धराली :विल्सन से शुरु हुआ देवदार काटने का शिलशिला आज भी जारी है ….
धराली उत्तराखंड: देवदार काटकर इमारतें बन गई और धराली खत्म….
देवदार ऐसा पेड़ है, जिसका पौधा आप आज लगाएंगे तो इसे पक्का पेड़ बनने में 40 साल लग जाएंगे। कभी उत्तराखंड का उच्च और ट्रॉंस हिमालय (समुद्र तल से 2000 मी. से ऊपर का क्षेत्र) इसी पेड़ के जंगलों से भरा था। एक वर्ग किलोमीटर में औसतन 400-500 देवदार वृक्ष थे। इनकी सबसे ज्यादा तादाद आपदा ग्रस्त धराली से ऊपर गंगोत्री वाले हिमालय में थी। फिर चाहे बादल फटे या भूस्खलन हो,देवदार मलबा-पानी नीचे नहीं आने देते थे। लेकिन, 1830 में इंडो-अफगान युद्ध से भागे अंग्रेज सिपाही फैडरिक विल्सन ने हर्षिल पहुंच कर देवदार को काटने का जो दौर शुरू किया,वो आज भी बंद नहीं हो पाया। आज देवदार काटकर इमारतें बन गई, कई प्रोजेक्ट शुरू हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि इस क्षेत्र में एक वर्ग किमी में औसतन 200-300 पेड़ ही हैं,वो भी नए और कमजोर। धराली की तबाही उसी का परिणाम है। गांव में जिस रास्ते से तबाही नीचे आई, वहां देवदार का घना जंगल था। लेकिन, वो जंगल तबाह हो चुका है।
हिमालय पर कई शोध परक किताबें लिख चुके प्रो. शेखर पाठक बताते हैं कि उत्पत्ति के बाद हिमालय की मजबूती में देवदार काट कर टिहरी के राजा से अमीर बन गया था अंग्रेज विल्सन।
गढ़वाल गैजेटियर की मानें तो टिहरी के राजा से विल्सन ने
देवदार काटने का ठेका लिया था। फिर उसने हर्षिल, धराली, सुक्खी, मुखवा, गंगोत्री में देवदार के 600 एकड़ में दो लाख से ज्यादा पेड़ काटे। इन्हें बेचकर वह टिहरी के राजा से भी अमीर हो गया था। उसके पास 1200 मजदूर थे। खुद को हर्षिल घाटी का राजा बना कर अपनी मुद्रा में व्यापार करने लगा था। लेकिन, हैरानी की बात है कि विल्सन के दौर के बाद उत्तराखंड में कई सरकारें आईं, लेकिन देवदार की कटाई कभी पूरी तरह बंद नहीं हो पाई।
देवदार ने सबसे अहम किरदार निभाया, क्योंकि इसका जंगल काफी घना होता है। इसके नीचे के हिस्से में बांज जैसी घनी झड़ियां होती है। यह एक सिस्टम है, जो भू धंसाव या बादल फटने पर भी हिमालय की मिट्टी को जकड़ कर रखता है। इसीलिए हिमालय वासी इसे भगवान की तरह पूजते हैं। लेकिन 19वीं सदी में इसे ही बेरहमी से काटने का जो दौर विल्सन ने शुरू किया, वो आज भी जारी है। वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो.एमपीएस विष्ट ने अपने शोधपत्र में बताया है कि जहां अभी आपदा आई, धराली का वो इलाका ग्लेशियर नदी के बीचों-बीच था। वहां देवदार भी थे।

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