VVPAT (वोटर वेरिफायड पेपर ऑडिट ट्रायल)
VVPAT
(वोटर वेरिफायड पेपर ऑडिट ट्रायल)
आज हम प्रौद्योगिकी युग में जी रहे हैं और धीरे-धीरे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का प्रवेश हो चुका है। ऐसे में भला लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपवाद कैसे रह सकती है। भारत में चुनाव आयोग भी इस प्रक्रिया को आसान, त्वरित व पारदर्शी बनाने के लिए नई-नई प्रौद्योगिकियों का सहारा ले रहा है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, सी-विजिल, वीवीपीएटी इसी प्रक्रिया की कड़ी है। पर चुनाव महज प्रक्रिया न होकर भारतीय लोकतंत्र की प्राणवायु है, ऐसे में इसे हमेशा स्वस्थ रखना जरूरी है।
भारतीय चुनाव प्रक्रिया को आसान, सहज व त्वरित बनाने के लिए चुनाव आयोग द्वारा प्रायोगिक तौर पर 1998 से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल आरंभ किया गया जिसे वर्ष 2001 के चुनाव में सभी विधानसभाओं में इसका इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया गया। बाद में ईवीएम पर जब सवाल उठने शुरू हुए तब लोगों का मतदान पर से विश्वास नहीं उठे, इसके लिए वीवीपीएटी का प्रावधान किया गया। इसके लिए वर्ष 2011 में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड एवं भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड ने इसकी डिजाइन तैयार कर इसका प्रोटोटाइप प्रदर्शित किया। मतदान प्रक्रिया में ईवीएम से वीवीपीएटी को जोड़ने के लिए वर्ष 2013 में चुनाव संचालन नियम 1961 में संशोधन किया गया ।
क्या होता है VVPAT !
वोटर वेरिफायड पेपर ऑडिट (Voter Verified Paper Audit Trail: VVPAT)। यह एक स्वतंत्र प्रिंटर मशीन होता है जो कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) ये जुड़ा होता है जिसके माध्यम से मतदाता यह जान सकता है कि उसने जिस प्रत्याशी एवं उसके चुनाव चिह्न को मत दिया है, वह वास्तव में उसे ही गया है। ईवीएम मशीन पर किसी उम्मीदवार को मत देने के पश्चात मतदाता वीवीपीएटी मशीन की पर्ची के माध्यम से इसका सत्यापन कर सकता है। यह मशीन कुछ इस तरह काम करता है: जब मतदाता ईवीएम में कोई बटन दबाता है तब वीवीपीएटी(VVPAT) एक पर्ची छापता है जिसमें मतदाता द्वारा जिस उम्मीदवार को मतदान दिया गया है उस उम्मीदवार का नाम एवं उसका चुनाव चिन्ह छपा होता है। ईवीएम बटन दबाने के सात सेकेंड तक यह पर्ची देखी जा सकती है जिसके पश्चात यह पर्ची अलग होकर ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है। इस पर्ची मशीन तक केवल मतदान अधिकारी की पहुंच होती है।
वैसे वीवीपीएटी शुरू करने के पीछे भी लंबी कहानी है। ईवीएम मशीन पर कुछ राजनीतिक दलों द्वारा छेड़छाड़ के आरोप लगाए जाते रहे हैं, यह अलग बात है कि इसे प्रमाणित नहीं किया जा सका है। फिर भी भारतीय लोकतंत्र एवं उसकी चुनाव प्रणाली में लोगो की आस्था बनाए रखना सर्वोपरि है। इसी परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए चरणबद्ध तरीके से वीवीपीएटी शुरू करने का आदेश दिया था। तत्समय न्यायालय ने कहा था कि EVM के साथ वीवीपीएटी मतदान प्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी। व्यवस्था में पूरी पारदर्शिता अपनाने तथा मतदाताओं की विश्वास बहाली के लिए ईवीएम को वीवीपीएटी से जोड़ना जरूरी है क्योंकि मतदान अभिव्यक्ति की कार्रवाई है जो कि लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए अति महत्ता रखती है।
शिकायतें व विवाद
VVPATकी शिकायतें व विवादः वीवीपीएटी को ईवीएम से जोड़ने के बावजूद मतदान की पारदर्शिता पर शिकायतें जारी रही हैं। शिकायत मुख्यतः दो स्तरों पर की जाती रही है। एक वरह वीवीपीएटी को EVM से जोड़ने पर मशीनों के खराब होने की रही है। वर्ष 2017 के लोकसभा उप-चुनाव में वीवीपीएटी को बदलने की दर 15 प्रतिशत थी जो इसकी असफलता की अनुमत दर 1-2 प्रतिशत की तुलना में काफी अधिक रही। हालांकि इसकी वजह आरंभ में वीवीपीएटी के साथ निहित खामियाँ रही हैं। बाद में चुनाव आयोग ने मशीन की प्रिंटिंग पूल से जुड़े उपकरणों में सुधार किया जिससे शिकायतें आनी कम हो गईं और दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान विधानसभाओं के चुनावों में तकनीकी खराबी की वजह से कम मशीनें बदली जा सकीं। दूसरी वजह वीवीपीएटी गणना संख्या को लेकर रही है।
कुछ राजनीतिक दल वीवीपीएटी की कम गणना से संतुष्ट नहीं हैं। 17वीं लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनाव
(2019) के दौरान देश के 21 राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश संख्या 16.6 के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किया था। इस दिशा-निर्देश में प्रत्येक एसेंब्ली क्षेत्र के केवल एक मतदान केंद्र की वीवीपीएटी की।गणना का प्रावधान था। वहीं राजनीतिक दल 50 प्रतिशत वीवीपीएटी की गणना मिलान करने की मांग कर रहे थे। चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि यदि 50 प्रतिशत वीवीपीएटी स्लीप का सत्यापन किया जाता है तो यह मतगणना को 6 दिन विलंबित कर देगा। साथ ही आयोग ने भारतीय सांख्किकीय संगठन, कोलकाता (इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का हवाला भी दिया जिसमें कहा गया है कि कुल
10.35 लाख मशीनों में से केवल 479 ईवीएम-वीवीपीएटी का सैंपल सत्यापन से प्रक्रिया में 99.9936 प्रतिशत विश्वास बहाली की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों की 50 प्रतिशत वीवीपीएटी की गणना की मांग को जरूर खारिज कर दिया परंतु चुनाव आयोग को प्रत्येक एसेंब्ली क्षेत्र से एक के बजाय पांच मतदान केंद्र के वीवीपीएटी की गणना के आदेश जरूर दिए। इसके बावजूद विवाद नहीं थमा भढ17वीं लोकसभा की मतगणना तिथि से एक दिन पहले (22 मई) विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से मिलकर दो मांगे रखी पहली यह कि पांच प्रतिशत वीवीपीएटी की गणना पहले की जाए, उसके पश्चात ईवीएम की मतगणना की जाए, दूसरी मांग यह कि रैंडम जांच के दौरान एक भी मिलान गलत होने पर सभी विधानसभाओं के 100 प्रतिशत वीवीपीएटी की मणना की जानी चाहिए। परंतु चुनाव आयोग ने उपर्युक्त दोनों मांगे खारिज कर दीं।
बहरहाल वर्ष
2019 के आम चुनाव के परिणाम आ चुके हैं और चुनाव आयोग के मुताबिक वीवीपीएटी के रैंडम मिलान के दौरान वीवीपीएटी/ईवीएम में एक भी बेमेल नमूना नहीं पाया गया । चुनाव आयोग की पुष्टि निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र के लिए उत्साहवर्द्धक व स्वागतयोग्य है। भारत जैसे विशाल व विविध आबादी वाले देश में 17वीं लोकसभा का चुनाव संपन्न कराने के लिए चुनाव आयोग को प्रशंसा मिली है। परंतु भविष्य में मतदान प्रक्रिया पर लोगों या राजनीतिक दलों का विश्वास कम नहीं हो, इसकी पूरी जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है समय-समय पर संदेह को दूर करने के लिए आयोग द्वारा कदम उठाते जाते रहे हैं और आगे भी कदम उठाए जाने चाहिए। इससे भारतीय लोकतंत्र पर केवल भारतीयों का नहीं, वरन विश्व भर का विश्वास बढ़ेगा ।