलाव के बाद रैगिंग जैसे अपराध में पाए जाने वाले 16 वर्ष से ज्यादा के दोषी को 3 साल की सजा और 10000 रुपए तक का जुमोना लग सकता है।

जुवेनाइल कौन होता हैं?

18 वर्ष से कम के व्यक्ति को जुवेनाइल की श्रेणी में रखा जाता है। जूवैनाइल जस्टिस कानून, 2000 के धारा 2{8) के अनुसार जुवेनाइल वह व्यक्ती है, जिसने अभी तक 18 वर्ष पुरा न किया हो। नए संशोधन में इसी उम्र को घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया है।

जुवेनाइल लॉ होने के बावजूद नए बिल की जरूरत क्यों ?(Why New Bill Amendment Required)

अध्ययन में ऐसा पाया गया कि जुवेनाइल जस्टिस कानून 2000 में कुछ प्रक्रियागत और कार्यान्वयन के हिसाब से मौजूदा कानून में कुछ सुधार की आवश्यकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआबी) की बात करें तो इसके मुताबिक भी उन अपराधों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा था, जिनमें शामिल लोगों की उम्र 16 से 18 साल के आसपास थी ।एनसीआरबी का ये डेटा यह बताने में सक्षम था कि 2003 से 2013 केशबीच ऐसे अपराध में बढ़ोतरी हुई हैं । इस दौरान 16 से 18 साल के बीच के अपराधियों की संख्या में लगभग 54 फीसदी से बढ़कर 66 फीसदी हो गई। इसलिए जु्वेनाइल जस्टिस लॉ होने के बावजूद नए बिल की जरूरत को महसूस किया गया । इस बिल में प्रावधान किया गया कि जघन्य अपराधों में शामिल 16-18 वर्ष के बच्चों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाए, नए बिल में जिन तीन तरह के अपराधों का जिक्र किया गया है वे हैं,एक जघन्य अपराध वह है, ज़िसमें मौजदा कानुन के मुताबिक कम से कम सात साल कैद की सजा होती हो ।एक गभीर अपराध वह है, जिसमें 2 से 7 साल तक की कैद की सजा होती हो। एक छोटा अपराध वह है, जिसमें 3 साल तक की कैद की सजा होती हो।

नाबालिगों को वयस्कों की तरह सजा देने पर सभी विशेषज्ञों की इस पर अलग-अलग राय हैं। कुछ विशेषजों का कहना है कि “माजूदा कानून बच्चों में अपराध के प्रति डर पैदा नहीं करता वही कुछ और विशेषज्ञों का मानना है कि नाबालिग अपराधियों को सुधार गृह में भेजने से अपराध के प्रति उनका नजरिया बदलता है और उनमें सुधार आता है। वहीं कानून के कुछ और विशेषज्ञों का ये भी कहना हैं कि जघन्य अपराध करने वाले नाबालिग अपराधियों पर वयस्कों की तरह केस चलाने से धारा 14 (समानता का अधिकार) और धारा 21 (कानून सबके लिए बराबर है) का उल्लंघन होता है।

जुवेनाइल एक्ट में संशोधन (Amendment of Juvenile Act)

जुवेनाइल एक्ट में किये गये संशोधन के तहत किसी नाबालिग खिलाफ कोई आपराधिक मामला लम्बे समय से चल रहा हो तो इस मामले का निस्तारण 6 माह के भीतर नहीं हो पा रहा है, तब ऐसी परिस्थिति में उस मामले को हमेशा के लिए समाप्त करना होगा। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) में इस तरह का नियम है, इसके बाद उस नाबालिग का कोई भी आपराधिक सबूत रखने की बजाय मिटा दिए जाने का भी नियम है । इस नियम के पीछे उद्देश्य यह है कि नाबालिग की नई जिंदगी में पिछले आपराधिक इतिहास का कोई अस्तित्व न रह जाये, और साथ ही उसकी पुरानी गलतियां की वजह से उसकी भविष्य में आगे की जिंदगी पर कोई प्रभाव न पड़े ।

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015

यह अधिनियम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और सरक्षण) अधिनियम 2000 का स्थान लेता है। यह बिल उन बच्चों से संबंधित हैं जिन्होंने कानूनन कोई अपराध किया हो और जिन्हें देखभाल और सरक्षण की आवश्यकता हो।

यह बिल जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशरों (जुवनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है साथ ही कोई भी 16-18 वर्षीय जुवेनाइल जिसने कम जघन्य अर्थात् गंभीर अपराध किया हो उसके ऊपर बालिग के समान केवल तभी मुकदमा चलाया जा सकता है जब उसे 21 वर्ष की आयु के बाद पकड़ा गया हो।

इस अधिनियम के अनुसार प्रत्येक जिले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board- JJB) और बाल कल्याण समितियों (Child welfare Committees) के गठन का प्रावधान है,

  • इस अधिनियम में बच्चे के विरूद्ध अत्याचार बच्चे को नशीला पदार्थ देने और बच्चे का अपहरण या उसे बेचने के संदर्भ में दंड निर्धारित किया गया है।
  • इस अधिनियम में गोद लेने के लिये माता- पिता की योगयता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है।

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2018

यह विधेयक ज़िला मजिस्ट्रेट को बच्चे को गोद लेने के आदेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है ताकि गोद लेने संबंधी लबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके इस विधेयक में किसी भी अदालत के समक्ष गोद लेने से संबंधित सभी लंबित मामलों को ज़िला मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित करने का प्रावधान है। इसके माध्यम से मामलों की कार्यवाही में तेजी लाने का प्रयास किया जा रहा है।

बच्चा अनाथ हो तब क्या होता है?

उस दशा में जब बच्चा अनाथ हो तब यह बिल देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों के लिए है, यदि कोई बच्चा अनाथ हो जाता है या उसे त्याग दिया जाता है तो उसे 24 घंटे के अंदर किसी बाल कल्याण समिति के सामने लाया जाता है । इसके बाद बच्चे के लिए एक सामाजिक जांच रिपोर्ट तैयार की जाती है, फिर समिति फैसला करती है कि बच्चे को किसी बाल संरक्षण गृह में रखा जाए या उसे किसी को गोद दिया जाए या कोई अन्य ऐसा उपाय किया जाए जो बच्चे के लिए सही हो ।

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में सजा

जूवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) Juvenile Justice Act के अंतर्गत नाबालिग दवारा किए गए अपराध की सजा तय की गई है, और राज्य के सभी जनपदों में इसके लिए कोर्ट भी बनाई गई हैं। नाबालिग अपराधियों की अधिकतम सजा 3 वर्ष दी जा सकती है। इस दौरान नाबालिग अपराधियों के सुधार और देख-भाल के लिए उन्हें संप्रेक्षण गृह में रखा जाता है। जेजे एक्ट में नाबालिग के खिलाफ चल रहे मुकदमे की सुनवाई के लिए समय निर्धारित किया गया है।

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