दुर्लभ बैक्टीरिया “पैराकोकस सेंगुइनिस’ त्चचा को रखेगा युवा!

वैज्ञानिकों की एक नई खोज ने एंटी-एजिंग की दुनिया में उत्सुकता बढ़ा दी है। वैज्ञानिकों रक्त में पाए जाने वाले एक दुर्लभ बैक्टीरिया ‘पैराकोकस सेंगुइनिस’ से ऐसे यौगिकों की पहचान की है, जो त्वचा की कोशिकाओं को क्षति और सूजन (इन्पलेमेशन) से बचाने में सक्षम पाए गए हैं।

यह शोध अमेरिकन केमिकल सोसाइटी तथा अमेरिकन सोसाइी ऑफ फार्मांकोम्नॉसी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है और ‘जर्नल ऑफ नेचुरल प्रोडक्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है। प्रयोगशाला में विकसित मानव त्वचा कोशिकाओं पर इन यौगिकों का परीक्षण किया गया, जहां पाया गया कि ये कोशिकीय सूजन को कम करते हैं और ऑक्सिडेटिव डैमेज से बचाव में मदद करते हैं। यही दो प्रक्रियाएं त्वचा के समय से पहले बुढ़े दिखने की प्रमुख वजह मानी जाती हैं।

यह ‘पैराकोकस सेंगुइनिस’ बैक्टीरिया अन्य बैक्टीरिया से एकदम अलग है। अमतौर पर बैक्टीरिया मिट्टी, पानी या हवा में पाए जाते हैं,लेकिन यह बैक्टीरिया मानव रक्त के नमूनों में मिला है। रक्त में रहते हुए यह ऐसे एंजाइम और इंडोल मेटाबोलाइट्स बनाता है, जो त्वचा की सूजन, तनाव और कोलेजन को नुकसान पहुंचाने वाली प्रक्रियाओं को नियंत्रित कर सकते हैं।

‘पैराकोकस सेंगुइनिस’ से उत्पन्न किए गए ये तत्व त्वचा के लिए सुरक्षित माने जा रहे हैं, क्योंकि इनमें कोई जीवित बैक्टीरिया सीधे त्वचा पर नहीं लगाया जाता। इनमें एंजाइम, पेप्टाइड्स, अमीनो एसिड, ऑगेनिकएसिड,ड, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन जैसे बायो-एक्टिव तत्त्व शामिलहोते हैं। इसलिए आने वाले समय में स्किन केयर इंडस्ट्रीज में इन बैक्टोरिया से प्राप्त मेटाबोलाइट्रस का इस्तेमाल तेजी से बढ़ सकता है। इन यौगिकों को प्रयोगशाला में पूरी तरह नियंत्रित और सुरक्षित वातावरण में तैयार कर सीरम, क्रीम, मास्क और एंटी-एजिंग उत्पादों के फॉर्मूले में शामिल किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले वर्षों में माइक्रोबायोम आधारित स्किनशकेयर सबसे बड़ा ट्रेंड बन सकता है और इससे स्किन केयर बाजार को नई दिशा मिल सकती है।

त्वचा का बुढ़ापा अचानक नहीं आता। यह स्ट्रेस, प्रदूषण, सूरज की पराबैंगनी किरणों,मानसिक तनाव और जीवन शैली से जुड़ीआदतों का नतीजा होता है। फ्री-रेडिकल्स त्वचा की कोशिकाओं पर हमला करते ढीली पड़ने लगती है और झुर्रिया जिससे त्वचा ढीली पड़ जाती हैं। यदि इस कोशिकीय क्षति को समय रहते रोक लिया जाए तो उम्र के असर को काफी हद तक धीमा किया जा सकता है।

त्वचा की बाहरी परत में नमी रहना जरूरी है।नमी कम होने पर त्वचा का बैरियर कमजोर हो जाता है, जिससे सूजन बढ़ती है और त्वचा बेजान दिखने लगती है। जब सूजन नियंत्रित रहती है तो डार्क स्पॉट्स, असमान रंगत और उम्र की रेखाएं भी कम दिखाई देती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि माइक्रो-इफ्लेमेशनको कम करना एंटी-एजिंग का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है।

कोलेजन शरीर में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है और त्वचा की मजबूती का आधार भी। जब कोलेजन पर्याप्त होता है,तो त्वचा तनी हुई, चिकनी और लचीली नजर आती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कोलेजन का प्राकृतिक निर्माण कम होने लगता है। यही वजह है कि आधुनिक एंटी-एजिंग उत्पाद का मुख्य उद्देश्य कोलेजन को टूटने से बचाना होता है।

भारत में पिछले कुछ वर्षों में स्कीन केयर उद्योग जिस रफ्तार बढ़ा है उसने एफएमसीजी और ब्यूटी सेक्टर की परिभाषा बदल दी है। लोग अब सिर्फ साफ चेहरा नहीं चाहते, बल्कि ऐसी त्वचा चाहते हैं जो उम्र के असर को टाल सके। फेसवॉश, क्रीम या पाउडर से आगे बढ़कर अब क्लेंजर,टोनर, सीरम, सनस्क्रीन और नाइट केयर जैसे मल्टी-स्टेप रूटीन आम हो गए हैं।
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