जाति से ज्यादा जरूरी है कौशल-जनगणना
जाति से ज्यादा जरूरी है कौशल-जनगणना
एक आधुनिक समाज बनाने के लिए नई सोच जरूरी है। अगर दशाकों से जारी आरक्षण के बाद भी पिछड़ी जातियां आर्थिक, सामाजिक,शैक्षिक मुख्यधारा में नहीं हैं तो नया हल तलाशाना होगा। आंध्र प्रदेश के नए सीएम ने अपने राज्य में पहला और सबसे अहम फैसला स्किल-सेंसस (कौशल-जनगणना) कराने का लिया, ना कि जाति-आधारित जनगणना का। इस गैर-राजनीतिक लेकिन शुद्ध विकास-परक फैसले के पीछे कारण है पीएलएफएस की ताजा रिपोर्ट, जिसके तहत बेहतर साक्षरता दर के बावजूद राज्य में बीमारू राज्यों से ज्यादा बेरोजगारी पाई गई। सरकार और देश के नीति- निर्माताओं को भी आंध्र मॉडल लागू करना चाहिए, ना कि यह कहकर खुश होना चाहिए कि देश में दुनिया के सबसे ज्यादा (56 लाख ) प्रशिक्षित युवा हैं। नीति आयोग और शिक्षा मंत्रालय यह मूल समस्या नहीं समझ पा रहे हैं कि उसके अपने सर्वे के अनुसार भी आखिर क्यों किसी हाई-स्कूल या इंटर की पढ़ाई किए युवक के मुकाबले स्नातक के बेरोजगार होने के अवसर ज्यादा हैं। पीसलएफएस की रिपोर्ट में पाया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर 15-29 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी 10% (सभी आयु वर्ग के औसत से तीन गुना से भी ज्यादा) क्यों है और क्यों यह प्रतिशत बिहार में(13.9), यूपी में (7), एमपी में (4.4) और राजस्थान में (12.5) है। ग्रेजुएट्स में यह बेरोजगारी इन राज्यों में क्रमशः 16.6,11, 93 और 23.1 प्रतिशत है, जबकि अपेक्षाकृत शिक्षित आंध्र में 24 प्रतिशत। दरअसल न तो युवा रोजगार परक शिक्षा की ओर उन्मुख हैं ना ही तकनीकी शिक्षा जरूरत के मुताबिक है। सन् 2015 के नीति-पत्र में ये दोनों कमियां मानी गई। एक साल पहले स्वयं नीति आयोग ने बताया कि आईटीआई-ट्रेड हर एक हजार युवाओं में एक नौकरी पा सका है क्योंकि प्रशिक्षण उद्योगों की जरूरत से 20 साल पुराना है। नई एआई क्रांति के मद्देनजर तकनीकी कक्षा आईटीआई से आईआईटी तक बदलनी होगी।
■■■
एआई ने बढ़ाई प्रॉम्प्ट इंजीनियर्स की मांग, चेट-जीपीटी से सही सवाल पूछना जानते हैं ये पेशेवर
एआई ने बढ़ाई प्रॉम्प्ट इंजीनियर्स की मांग, चेट-जीपीटी से सही सवाल पूछना जानते हैं ये पेशेवर
चैट जीपीटी पर हमें कई तरह के सवालों के जवाब मिल जाते हैं। हर बार अलग प्रॉम्प्ट (सवाल या वाक्य) टाइप करने पर अलग जवाब मिलता है। यह प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग का हिस्सा है। एआई लैग्वेज मॉडल्स की लोकप्रियता ने प्रॉम्ट इंजीनियरिंग को एक उभरता हुआ करिअर बना दिया है। अगर आप एआई में रुचि रखते हैं और इस फील्ड में काम करना चाहते हैं तो यह एक अच्छा करिअर ऑप्शन है। प्रॉम्प्ट इंजीनियर्स एआई मॉडल से पूछने के लिए प्रश्न तैयार करते हैं और फिर उन्हें सटीक जवाब मिलते हैं। उदाहरण के लिए अगर आपको एक लॉगिन पेज बनाने के लिए पायथन कोड चाहिए तो आप चैट जीपीटी से कहेंगे – लॉगिन पेज बनाने के लिए पायथन कोड लिखें। लेकिन इसी के लिए एक प्रॉम्ट इंजीनियर लिखेगा – पायथन डेवलपर की तरह काम करो और एक जुनियर डेवलपर को बताओ कि एक लॉगिन पेज कैसे बनाया जाए जिसमें लॉगिन बटन के साथ युजरनेम और पासवर्ड भी हो। यही तरीका प्रॉम्ट इंजीनियरिंग है। वे प्रॉम्ट्स की मदद से एआई मॉडल्स का परीक्षण करते हैं व सुधार करते हैं।
जीपीटी-2 जैसे प्री-ट्रेड मॉडल्स की नॉलेज है अहम
इस क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए जीपीटी- 2 और जीपीटी-3 जैसे प्री-ट्रेड मॉडल्स की नॉलेज जरूरी है। इसमें अलग-अलग प्रॉम्ट्स डालें और देखें कि मॉडल क्या जवाब देता है। लैग्वेज मंडल्स आपके इनपूट के आधार पर हो रिजल्ट देते हैं । प्री-ट्रेन्ड मॉडल को बेहतर करने के लिए डेटा प्रोसेसिंग, हाइपरपैरामीटर ट्यूनिंग और ट्रांसफर लनिंग जैसी स्किल्स की नॉलेज जरूरी है। एंट्री लेवल रोल के लिए प्रॉम्प्ट्स लिखने व एनएलपी कॉन्सेट की समझ काफी है। सीनियर लेकल रोल के लिए डीप लर्निग एल्गोरिद्म और एडवांस्ड प्म्प्टिंग तकनीक की समझ जरूरी है।
प्रॉम्ट इंजीनियर बनने के लिए सबसे पहले एआई की बेसिक समझ होनी चाहिए। मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग इसका हिस्सा हैं। इसके अलावा प्रॉम्ट इंजीनियर्स को पायथन प्रोप्रामिंग की भी अच्छी समझ होनी चाहिए। पायथन प्रोग्रामिंग सीखने के लिए एजुकेशन प्लेटफॉर्म जैसे एडएक्स, यूड़ेमी और कोसेंरा पर कई आनलाइन कोर्सेज उपलब्ध हैं। इसके अलावा नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) की नॉलेज भी होनी जरूरी है।
डेटा साइंस और कम्प्यूटर साइंस की डिग्री दिलाएगी इस क्षेत्र में सफलता
प्रॉम्प्ट इंजीनियर बनने के लिए किसी डिग्री और इंजीनियरंग बैकग्राउंड की आवश्यकता नहीं है। हालांकि इसमें करिअर।बनाने के लिए टेक्निकल स्किल्स की
नॉलेज अहम है। वहीं कम्प्यूटर साइंस, डेटा साइंस या संबंधित इंजीनियारंग की बैचल्स ये किसी भी लार्ज लैंग्वेज मॉडल को बनाने डिग्री आपको इस क्षेत्र में फायदा देगी। इसके का पहला चरण माना जाता है। यहां बता दें अलावा प्री-ट्रेड मॉडल्स की नॉलेज भी कि प्री-ट्रेन्ड मॉडल्स वो वेस एआई मॉडल्स जरूरी है क्योंकि प्रॉम्ट इंजोनियर्स ज्यादातर होते हैं जिन्हें बड़ी संख्या के डेटा पर ट्रेन किया जाता है।
■■■
लर्निंग इन पिक्चर
—————————■■■■—————————-
लंबे समय तक पढ़ने के बजाय अपने अध्ययन के तरीके को बेहतर बनाएं
मनीश कुमार झा, नई दिल्ली
अक्सर छात्रों को पढ़ने का सही तरीका नहीं पता होता है जिससे स्कूल, कॉलेज, या प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे आईआईटी-जेई, नोट, सीयूईटी, आदि) की तैयारी में कठिनाई हो सकती है। इसलिए बेहतर अध्य्यन के तरीके को खोजना जरूरी है। वैज्ञनिकों ने इस पर शोध किया और यह देखा है कि कुछ आदतें विशेष रूप से सहायक हैं। यहां 10 सुझाव दिए गए हैं,
1. छोटे-छोटे हिस्सों में पढ़े, ज्यादा याद रहेगा
विले-इंटरसाइस जर्नल में प्रकाशित एक साइंटिफिक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार कई छात्र बार-बार नोट्स और किताबें पढ़ते हैं, जो सबसे अच्छा तरीका नहीं है। इससे बहुत कम जानकारी याद रह पाती है। ऐसे में थोड़ा-थोड़ा पढ़कर कुछ समय वाद फिर पढ़ें। इससे आप लंबे समय तक याद रख पाएंगे। रटना परीक्षा से पहतले थका सकता है लेकिन अगर आप अपनी पढ़ाई को दिनों में विभाजित करेंगे तो सब्जेक्ट को बेहतर सीखेंगे। परीक्षा से पहले कई दिनों में थोड़ा-थोड़ा पढ़कर अभ्यास करें यह ज्यादा फायदेमंद है।
2. लिखकर अभ्यास करना
स्प्रिर-लिंक जर्नल में प्रकाशित दो साइटिफिक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार जानकारी याद करने के लिए सबसे अच्छा काम ‘लिखकर अभ्यास’ करना है। अध्ययन में पाया गया कि छात्रों ने परीक्षा से पहले कई हफ्तों तक लिख कर अभ्यास किया और उनके अंक सामान्य पढ़ाई करने वाले छात्रों से अधिक थे।
3. खुद सवाल बनाएँ और उनका जवाब दें
साइंस-डायरेक्ट जर्नल और अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन में प्रकाशित दो साइंटिफिक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार किताबं और नोट्स बार-बार पढ़ने की बजाय एक बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करें – ‘खुद सवाल बनाएं और खुद ही उनका जवाब दें । इससे आपको खुद से सोचने और सीधे समझने का अवसर मिलता है। जब आप खुद सवाल पूछते हैं और उनके जवाब खोजते हैं तो यह आपकी समझ को मजबूत करता है और जानकारी को याद रखने में मदद करता है। इससे आप सीधे और गहरे स्तर पर जानकारी को समझ सकते हैं जो सिर्फ पढ़ाई से होना मुश्किल हो सकता है। सक्रिय तरीके से सीखना आपकी पढ़ाई को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
4. सवाल आपकी जानकारी को मजबूत बनाएंगे
सांइस-डायरेक्ट जर्नल में प्रकाशित एक साइंटिफिक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार यह सीखने का सबसे कारगर तरीका है। परीक्षा से पहले अपनी याददाश्त को चेक करने के लिए खुद से सवाल पूछें और उनका जवाब दें। यह न केवल जानकारी को मजबूती से याद रखने में मदद करता है, बल्कि आपको विषय को समझने में भी मदद करता है। दोस्तों और शिक्षकों के साथ इसे मिलकर भी कर सकते हैं।
5. गलतियां आपकी समझ को बढ़ाती हैं
टैलर एंड फ्रांसिस जर्नल में प्रकाशित एक साइंटिफिक रिसर्च आर्टिंकल के अनुसार अपनी याददाश्त को चेक करना जरूरी होता है। हर सवाल पर बिताए गए समय से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि सही जवाब मिलें। गलतियों पर ध्यान दें और उन्हें सुधारें क्योंकि इससे ही असली सीख मिलती है। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि गलतियां समझ को बढ़ाती हैं और आपको बेहतर सीखने में मदद करती हैं। गललतियां सीखने की कुंजी हैं।
6. इंटरलीविंग तकनीक से लंबे समय तक रहेगा
स्प्रिगर-लिंक और साइंस-डायरेक्ट जर्नल में प्रकाशित दो साइंटिफिक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार अलग-अलग विषयों और सवालों को मिलाकर पढ़ें – सिर्फ एक विषय पर रुके नहीं, बल्कि विभिन्न चीजों को मिक्स करके पढ़े। इसे ‘इंटरलीविंग’ कहा जाता है। खुद से सवाल पूछें और उनका जवाब दें फिर जांचें कि यह सही है या नहीं। यह तकनीक याददाश्त और समझ में वृद्धि करती है। एक ही कॉन्सेप्ट्र को बार-बार पढ़ने की बजाय इंटरलीविंग से नई दिशाएं खुलती हैं और समझ में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए अगर मैथ्स में ‘सरफेस एरिया एंड बॉल्यूम’ पढ़ रहे हैं तो सिर्फ एक तरह के सवाल पर ही ध्यान न दें बल्कि विभिन्न प्रकार के सवालों को मिलाकर हल करें।
——————————————-
12 वीं के बाद क्या करें ?
—————————————-
राज्य सिविल सेवा 2024 : नया सिलेबस नई कार्य योजना
विलियम शेक्सपियर ने कहा है –बेवकूफ व्यक्ति खुद को समझदार मानता है, लेकिन एक समझदार आदमी को पता होता है कि वह कब बेवकूफी करता है। राज्य सिविलि सेवा की तैयारी में भी एक सफल प्रतियोगी जानता है कि उससे कहाँ गलती होती है। यदि आप अपनी तैयारी के दौरान अपनी गलतियों पर चोट नहीं कर पा रहे तो यह परीक्षा आपके लिए भार ढोने मात्र है। भार ढोते गधे को हाकना वाले कई मिल जाएंगे । परीक्षा के पैटर्न जाने बिना आप अपने परिश्रम को सही दिशा और निश्चित आकार नहीं दे पाएंगे। इसके अभाव में आपको कोई भी पुस्तक व कोचिंग सफल नहीं कर पाएगी। पेन व पेपर मोड की सभी परीक्षाएं केवल तथ्यों पर केन्द्रित नहीं होती हैं, तथ्य इन परीक्षाओं में लुबरीकेंट है, आपका सकारात्मक दृष्टिकोण उस लुबरीकेंसी से आगे बढ़ता है और आपको अन्यों से ज्यादा नम्बर दिलाता है।
तैयारी की वास्तविक कार्ययोजना
प्रतिवर्ष राज्य शासन लगभग 400-500 विभिन्न पदों की रिक्तियों जारी करता है। राज्य लोक सेवा आयोग इन रिक्तियों पर भर्ती की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरा करता है। जिसमें प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार होता हैं। पहला चरण केवल प्रवेश परीक्षा है इसके नंबर आगे के चरणों में जोड़े नहीं जाते हैं। मुख्य परीक्षा आपके कैरियर और इस परीक्षा का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इस चरण में छ: पेपर होते हैं। निबंध व हिन्दी जैसे प्रश्न पत्र आपके स्कोर को बहुत नीचे भी ले जा सकते और बहुत ऊपर भी । यह परीक्षा आपकी कुशलता, बुद्धि, ज्ञान, कर्म सभी का मूल्यांकन करती है।राज्य सेवा में चयन का बड़ा आधार केवल और केवल आपके लेखन पर ही निर्भर करता है । अब तैयारियां पहले जैसे नहीं रहीं है, सब कुछ ‘स्मार्ट हुआ है ।आपको अपने उत्तर बहुत ही कम शब्दों में लिखना होते हैं। तैयारी में भारी भरकम पुस्तकों की जरुरत भी नहीं होती है।
मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा वर्ष 2024 से मुख्य परीक्षा के सिलेबस और पैटर्न में कुछ बदलाव किए हैं । अब सामान्य अध्ययन के चार पेपर का पूर्णांक प्रत्येक 300 का होगा। हिन्दी -200, निबन्ध- 100। इस प्रकार अब मुख्य परीक्षा 1500 अंको की होगी । साक्षात्कार अब 185 अंक का होगा, कुल मूल्यांकन 1685 अंकों में से होगा।
सभी प्रश्न-पत्रों के सिलेबस में पर्याप्त बदलाव किया गया है। निश्चित की कठिनाई का स्तर बढ़ा है ।
मुख्य परीक्षा में लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें,
- सरल भाषा का इस्तेमाल करें।
- अधिक लंबे वाक्योंका प्रयोग नहीं करें।
- भाषा ऐसी हो जो समझी जा सके व अर्थूर्ण हो।
- गैर परंपरागत मुह्वावरों एवं कहावतों का प्रयोग न करें।
- उत्तर लिखते समय प्रश्न में दिए गए टेल वर्ड पर ध्यान दें- जैसे, व्याख्या, आलोचना, समीक्षा, विवेचन, चर्चां, विस्तार, परीक्षण, विश्लेषण व मूल्यांकन जैसे शब्द के आधार पर उत्तर दें।
आपका समझा गया विषय जितना उत्कृष्ट तरीके से प्रस्तुत होगा उतना ही आपके चयन की संभावनाएं प्रबल होंगी।
चीन के प्रसिद् दार्शनिक ताओ ते चिंग जिनकी विचारधाराओं पर आधारित धर्म ताओं धर्म कहलाता है। कहते हैं- –
कठिन काम उस वक्त करो जब वे आसान हों और महान काम उस समय करो, जब वे छोटे हों ।
हजार मीलों की यात्रा की शुरुआत एक छोटे कदम से ही होती है। आज से चलना शुरु करें । डरे नहीं हमारी उंगली पकड़िए, हम आपको लक्ष्य तक पहुंचाएंगे।
- रविन्द्र नरवरिया ,करियर काउंसलर, फाउंडर एवं डायरेक्टर, Ics Academy(since1999)
————————————————————
बड़ा सोचो…छोटा करो…लगातार करते रहो
जिंदगी मौका हम सबको देती है कि हम अपने आपको आजमाएं और सफलता तक पहुंचे। लेकिन इसके बावजूद बहुत कम लोग ही सफलता हासिल कर पाते हैं , सफलता के सही मायने भी समझना होंगे ! दरअसल जीवन में सफल होना उतना ही सरल है, जितना किसी बच्चे के लिए कोई नई स्किल सीखना। सफलता सरलता से आती है अर्थात यदि हम कुछ जरूरी अभ्यास व तरीकों को जिंदगी में शामिल कर लें तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं जो सफलता हमारी भी जिंदगी का हमेशा के लिए पार्ट ऑफ लाइफ हो जाएगी । कबीर कहते हैं- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान …।
कठोरता अपनाएं स्वयं के साथ
सफलता में सबसे बड़ी रुकावट हम खुद हैं। हम दूसरों के साथ कठोर होना वीरता मान लेते हैं किंतु जब स्वयं की बारी आती है तो अधिक से अधिक सरल रास्ते अपनाने की कोशिश करते हैं । यदि सफलता का स्वाद लेना है तो इसके लिए हमें कुछ जरूरी नियम बनाने ही होंगे। जैसे- सुबह जल्दी उठना, रोज शारीरिक कसरत व ध्यान करना, रोजाना कुछ पढ़ना व तय काम को तय समय सीमा में करना, समय का पाबंद रहना, लक्ष्य केन्द्रित रहना । ये सभी नियम छोटे जरूर प्रतीत होते हैं लेकिन अधिकांश लोग इन आदतों को अपनाने में ही विफल हो जाते
हैं। यदि हमें कुछ नया करना है, कुछ हासिल करना है तो यह करना ही होगा ।
निरतंरता रखे अपने प्रयासों में
बड़ा सोचो , छोटा करो , लगातार करते रहो । किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह नियम जरूरी है। हम सब लोग अपने नए काम या कुछ खास करने की बात करते हैं। उस पर काम करना शुरू भी कर देते हैं, लेकिन निरंतरता नहीं रख पाते। कारण या तो कुछ समय बाद हमारे विचार बदल जाना या अच्छे परिणाम नहीं आना, सही समय व वातावरण अनुकूल नहीं होना, कुछ भी हो सकता है । इन सबके बीच निरतंर संतुलन के साथ चलते रहना सफर को हमेशा के लिए सफल कर देता है । दुनिया में अपनी बड़ी सोच की दिशा में लगातार काम करने वाले बहुत कम है। इसीलिए सफल और श्रेष्ठ लोगों की संख्या भी कम है।
सहजता रखें सभी नतीजों में
एक अच्छी शुरुआत का मतलब यह नहीं है कि आप सफल हो गए। इसी तरह एक खराब शुरुआत का मतलब भी यह नहीं है कि आप विफल हो गए। यदि हम एक छोटे
बच्चे को कुछ नया करते हुए देखते हैं तो पाएंगे जब वह कोशिश करता है और परिणाम अच्छे नहीं आते या सफल नहीं होता तो वह रुकता नहीं, फिर कोशिश करता है। सफलता के साथ साथ खुश रहने के लिए सबसे जरूरी है कि हम प्रत्येक स्थिति में सहजता रखें। तीसरी शताब्दी के संत तिरुवल्लुवर कहते हैं, ” उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का मापदंड है ” अर्थात काम में उत्साह बना रहना कार्य को पूर्णता तक पहुँचाने के लिए अतिआवश्यक है ।
परिणाम
हम सभी परिणामों से गहराई से प्रभावित होते, बहुत स्वाभाविक भी है किन्तु यह भी ज्ञान होना ही चाहिए कि परिणाम हमेशा आपके अनुकूल नहीं हो सकते ! ऐसी स्थिति में अब क्या करना है ? यदि यह जान लिया तब सफलता का टेस्ट हमेशा बरकरार रहेगा।
आइए अंत में सबसे रहस्यमयी और संजीवनी बूटी को जान लेते हैं, इसको समझने के लिए जीवन की व्यवस्था को समझना ही होगा…भगवान श्रीकृष्ण गीता में उपदेश देते हुए कहते हैं …
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥
कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्मण का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि कर्म की गति गहन है ।
इसी कर्म गति को समझते हुए परिणाम से प्रभावित हुए बिना सहज भाव से निरतंर कर्म करते रहें, परिणाम तो अवश्यंभावी मिलना ही है।भगवान कहते हैं उसे मैं टाल नहीं सकता ।
- रविन्द्र नरवरिया, Dirctor- Ics Academy (since1999)
- ————————————————–
*आप अपना भाग्य नहीं बदल सकते पर आदतें बदल सकते हैं*
‘आदत से लाचार होना’ यह मुहावरा अवश्य सुना होगा आपने । इसका अर्थ है कि आदत के आगे हम लाचार हैं, आदतें हम पर हावी होती हैं और हम आदतों के गुलाम ।
हम सबके भीतर कुछ न कुछ ऐसी आदतें होती हैं, जिन्हें हम छोड़ना चाहते हैं, उनसे आज़ाद होना चाहते हैं, हमें अच्छी तरह पता होता है कि हमारे कामयाब होने में यही वो सबसे बड़ा रोड़ा हैं जिनकी वजह से बार-बार मंजिल मिलते मिलते छूट जाती है। फिर भी आखिर क्यों हम खुद की आदतों के सामने इतने लाचार हो जाते हैं ? वजह क्या है ? वजह है साइकोसोमैटिक यानी मनोदैहिक!
मतलब यह है कि मन अपने स्वभाव के अनुसार हर जगह आसानी से आराम ढूंढता है, ज़ाहिर है हमारे शरीर को भी ऐसा ही करने में मज़ा आता है, सो वो उसकी हां में हां मिलाता है…. और यह सिलसिला चल पड़ता है। इस सिलसिले का ही नाम आदत है।
खासकर वो आदतें हमारे लिए समस्या बन जाती हैं जो हमारी नाकामी और पतन के लिए प्रभावी रूप से जिम्मेदार होती हैं, इसी सिलसिले का बेहद मज़बूत रूप होती हैं नशे की लत । आदतें कोई सी भी हों इसे क्रांति की तरह बदल डालने की न ठानें। आदत धीरे-धीरे बनीं हैं तो धीरे-धीरे ही जाएंगी । ये आदतें जब गहरी हो जाती हैं तो ये ही हमारे संस्कार बन जाती हैं । आध्यात्मिक ज्ञान कहता है कि यही संस्कार अगले जन्मों में फिर हमारी आदतों के रूप में व्यवहार में दिखाई देते हैं । आपने देखा होगा व्यक्ति आदतें कई बार मरते दम तक नहीं बदल पाता है । ऐसा इसीलिए होता है की वे आदतें हमारे कई-कई जन्मों की हैं । हमारे मस्तिष्क के तीन हिस्से हैं- पहला सोच से संबंधित है। दूसरा उसके कार्यान्वयन से संबंधित है और तीसरा उसके दोहराव या अभ्यास से संबंधित है। यानी हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही करते हैं, और फिर वैसा ही करते जाते हैं। इस तरह हमारी आदतों का निर्माण होता जाता है।
संकल्प आदतों को बदलने सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं, मस्तिष्क को इनोसेंट कहा जाता है अर्थात बच्चे की तरह, इसे जो दृढ़ता पूर्वक कहा जाएगा वह यह मान लेगा और यही संकल्प है । आदत को बदलने के ऐसे छोटे- छोटे संकल्प पूरे जीवन को बदल डालने की भूमिका तय कर देते हैं । और यही सभी कामयाबियों की गारंटी सिद्ध होगी।
वैज्ञानिक और राष्ट्रपति रहे डाॅ. ए.पी. जे. कलाम कहते हैं,
‘आप अपने भाग्य को नहीं बदल सकते, परंतु अपनी आदतें बदल सकते हैं। और देखिए… आपका भाग्य बदल जाएगा।
*तैरते वक्त डूबने के बारे में मत सोचो*
निश्चित ही सफलता आकर्षित करती है, किन्तु हमने कभी ये विचार किया की एक परीक्षार्थी ने सफल होने के लिए क्या विशेष किया होगा ! हर सफल व्यक्ति में एक चीज बिल्कुल समान है वह है उसका एकाग्र चित्त व सकारात्मक चिंतन । विद्यार्थियों की असफलता के बड़े कारणों में, एकाग्रता का अभाव व चिंतन की नकारात्मकता देखी जा सकती है । जबकि यह भी देखा गया कि बहुत सामान्य बुद्धि के विद्यार्थी अपनी संकल्प शक्ति के बल पर अपेक्षा से अधिक सफल देखे गए । संकल्प शक्ति मन को उर्जा और ताकत से भर देती है ,और यही मन आपको उपलब्धियों की ओर ले जाता है । श्रीभगवत् गीता के एक श्लोक में कहा गया है,
अदृढ़ं च हतं ज्ञानं प्रमादेन हतं श्रुतम् ।
संदिग्धो हि हितो मंत्रो व्यग्रचितो हतो जपः ।
(जो ज्ञान दृढ़ नहीं होता वह व्यर्थ नष्ट हो जाता है । ध्यान न देने से श्रवण, संदेह से मंत्र तथा मन के इधर-उधर भटकने से जप फलदायी नहीं होता ।)
माओत्सो युंग कहते हैं- “तैरते वक्त अगर डूबने के बारे में सोचोगे तो डूब जाओगे, ऐसा नहीं सोचोगे तो तैरते रहोगे।”
मनोवैज्ञानिक डॉ. नारमन विन्सेंट पीले के अनुसार विधेयात्मक चिन्तन व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाता है और निषेधात्मक चिन्तन उसको सफलता से दूर ले जाता है, जिसको हम असफलता की ओर ले जाना कह सकते हैं. सकारात्मक चिन्तक उपलब्ध साधनों के सकारात्मक उपयोग की प्रेरणा प्रदान करता है और नकारात्मक चिन्तन पद्धति कार्य-प्रणाली को नकारात्मक बना देती है. सकारात्मक चिन्तन अनुकूल साधनों को अपनी ओर आकर्षित भी करता है और अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण भी करता रहता है सकारात्मक चिन्तन संकल्प, साहस एवं पुरुषार्थ को जाग्रत करके साधक को सफलता के सोपानों के प्रति उन्मुख कर देता है सकारात्मक चिन्तन को हम एक चुम्बक की भाँति आकर्षण शक्ति से युक्त मानते हैं चुम्बक कूड़े के ढेर में से भी लौह-कणों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, प्रतिकूलतम एवं विषमतम परिस्थितियों में से भी अनुकूल शक्तियाँ सकारात्मक चिन्तन की ओर खिंची चली आती हैं,
आंइस्टीन से एक बार पूछा गया था कि आपने सापेक्षवाद के सिद्धांत की खोज कैसे की थी। उन्होंने कहा था कि नहीं जानता। मैने उसका कभी चिन्तन ही नहीं किया था। अचानक यह बात मेरे प्रज्ञा में अवतरित हुई। अकस्मात विस्फोट हुआ और सापेक्षवाद का अवतरण हो गया ।
यह देखने में आया है कि कभी जीवन और जगत के जो रहस्य चिन्तन और मनन से उद्घाटित नहीं होते, वे अकस्मात् घटित हो जाते है- दिमाग में कौंधकर और यहाँ तक कि स्वप्न में आकर भी। न्यूटन एक बगीचे में घूम रहे थे। सेब के पेड़ पर से अचानक एक फल धरती पर गिरा। इससे पहले भी सेब के फल टूटकर धरती पर ही गिरते थे और ऐसा न्यूटन के देखने के पहले से हो रहा था और लोग देख रहे थे। ऐसा नहीं था कि न्यूटन ने भी उसे पहली बार ही देखा था। इससे कई बार पहले भी वे उसी पेड़ से सेब के फल को नीचे गिरता हुआ देख चुके थे। लेकिन उसी दिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि न्यूटन के दिमाग ने इस गिरते हुये सेव को देखकर गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त कौंध गया। तो क्या हम यह नहीं कह सकते कि इस प्रकार के आकस्मिक ढंग से घटने वाले रहस्यों का मूल स्रोत कहीं न कहीं हमारे अन्दर है।
अब लगभग अधिकांश विचारक इस मत को मानने लगे है कि मस्तिष्क की अवचेतन क्रियायें चेतन क्रियाओं की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण कार्य करने में सक्षम होती है। अधिक सृजनात्मक कार्य मस्तिष्क की अवचेतन अवस्था में ही होता है। सकारात्मक सोच मन में उठने वाले संकल्पों को भी धीमा रखती है । सकारात्मक संकल्प ही अवचेतन की क्रियाओं को मजबूत बनाते हैं । इसलिए कहा जाता है,
*अपने विचारों पर नजर रखो,वे शब्द बन जाते हैं*
*शब्दों पर नजर रखो,वे कार्य बन जाते हैं*,
*आदतों पर नजर रखो,वे चरित्र बन जाती हैं*,
*कार्यों पर नजर रखो, वे आदत बन जाती हैं*,
*चरित्र पर नजर रखो, वह तुम्हारी नियति बन जाती है ।*
( रविन्द्र नरवरिया)————————————————————————————–
जो नाविक अपनी यात्रा के अंतिम बंदरगाह को नहीं जानता, उसके अनुकूल हवा कभी नहीं बहती
मंजिल को पाने के लिए सपने देखना जरूरी है। सभी सफल व्यक्तियों के पास उस लक्ष्य का सपना होता है, जिसे वे हासिल करना चाहते हैं। यह सपना उनके हर प्रयास और शक्ति के पीछे की ऊर्जा बन जाता है, जो उन्हें सभी समस्याओं से सफलतापूर्वक निकालकर आगे ले जाता है। आज युवाओं का एक बड़ा वर्ग सपनों से विहीन है, यही कारण है कि ढेर सारी डिग्रियों के बाद भी एक संतोषजनक नौकरी नहीं ढूंढ पाते हैं। डिग्रियाँ सपनो से रिक्त है, जोश रहित और नीरस हो गई हैं।
आपके सोचने का तरीका सफलता की राह तय करता है, कुंठित आदमी रोशनी में भी अंधेरा ढूंढ लेता है । उसे खूबसूरती में भी कुरुपता ढूंढ लेने की महारत होती है । आशावादी को खुशी है कि जिंदगी कितनी मजेदार चीज है लेकिन निराशावादी को चिंता है कि एक दिन मरना है।
आशावादी को अच्छा लग रहा है कि बादल छँट गए हैं और धूप निकल आई है लेकिन निराशावादी को चिंता है कि आज गर्मी लगेगी । निराशावादी फसल अच्छी न होने पर चिंता करता है कि परिवार का खर्च कैसे चलेगा, जब फसल बहुत अच्छी हो जाती है तो वह इसलिए चिंतित है कि अब भाव गिर जाएंगे । निराशा एक प्रकार का मर्ज है जिसकी दवा आशावादीता ही है ।
बुद्धी के मापदंड का हथियार ज्यादा आईक्यू न होकर आपका नजरिया हो गया है, यह नजरिया आपकी बुद्धिमानी का प्रतिनिधित्व करता है। आपके काम करने की शैली आपके नजरिए से पैदा होती है। आपकी सफलता का प्रतिशत आपके सकारात्मक चिंतन पर निर्भर करता है। कहा जाता है आशावादी व्यक्ति हर कठिनाई में मौका देखता है, निराशावादी हर मौके पर कठिनाई खोजता है।
वृहदकारण्यक उपनिषद कहता है आप वह हैं,
जो आपकी इच्छा है, जैसी आपकी इच्छा है, वही आपकी आकांक्षा है, जैसी आकाक्षा है,
वैसा आपका कार्य है, जैसा आपका कार्य है, वैसा आपका भाग्य है।
आज का युवा परिणाम चाहता है पर कर्म करना नहीं चाहता। सब कुछ पा लेने की कवायद में कुछ भी नहीं हासिल होता। दुनिया के सफल व्यक्तियों का इतिहास दिखाता है कि जिन्हें महान सफलतएं मिली वे न तो सर्वाधिक गुणी, न सबसे अधिक शिक्षित और न खूब समर्थ थे। सर्वाधिक सफल व्यक्ति वहीं होते हैं जिनके पास एक सपना और उसे पूरा करने की चाहत दोनों जुड़ जाते हैं ।
प्रतियोगी परीक्षाएं कठिन नहीं होतीं हैं नजरिया बदलना कठिन होता है । इन परीक्षाओं की तैयारी के लिए उतर तो जाते हैं पर जिस चिंतन या नजरिए की जरूरत है वैसा बदलाव नहीं ला पाते हैं। यही स्थती परीक्षाओं को कठिन बना देती है। प्रत्येक परीक्षा की एक मांग होती है और उसकी पूर्ति उसके अनुरूप आवश्यक है। तथ्यों को एकत्र करना आसान है, यह “रॉ मटेरियल” है किंतु इसका उचित और समयानुकूल उपयोग सरल नहीं होता।
(रविन्द्र नरवरिया)
( लेखक कैरियर काउंसलर हैं और बीस वर्षों से सिविल सर्विसेज प्रतियोगिता परीक्षाओं का अध्यापन कार्य कर रहे हैं) ravindranarwriya@gmail.com
आर्टस के स्टूडेंट्स भी कर सकते हैं विदेशी संस्थाओं में जाॅब
मानविकी विषयों (ह्यूमैनिटीज स्ट्रीम) से स्नातक व स्नातकोत्तर उपाधि लेने वाले विद्यार्थियों को हमेशा यह हीनता की भावना रहती है कि उनके पास सांइस की तरह स्कोप नहीं रहते हैं । आज आप जानेंगे इस तरह की स्ट्रीम के लिए भी विविध संभावनाएं हैं । यहां उन क्षेत्रों की बात कर रहे हैं जहाँ आर्ट्स के विद्यार्थी भी बहुत क्रिएटिव व इनोवेटिव कार्य कर सकते हैं ।
इसमें म्यूजियोलॉजी आपके कॅरिअर के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। हालांकि इसके लिए हिस्ट्री और आर्ट्स के साथ ही आर्कियोलॉजी में रुचि होना जरूरी है। एक्सपर्ट्स के अनुसार हेरिटेज को संरक्षित करने को लेकर लगातार बढ़ रही जागरूकता, सरकार की कई योजनाओं के साथ ही एनजीओ के प्रोजेक्ट्स के चलते इस फील्ड में कॅरिअर की संभावनाएं बढ़ी हैं। लोगों की रुचि भी हेरिटेज को लेकर लगातार बढ़ रही है।
क्या है म्यूजियोलॉजी
म्यूजियम को संचालित करने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक, एडमिनिस्ट्रेशन और मैनेजमेंट ही म्यूजियोलॉजी है। इसके सिलेबस में हिस्ट्री, आर्ट्स, आर्कियोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी, नेचुरल हिस्ट्री शामिल है। म्यूजियोलॉजी में हिस्ट्री के साथ ही म्यूजियम को संचालित करने के तरीकों और सोसायटी में म्यूजियम के रोल को भी स्टडीज़ किया जाता है। रिकॉर्ड मेन्टेन करने से लेकर, रिसर्च वर्क, सर्वे जैसे काम इसमें आते हैं।
यूजी-पीजी कोर्स उपलब्ध
आर्ट्स या ह्यूमैनिटीज स्ट्रीम से 10+2 करने वाले स्टूडेंट्स म्यूजियोलॉजी से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकते हैं। अन्य स्ट्रीम्स से स्कूलिंग करने वाले स्टूडेंट्स भी इस कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं, लेकिन आर्ट्स बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स को फील्ड में प्राथमिकता मिलती है। अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के मानकों में भिन्नता है । फाइन आर्ट में बीए के बाद म्यूजोलाॅजी में एम ए के लिया एडमिशन लिया जा सकता है ।
विदेशों के म्यूजियम्स में मिल सकती है नौकरी
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा हैरिटेज और ऐतिहासिक धरोहर हैं। यही वजह है कि म्यूजियोलॉजी के स्टूडेंट्स के लिए यहां कॅरिअर की अपार संभावनाएं हैं। म्यूजियोलॉजी की पढ़ाई के बाद राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा संचालित किए जाने वाले म्यूजियम्स में एग्जिबिट डिजाइनर, कंजर्वेशन स्पेशलिस्ट, क्यूरेटर और म्यूजियम डायरेक्टर जैसे पदों पर नियुक्ति पा सकते हैं। म्यूजियोलॉजी का एकेडमिक सिलेबस इस तरह से तैयार किया जाता है, जिससे कि स्टूडेंट्स भारत के म्यूजियम्स के साथ ही विदेशों में भी म्यूजियम्स या आर्ट गैलरीज में काम करने के लिए तैयार हो सकें। इसमें प्रोफेशनल नॉलेज, क्रिएटिविटी, इनोवेशन, टेक्निकल स्किल्स शामिल हैं।
देश में इन म्यूजियम और आर्ट गैलरीज में हैं अवसर
एकेडमी ऑफ फाईन आर्ट्स कोलकाता गवर्नमेंट म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी, चंडीगढ़ • गवर्नमेंट म्यूजियम चेन्नई इंडियन म्यूजियम कोलकाता • जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई • नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट विक्टोरिया म्यूजियम, कोलकाता.
म्यूजियोलॉजी कोर्स
• बीए ( म्यूजियोलॉजी) •एमए ( म्यूजियोलॉजी) •पीजी डिप्लोमा( म्यूजियोलॉजी) •पीजी डिप्लोमा कोर्स इन म्यूजियोलॉजी एंड कंजर्वेशन •एडवांस डिप्लोमा इन आर्कियोलॉजी एंड म्यूजियोलॉजी •पीएचडी(म्यूजियोलॉजी)
म्यूजियोलॉजी की पढ़ाई के लिए ये हैं प्रमुख संस्थान
■ नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली ■ महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ोदा ■यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता ■ बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी ■ जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर ■ यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान ■अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ■ रबींद्र भारती यूनिर्वसिटी
- (रविन्द्र नरवरिया)
( लेखक कैरियर काउंसलर हैं और बीस वर्षों से सिविल सर्विसेज प्रतियोगिता परीक्षाओं का अध्यापन कार्य कर रहे हैं)
संघ व राज्य लोक सेवा आयोग की तैयारी कब और कैसे शुरू करें
आज युवाओं के लिए पहली प्राथमिकता होती है, अपनी राह में आ रहे कॅरियर के अवसरों में से सर्वश्रेष्ठ को तलाशना और वे हमेशा एक संतोषजनक कॅरियर की तलाश करते हैं जिससे अपने सपनों और इच्छाओं की पूर्ति हो सके. शिक्षित और महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए सिविल सेवा और राज्य सिविल सेवा शीर्ष कॅरियर है जिसे वे प्राप्त करने का लक्ष्य बनाते हैं. कुछ भाग्यशाली युवाओं के लिए, कॅरियर की शुरूआत में यह अवसर हाथ लग जाता है तो कई युवाओं के लिए यह एक समस्या का हिस्सा बन जाता है । असफलता क्यों हाथ लगती है ? क्या बड़े संस्थानों में पढ़ने से सफलता मिल ही जाती है ! या हम सफलता प्राप्त करने की तरकीब से अपरिचित होते हैं । आओ जानते हैं, कहाँ गलतियाँ होती हैं,
कई बार यह देखा गया है कि प्रारंभिक परीक्षा से लगभग एक वर्ष पहले तैयारी शुरू करने वाले उम्मीदवारों को इस परीक्षा की तैयारी संभालना आसान लगता है. हाल के बदलावों के बाद भी, गंभीर तैयारी करने के लिए यह न्यूनतम अवधि आवश्यक है. हालांकि, दीर्घकालिक योजना आदर्श रूप से 12 के बाद शुरू हो जानी चाहिए.
यह आपके स्वयं की क्षमता और स्थितियों के अनुरूप ढलने की स्थति पर भी निर्भर करता है , सफल उम्मीदवारों के कई उदाहरण ऐसे भी हैं, जिन्होंने प्रारंभिक परीक्षा में छह महीने पहले इस परीक्षा की तैयारी शुरू कर उच्च परिणाम दिए. आज सिविल सेवा परीक्षा सम्बन्धी सलाह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है क्योंकि विशेषज्ञों के अलावा बहुत से सफल उम्मीदवार अपने विचार और अनुभव साझा करते हैं जो भविष्य के उम्मीदवारों को तैयारी योजना बनाने के लिए कुछ सुराग लेने में मदद करते हैं. फिर भी ऐसी परीक्षाओं की सफलता के लिए अनुभवी मार्गदर्शकों की आवश्यकता होती है ।
फोकस अब सिविल सेवा परीक्षा 27 जून 2021 व 11अप्रैल 2012 की राज्य सेवा परीक्षा के लिए किया जाना चाहिए । इन परीक्षाओं के लिए गंभीर विद्यार्थियों को एकीकृत दृष्टिकोण अपनाते हुए मुख्य परीक्षा की और उन्मुख अध्ययन योजना के साथ परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए और इसके बारे में एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिए जो वास्तव में कार्यभार को प्रभावी ढंग से संभालने में मदद कर सके ।
सामान्य अध्ययन की तैयारी सबसे अधिक ध्यान आकर्षित करती है और वास्तव में यह तैयारी रणनीति में उचित विचार के योग्य है भी. सामान्य अध्ययन के 4 प्रश्न-पत्रों को संभालने के लिए आपको बहुत कुछ पढ़ने की आवश्यकता है । यह आधारभूत ज्ञान को मजबूत करने, पारंपरिक भाग और गतिशील तत्वों के बीच संतुलन बनाए रखने और वैचारिक स्पष्टता के बारे में है जो इस परीक्षा की अप्रत्याशितता का सामना करने में मदद करता है.
ये परीक्षाएँ आपकी स्मरण शक्ति, समझ की गहराई और समस्या का विश्लेषण करने की क्षमता तथा आपके बौद्धिक गुणों का मूल्यांकन करती है. सिविल सेवा के लिए जब वैकल्पिक विषय की बात आती है, तो आपकी पसंद बहुत मायने रखती है. उम्मीदवार तर्कसंगत सोच के साथ ‘एक’ वैकल्पिक विषय चुनना चाहिए ।
लेखन योग्यता है सफलता का औजार
प्रतिवर्ष भारत सरकार व राज्य शासन लगभग विभिन्न पदों की रिक्तियां जारी करता है। संघ व राज्य लोक सेवा आयोग इन रिक्तियों पर भर्ती की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरा करता है। जिसमें- प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार आदि हैं। पहला चरण केवल प्रवेश परीक्षा है इसके नंबर आगे के चरणों में जोड़े नहीं जाते हैं। मुख्य परीक्षा आपके कैरियर का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। यह चरण में है पेन व पेपर वाला मोड होता है । आपकी तैयारी का सबसे बड़ा मोड़ यही है । यहीं आपकी कुशलता, बुद्धि, ज्ञान, तथ्य ,मेमोरी सभी का मूल्यांकन होगा।यदि आप अपनी तैयारी के दौरान लिखने के अभ्यस्त नहीं हुए तोशमान लीजिए आपने तैयारी की ही नहीं । आप कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टर बनेंगे या कोई छोटी पोस्ट पर चयन होगा… यह सब कुछ इसी लिखने से निर्धारित होगा ।
लिखते समय इन बातों का ध्यान रखें
- सरल भाषा का इस्तेमाल करें।
- अधिक लंबे वाक्यों का प्रयोग नहीं करें।
- भाषा ऐसी हो जो समझी जा सके व अर्थपूर्ण हो।
- गैर परंपरागत मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग न करें।
उत्तर लिखने के पूर्व ‘टेल वर्ड’ पर ध्यान दें
प्रश्न में टेल वर्ड दिये होते हैं, परीक्षार्थी बिना इस पर ध्यान दिए लिखना शुरू कर देता है, लिखने की सबसे बड़ी गलती यहीं से शुरू होती है । जैसे,व्याख्या, आलोचना, समीक्षा, विवेचन, चर्चा, विस्तार, परीक्षण, विश्लेषण व मूल्यांकन । जो पूछा गया है उसी के आधार पर उत्तर की शुरुआत और अंत होना चाहिए ।
परीक्षार्थियों को विचारक टी एस हक्सले की बात याद रखना चाहिए, “जीवन के आरंभ में मिलने वाली असफलताएं प्रायः सर्वाधिक लाभकारी सिद्ध होती हैं” “विक्टर ह्यूगो कहते हैं, लोगों में बल की कमी नहीं है अपितु संकल्प शक्ति की कमी है । याद रखें जहाज बन्दरगाह पर ज्यादा सुरक्षित होता है किन्तु वह उसका लक्ष्य नहीं है ।
————————————————————————————
पहचाने मन की अद्भुत शक्ति को
सीबीएसई की परीक्षा तिथियाँ घोषित हो चुकी हैं, स्टूडेंट्स की धड़कने बढ़ने लगीं हैं, कोविड काल में पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई है । पैरेंट्स व बच्चों दोनों को इस बात की चिंता है कि इस समय बच्चों की पढ़ाई व मन की स्थिति को कैसे संभाला जाय ! आज हम यहां कुछ उन बातों की चर्चा कर रहे हैं जो आपको इस विषम समय में न केवल संबल देंगी बल्कि आपको परीक्षा में सर्वोत्तम अंक लाने मे मददगार सिद्ध होंगी ।
स्टूडेंट्स की सबसे बड़ी समस्या होती है पढ़ाई में मन लगाना, जो आसान नहीं होता है । किन्तु जिसने इसे आसान बना लिया उसने ऊंचाई छू ली । विवेकानंद एकाग्रता को परिभाषित करते हुए कहते हैं, “जहाँ शरीर हो वहीं मन भी हो ” जब दोनो भिन्न-भिन्न जगह होते हैं, बस वहीं से समस्या शुरू होती है । जब आप पढ़ने बैठे उस समय आपको किताब के अलावा कुछ याद नहीं आना चाहिए । इसे करने में शुरुआत में कठिनाई होगी किन्तु कुछ एक सप्ताह के बाद यह करना सहज होने लगेगा ।
जब हम व्यर्थ की बातों को चित्त में आने देते हैं तो वे और मजबूत हो जाते हैं । इसलिए ऐसे विचारों को धीरे-धीरे बायकाट करो, जब इन्हें सम्मान नहीं मिलेगा तो ये आना बंद हो जाएंगे । किन्तु यह बिल्कुल नहीं भूलना हैं कि ऐसे विचारों की जगह आपको बहुत उपयोगी विचार अवश्य लाना है । उस जगह को खाली नहीं छोड़ना है ।
मन की चंचलता इसका स्वाभाविक गुण है जैसे हवा की प्रकृति बहना है, हवा बहेगी तो ही एहसास देगी । बस समस्या मन के अनियंत्रित होने से है, यदि इसकी लगाम आपके हाथ में है तो आप मालिक अन्यथा यह गुलाम बना कर आपकी स्थिति को बिगाड़ देगा ।
आपको पता नहीं है, जितना वफादार इस दुनिया में आपका मन है, उतना वफादार कोई भी नहीं है, क्योंकि उसके अंदर को शक्ति को पैदा करने वाला काम हम स्वयं करते है। जैसे आपने कुछ चाहा, अर्थात् सोचा, तो वह चीज आपके पास आने को आतुर हो जायेगी। कैसे आएगी, उसका रास्ता क्या होगा, कैसे होगा, इसे पहचानना आसान ….
योग का केन्द्र बिन्दु मन है ,यदि मन अच्छा है तो शरीर स्वाभाविक रूप अच्छा रहेगा । पतंजलि योग सूत्र में योग के लिए कहते हैं- ‘चित्त वृत्ति निरोधः’ चित्त अर्थात् मन की चंचलता(वृत्ति) को धीमा करना,अति धीमा करना ही योग है ।
उदाहरण के लिए हम शरीर को ही लें, यदि हमें कोई बीमारी है, तथा उस बीमारी की चर्चा आप बार-बार कर रहे हैं, तो आप ज़्यादा बीमार कोशिकाओं को पैदा कर रहे हैं। आप जैसे ही किसी बात की चर्चा करते हैं, आप उस बात को और अधिक अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यही चीज़ आपको और अधिक बीमार करती है। यदि यही चीज आप उल्टा कर दें, और यह कहना शुरु कर दे, कि मैं तो बिल्कुल
स्वस्थ हूँ, मुझे किसी तरह का कोई भी दर्द नहीं है, आप देखिए चमत्कार; पूरी प्रकृति आपको सपोर्ट करना शुरु कर देगी। कहने का मतलब जो आप नहीं चाहते और उसे आप
सोचते है, तो उसे आप ऊर्जा देते हैं। यदि उल्टा या पॉजीटिव सोचें तो यह बात अच्छी भी तो हो जायेगी। करना क्या, बस सोचना ही तो है तो क्यों ना सोचें। बहुत आसान है; करना ।
( लेखक लाईफ मैनेजमेंट कोच है, पिछले बीस वर्षों से सिविल सर्विसेज प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्यापन कार्य कर रहे हैं )
वफादार मन
आपको पता नहीं है, जितना वफादार इस दुनिया में आपका मन है, उतना वफादार कोई भी नहीं है, क्योंकि उसके अंदर को शक्ति को पैदा करने वाला काम हम स्वयं करते है। जैसे आपने कुछ चाहा, अर्थात् सोचा, तो वह चीज आपके पास आने को आतुर हो जायेगी। कैसे आएगी, उसका रास्ता क्या होगा, कैसे होगा, इसे पहचानना आसान ….
आपके अच्छे अच्छे एहसास, आपकी भावनाएँ, आपकी खुद की अपने प्रति मनोवृत्ति, आपकी खुद की ज़िन्दगी के रचनाकार होते हैं। लेकिन किसी को दूसरों को समझना आसान लगता है, खुद को समझना इतना मुश्किल क्यों? हमारे और आपके साथ वही सिद्धान्त पूर्णतया कार्य करता है कि भूत व भविष्य की सोच हमारे मन की शक्ति को पूर्णरूप से खाली कर देती है।
उदाहरण के लिए हम शरीर को ही लें, यदि हमें कोई बीमारी है, तथा उस बीमारी की चर्चा आप बार-बार कर रहे हैं, तो आप ज़्यादा बीमार कोशिकाओं को पैदा कर रहे हैं। हम सभी की ऐसी आदत है कि जैसे हमें बुखार भी हो जाए, तो हम उसे दूसरों को बताये बिना रह भी नहीं सकते। हमें लगता है कि उसे बताने पर हमें सहानुभूति मिल जायेगी। लेकिन ऐसी बात नहीं। आप जैसे ही किसी बात की चर्चा करते हैं, आप उस बात को और अधिक अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यही चीज़ आपको और अधिक बीमार करती है। यदि यही चीज आप उल्टा कर दें, और यह कहना शुरु कर दे, कि मैं तो बिल्कुल स्वस्थ हूँ, मुझे किसी तरह का कोई भी दर्द नहीं है, आप देखिए चमत्कार; पूरी प्रकृति आपको सपोर्ट करना शुरु कर देगी। कहने का मतलब जो आप नहीं चाहते और उसे आप
सोचते है, तो उसे आप ऊर्जा देते हैं। यदि उल्टा या पॉजीटिव सोचें तो यह बात अच्छी भी तो हो जायेगी। करना क्या, बस सोचना ही तो है तो क्यों ना सोचें। बहुत आसान है; करना है
मानो आप अपना क्रोध किसी चीज़ या किसी के विरोध में निकाल रहे हैं, तो आप उससे अपनी और नकारात्मक ऊर्जा को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कहने का भाव, प्रेम से प्रेम बढ़ता है, क्रोध से क्रोध बढ़ता है, इसलिए यदि हम अपने आप में शांत रहना शुरु कर दें, तो शांति भी तो बढ़ सकती है ना इसलिए शांत रहें, शान्तिपन का माहौल भी पैदा करें। लोगों को बस प्यार करें।
सफल लोगों के लक्षण क्या हैं ?
सफल लोगों के लक्षण क्या हैं ?सफलता के लिए हम कुछ भी करने को तैयार रहते हैं परंतु इस पर हमने कभी विचार ही नहीं किया कि आखिर सफलता मिलती कब है और कैसे ? आज दुनिया में इस पर खूब लिखा गया ,खूब शोध हुए की आखिर सफल लोग करते क्या हैं !!!
प्रोफेसर वाल्टर के किए गए बहुत ही रोचक प्रयोग आपकी आंखें खोल देगा, यह बताता है कि सफल लोगों के लक्षण क्या होते हैं !!
प्रबंधन की ट्रेट थ्योरी भी यह बताती हैं कि सफल व्यक्ति कुछ विशिष्ट गुण रखते हैं । यहां आप उस एक गुण को पढ़ पाएंगे,
टीचर ने क्लास के सभी बच्चों को एक खूबसूरत टॉफी दी और फिर एक अजीब बात कही… सुनो बच्चों, आप सभी कोदस मिनट तक अपनी टॉफी नहीं खानी है। और ये कहकर वो क्लास रूमसे बाहर चले गए। कुछ पल के लिए क्लास में सन्नाटा छा गया। हर बच्चा उसके सामनेपड़ी टॉफी को देख रहा था और हर गुज़रते पल के साथखुद को रोकना मुश्किल हो रहा था।
दस मिनट पूरे हुए और टीचरक्लास रूम में आ गए। समीक्षा की पूरे वर्ग में सात बच्चे थे जिनकी टॉफियां ज्यों की त्योंरखीं थीं।
जबकि बाकी के सभी बच्चे टॉफीखाकर उसके रंग और स्वाद पर टिप्पणी कर रहे थे। टीचर ने चुपके से इन सात बच्चों के नाम को अपनी डायरी में दर्ज़ कर दिए और नोट करने के बाद पढ़ाना शुरू कर दिया।
इस शिक्षक का नाम प्रोफसर वॉल्टर मशाल था। कुछ वर्षों के प्रोफेसर वॉटर ने अपनी बही डायरी खोली और सात बच्चों के नाम निकाल करउनके बारे में शोध शुरू कर दिया।
एक लम्बे संघर्ष केबाद उन्हें पता चला कि सातों बच्चों ने अपने जीवन में कई सफलताओं को हासिल किया है और अपने-अपने फील्ड के लोगों की संख्या में सबसे सफल हैं।
प्रोफेसर वॉल्टर ने अपने बाकी वर्ग के छात्रों की भी समीक्षा की और यह पता चला कि उनमें से ज़्यादातर एक आम जीवन जी रहे थे। जबकि कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें सख्त आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था। इन सभी प्रयासों और शोध का परिणाम प्रोफेसर वॉल्टर ने एक वाक्य में निकाला और जो यह
था – “जो आदमी दस मिनट तक नहीं रख सकता, वह जीवन में कभी आम नही बढ़ सकता।” इस शोध को दुनिया भर में शोहरत मिली और इसका नाम “मार्श मेल यार” रखा गया, क्योंकि प्रोफेसर वॉल्टर ने बच्चों को जो टॉफी दी थी उसका नाम “मार्श मेलो” था। यह फोम की तरह नरम थी। इस थ्योरी के अनुसार दुनिया के सबसे सफल लोगों में कई गुणों के साथ एक गुण धैर्य पाया जाता है। क्योंकि यह खूबी इंसान के बर्दाश्त की ताकत को बढ़ाती है जिसकी बदौलत आदमी कठिन परिस्थितियों में निराश नहीं होता और वह एक असाधारण व्यक्तित्व बन जाता है।
—————————————————–
बड़ा सोचो…छोटा करो…लगातार करते रहो
जिंदगी मौका हम सबको देती है कि हम अपने आपको आजमाएं और सफलता तक पहुंचे। लेकिन इसके बावजूद बहुत कम लोग ही सफलता हासिल कर पाते हैं , सफलता के सही मायने भी समझना होंगे ! दरअसल जीवन में सफल होना उतना ही सरल है, जितना किसी बच्चे के लिए कोई नई स्किल सीखना। सफलता सरलता से आती है अर्थात यदि हम कुछ जरूरी अभ्यास व तरीकों को जिंदगी में शामिल कर लें तो किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं जो सफलता हमारी भी जिंदगी का हमेशा के लिए पार्ट ऑफ लाइफ हो जाएगी । कबीर कहते हैं- करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान …।
कठोरता अपनाएं स्वयं के साथ
सफलता में सबसे बड़ी रुकावट हम खुद हैं। हम दूसरों के साथ कठोर होना वीरता मान लेते हैं किंतु जब स्वयं की बारी आती है तो अधिक से अधिक सरल रास्ते अपनाने की कोशिश करते हैं । यदि सफलता का स्वाद लेना है तो इसके लिए हमें कुछ जरूरी नियम बनाने ही होंगे। जैसे- सुबह जल्दी उठना, रोज शारीरिक कसरत व ध्यान करना, रोजाना कुछ पढ़ना व तय काम को तय समय सीमा में करना, समय का पाबंद रहना, लक्ष्य केन्द्रित रहना । ये सभी नियम छोटे जरूर प्रतीत होते हैं लेकिन अधिकांश लोग इन आदतों को अपनाने में ही विफल हो जाते
हैं। यदि हमें कुछ नया करना है, कुछ हासिल करना है तो यह करना ही होगा ।
निरतंरता रखे अपने प्रयासों में
बड़ा सोचो , छोटा करो , लगातार करते रहो । किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह नियम जरूरी है। हम सब लोग अपने नए काम या कुछ खास करने की बात करते हैं। उस पर काम करना शुरू भी कर देते हैं, लेकिन निरंतरता नहीं रख पाते। कारण या तो कुछ समय बाद हमारे विचार बदल जाना या अच्छे परिणाम नहीं आना, सही समय व वातावरण अनुकूल नहीं होना, कुछ भी हो सकता है । इन सबके बीच निरतंर संतुलन के साथ चलते रहना सफर को हमेशा के लिए सफल कर देता है । दुनिया में अपनी बड़ी सोच की दिशा में लगातार काम करने वाले बहुत कम है। इसीलिए सफल और श्रेष्ठ लोगों की संख्या भी कम है।
सहजता रखें सभी नतीजों में
एक अच्छी शुरुआत का मतलब यह नहीं है कि आप सफल हो गए। इसी तरह एक खराब शुरुआत का मतलब भी यह नहीं है कि आप विफल हो गए। यदि हम एक छोटे
बच्चे को कुछ नया करते हुए देखते हैं तो पाएंगे जब वह कोशिश करता है और परिणाम अच्छे नहीं आते या सफल नहीं होता तो वह रुकता नहीं, फिर कोशिश करता है। सफलता के साथ साथ खुश रहने के लिए सबसे जरूरी है कि हम प्रत्येक स्थिति में सहजता रखें। तीसरी शताब्दी के संत तिरुवल्लुवर कहते हैं, ” उत्साह मनुष्य की भाग्यशीलता का मापदंड है ” अर्थात काम में उत्साह बना रहना कार्य को पूर्णता तक पहुँचाने के लिए अतिआवश्यक है ।
परिणाम
हम सभी परिणामों से गहराई से प्रभावित होते, बहुत स्वाभाविक भी है किन्तु यह भी ज्ञान होना ही चाहिए कि परिणाम हमेशा आपके अनुकूल नहीं हो सकते ! ऐसी स्थिति में अब क्या करना है ? यदि यह जान लिया तब सफलता का टेस्ट हमेशा बरकरार रहेगा अन्यथा…सुशांत ।
*आइए अंत में सबसे रहस्यमयी और संजीवनी बूटी को जान लेते हैं, इसको समझने के लिए जीवन की व्यवस्था को समझना ही होगा…भगवान *श्रीकृष्ण गीता में उपदेश देते हुए कहते हैं* …
कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥
कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्मण का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि कर्म की गति गहन है ।
इसी कर्म गति को समझते हुए परिणाम से प्रभावित हुए बिना सहज भाव से निरतंर कर्म करते रहें, परिणाम तो अवश्यंभावी मिलना ही है।भगवान कहते हैं उसे मैं टाल नहीं सकता ।
– रविन्द्र नरवरिया
(लाइफ मैनेजमेंट कोच )
( www.examguider.com के ब्लॉग पर सभी लेख उपलब्ध )
चित्त वृत्ति निरोध:
योग
अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर सभी के लिए ईश्वर से प्रार्थना है कि आप स्वस्थ्य रहें खुश रहें । ईश्वर ने हमें इस संसार में खुश रहने के लिए प्रकृति और उसके अतिसुंदर,नायाब दृश्य दिए, विभिन्न फूल और फल दिए । ईश्वर हमेशा हमारी खुशी का ख्याल रखते हैं, मौसम में बदलाव लाकर हमारे मन को बोर होने से बचाते हैं ।
योग भी ईश्वर का नायाब तोहफा है, जिसे महर्षि पतंजलि के माध्यम हम तक पहुँचाया, योग वास्तव में मन को ठीक करने का सुन्दर माध्यम है, यह केवल शरीर संचालन भर नहीं है, यह जिम की एक्सरसाइज़ बिल्कुल नहीं है ।
योग का केन्द्र बिन्दु मन है ,यदि मन अच्छा है तो शरीर स्वाभाविक रूप अच्छा रहेगा । पतंजलि योग सूत्र में योग के लिए कहते हैं- ‘चित्त वृत्ति निरोधः’ चित्त अर्थात् मन की चंचलता(वृत्ति) को धीमा करना,अति धीमा करना ही योग है । क्योंकि मन की गति रूकेगी नहीं यदि ऐसा होता है तो गीता के अनुसार यह ‘state of mind’ की स्थिति होगी और ऐसी अवस्था में मस्तिष्क से बीटा किरणें निकलती हैं । जहां मन में एक मिनट में विचारों की संख्या एक या बिल्कुल नहीं होती ।
इस समय अधिकांश मन की व्यथा से अधिक परेशान हैं, सुसाइड जैसी स्थिति इसी का एक परिणाम है । जब हम योग की अलग-अलग मुद्राओं को करते हैं तो हमारे शरीर से कई रसायनों का उत्सर्जन होता, कई ग्लेड्स को व्यायाम मिलता जिससे उनसे निकलने वाले हार्मोन्स आनुपातिक स्थिति में आ जाते हैं । इस आनुपातिक स्थिति से मन की व्यग्रता, उसकी उदासी और मन भटकने जैसी स्थितियाँ स्वतः ही कम या बहुत कम हो जाती हैं । शरीर में सब कुछ सही अनुपात होगा तो अस्वस्थता आएगी ही नहीं । आयुर्वेद भी कहता है- ‘वात-पित्त-कफ’ के अनुपात बिगड़ने पर ही हम अस्वस्थ होते हैं ।
इसलिए योग कीजिए मन से और मन के लिए.. ..स्वस्थ्य रहिए, खुश रहिए ।
– रविन्द्र नरवरिया, Life Management coach.