क्या है एल्टीट्यूड सिकनेस और यह कितनी खतरनाक होती है !
नेपाल से हाल ही में एक दुखद खबर आई, जहां पहाड़ से लौटने के बाद होटल में ही एक ट्रेकर की जान चली गई। दरअसल, वह एल्टीट्यूड सिकनेस का शिकार हुआ था। जानें कितना खतरनाक है एल्टीट्यूड सिकनेस !
• एल्टीट्यूड सिकनेस से जान कैसे जा सकती है?
एल्टीट्यूड सिकनेस तब होती है जब व्यक्ति समुद्र स्तर से बहुत ऊंचाई पर पहुंचता है और शरीर को अचानक कम ऑक्सीजन वाली हवा में एडजस्ट होने का समय नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में दिमाग में सूजन या फेफड़ों में पानी भरने जैसी जटिलताएं हो सकती हैं। कई बार लोग इसे थकान समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। यह जानलेवा साबित हो सकता है।
• किन लोगों को इसका सबसे ज्यादा खतरा होता है?
यह बीमारी किसी भी उम्र या फिटनेस वाले व्यक्ति को हो सकती है, लेकिन सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को होता है जो पहली बार पहाड़ों में जा रहे हैं या जो बिना रुके तेजी से ऊंचाई चढ़ जाते हैं। शराब पीना, नींद की दवा लेना या पहले से दिल और फेफड़ों की बीमारी होना जोखिम को और बढ़ा देता है।
• क्या चारधाम/लद्दाख जाने वालों को भी खतरा है?
चारधाम यात्रा या अमरनाथ जैसे धार्मिक स्थलों पर जाने वाले श्रद्धालुओं को भी यह खतरा रहता है। केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ जैसे स्थल 3,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं, जहां ऑक्सीजन समुद्र स्तर से लगभग 30% तक कम हो जाती है। हर साल कई यात्रियों की मौत को हार्ट अटैक माना जाता है, जबकि असल कारण ऑक्सीजन की कमी यानी हाई एल्टीट्यूड सिकनेस होता है।
• कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए? अचानक ऊपर न चढ़ें, बीच में रुककर शरीर को समायोजित होने का समय दें। खूब पानी पिएं, शराब और नींद की गोलियों से परहेज करें। अगर सिरदर्द, उल्टी, चक्कर या सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत नीचे उतरें। बुजुर्ग और बीमार यात्रियों को पोर्टेबल ऑक्सीजन साथ रखना चाहिए।
• कैसे समझें कि अब खतरा बढ़ रहा है? अगर किसी व्यक्ति को बोलने या चलने में दिक्कत हो, चेहरा नीला पड़ने लगे या सांस बहुत तेज चले तो यह संकेत है किहालत गंभीर हो रही है। ऐसे में आराम करने से नहीं, बल्कि तुरंत नीचे उतरने से ही जान बच सकती है। ■■■■