नक्सलवाद अंत की ओर…..सफल रहा डेवलपमेंट एंड ऑपरेशन…
नक्सलवाद अंत की ओर…..सफल रहा डेवलपमेंट एंड ऑपरेशन…
नक्सलवाद को जड़ से खत्म किया जा सकता है ‘नक्सलबाड़ी अबूझमाड़’ किताब लिखने वाले सीनियर जनीलिस्ट आलोक पुतुल बताते हैं, “1967 में शुरू हुआ नक्सलवाद आंदोलन 1973 तक लगभग खत्म हो चुका था। करीब 40 साल बाद केंद्र सरकार ने माना कि ये आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। यानी नक्सलवाद फिर से खड़ा हुआ। धरातल से भले ही नक्सलियों को खत्म कर दिया, लेकिन इनकी सोच को खत्म नहीं किया जा सकता। नक्सलवाद फिर से भी पनप सकता है। एक नए तरीके से, एक नए रूप में चाहे कम हिंसक या फिर पूरी तरह अहिंसक। हिंसा का दुष्चक्र माओवादियों के आने के बाद सरकार को लोगों के लिए काम करना चाहिए था। लेकिन इसके बजाय, सरकार ने और सख्ती दिखाई। जल्द ही, माओवादी भी उन आादिवासियों के खिलाफ हो गए, जिनकी वे मदद करना चाहते थे। आदिवासी लोग सरकारऔर माओवादियों के बीच हिंसक जंग में फंस गए। दोनों तरफ की हिंसा को सही ठहराना मुश्किल है। सरकार ने माओवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की, जिसमें कई बार निर्दोष लोग भी प्रभावित हुए। माओवादियों ने भी पुलिस मुखबिर होने के शकमें कई लोगों को मार डाला। इस वजह से आदिवासी, जो पहले शांति से रहते थे, अब एक-दूसरे के खिलाफ हो गए। बदलते हालात पिछले कुछ सालों में माओवादी इलाकों में काफी बदलाव आए हैं। सड़कें और मोबाइल नेटवर्क बनने से स्थिति बदली है। पहले कुछ शहरी लोग माओवादियों के प्रति सहानुभूति रखते थे। लेकिन जब माओवादियों ने कटरपंथी समूहों और उप-राष्ट्र्वादी विचारों का समर्थन करना शुरू किया, तो यह सहानुभूति खत्म हो गई। उनकी हिंसक घटनाओं, जैसे अर्थसैनिक बलों की हत्या, ने भीलोगों में नफरत पैदा की।







