वैज्ञानिकों ने एक फफूंद(‘बायो-आर्कट्रेक्ट फंगल ट्रैप’)से विकसित किया मच्छरों को जड़-मूल से मिटाने का तरीका
मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जीका जैसी मच्छर जनित बीमारियों से हर साल दुनिया भर में करीब सात लाख लोगों की मौत होती है। इन बीमारियों के लिए मुख्य रूप से तीन प्रकार के मच्छर जिम्मेदार माने जाते हैं – एनाफिलीज, एडीज और क्यूलेक्स।
ये परजीवी या वायरस के वाहक बनकर मनुष्यों को बीमार करते हैं। इन रोगों की रोकथाम का सबसे प्रभावी उपाय मच्छरों की संख्या को नियंत्रित करना है, क्योंकि बीमारी का इलाज करने से कहीं आसान है उन मच्छरों को समाप्त करना जो बीमारी फैलाते हैं। लेकिन मच्छरों को पूरी तरह खत्म करना आसान नहीं होता है। वे तेजी से बढ़ते हैं, लगभग हर जगह घनघोर पकते हैं और पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार खुद को बेहद जल्दी अनुकूलित कर लेते हैं। इसी चुनौती से निपटने के लिए वैज्ञानिक लगातार नई तकनीकें और जैविक तथा आनुवंशिक उपाय विकसित कर रहे हैं ताकि मच्छरों की आबादी को सीमित किया जा सके और रोग के फैलाव को रोका जा सके।
हाल ही में ‘नेचर माइक्रोबायोलॉजी’ नामक प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में मच्छरों को समाप्त करने का एक अत्यंत रोचक और नया जैविक तरीका प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने ‘मेटा रिजियम’ नामक फफूंद (फंगस) को आनुवंशिक रूप से परिवर्तित करके बनाया है। यह एक एक मीठी गंध छोड़कर मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करे और फिर उन्हें संक्रमित करके मार दे।
क्या है मेटा रिजियम फफूंद?
यह एक प्राकृतिक फफूंद है जो अफ्रीका और एशिया के गर्म इलाकों में पाई जाती है। यह एक कीट-भक्षी, यानी कीटो को संक्रमित करके मारने वाली फली फफूंद है, जिसका उपयोग लंबे समय से जैविक कीटो नियंत्रण में किया जाता रहा है। इसके सूक्ष्म बीजाणु कीटो के शरीर पर चिपक जाते हैं और कुछ ही समय में भीतर प्रवेश कर जाते हैं। फफूंद की वृद्धि से कीट के ऊतकों को बेहद नुकसान पहुँचता है, जिसकी वजह से कीट की मौत हो जाती है। फफूंद की वृद्वि से कीट के ऊतकों को बेहद नुकसान पहुँचता है, जिसकी वजह से कीट की मौत हो जाती है और वह तीन से पांच दिनों में मर जाता है। मरने के बाद मृत कीट के शरीर पर नई फफूंद उग आती है और नए बीजाणु वातावरण में फैलते हैं जिससे आसपास के अन्य कीट भी संक्रमित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया की दक्षता और स्व-प्रसार क्षमता पर्यावरण-अनुकूल कीटो प्रबंधन की सबसे प्रभावी तकनीकों में शामिल करती है।
कैसे बनी फफूंद एक जैविक औजार?
मेटा रिजियम फफूंद पहले से ही मच्छरों, टिड्डियों और दीमक जैसे कीटो को संक्रमित करके मारने में सक्षम है। लेकिन इसमें एक कमी थी। मच्छर इससे बचने या फिर उन्हे संक्रमित करने में असमर्थ थे, यानी इसके संपर्क में आने से पहले ही वे भाग जाते थे। वैज्ञानिकों ने इस समस्या को दूर करने के लिए एक नया तरीका खोजा। उन्होंने इस फफूंद में एक खास जीन को डाला, जिससे यह फफूंद एक विशेष सुगंध छोड़ने लगी। यह सुगंध मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस खास सुगंध का नाम है – ‘टरपीन्स और एस्टर’ नामक रसायनों से बनती है। परिणाम यह हुआ कि आनुवंशिक रूप से परिवर्तित मेटा रिजियम, मच्छरों के लिए अत्यधिक आकर्षक बन गई, खासकर एडीज एजिप्ती (डेंगू-जीका वाला मच्छर) और एनाफिलीज गेंम्बिया (मलेरिया वाला मच्छर) के लिए।
कैसे काम करती है यह तकनीक?
प्रयोगशाला परीक्षण में फफूंद को कपड़े या एक जाल पर फैलाया गया। यह फफूंद मीठी खुशबू छोड़ती रहती है, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में मच्छर आकर्षित होकर उस सतह पर बैठने लगे। जैसे ही मच्छर सतह को छूते हैं, फफूंद के बीजाणु उनके शरीर पर चिपक जाते हैं और कुछ ही समय में भीतर प्रवेश कर जाते हैं। दो से तीन दिन में मच्छर संक्रमित होकर मर जाते हैं। लैब में किए गए परीक्षणों में यह तकनीक अत्यंत प्रभावी साबित हुई। 90 फीसदी से अधिक मच्छर मारे गए। साथ ही यह फफूंद सामान्य मेटा रिजियम की तुलना में तीन गुना तेजी से मच्छरों को संक्रमित करती है। इस तकनीक को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है – ‘बायो-आर्कट्रेक्ट फंगल ट्रैप’, यानी ऐसा जैविक जाल जो मच्छरों को आकर्षित करे और उन्हें मार भी दे। ■■■■