मलेरिया से मिलेगी निजात
मलेरिया से मिलेगी निजात
2015 में यूरोपीय नियामकों ने दुनिया के पहले मलेरियारोधी टीके को हरी मॉरक्यूरिक्स नाम के टीके को यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी से इस्तेमाल की।इजाजत के बाद नवंबर 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मरीजों पर इस्तेमाल के लिए इजाजत दी। आरटीएस, एस या मॉस्क्यूरिक्स (RTS, Sor Mosquirix) वैक्सीन का इस्तेमाल 2018 से 2020 के दौरान 3 अफ्रीकी देशों घाना, केन्या और मलावी में किया जाएगा क्योंकि यहां 68 फीसदी बच्चों की।मौत मलेरिया से होती है। दुनिया में हर साल करीब 22 से 26 करोड़ लोग।मलेरिया से संक्रमित होते हैं जिनमें से 4-6 लाख लोग इसकी वजह से मर जाते हैं। ऐसे में यह वैक्सीन उम्मीद की नई किरण बनकर आई है। वैक्सीन के इस्तेमाल की शुरुआत अफ्रीका में करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि दुनियाभर में मलेरिया से होने वाली मौतों में से 92 फीसदी मौतें अफ्रीका में।ही होती हैं। वैक्सीन का कोर्स 4 बार में पूरा होगा। पहली बार इसे तीन महीनों तक लगातार देना होगा। चौथा डोज डेढ़ साल बाद दिया जाएगा। वैक्सीन से बच्चों में मलेरिया के सीवियर इन्फेक्शन (गंभीर संक्रमण) के खिलाफ रोग।प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाएगा जिससे बच्चे संक्रमण से बच सकेंगे। इस वैक्सीन के इस्तेमाल से मलेरिया के इलाज में ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत भी कम से कम होगी। हालांकि इसके साथ-साथ बाकी दवाइयों का इस्तेमाल जारी रहेगा। वैक्सीन सभी तरह की कसौटियों पर खरी उतरी है। 2009-14 के बीच हुए फेज थ्री क्लिनिकल ट्रायल में इससे उम्मीद के मुताबिक नतीजे हासिल हुए हैं। ट्रायल के दौरान इसे 15 हजार बच्चों पर जांचा गया जिसमें।यह कामयाब रही। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ज्यादा प्रभावित देशों को वैक्सीन की उपलब्धता में प्राथमिकता दी जाएगी। वैक्सीन का निर्माण ब्रिटिश दवा निर्माता कंपनी ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन ने किया है जो कि इसके पायलट प्रोजेक्ट को भी चला रही है।।हालांकि, अभी वैक्सीन को अफ्रीका के बाहर इस्तेमाल करने के लिए।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमोदन की जरूरत है। उम्मीद है 2018 के आखिर तक यह वैक्सीन पूरी दुनिया में मलेरिया से प्रभावित लोगों लिए उपलब्ध हो जाएगी। ग्लैक्सोरिमथक्लाइन ने इसे पाथ
मलेरिया वैक्सीन इनिशिएटिव के साथ मिलकर किया है। इसके लिए फंड बिल एंड मलिंडा गेट्स फाउंडेशन में उपलब्ध करवाया । वैक्सीन 30 साल के शोध और लगभग 36 अरब रुपये की लागत से तैयार हुई है। वैक्सीन के निर्माण के प्रमुख शोधकर्ता डाॅ रिप्ले बालों के मुताबिक इसे बच्चों में मलेरिया के इफेक्शन से लड़ने के लिए बनाया गया है।
2017 मलेरिया दिवस के मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उम्मीद जताई कि नई वैक्सीन से उम्मीद जगी हैं और मलेरिया से से अधिक प्रभावित अफ्रीका महाद्वीप के छह देश 2020 तक इस रोग से मुक्त हो सकते हैं। डब्ल्यूएचओ के 2016-2030 कार्यक्रम का लक्ष्य है कि मौजूदा दशक के आखिर तक कम से कम दस देशों से।मलेरिया को खत्म कर दिया जाए। एक बयान में संगठन ने कहा, डब्ल्यूएचओ का आकलन है कि छह अफ्रीकी देशों समेत 21 राष्ट्र इस लक्ष्य को हासिल करने की स्थिति में है। अफ्रीका के इन छह देशों में अल्जीरिया, बोत्सवाना, केप वर्दे, कोमोरोस, दक्षिण अफ्रीका और स्वाजीलैंड है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि दूसरे देशों में चीन, मलेशिया, सऊदी अरब, ईरान, ओमान, श्रीलंका, भूटान, पूर्वी तिमोर और नेपाल के अलावा आठ लैटिन अमेरिकी देश मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
मलेरिया पैरासाइट
मलेरिया पैरासाइट लिए हुए मच्छर हजारों सालों से इंसानों के लिए खतरा बने हुए हैं। मलेरिया की मौजूदगी के सबूत 2700 बी.सी से पहले तक मिलते हैं। मोटे तौर पर हम मान सकते हैं कि मलेरिया करीब 5000 साल पुरानी बीमारी है।
हजारों सालों से यह लाखों इंसानों को अपना शिकार बनाती आ रही है। आधुनिक विज्ञान से लेकर प्राचीन चिकित्सा विद्याओं में कहीं भी इसका स्थाई इलाज नहीं है। 1897 में ब्रिटिश फिजीशियन रोनाल्ड रॉस ने खोज की कि कई रोगों के प्रसार के लिए मच्छर वेक्टर (वाहक) होते हैं। इसके बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि केवल मादा मलेरिया का मच्छर पैरासाइट का प्रसार करते हैं (नर मच्छर खून नहीं पीते)। मलेरिया के लिए 60 विभिन्न प्रजातियों की मादा मच्छरें वेक्टर (रोग वाहक) का काम करती हैं। प्लाज्मोडियम पैरासाइट की वजह से फैलने वाला मलेरिया असल में एक-कोशिकीय जीव है जिसमें जीवन की अनेक अवस्थाएं होती हैं और इसे जीवित रहने के लिए एक से अधिक होस्ट (जीवित रहने के लिए अनुकूल संरचना) की जरूरत होती है।
इंसानों में बीमारी के लिए पैरासाइट की पांच प्रजातियां जिम्मेदार होती हैं – प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम, पी. वाइवेक्स, पी. ओवेल, पी. मलेरी, और पी. नोलेल्सी। प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम इंसानों के लिए सबसे खतरनाक स्ट्रैन होता है। 2002 में, वैज्ञानिकों ने पी. फैल्सीपेरम जिनोम के अनुक्रमण में सफलता पाई, जिससे शोधकर्ताओं को इसे लक्षित करने की विधियों को बेहतर तरीके से समझने में कामयाबी मिली। लेकिन, प्लाज्मोडियम का जटिल जीवन चक्र मलेरिया के टीका के निर्माण में बड़ी चुनौती बनता रहा है। मलेरिया दूसरी संक्रामक बीमारियों से थोड़ा अलग है जिनके लिए टीका मौजूद हैं। मलेरिया के लिए फिलहाल जीवाणुरहित प्रतिरक्षण नहीं बना है। यदि कोई मलेरिया से संक्रमित होता है और ठीक हो जाता है तो यह जरूरी नहीं कि उसे फिर से मलेरिया नहीं होगा। तथ्य यह है कि इंसानों का प्रतिरक्षी तंत्र जिसने पूर्व में मलेरिया के ऊपर प्रतिक्रिया दिखाई, वह भविष्य में होने वाले के प्रति सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। जैसा कि खसरा में व दूसरी बीमारियों में होता है। जिन्हें खसरा हुआ होता है जीवन भर भविष्य के खसरे से प्रतिरक्षित रहेंगे। मलेरिया के टीका के शोधकर्ताओं ने इस मुश्किल से पार पाने के लिए पैरासाइट को इसके स्पोरोजोआइट रूप में सक्रिय रूप से दुर्बलीकृत (कमजोर) पैरासाइट के साथ प्रतिरक्षण की अवधारणा पर काम किया।
1967 में इस अवधारणा के आधार पर नुसेंजविग और अन्य शोधकर्ताओं ने चूहों को रेडिएशन-अटेव्युएटेड प्लाज्मोडियम बर्गी (मलेरिया का गैर-मानव रूप) स्पोरोजोआइट से प्रतिरक्षित किया और देखा कि चूहे संक्रामक स्पोरोजोआइट्स के साथ बाद की चुनौती में सुरक्षित रहे। 2002 में इस अवधारणा के आधार पर मनुष्यों के लिए इलाज खोजने पर काम शुरू किया गया। हॉफमैन और साथी शोधकर्ताओं ने बताया कि वे गामा रेडिएशन के इस्तेमाल से संक्रमित ऐजोफेजील मच्छरों के अंदर मौजूद स्पोरोजोआइट को दुर्बल बना सकते हैं। इस प्रकार मनुष्यों को पूरी तरह से सुरक्षित किया जा सकता है। प्रयोग के तौर पर मनुष्यों को संक्रमित मच्छरों से कटाया गया, जिसने इरेडिएशन वाले स्पोरोजोआइट्स
ने लीवर कोशिकाओं में प्रवेश किया, लेकिन आगे परिपक्च नहीं हो पाए। ये दुर्बल स्पोरोजोआइट्स अब भी मानव होस्ट में प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम थे, लेकिन चूंकि वे लीवर से आगे विकसित नहीं हो पाए इसलिए होस्ट बीमार नहीं हुआ। परिणामस्वरूप, अगली बार एक संक्रमित मच्छर ने प्रतिरक्षित व्यक्ति का रक्तपान किया और प्लाज्मोडियम स्पोरोजोआइट वाले व्यक्ति में इंजैक्ट किया, प्रतिरक्षी तंत्र को खतरे का आभास हुआ और इससे पहले कि पैरासाइट बीमारी बनता उसका उन्मूलन कर दिया गया।
लेकिन इस उपचार विधि में दो खामियां थी। पहली तो यह कि ये किफायती नहीं थी और दूसरी बड़े पैमाने पर व्यावहारिक नहीं थी। इसके बावजूद यह सिद्धांत का एक प्रमाण बना, जिससे उम्मीद जगी कि इंसानों को मलेरिया से बचाने के कोई न कोई हल निकाला जा सकेगा। वैज्ञानिकों ने 2002 में किए गए प्रयोगों को बढ़ाया और सक्रिय दुर्बलीकृत टीके के बदले, विशिष्ट एंटीजन को अलग करने और टीका में डालने की तकनीक विकसित की गई। चूंकि पैरासाइट के जीवन की।तीन विभिन्न अवस्थाएं होती हैं, इसलिए तीन अलग-अलग टीका उपागमों की जांच की जा रही है। प्री-एरिथ्रोसाइटिक के टीके संक्रामक फेज को लक्षित करते हैं और इनका लक्ष्य स्पोरोजोआइट्स को लीवर कोशिकाओं।में जाने से रोकने या संक्रमित लीवर कोशिकाओं को नष्ट करना होता है। प्री-एरिथ्रोसाइटिक टीका की सबसे महत्वपूर्ण।चुनौती है समय सीमाः स्पोरोजोआइट्स, संक्रमित मच्छर द्वारा इंजैक्ट करने के बाद एक घंटे के अंदर लीवर में पहुंच जाता।
इस वजह से प्रतिरक्षी तंत्र के पास पैरासाइट को नष्ट करने के लिए सीमित समय होता है। हालांकि आरटीएस,एस (RTS,S) जिसका व्यापारिक नाम मॉस्क्यूरिक्स (Mosquirix) है, फिलहाल फेज-3 ट्रायल (फेज-1 अध्ययन सुरक्षा का मूल्यांकन करता है, फेज-2 खुराक का परीक्षण करता है, और फेज-3 समग्र प्रभावकारिता का मूल्यांकन करता है।) में है, और यह उम्मीद के मुताबिक काम कर रहा है। मॉस्क्यूरिक्स टीका का निर्माण करने के लिए, निर्माताओं ने प्रोटीन की।पहचान की जो 2002 के इरेडिएटेड स्पोरोजोआइट ट्रायल में सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था। इस एंटीजन को सर्कमस्पोरोजोआइट प्रोटीन, या सीएस प्रोटीन के नाम से जाना जाता है। हालांकि, यह एंटीजन सुरक्षात्मक है, इसलिए यह।अपने आप में बहुत इम्युनोजेनिक नहीं होता है यानी यह प्रतिरक्षी प्रक्रिया को उत्तेजित करने के लिए बहुत अच्छा नहीं होता।
इसलिए, वैज्ञानिकों ने सीएस प्रोटीन से प्राप्त एंटीजन के साथ हेपाटाइटिस-बी सर्फेस एंटीजन (हेपाटाइटिस बी टीका में।सुरक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार एंटीजन) पर ध्यान दिया। यहां तक कि आगे भी प्रतिरक्षी तंत्र को उत्तेजित करने के लिए, वैज्ञानिकों ने एक यौगिक का निर्माण किया जिसे एडजवंट (सहायक) कहा जाता है, जो एंटीजन के खिलाफ प्रतिरक्षी।तंत्र की प्रतिक्रिया को बढ़ाता है इसका उद्देश्य होता है स्पोरोजोआइट्स को लीवर कोशिका में प्रवेश करने से रोकने और विशेष संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करने, दोनों के लिए उच्च स्तर के एंटीबॉडीज को शामिल करना।
बहरहाल, फिलहाल कई प्री-एरिथोसाइटिक टीकों का परीक्षण किया जा रहा है लेकिन किसी से भी मॉस्क्यूरिक्स की तरह प्रदर्शन नहीं किया है यानी मोटे तौर पर फिलहाल मॉस्क्यूरिक्स को ही मलेरिया के खिलाफ सबसे कारगर इलाज मान सकते हैं।