ओजोन परत के क्षरण में कमी से जेट स्ट्रीम पर प्रभाव

ओजोन परत के क्षरण में कमी से जेट स्ट्रीम पर प्रभाव

ओजोन का क्षरण और ओजोन परत में छिद्र होना, जो सूर्य से खतरनाक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, मानव द्वारा सामना किये जा रहे प्रमुख वैश्विक पर्यावरण चुनौतियों में से एक है। अंटार्कटिका पर ओजोन छिद्र की खोज के बाद दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इसके भवावह दुष्परिणाम के प्रति वैश्विक ध्यान आकर्षित किया और विश्व के नेताओं से ओजोन परत को बचाने के उपाय करने का आहयान किया। 1987 का मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल इनके निरंतर विचार-विमर्श का परिणाम था और चरणबद्ध तरीके से ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थों (ODS) के उपभोग और उत्पादन को कम करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है हाल में वैज्ञानिकों के एक समूह ने अपने अध्ययन के माध्यम से उद्घाटित किया है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग का परिणाम मॉण्ट्रियल प्रोटोकाल ने अंटार्टिका स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन क्षिद्र की वजह से दक्षिण दिशा की ओर उन्मुख हो रहे जेट स्ट्रीम जो कि दक्षिणी गोलार्द्ध की मज़बूत पवन धाराएं हैं, पर विराम लगा दिया है और यहां तक कि फिर से दिशा बदल कर उत्तर की ओर उन्मुख हो गया है। यह एक सकारात्मक संकेत है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जेट स्ट्रीम के दक्षिण की ओर बढ़ने पर विराम या दिशा बदलाव केवल आंतरिक या प्राकृतिक परिवर्तनशीलता का परिणाम नहीं है वरन मानव जनित कार्रवाइयों ने भी सकारात्मक योगदान दिया है। जर्नल नेचर में प्रकाशित वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा किए गए एक अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि समतापमंडलीय ओजोन रिकवरी में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 1987 प्रमुख चालक रहा है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एक सफल कहानी है और इस बात का की प्रमाण है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने ओजोन परत की रिकवरी का नेतृत्व किया है। उल्लेखनीय है कि इस अध्ययन से पहले, सितंबर 2019 में नासा एवं एनओएए ने उपग्रहीय चित्रों के विश्लेषण के पश्चात कहा था कि कि ओजोन छिद्र का वार्षिक सर्वोच्च स्तर सिकुड़कर 16.4 मी वर्ग किमी रह गया था जो कि वर्ष 1982 के बाद सबसे छोटा विस्तार था। इस विश्लेषण में कहा गया था कि वार्षिक ओजोन छिद्र 8 सितंबर, 2019 को चरम सीमा तक पहुंच गया था और फिर सितंबर और अक्टूबर 2019 के शेष दिनों के लिए यह छिद्र 10 मिलियन वर्ग किलोमीटर से कम रहा और अब, नए अध्ययन ने ओजोन छिद्र के सिकुड़ने के सकारात्मक परिणामों की भी पुष्टि की है। अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन क्षरण को जेट स्ट्रीम के दक्षिणवत्ती होने के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी माना जाता रहा है। जेट स्ट्रीम के दक्षिण की ओर उन्मुख होने से जलवायु व मौसम प्रभावित हुआ।

लगभग 50 प्रतिशत अधिक योगदान दिया था। उस विशेष अध्ययन से यह भी पता चला था कि विशेष रूप से गर्मियों में शक्तिशाली दक्षिणी जेट स्ट्रीम में परिवर्तन से दक्षिणी गोलार्द्ध में वर्षा पैटर्न और भी परिवर्तित परिलक्षित हुये। जेट स्ट्रीम के दक्षिण की ओर उन्मुख होने से ऑस्ट्रेलिया के तटीय क्षेत्रों से बारिश दूर होती चली गयी और सूखे का खतरा बढ़ गया। लेकिन अब, ओजोन छिद्र के सिकुड़ने के साथ मौसम का पैटर्न पूर्ववर्ती स्थिति में आना आरंभ हो गया है । वैसे जेट स्ट्रीम की पूर्व स्थिति में आने का परिणाम सभी क्षेत्रों में एक जैसा नहीं होगा। उदाहरण के लिए, चिली और अर्जेटीना के पेंटागोनिया में और ऑस्ट्रेलिया में सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में बारिश राहत प्रदान करेगी, वहीं उरुग्वे, पैराग्वे और दक्षिणी ब्राजील जैसे मध्य दक्षिण अमेरिकी देशों के लिए कुछ चिंताएं लेकर आएगी क्योंकि ओजोन परत के क्षरण की वजह से इन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होने लगी थी। वैसे कुछ वैज्ञानिकों की यह भी राय है कि ओजोन परत क्षरण में कमी होने भर से मौसम प्रणाली को प्राकृतिक रूप में नहीं लाया जा सकता है। औद्योगिक और कृषि गतिविधियों से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जन जारी है।

ओजोन तीन ऑक्सीजन परमाणुओं का एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु है जो प्राकृतिक रूप से कम मात्रा में उत्पन्न होता है। ओजोन परत पृथ्वी के समताप मंडल में सतह से 10 से 50 किलोमीटर ऊपर स्थित है। ओजोन परत हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बह्मांड में जीवन को आधार प्रदान करने वाला एकमात्र ग्रह पृथ्वी का रक्षा करती है। हानिकारक पराबैंगनी विकिरण त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद का कारण बन सकती है, प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकती है और पौधों को भी नुकसान पहुंचा सकती है। 1970 के दशक में अंटार्कटिका में आजोन का क्षरण आरंभ हो गया था। ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने 1985 में ओजोन छिद्र की खोज की थी।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 1987

15 सितंबर 1987 को अपनाया गया भोन्ट्वल प्रोटोकॉल, ओजोन परत का क्षरण (आडीएफ) करने वाले मामय द्वारा निर्मित 100 रसायनां के उत्पादन और खपते को निरयत्रित करता है। प्राटोकॉल संयुक्त राष्ट्र (यएन) की एकमात्र ऐसी संधि है जिम्म सयुक्त गष्ट्र संघ के सभो {97 सदस्य देशों द्वारा अनुसमंदन किया गया है। प्रोटोकॉल में 1990, 1992, 1997 और 1999 में संशोधन में समायाजित किया गया। बाद।में, 2016 के किगाली संशोधन ने हाइड्रोफ्लागोकार्बन (एचएफसी) के उल्पादन और खपत को कम करने के लिए नियंत्रणकारी उपायों को इसमें शामिल किया गया।
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