जिनके जिक्र के बिना दुनिया अधूरी
जिनके जिक्र के बिना दुनिया अधूरी
सर जोसेफ जॉन थॉमसन ब्रिटेन के एक प्रमुख भौतिक शास्त्री थे। उन्होंने कैथोड किरणों पर प्रयोगों से 1897 में इलेक्ट्रॉन की खोज की। इस खोज ने परमाणु संरचना की समझ को क्रांतिकारी बदलाव दिया। जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने विज्ञान शिक्षा पर ध्यान दिया।
जे. जे. थॉमसन वैज्ञानिक
जन्म: 18 दिसंबर 1856 | मृत्यु: 30 अगस्त 1940 शिक्षा: थॉमसन ने ओवेंस कॉलेज (अब मैनचेस्टर विश्वविद्यालय) से शुरुआती शिक्षा ली। यहाँ उन्होंने भौतिकी में बी.ए. (1880) और एम.ए. (1883) की डिग्री हासिल की। उनकी मास्टर्स थीसिस वोर्टेक्स रिंग्स पर थी, जो परमाणु संरचना की गणितीय मॉडलिंग से जुड़ी थी।

इलेक्ट्रॉन को दिया था कॉर्पस्कल नाम
1897 में जे.जे. थॉमसन ने बहुत छोटे कण खोजे और उन्हें कॉर्पस्कल कहा, यानी बेहद छोटा कण। उन्हें लगा कि परमाणु से भी छोटे हैं। इससे पहले 1891 में जी. जॉर्ज स्टोनी ने बिजली के छोटे हिस्से को इलेक्ट्रॉन नाम दिया था। बाद में जॉर्ज फिटरगैराल्ड ने थॉमसन के कणों को इलेक्ट्रॉन कहने का सुझाव दिया, जिसे वैज्ञानिकों ने स्वीकार कर लिया और यही नाम चला।
योगदान
सर थॉमसन ने कैथोड किरणों पर प्रयोगों से इलेक्ट्रॉन की खोज की, जो परमाणु से हजार गुना छोटा नकारात्मक आवेशित कण(-) है। उन्होंने प्लम पुडिंग मॉडल दिया, जिसमें परमाणु का पॉजिटिव चार्ज के गोले में नेगेटिव इलेक्ट्रॉन्स जड़े हुए बनाएं। 1912 में उन्होंने निष्कर्षण के समस्थिनको की खोज की, जो मास स्पेक्ट्रोमेट्री की शुरुआत थी।
14 की उम्र में पहला शोध प्रकाशित हुआ
जे. जे. थॉमसन मैनचेस्टर के चीथम हिल में पले-बढ़े, जहाँ उनके पिता जोसेफ जेम्स थॉमसन की पुरानी किताबों की दुकान थी। सर थॉमसन बचपन्न से ही विज्ञान में रुचि रखते थे। 14 साल की उम्र में उन्होंने ओवेंस कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ संपर्क विद्युतीकरण पर उनका पहला पेपर प्रकाशित हुआ। पिता की मृत्यु (1873) के बाद इंजीनियरिंग शुरू कर दी। लेकिन कैम्ब्रिज जाने से उनका करियर भौतिकी की ओर मुड़ा। युवा अवस्था में उन्होंने मैक्सवेल की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्योरी का अध्ययन किया। यही अनुभव आगे चलकर इलेक्ट्रॉन खोज की नींव बने।
इलेक्ट्रॉन के खोजकर्ता, जिनके 7 छात्र भी बने नोबेल विजेता
लैब को बढ़ावा देने के लिए चाय की परंपरा शुरू की, थॉमसन ने कैम्ब्रिज लेबोरेटरी को एक प्रमुख केंद्र बनाने के लिए कई कदम उठाए। वैज्ञानिक यहाँ आए इसलिए थॉमसन ने दोपहर में चाय की परंपरा शुरू की। लेकिन असली बढ़ावा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मिला, जब थॉमसन ने लैब को सैन्य अनुसंधान (जैसे एंटी-सबमरिन वर्क) के लिए उपयोग किया, जिससे इसकी महत्ता और ज्यादा बढ़ गई थी।

1906 को उन्हें भौतिकी का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया ।
1908 में गैसों में विद्युत प्रवाह पर किए गए शोध के चलते ब्रिटिश सरकार ने थॉमसन को नाइटहुड की उपाधि दी। इसलिए उनके नाम के आगे सर लगाया जाता है।
बेटे को भी मिला नोबेल पुरस्कार
थॉमसन विज्ञान के साथ शिक्षक भी थे। उनके मार्गदर्शन में काम करने वाले सात छात्रों को आगे चलकर नोबेल पुरस्कार मिला। इनमें अर्नेस्टरदरफोर्ड, लारिस बेग, चार्ल्स बार्क्वी, फ्रांसिस एस्टन, सी. टी. आर. विल्सन, ओवेन रिचर्डसन और एडवर्ड एपलटन जैसे नाम शामिल हैं। यही नहीं उनके बेटे जॉर्ज पैजेट थॉमसन को भी नोबेल पुरस्कार मिला।
जब शिष्य ने थॉमसन को गलत साबित किया
जे. जे. थॉमसन ने परमाणु को प्लम पुडिंग की तरह समझाया। उनके अनुसार परमाणु पॉजिटिव चार्ज का एक गोल पिंड है, जिसमें नेगेटिव इलेक्ट्रॉन किशमिश की तरह फैले रहते हैं। इस मॉडल के अनुसार अल्फा कण टकराने पर थोड़ा ही मुड़ते हैं । लेकिन 1911 में उनके शिष्य अर्नेस्ट रदरफोर्ड के प्रयोग में कुछ अल्फा कण बड़े कोण से मुड़े और कुछ वापस लौट आए। इससे स्पष्ट हुआ कि परमाणु का सारा पॉजिटिव चार्ज और द्रव्यमान एक छोटे केंद्र में सिमटा है और बाकी हिस्सा लगभग खाली है। हालाँकि कि रदरफोर्ड भी यह नहीं समझा पाए की छोटे कण बीच में गिरते क्यों नहीं।बाद में बोहर ने इसका जवाब दिया । आज परमाणु का जो मॉडल उपयोग में लिया जाता है, उसे क्वांटम मैकेनिकल मॉडल कहा जाता है।
” प्रयोग असफल हों तो भी वे हमें कुछ न कुछ सिखा जाते हैं।” -सर जे. जे. थॉमसन
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