क्रांतिकारी एवं उग्रवादी आंदोलन
क्रांतिकारी एवं उग्रवादी आंदोलन
अभिनव भारत (1904): विनायक दामोदर सावरकर द्वारा नासिक मे 1904 में मित्रमेला नामक संगठन की स्थापना की गई थी जो । एक गुप्त सभा अभिनव भारत के रूप में परिवर्तित हो गई। इसकी शाखाएं कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भी खोली गई। यह संगठन गुप्त रूप से ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध गतिविधियां चलाता था।
नासिक षडयंत्र केस (1909):
21 दिसंबर, 1909 की रात नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन को एक क्रांतिकारी अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने गोली मार दी। कन्हारे गिरफ्तार हुये एवं साथ में गोपाल कर्वे तथा देशपांडे को 1911 में फांसी दी गई। वी.डी. सावरकर को लंदन में गिरफ्तार कर नासिक लाया गया तथा उन व्यक्तियों के साथ उन पर केस चलाकर आजीवन कारावास दे दिया गया। यही नासिक षडयंत्र केस के रूप में जाना जाता है।
अनुशीलन समिति(1907) :
इसकी स्थापना कलकत्ता में 1907 में हुई बरीद्र घोष एवं भूपेन्द्र नाथ दत्त इसके संस्थापक थे। इसका प्रमुख उद्देश्य था हिंसा के द्वारा स्वराज्य प्राप्त करना इस समिति का निर्माण एक व्यायामशाला के रूप में हुआ था। इसके द्वारा नौजवानों को- आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती थी ताकि वे खतरों का मुकाबला कर सकें। यह जोशीले नौजवानों को तैयार करने का कार्य करती थी ताकि वे स्वाधीनता के लिए लड़ संकें।
आत्मोन्नति समितिः
यह बंगाल की एक क्रांतिकारी संस्था थी जिसकी स्थापना विपिन बिहारी गांगुली द्वारा की गई थी। इसमें मराठी विद्वान सखाराम गणेश देठसकर थे जो बंगाली भाषा भी जानते थे एवं बंगाल एवं महाराष्ट्र के क्रांतिकारियों के बीच कड़ी का काम करते थे।
किंग्सफोर्ड हत्याकांड (1908):
डी. एच. किंग्सफोर्ड बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के न्यायधीश थे। उन पर 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने बम फेंका, परन्तु किंग्स फोर्ड के बजाए कैनेडी और उनकी पत्नी जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से सहानुभूति रखती थी, मारे गए। प्रफुल्ल चौकी ने आत्महत्या कर ली एवं खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिए गए एवं 1908 में उन्हें फांसी दे दी गई।
अलीपुर षड्यंत्र (1908):
मई 1918 में कलकत्ता के अलीपुर अदालत में 34 व्यक्तियों को अवैध हथियार रखने के कारण पेश किया गया। अवैध हथियार रखने के जुर्म में इन्हें गिरफ्तार किया गया था यह मुकदमा अलीपुर षडयंत्र केस कहलाया। इसमें एक भारतीय नरेन्द्र गोसाई सरकारी गवाह बना था जिसकी सत्येन्द्र नाथ बोस ने हत्या कर दी। सभी सदस्यों को आजीवन काले पानी को सजा दी गई।
लाहौर षडयंत्र केस (1915):
वर्ष 1915 में पंजाब में एक संगठित आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई जिसमें तय किया गया कि 11 फरवरी, 1915 को सम्पूर्ण उत्तरी भारत में एक साथ क्रांति शुरू की जाएगी। सरकार को इस योजना का पता चल गया। अनेक क्रांतिकारी पकड़े गए तथा उन्हें लाहौर षडयंत्र के रूप में सजा दी गई।
इंडिया होमरूल सोसायटी (1905):
यह भारत के बाहर सबसे पुरानी क्रांतिकारी संस्था थी। इसकी स्थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में लंदन में की। श्यामजी कृष्ण वर्मां लंदन में ही बस गए थे। उनके पास क्रांतिकारी
युवकों का एक ज्था था जिसमें प्रमुख वीडी सावरकर, लाला हरदयाल, तथा मदन लाल धिंगरा। इंडिया होमरूल सोसायटी को स्थापना का मुख्य उद्देश्य था; भारत के लिए स्वशासन की प्राप्ति। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने इंडियन सोसियोलाजिस्ट नाम एक पत्र भी निकालना प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य था स्वराज्य प्राप्त करना तथा ब्रिटेन में भारतीयाँ के पक्ष में प्रचार करना। बाद में ब्रिटिश मीडिया में आलोचना होने के कारण श्यामजी वर्मा पेरिस चले गए तथा इंडिया होमरूल सोसायटी का नेतृत्व वीडी सावरकर को सौंप गए।
गदर पार्टी आंदोलन (1913):
गदर पार्टी की स्थापना अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में लाल हरदयाल द्वारा की गई थी। इस पार्टी के अध्यक्ष।सोहन सिंह थे। इस पार्टी के प्रचार विभाग के सचिव लाला हरदयाल थे। इस दल में अन्य प्रमुख नेता थे; वरकतुल्ला, रामचंद्र, राजा महंद्रनाथ, रास बिहारी बोस एवं मैडम भीकाजी कामा आदि। ये लोग 9वीं शताब्दी के अंत में अमेरिका एवं कनाडा में बसे भारतीयों को एकत्र कर गदर आंदोलन के द्वारा भारत को स्वतंत्रता दिलाने का लक्ष्य रखते।थे। गदर पार्टी ने युगान्तर प्रेस की स्थापना कर एक मासिक पत्रिका गदर का प्रकाशन भी शुरू किया था। यह कई भाषाओं यथा, मराठी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, हिन्दी आदि में प्रकाशित होता था। इस पत्र का उद्देश्य भारतीय सेना में विद्रोह की भावना पैदा करना।था। 1914 में लाला हरदयाल को अमेरिका छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा तब इस पार्टी का नेतृत्व रामचंद्र।ने संभाला। परन्तु जब प्रथम विश्वयुद्ध में अमेरिका, ब्रिटेन की तरफ से शामिल हुआ तो गदर पार्टी का प्रभाव समाप्त हो गया और इस पार्टी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
कामागातामारू प्रकरण (1914):
1914 में घटे प्रकरण के अंतर्गत कनाडा सरकार ने उन भारतीयों पर कनाडा में घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया जो भारत से सीधे कनाडा न आएं हो। उस समय नौ परिवहन इतना विकसित नहीं था कि किसी एक नौका से इतनी दूर की यात्रा बगैर किसी पड़ाव की जा सके। परन्तु 1913 में कनाडा के उच्चतम न्यायालय ने।अपने एक निर्णय के अंतर्गत ऐसे 35 भारतीयों को देश में घुसने का अधिकार दे दिया जो सीधे भारत से नहीं आए थे। इस निर्णय से उत्साहित होकर भारत के गुरदीप सिंह ने ‘कामागाता’ नाम एक जहाज को किराए पर लेकर उस पर उन यात्रियों को बिठाकर कनाडा के बंदरगाह बैंकुवर की ओर प्रस्थान किया। तट पर पहुंचने के बाद कनाडा की पुलिस ने भारतीयों की घेराबंदी कर उन्हें देश में घुसने से मना किया। कनाडा सरकार ने इस जहाज को अपनी सीमा से बाहर कर दिया। जहाज के याकोहामा पहुंचने से पहले ही प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया। भारत की ब्रिटिश सरकार ने जहाज को सीधे कलकत्ता लाने का आदेश दिया। जहाज के बजबज पहुंचने पर यात्रियों एवं पुलिस के मध्य झड़पे हुई जिसमें 18 यात्री मारे गए और शेष को जेल में डाल दिया गया। यह घटना कामागातामारू प्रकरण के रूप में जाना जाता है।