MPPSC : 87:13 के फॉर्मूले में अटके, क्या यह पूरा मामला |भारत में आरक्षण का इतिहास

दो मामलों से समझिए फॉर्मूले में फंसे कैंडिडेट्स का कैसे हो रहा नुकसान
5 साल से रिजिल्ट के इंतजार में भोपाल की एक महिला कैंडीडेट पिछले 7 साल से एमपीपीएसी की तैयारी कर रही है। वे कहती हैं कि 2017 में जब मैने तैयारी शुरू की तब मेरा बेटा 2 साल का था। 2019 में हुई एमपीपीएससी एग्जाम दी। इसका रिजल्ट 2023 में आया और मैं 87:13 फॉर्मूले में फंस गई। तभी से सिलेक्शन का वेट कर रही हूं।
मैं ये भी नहीं जानती कि मैं सिलेक्ट हूं या फेल हूं। असमंजस की स्थिति है कि मुझे आगे तैयारी करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। सरकार को ये स्थिति साफ करना चाहिए।
ऐसा लगता है कि जैसे हमने कोई मेहनत ही न की हो।वे कहती हैं कि हम कैंडिडेट्स का एक ग्रुप बना हुआ है उसमें इस मसले को लेकर बातचीत होती है तो कई लड़कियां डिप्रेशन का शिकार हो चुकी हैं। वे मानसिक से बहुत आहत हैं।
एक पुरुष कैंडीडेट- पढ़ाई ही छोड़ दी
सागर के रहने वाले एक पुरुष कैंडीडेट
ने भी 2019 में राज्यसेवा परीक्षा दी थी। वे भी 87:13 के फॉर्मूले में अटके हैं। अब वे पढ़ाई छोड़ चुके हैं। वे कहते हैं किजब मैं और मेरे दोस्त 2019 की तैयारी कर रहे थे तब हमारी उम्र 30 के लगभग हो चुकी थी। किसी पर शादी का दबाव था तो किसी पर फैमिली को सपोर्ट करने का।
इस फॉर्मूले के बाद तो मानसिक रूप से मैं टूट गया। मैंने पढ़ाई ही छोड़ दी है। अब छोटा मोटा काम कर परिवार का खर्च चला रहा हूं। 2019 के बाद मैंने खुद को एक साल और मौका दिया पर मेंटल कंडीशन ऐसी हो गई की मैं आगे पढ़ाई जारी नहीं रख पाया।
परीक्षाओं के रिजल्ट जारी किए हैं। इसमें शामिल हुए करीब 30 हजार छात्रों को उनके माकर्स नहीं बताए गए हैं। आयोग भविष्य में होने वाले विवाद से बचने के लिए मार्क्स नहीं बता रहा, मगर ये तो कैंडिडेट्स के अधिकारों का हनन है।
हाईकोर्ट में 13% की लिस्ट में शामिल कैंडिडेट्स का केस लड़ रहे एडवोकेट कहते हैं कि कोर्ट ने एक बार आदेशित कर दिया है कि 27% ओबीसी आरक्षण नहीं हो सकता है। इस आदेश के बाद आदेश से हटकर सरकार ऐसा कोई भी फॉर्मूला नहीं निकाल सकती जिससे वो 87% पदों पर ही भर्ती करे।


सरकार ने 2019, 2020 और 2021 के 13% कैंडिडेट्स की दो लिस्ट बनाई है। एक लिस्ट ओबीसी कैंडिडेट्स की है और दूसरी आनारक्षित कैंडिडेट्स की। सरकार ने इनके नाम डिसक्लोज नहीं किए हैं।
कोर्ट ने सरकार से कहा है कि पहले सरकार 13%चयनित कैंडिडेट्स की दोनों लिस्ट बना कर कोर्ट में पेश करें ताकि बाकी के स्टूडेंट्स को ये जानकारी लग सके कि वो चयनित हैं या नहीं। न्यायालय के आदेश के बावजूद सरकार ने कोर्ट में 13% कैंडिडेट्स की लिस्टको कोर्ट में पेश नहीं की है।
ये न्यायालय के आदेश की अवहेलना है। कोर्ट ने अभी भर्ती करने के लिए तो नहीं कहा है। बस नाम डिसक्लोज करने के लिए कहा है। सरकार नाम तक डिसक्लोज नहीं कर पा रही है।

पीएससी मानती है की यह नीतिगत मामला है । इस मामले को लेकर एमपीपीएससी चेयरमैन राजेश लाल मेहरा से पूछा कि 13% कीलिस्ट में शामिल कैंडिडेट्स को उनके मार्क्स क्यों नहीं बताए जा रहे तो वह बोले कि ये नीतिगत मामला है।पूरा प्रकरण कोर्ट में पेंडिंग है। हमें कोर्ट के फैसले तक रूकना ही पड़ेगा। 13% वाली लिस्ट में ओबीसी और अनरिजर्ड वर्ग के कैंडिडेट्स हैं। हम किसके नंबर डिसक्लोज कर दें।
डिक्लेयर कर रहे हैं तो 100% पर करना चाहिए। ৪7:13 फॉर्मूले का कोई औचित्य नहीं है, ऐसा कहीं पर नहीं होता हमारे आस पास ही कई राज्य हैं आप बताइए ऐसा कहां होता है।
आरक्षण पर कोर्ट के फैसले के बाद क्या होगा
एडवोकेट रामेश्वर सिंह कहते हैं कि दो ही संभावना है। पहली- अगर सुप्रीम कोर्ट ओबीसी के 27% आरक्षणवाले सरकार के फैसले और याचिकाओं को स्वीकारकरता है तो 13% कैटेगरी में होल्ड ओबीसी छात्रों को फायदा मिलेगा। उन्हें नौकरी मिलेगी। दुसरा- अगर सप्रीम कोर्ट 14% आरक्षण को ही मान्य है ।
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भारत में आरक्षण का इतिहास
भारत के संविधान में 2 प्रकार के आरक्षण की व्याख्या की गई है, ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical Reservation) तथा क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) |
ऊर्ध्वाधर आरक्षण के अंतर्गत अनुसूचित जाति (S.C), अनुसूचित जनजाति (S.T) और अन्य पिछड़े वर्गों (O.B.C) के आरक्षण समाहित होते हैं | यह व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अंतर्गत दी गई है | जबकि क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) के तहत ऊर्ध्वाधर श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले विशेष वर्ग जैसे- महिलाओं, बुजुर्गों, समलैंगिक समुदाय और दिव्यांग व्यक्तियों आदि को आरक्षण दिया जाता है। क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के अंतर्गत दी गई है।
क्षैतिज आरक्षण प्रत्येक ऊर्ध्वाधर वर्ग के अंतर्गत पृथक रूप से दिया जाता है | उदाहारण के लिए , मान लिया जाये कि यदि महिलाओं को 50% का क्षैतिज आरक्षण दिया गया है तो इसका अर्थ यह होगा कि अनुसूचित जाति (S.C), अनुसूचित जनजाति (S.T) और अन्य पिछड़े वर्ग (O.B.C) – इन तीनों वर्गों में महिलाओं को पृथक रूप से 50% आरक्षण दिया जाएगा अर्थात 50% अनुसूचित जाति वर्ग में , 50% अनुसूचित जनजाति वर्ग में और 50 % अन्य पिछड़े वर्ग मे।
क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर आरक्षण
हाल ही में क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर आरक्षण समाचारों में था | इसका कारण है सौरभ यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार वाद-2021 | इस प्रकरण में सोनम तोमर नाम की एक महिला ने अन्य पिछड़े वर्ग (O.B.C) से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचित कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में आवेदन दिया । इस परीक्षा में सोनम तोमर को 276.5 अंक मिले । किंतु उनका चयन नहीं हुआ । जबकि सामान्य वर्ग से 274.8 अंक, जो कि सोनम तोमर के प्राप्तांकों से कम था , हासिल करने वाले अभ्यर्थी का चयन इस परीक्षा में हो गया । अब यहाँ पर तकनिकी सवाल यह है कि तोमर को अन्य पिछड़े वर्गों (O.B.C) में आरक्षण दिया जाये या सामान्य महिला वर्ग में ! क्योंकि अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण ऊर्ध्वाधर वर्ग में आता है जबकि महिला का आरक्षण क्षैतिज वर्ग में ।
न्यायालय की व्याख्या:
वाद -विवाद के बाद न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में अभ्यर्थी को आरक्षण से वंचित न कर के सामान्य वर्ग के अंतर्गत आरक्षण का लाभ दिया जाये , क्योंकि न्यायालय के शब्दों में “ऐसा न करने का अर्थ होगा आरक्षण को केवल उच्च वर्ग के लिए बचा कर रखना |”
भारत में आरक्षण व्यवस्था का इतिहास
भारत में आरक्षण व्यवस्था का बीजारोपण 1882 में गठित हंटर आयोग के साथ माना जाता है | आयोग के अध्यक्ष विलियम हंटर व प्रसिद्द समाज सुधारक महात्मा ज्योतिवा फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की कल्पना की ।
1901 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर रियासत में शाहूजी महाराज द्वारा पहली बार आरक्षण की शुरूआत की गई जब उन्होंने गैर ब्राह्मणों के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्थ दी | यह अधिसूचना भारत में आरक्षण देने वाला पहला आधिकारिक आदेश है।
1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी अधिसूचना जारी की , जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 %, ब्राह्मणों के लिए 16 %, मुसलमानों के लिए 16 %, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 % और अनुसूचित जातियों के लिए 8 % आरक्षण की व्यवस्था की गई थी |
1933 का सांप्रदायिक पंचाट इस मामले में एक अहम पड़ाव था जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड द्वारा भारत में उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, भारतीय ईसाई, एंग्लो-इंडियन, पारसी और अछूत (दलित) आदि के लिए अलग-अलग चुनावक्षेत्र अरक्षित कर दिए गये |
1932 के गाँधी -आंबेडकर पूना पैक्ट के बाद 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई थी |
1935 के भारत सरकार अधिनियम में भी आरक्षण का प्रावधान किया गया |
1942 में भीमराव अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की और सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधित्व को बढाने के लिए आरक्षण की मांग की |
जब भारत का संविधान लागु हुआ तो 10 वर्षों के लिए पिछड़े वर्गों , अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था दी गई जिसे कि 10-10 वर्षों के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए बढ़ा दिया जाता है |
1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए काका साहब कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया | इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिए की गयी सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया |
1978 में तत्कालीन जनता पार्टी द्वारा बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में दुसरे पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई | 1980 में मंडल आयोग ने गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमे अन्य पिछड़े वर्गों (O.B.C) को 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई |
1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार द्वारा लागू कर दिया गया। उच्च वर्गों द्वरा इस निर्णय का देश भर में विरोध हुआ और राजीव गोस्वामी नाम में एक छात्र ने आत्मदाह का भी प्रयास किया |
2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ।
2008 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने “क्रीमी लेयर” की अवधारणा दी जिसके तहत आर्थिक रूप से सशक्त लोगों को आरक्षण से बाहर रखा जाये | इसे प्रत्येक 3 वर्ष पर संशोधित किया जाना चाहिए | इसकी वर्तमान सीमा 8 लाख रूपए प्रतिवर्ष है |
2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत उच्च वर्गों में भी आर्थिक रूप से पिछड़े (E.W.S) व्यक्तियों को 10% आरक्षण की व्यवस्था दी गई |





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