जम्मू – कश्मीर का पुनर्गठन

जम्मू – कश्मीर का पुनर्गठन

पृष्ठभूमि

भारत सरकार के उपर्युक्त कदम का अधिकांश लोगों ने स्वागत किया है परंतु कुछ संविधान विशेषज्ञों ने राष्ट्रपति के मौजूदा आदेश के द्वारा 14 मई, 1954 के एक और आदेश को समाप्त करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। वर्ष 954 के आदेश के तहत अनुच्छेद 370 तथा अनुच्छेद 35ए का विशेष प्रावधान किए गए। कुछ संविधानबिदों की राय में संवैधनिक प्रावधानों को महज राष्ट्रपति के आदेश से समाप्त नहीं किए जा सकते। 5 अगस्त, 2019 के राष्ट्रपति आदेश से संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन किया गया है। वस्तुतः मौजूदा आदेश के द्वारा पुराने आदेश को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 370 का ही सहारा लिया गया है।

अनुच्छेद 370 (3) के अनुसार भारत का राष्ट्रपति सार्वजनिक
अधिसूचना के माध्यम से इस अनुच्छेद को समाप्त कर सकते हैं बशर्ते कि राज्य की संविधान सभा इसके लिए सिफारिश की हो। कुछ विशेषज्ञों की राय में राज्य पुनर्गठन का यह तरीका भी सही नहीं है। इससे संघीय व्यवस्था को ठेस पहुंचती है और इससे गलत परंपरा की भी शुरूआत
हुयी है। भविष्य में अब केंद्र सरकार, किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर वहां की विधानसभा की अनुमति के बिना उस राज्य के भूगोल में परिवर्तन कर सकती है। भारत सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी जा चुकी है। याचिका में कहा गया है कि जब राज्य विधानसभा अस्तित्व में ही नहीं है, तो फिर अनुच्छेद 370 की समाप्ति की सिफारिश वह कैसे कर सकता है, जैसा कि अनुच्छेद 370(3) में व्यवस्था है।

सुरक्षा परिषद् में बैठक

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति अनुराध पर चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् से ओपचारिक बैठक
का आग्रह किया। परंतु इसे अस्वीकार कर दिया गया। बाद में सुरक्षा परिषद् के अध्यक्ष पॉलैंड के जो आना वरोनेका ने 16 अगस्त, 2019 को अनौपचारिक बैठक आयोजित की। इसमें भारत एवं पाकिस्तान दोनों में से किसी के भी प्रतिनिधि ने हिस्सा नहीं लिया। चीन के लाख प्रयासों के पश्चात पाकिस्तान के। बावजूद बैठक के बाद कोई बयान नहीं जारी किया। हालांकि पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद् में इस विषय पर बैठक को अपनी जोत बताया, पर सच्चाई यह है कि सुरक्षा परिषद् ने न केवल इस पर औपचारिक बैठक से इंकार कर दिया, वरन् चीन को झटका देते हुए भारत के कदम की,
जो कि इसका आंतंरिक मामला है, आलोचना करने वाला कोई बयान जारी करने से भी मना कर दिया। आमतौर पर बैठक के पश्चात सुरक्षा परिषद् द्वारा कम से कम बयान जारी की जाती है परंतु यह भी नहीं किया गया, वर्ष 1971 में अंतिम बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के एजेंडा में कश्मीर
मुद्दा शामिल हुआ था।

अन्य राज्यों को विशेषाधिकार


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