टिकाऊ विकास के लिये नदी की इकोलॉजी (Stream ecology)

टिकाऊ विकास के लिये नदी की इकोलॉजी (Stream ecology)

नदीभारत की अधिकांश नदियों के गैर-मानसुनी प्रवाह में कमी अनुभव हो रही है। यह कमी हिमालय से निकलने वाली नदियों में योड़ा कम तथा भारतीय प्रायदवीप की नदियों में अधिक है। सूखे दिनों के प्रवाह में हो रही कमी की समग्रता में समझने के लिये नदी विज्ञान को जानना आवश्यक है। बायोडाइवरसिटी की सुरक्षा के लिये उसे जानना आवश्यक है।

बाधी तथा अन्य जल संरचनाओं को टिकाऊ बनाने के लिये उसे समझना आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन और बरसात के चरित्र में हो रहे बदलावों की पृष्ठभूमि में उसे समझना आवश्यक है। संक्षेप में, उसे समझ कर ही नदियों की अस्मिता बहाली, संरचनाओं की उपयोगिता के स्तर के निरापद सेवाकाल, स्वच्छता आजीविका, बायोडइवर्सिटी और प्रवाह बढ़ोत्तरी के लिये कारगर प्रयास किये जा सकते हैं। नदी विज्ञान को समझने का अर्थ नदी परिवारों की छोटी-छोटी नदियाँ से लेकर बड़ी-बड़ी नदियों तक, उनके अक्षत केचमेंटो (Pristine catchments) से लेकर शहरीकरण एवं भूमि उपयोग के कारण परिवर्तित कैच्मेंटों को समझना है।

उस समझ में नदी परिवार में होने वाले कम अवधि के बदलावों से लेकर शताब्दियों तक की अवधि में होने वाले बदलावों को सही परिप्रेक्ष्य में समझना-बूझाना सम्मिलित है। नदी विज्ञान की समग्र समझ में नदियों से सम्बन्धित सभी सतही तथा उथली परतों में सम्पन्न होने वाली प्रक्रियाओं तथा उनके पैटर्न के बीच मौजूद जटिल सम्बन्ध को भी समग्रता में समझना आवश्यक है। यह एक जीवित सिस्टम को उसके वृहत परिवेश सहित जानने की गम्भीर अकादमिक एक्सरसाइज है। गौरतलब है कि उसके कतिपय पक्षों की अनदेखी के कारण नदियों को भौतिक, जैविक तथा पर्यावरणीय संकट से गुजरना पड़ रहा है।

नदी विज्ञान

इसलिये यह कहना प्रासंगिक है कि टिकाऊ विकास के लिये नदी विज्ञान को समझना आवश्यक है। नदी विज्ञान जटिल विज्ञान है। उसमें वाचिक परम्पराओं से लेकर कला, संस्कृति, इतिहास, पौराणिक गाथाएँ और सामाजिक परम्पराएँ जैसी अनेक महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं इसलिये नदी को समझने का काम सिर्फ जल प्रवाह को समझना या नदी के पानी के प्रबन्ध या उसके पानी के उपयोग तक सीमित नहीं है। वह आसमान की तरह फैले अत्यन्त विशाल कैनवास की तरह है।

उस विशाल कैनवास में वह सब सम्मिलित है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नदी से जुड़ा है। उसे प्रभावित करता है। उससे प्रभावित होता है। उसकी अस्मिता का हिस्सा है। उसमें अनेक विषयों के साथ-साथ सम्मिलित है पोषक तत्वों और मछलियों को समुद्र तक ले जाने का कुदरती घड़ी से नियंत्रित विज्ञान। सम्मिलित है बाढ़ प्रभावित इलाकों में उपजाऊ मिट्टी जमाव और भू-आकृतियों का सतत निर्माण। उसमें सम्मिलित है नदी की जन्म से लेकर निशान खोती समची जीवन यात्रा। उसमें सम्मिलित है नदी के शुद्ध जल और उसके सानिध्य में मिलने वाली रेत, बजरी इत्यादि के साथ-साथ जीव-जन्तुओं तथा पशु-पक्षियों, मछलियों और चौपायों के लिये माकूल आश्रय का अध्ययन। उल्लेखनीय है कि नदियों के कैचमेट की साइज एक वर्ग किलोमीटर से भी अत्यन्त छोटे क्षेत्र से लेकर हजारों वर्ग किलोमीटर तक हो सकती है। उसके कैचमेंट की आकृति के अनेक अनबूझ स्वरूप हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि नदी का भतिक और जैविक वातावरण प्रवाह के आगे बढ़ने के साथ बदलता है। नदी विज्ञान ने नदी-तंत्र से सम्बद्ध अनेकानेक अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक प्रभावों, बदलावों और दायित्वों की पहचान की है। वही उसके अध्ययन के महत्त्वपूर्ण पड़ाव हैं। उन अध्ययन पड़ावों में साल-दर-साल परिवर्तन हो रहा है।

नदी विज्ञान : categories

नदी विज्ञान के अन्तर्गत किये जाने वाले वैज्ञानिक पहलुओं को जैविक और भौतिक वर्गों (Biological and physical categories) में वर्गीकृत किया जा सकता है। जैविक वर्ग में मुख्यतः नदी की इकोलॉजी (Stream ecology), सरोवर विज्ञान (Limnology), मत्स्य विज्ञान (Fisheries Science), जलीय कीटविज्ञान, (Aquatic Entomology), नदी तल की इकोलॉजी (Benthic Ecology), जलीय विष-विज्ञान (Aquatic Toxicology) और भूतलीय इकोलॉजी (Landscape Ecology) शामिल हैं वहीं भौतिक वर्ग में जल-विज्ञान (Hydrology), जलीय गतिज विज्ञान (Hydro- dynamics), नदी सम्बन्धित भू-आकृति विज्ञान (Fluvial Geomorphology), सिविल इंजीनियरिंग, नदी आकृति विज्ञान (Rver Morphology), भूगर्भशास्त्र, चतुर्थ महाकल्प का भू-विज्ञान ( Quaternary Geology) और जल का गतिज विज्ञान (Hydraulics) शामिल है।

नदी विज्ञान की उपरोक्त शाखाओं में उन शाखाओं का बेहतर विकास हुआ है जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है। नदी विज्ञान की वे शाखाएँ जो मात्र अकादमिक महत्त्व की हैं या जिनका प्रत्यक्ष लाभ समाज को आसानी से दिखाई नहीं देता, पिछड़ गया है या हाशिए पर है। उनकी अनदेखी कुछ ऐसी समस्याओं को जन्म दे रही है जो कालान्तर में नदी द्वारा हासिल मौजूदा लाभों को इतिहास बना देगी।

नदी विज्ञान अपेक्षाकृत नया विज्ञान है। हकीकत में वह, नदी-तंत्र को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष तरीके से प्रभावित करने वाली समस्त प्रक्रियाओं के गहन अध्ययन का विज्ञान है। उसका अध्ययन किसी एक विधा या विज्ञान की शाखा द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता। वह ऐसा विज्ञान है जो अपने आप में नदी-तंत्र के सभी पहलुओं और विज्ञान की अनेक शाखाओं को अपने में समेटे हुए है।

नदी विज्ञान के अन्तर्गत वाटरशेडों, राईपेरियन जोन, बाढ़ क्षेत्रों, सतही प्रवाह, भूजल प्रवाह, रेत, जीव जगत, इत्यादि के अन्तर-सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। वह नदी और उसके कछार के कई आयामों को जोड़ता है। उसके अध्ययन में यह भी सम्मिलित है कि किस प्रकार जलीय, भू-गर्भीय, रासायनिक और इकोलॉजिकल प्रक्रियाएँ संयुक्त रूप से नदी के इकोसिस्टम के स्वरूप, आकार गुणवत्ता और गतिशीलता को प्रभावित करती है और किस तरह में नदी का इकोसिस्टम उपरोक्त प्रक्रियाओं को बहुआयामी स्थानिक और कालिक पैमाने (multiple spatial and temporal scales) पर प्रभावित करता है। नदी विज्ञान को समझकर ही नदी की अस्मिता तथा उसकी अस्मिता के संकट का हल खोजा जा सकता है। प्रवाह की बहाली की जा सकती है। समाज की सेवा की जा सकती है।

सीमित समझ के कारण नदियों को हो रही पर्यावरणीय तथा बाढ़ जनित हानियों तथा विसंगतियों से बचा जा सकता है। उसकी कुदरती भूमिका का राह में आ रहे व्यवधानों को कम किया जा सकता है। समाज की आवश्यकता और नदी की कदरती भूमिका के निर्वाह के बीच तालमेल बिठाया जा सकता है। विकास का सेतू गढ़ा जा सकता है।

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