हमारे ब्रह्मांड में हो सकते हैं 100 अरब तारे….!

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने एक युवा तारे के जन्म की प्रक्रिया को कैद किया है। इसके विकास की प्रक्रिया की शुरुआत इंसानों के विकास की प्रक्रिया के प्रारंभ होने से पहले से हुई थी, लेकिन पूरी तरह विकसित होने में एक लाख से दस लाख साल तक का समय लग सकता है। माना जा रहा है कि पूर्ण विकसित होने पर इसका आकार सूरज से भी बड़ा हो सकता है। यह घटना पृथ्वी से लगभग 630 प्रकाश वर्ष दूर चामेलियन गैलेक्सी में हो रही है। दरअसल, तारों की पूरी दुनिया बहुत दिलचस्प है।

तारों की इसी दुनिया के बारे में जानते हैं:

नया तारा किसी ठोस वस्तु से नहीं बनता, बल्कि गैस और धूल के विशाल बादलों से जन्म लेता है, जिन्हें ‘नेबुला’ कहा जाता है। ये नेबुला अंतरिक्ष में फैले होते हैं और इनमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस होती है। जब किसी कारण से, जैसे पास में किसी तारे के विस्फोट या गुरुत्वाकर्षण असंतुलन से गैस के इन बादलों का कोई हिस्सा सिकुड़ने लगता है उसका घनत्व और तापमान बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे यह सिकुड़ता हुआ क्षेत्र इतना गर्म हो जाता है कि उसके केंद्र में परमाणु आपस में जुड़ने लगते हैं। इसी प्रक्रिया को न्यूक्लियर फ्यूजन कहते हैं। यही वह क्षण होता है, जब एक नया तारा जन्म लेता है। तारे की यह शुरुआती अवस्था प्रोटो-स्टार कहलाती है।

तारे का निर्माण कोई अचानक होने वाली घटना नहीं है। तारे के निर्माण की प्रक्रिया की तस्वीर, जो जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने कैप्चर की है। यह एक लंबी और धैर्यपूर्ण प्रक्रिया है। छोटे आकार के तारे बनने में लगभग दस लाख से लेकर एक करोड़ साल तक लग सकते हैं। सूर्य जैसे मध्यम आकार के तारों को पूरी तरह विकसित होने में करीब पांच करोड़ साल लगते हैं। दिलचस्प बात यह है कि बहुत बड़े तारे अपेक्षाकृत जल्दी बन जाते हैं, क्योंकि उनमें गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है। यानी जितना बड़ा तारा, उतनी तेज उसकी जन्म- प्रक्रिया, लेकिन उतनी ही छोटी उसकी उम्र होती है।

नहीं। तारे आकार, रंग, तापमान और उम्र, हर लिहाज से अलग-अलग होते हैं। कुछ तारे नीले रंग के होते हैं, जो बेहद गर्म होते हैं। कुछ पीले या नारंगी होते हैं, जैसे हमारा सूरज । वहीं कुछ तारे लाल रंग के होते हैं जो अपेक्षाकृत ठंडे होते हैं। तारे का रंग दरअसल उसके तापमान का संकेत होता है। यही वजह है कि खगोल वैज्ञानिक तारे व उसके रंग को देखकर उसके जीवन-चरण का अनुमान लगा सकते हैं।

तारों का आकार कल्पना से भी बड़ा हो सकता है। हमारा सूरज एक औसत आकार का तारा माना जाता है। लेकिन ब्रह्मांड में ऐसे तारे भी हैं, जो सूरज से सौ गुना या हजार गुना तक बड़े हैं। उदाहरण के लिए ‘बेटेलज्यूस’ नाम का तरा इतना विशाल है कि अगर उसे सूरज की जगह रख दिया जाए तो वह मंगल ग्रह की कक्षा तक फैल जाएगा। इसके उलट कुछ तारे इतने छोटे भी होते हैं कि उन्हें ड्वार्फ स्टार कहा जाता है।

नहीं। हर तारे का एक निश्चित जीवनकाल होता है। तारे की उम्र इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें कितना ईंधन है और वह कितनी तेजी से उसे जला रहा है। सूर्य जैसे तारे लगभग दस अरब साल तक जीवित रहते हैं। हमारा सूरज अभी अपने जीवन के मध्य चरण में है और उसके पास करीब पांच अरब साल का समय और बचा हुआ है।

जब सूरज जैसे तारे का हाइड्रोजन ईंधन धीरे-धीरे खत्म होने लगता है, तो उसका संतुलन बिगड़ने लगता है। वह फैलकर एक रेड जायंट बन जाता है। इस अवस्था में तारा अपने आसपास की गैस और धूल को अंतरिक्ष में छोड़ देता है। अंत में उसका केंद्र सिकुड़कर एक छोटे लेकिन बेहद घने पिंड में बदल जाता है, जिसे व्हाइट ड्वार्फ कहा जाता है। यह तारे का शांत अंत होता है, जिसमें कोई बड़ा विस्फोट नहीं होता।

बहुत बड़े तारे अपनी ऊर्जा बहुत तेजी से खर्च करते हैं। इसलिए उनकी उम्र अपेक्षाकृत कम होती है- एक से दो करोड़ साल। जब ऐसे तारे का ईंधन खत्म होता है तो वहअपने ही गुरुत्वाकर्षण के नीचे ढह जाता है और फिर जबरदस्त विस्फोट करता है। इसे सुपरनोवा कहा जाता है। इस विस्फोट में इतनी ऊर्जा निकलती है कि वह पूरी आकाशगंगा में दिखाई देती है। सुपरनोवा के बाद या तो न्यूट्रॉन स्टार बनता है या फिर ब्लैक होल, जो प्रकाश तक को निगल सकता है।

नहीं तारे का अंत वास्तव में नए जीवन की शुरुआत होता है। सुपरनोवा विस्फोट के दौरान जो गैस और भारी तत्व अंतरिक्ष में फैलते हैं, वही आगे चलकर नए नेबुला बनाते हैं। इन्हीं नेबुला से फिर नए तारे और ग्रह जन्म लेते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे शरीर में मौजूद कार्बन, ऑक्सीजन और लोहा जैसे तत्व किसी प्राचीन तारे के विस्फोट से ही बने हैं।

इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं है, लेकिन अनुमान चौंकाने वाले हैं। हमारी आकाशगंगा में ही 100 से 400 अरब तारे मौजूद हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड में करीब दो ट्रिलियन आकाशगंगाएं हो सकती हैं। इसका मतलब है कि यह संख्या पृथ्वी के सभी समुद्र तटों की रेत के कुल कणों से भी कहीं अधिक हो सकती है।
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