एक सपना देखें,तब तक इसके पीछे लगे रहें,जब तक पा न लें..(प्रेरणादायी इन्टरव्यू)
एक सपना देखें, तब तक इसके पीछे लगे रहें ,जब तक पा न लें…
केरल की पहली जनजाति महिला IAS : श्रीधन्या सुरेश
सिविल सर्विसेज में जाना आज भी हर युवा स्वप्न होता है, हर वर्ष लाखों नवयुवक-युवतियां अपना भाग्य आजमाते हैं । जिन्हें सफलता मिलती है वह देखते-देखते सेलिब्रिटी बन जाता है । ऐसे ही एक विशेष सफल विद्यार्थी को जानिए, जिसे जानकर निश्चित आपके अन्दर एक प्रस्फुटन हो जाएगा । ये हैं केरल के सबसे पिछड़े जिले वायनाड़ की श्रीधन्या सुरेश…. । 26 वर्षीय इस युवती ने 2019 की सिविल सेवा परीक्षा में इतिहास बनाया । सिविल सर्विस (मुख्य) परीक्षा 2019 में सफलता पाने के साथ ही वे ऐसा करने वाली केरल की पहली जनजातीय महिला बन गई हैं। श्रीधन्या ने पूरे देश में 410वीं रैंक हासिल की।
श्रीधन्या की पृष्ठभूमि
वायनाड़ जिले के अंबलक्कोल्ली जनजातीय बस्ती में स्थित श्रीधन्या के माता-पिता, सुरेश और कमला दोनों मजदूरी करते हैं। इनकी बेटी ने उस मुकाम को हासिल किया है जो अब न केवल जनजाति बस्ती अपितु उन सभी गरीब परिवारों के बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा, जिनके लिए सिविल सर्विसेज जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के लिए सोचना भी दूर की कोड़ी होता था ।अपनी विषम परिस्थितियों से बाहर निकल कर सर्वाधिक प्रतिष्ठित सिविल सेवा अधिकारी बनना निश्चित ही हजारों गरीब विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्त्रोत का काम करेगा ।
श्रीधन्या की उपलब्धि क्यों है इतनी महत्वपूर्ण?
थोड़ा पुराने डाटा की बात करें तो भी कम से कम 10 लाख उम्मीदवारों ने 2017 में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा के लिए आवेदन किया था। उनमें से भी केवल आधे ही प्रारंभिक परीक्षा में भाग लेने की हिम्मत जुटा पाए और केवल 13366 उम्मीदवार इसमें सफल हुए। इनमें से भी 25% से कम को साक्षात्कार में शामिल होने का मौका मिला और केवल 990 अंतिम रूप से चयनित हुए । सफलता की दर दशमलव अंको में है ।
कृषि मजदूर के तौर पर काम करते हैं माता-पिता
श्रीधन्या के पिता सुरेश कृषि मजदूर के तौर पर काम करते हैं तो मां कमला राष्ट्रीय रोजगार योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार पाती हैं। सुरेश को कभी काम मिलता है तो कभी खाली रहना पड़ता है और कमला की आय से घर का चूल्हा जलता रहता है। इनकी आय का एक बढ़ा हिस्सा बच्चों की शिक्षा में खर्च हो गया।
इनकी बड़ी बेटी पॉलिटेक्निक के बाद कोऑपेरेशन से जूनियर डिप्लोमा करने के बाद राज्य सरकार में एक छोटे पद पर कार्यरत है। श्रीधन्या ने एप्लाइड जूलॉजी में M.sc. कर रखा है जबकि सबसे छोटा बेटा गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक, वायनाड़ में डिप्लोमा द्वितीय वर्ष में है।
पढ़ाई के लिए संघर्ष
बारिश में टपकता घर की हालत से अप्रभावित हुए बिना कमला कहती हैं, ‘इन सभी को स्कूल जाने के लिए चार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।’ हालांकि जब पढ़ाई की बात आती है तो श्रीधन्या को कोई चीज रोक नहीं सकती है। सेंट मैरीज अपर प्राइमरी स्कूल, थारियोड में 7वी तक पढ़ने के बाद वे इसी क्षेत्र में स्थिति निर्मला हाई स्कूल में पढ़ने गईं और आगे चलकर नजदीकी जिले कोझीकोड के सेंट जोसेफ कॉलेज, देवगिरि से जूलॉजी में बीएससी किया। ऐसी वित्तीय मुसीबतों का सामना यदि किसी और ने किया होता तो उसने डिग्री के बाद पढ़ाई छोड़ दी होती पर श्रीधन्या ने ऐसा नहीं किया। श्रीधन्या ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया क्योंकि इनको पता था कि शिक्षा ही उनकी सफलता का पासपोर्ट है।
परिवार अखबार भी नहीं खरीद सकता था
छटवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने वाली कमला और केवल 9वीं कक्षा तक पड़े सुरेश ने रहने के लिए बेहतर घर बनाने के लिए पैसे जमा नहीं किया । इन्होंने मेहनत से कमाए अपने पैसे बच्चों की शिक्षा में लगा दिए क्योंकि इन्हें मालूम था कि जीवन में जो चीजें ये नहीं पा सके उसे इनके बच्चे शिक्षा के जरिये पा सकते हैं। इस निर्वाध सहायता ने श्रीधन्या की सफलता में बड़ी भूमिका निभाई कमला बताती हैं, ‘परीक्षा की तैयारी के लाए उसके पास लैपटॉप भी नहीं था। जो उसके पास अभी है वह उसे सफलता के बाद उपहार स्परूप मिला है।” कमला अफसोस जताती हैं कि लैपटॉप की बात छोड़िए परिवार तो अखबार भी नहीं खरीद सकता था जबकि श्रीधन्या बेहद पढ़ाकू है। लेकिन यह बात भी इनकी प्रतिभावान बेटी की राह में बाधा खड़ी नहीं कर पाई।
निर्णायक क्षण
पढ़ाई के बाद श्रीधन्या को जनजातीय विभाग में नौकरी मिल गई। रोजगार मिल जाने के बाद भी जिलाधीश बनने का बचपन में देखा गया सपना पीछा नहीं छोड़ रहा था। मननथावाड़ी के असिस्टेंट कलेक्टर से मिलने के मौका उनके जीवन में वह निर्णायक क्षण साबित हुआ। इस मौके ने उनके अंदर की चिंगारी को भड़का दिया। श्रीधन्या ने खुद से सवाल किया, कलेक्टर ही क्यों न बना जाए?’ इसके वाद की सब बातें इतिहास है।
श्रीधन्या से चर्चा के कुछ अंश
प्र. सफलता के लिए बधाई, सिविल सर्विसेज का चुनाव करने के लिए किस बात ने प्रेरित किया ?
उत्तर- जब में स्कूल में थी तो जिलाधीश या पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी। जब हाई स्कूल में पहुंची से तो मेरी सोच का दायरा बड़ा हुआ और मैने से खुद पूछना शुरू किया कि कलेक्टर ही क्यों न बना जाए?
प्र. आपको किस चीज से प्रेरणा मिली?
उत्तर- मैंने जब पहली बार एक कलेक्टर को देखा उस समय मेरी उम्र 23 वर्ष थी। उस समय एक जनजाति कल्याण परियोजना में सहायक थी। उसी दौरान वायनाड़ में एक उच्च स्तरीय बैठक आयोजित हुई। हर कोई अधीरता के साथ इसके शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था उसी समय एक सीधे-सादे व्यक्ति ने कक्ष में प्रवेश किया। हर किसी ने उठकर आदर से उनका अभिवादन किया। मैंने खुद से कहा, ‘हे भगवान, कौन है यह आदमी जिसे हर कोई इतनी इज्जत दे रहा है।’ बाद में मुझे पता लग कि वे असिस्टेंट कलेक्टर संबाशिव राव थे। उनको मिलने वाले सम्मान ने मेरे अंदर की आग को फिर से जला दिया मैंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए तिरुवनंतपुरम चली गई।
प्र. नौकरी छोड़ने के लिए साहस की जरूरत होती है ! आप अपने फैसले को लेकर कितनी आश्वस्त थीं ?
उत्तर- मैं चीजें बीच में नहीं छोड़ती हूं । सिविल सर्विस की तैयारी का निर्णय लेते समय मैंने खुद से कहा, ‘जब तक लक्ष्य हासिल नहीं होता प्रयास बंद नहीं होगा। इसके बाद तो पीछे मुड़ने का प्रश्न ही नहीं था।
प्र. क्या आपने कोचिंग भी ली?
उत्तर- एससी डेवलपमेंट विभाग के इंस्टीट्यूट फॉर सिविल सर्विसेज एग्जाम ट्रेनिंग सोसाइटी में मैंने निःशुल्क कोचिंग ली! मलयालम साहित्य को वैकल्पिक विषय चुना, मैं व्यक्तिगत ट्यूशन देने के लिए तुलसी मणि जी की आभारी हूं।
प्र. तैयारी करने वालों को क्या सलाह देंगी?
उत्तर- एक सपना देखें, तब तक इसके पीछे लगे रहें जब तक कि पा न लें। पर यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत संतुष्टि के लिए न हो, इसे समाज की भलाई के लिए भी होना चाहिए।
( जैसा career India, education चैनल को प्राप्त हुआ )