क्रान्तिकारी,विचारक व दार्शनिक

व्योमेश चन्द्र बनर्जी (1844-1906) , अबुल कलाम आजाद (1888-1958): अरूणा आसफ अली (1909-1996) , आनन्द मोहन बोस (1847-1906), अमृतलाल विट्ठालाल ठक्कर (ठक्कर- बापा) (1869-1951) , अच्युत एस पटवर्धन (1905-1971) , आचार्य नरेन्द्र देव (1889 1956) , अरविंद घोष (1872-1950)

अरविंद घोष (1872-1950):

अरविंद घोष आधुनिक भारत के एक महान विचारक व दार्शनिक थे। ये स्वतंत्रता आंदोलन के भी एक महान व प्रसिद्ध नेता थे जो बाद में एक योगी व रहस्यपुर्ण व्यक्ति बन गये थे। अरविंद घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 कोपश्चिम बंगाल के कोन नगर में हुआ था। दा्जलिंग के लोरिये कानवेंट स्कूल से अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद वह उक्त्वतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गये। उन्होंने लंदन के सेंटपाल स्कूल में 1884 में प्रवेश लिया। सीनियर क्लासिकल स्कॉलरशिप प्राप्त करने के बाद 1890 में उन्होंने किंग कॉलेज कैंब्रिज में दाखिला लिया।


भारत वापस आने के बाद उन्होंने संस्कृत और भारतीय संस्कृति तथा धर्म व दर्शन का गहन अध्ययन किया, उसके बाद 1910 तक बंगाल कांग्रेस में रहते हुए देश को आजादी दिलाने के लिए तथा ब्रिटिश सरकार को जड़मूल से नष्ट कर देश से बाहर खदेड़ने पूरे भारतवासियों से आग्रह किया कि विदेशी सामानों तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा चलायी गयी किसी भी योजना या अभियान का जमकर विरोध व बहिष्कार करें। उनकी इस असीम संकियता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1910 में उन्हें अलीपुर जेल में एक वर्ष के लिए बंद के लिए कर दिया।

अपनी जेल यात्रा में दौरान भी अरविंद घोष को आध्यात्मिक रहस्मय अनुभव प्राप्त हुए, जिसने उनके ऊपर गहरा व गंभीर प्रभाव छोड़ा । उसके बाद उन्होंने एक योगी की तरह जिंदगी जीने के लिए जीवन शैली में परिवर्तन कर लाया तथा तमिलनाडु के पाण्डिचेरी नामक स्थान पर निवास करने के लिए चले गये और वहां एक आश्रम की स्थापना की। अरविंद का दर्शन सिद्धांत एक माता के सदृश है, जो कि हर तरह से सहनशील होती है। अरविंद ने एक दार्शीनिक पत्रिका ‘द आर्य’ का प्रकाशन शुरू किया तथा उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें है- ‘द आइडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी’, ‘द सिन्थिसिस ऑफ योग व लाइफ डिवाइन’ आदि हैं ।

आचार्य नरेन्द्र देव (1889 1956);


एक प्रसिद्ध विद्वान, समाज शास्त्री तथा राष्ट्रवादी आचार्य नरेन्द्र देव पेशे से एक वकील थे। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने वकालत के पेशे को छोड़कर 1921 में गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था वे 1934।में पटना के समाजवादी सम्मेलन के अध्यक्ष नियुक्त किये गये तथा 1937 में उत्तर-प्रदेश विधान सभा के सदस्य बने। वह कुछ समय के लिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी रहे। 1948 में कांग्रेस पार्टी से अपना नाता तोड़कर उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की और उसके अध्यक्ष नियुक्त किये गये। आचार्य नरेन्द्र देव भी एक शिक्षा शास्त्री के रूप में जाने-पहचाने गये। 1925 में वह काशी विद्यापीठ के प्रधानाचार्य नियुक्त किये गये। वे लखनऊ विश्वविद्यालय।तथा काशी हिन्दु विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।

आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे (1861-1944):


भारत में रासायनिक खोजों के प्रथम अन्येषक प्रफुल्ल चन्द्र रें ‘एडिनवर्ग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1889 में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में रसायन विज्ञान के प्रवक्ता नियुक्त किये गये। उन्होंने एक प्रसिद्ध फ्रांसिसी रसायन शास्त्री के सहयोग से ‘आयुर्वेद’ के
में प्रशंसनीय खोज (शोध) की। उनकी पुस्तक “हिस्ट् ऑफ सि कमेस्ट्री’ 1902 में प्रकाशित हुई। 1892 मे उन्होंने ‘बंगाल केमिकल एण्ड फार्मास्यूटिकल वकर्स’ की स्थापना की। उन्होंने भी विश्वविदयालयों के प्रतिनिधि के रूप में बहुत से अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन व सेमिनारों में भाग लिया। 1902 में वह ‘भारतीय विज्ञान कांग्रेस’ के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। प्रफुल्ल चन्द्र रे का मुख्य उ्देश्य यह था कि ‘विज्ञान के चमत्कारों का उपयोग समाज के लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए किया जाय। उन्होने बहुत से लेख विज्ञान के ऊपर लिखे-जो कि उस समय के प्रसिद्ध पत्र की पत्रिकाओं में सदैव छपते रहे। एक उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता हे रूप में 1922 में उत्तरी बंगाल में अकाल पीड़ित राहत कार्य में शामिल होकर सक्रिय भूमिका निभाते रहे। उन्होंने खादी के प्रयोग की वकालत की तथा बहुत से कुटीर उद्योगों की स्थापना की। तर्कशास्त्र में दृढ़-विश्वास रखने वाले इस वैज्ञानिक ने अंधविश्वास की जाल में फंसे रीति रिवाजों का विशेष रूप से छुआ छूत का घोर विरोध किया।

अच्युत एस पटवर्धन (1905-1971):

अच्युत एस पटवर्धन कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के एक सक्रिय सदस्य थे। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय अगस्त 1912 में उन्होंने लोगों के नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाई। बह महाराष्ट्र में भूमिगत कार्यकर्ता के रूप में निर्वासित जिदंगी जीते रहे तथा क्रांतिकारी को हथियार गोली व बारूद वितरित करते रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया।

अजीत सिंह (मृत्यु 1947): एक क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी के रूप में अजीत सिंह लाला लाजपत राय को घनिष्ठ सहयोगी के रूप में कार्य करते रहे। वह ब्रिटिश विरोधी अपनी गतिविधियों के कारण गिरफ्तार कर लिए गए तथा 1097, में मांडले जेल भेज दिए गए। जेल से छूटने के बाद उन्होंने ‘पेशवा’ नामक एक पत्रिका का संपादन किया तथा भारत-माता सोसाइटी’ की स्थापना की। उन्होंने 1908 में भारत छोड़ दिया पर फिर भी वह गदर पार्टी का सहयोग करते हुए राष्ट्रीय हित के कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे। 16 अगस्त।1947 को उनका निधन हो गया।

अमृतलाल विट्ठालाल ठक्कर (ठक्कर- बापा) (1869-1951):

एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, ठक्कर बापा का जन्म 29 नवंबर 1869।को भावनगर में हुआ। 1890 में वह सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद सरकारी नौकरी में नियुक्त हो गये बाद में।वह पूर्वी अफ्रीका में युगांडा रेलवे में कार्यरत रहे। वहां से भारत।वापस आने पर उन्होंने बम्बई नगर निगम में इंजीनियर पद पर कार्य।किया। 1914 में उन्होंने इस सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया तथा सामाजिक कार्यों में अपने जोवन को अर्पित कर दिया। वह सर्वेट ऑफ इण्डिया सोसाइटी के सदस्य बन गये और अछूतों तथा।आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने ‘भील सेवरा मण्डल’ की स्थापना की और दूसरी आदिम कल्याण संस्था ‘भारतीय आदिम जाति संघ’ में उपसभापति रहते हुए अदम्य उत्साह के साथ उनकी सेवा की। उन्होंने स्वयं।पुना में ‘डिप्रेस्ड क्लासेज मिशन तथा विधवागृह संस्थापित किया ठक्कर बापा गांधी द्वारा समर्थित किये गये सामाजिक सुधारों के उपाय से बहुत गहरे रूप से प्रभावित थे । 1933-34 में वह महान नेताओं के संपर्क।में आए और उन लोगों ने इनके साथ एक ‘हरिजन भ्रमण’ को अपने कार्यक्रम का रूप दिया। वह गांधी द्वारा स्थापित ‘हरिजन सेवक संघ के सचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने राज्य लोक आंदोलन में भी भाग लिया। बाद में संविधान सभा में चुन लिए गये। उन्होंने कस्तूरबा गांधी नेशनल मेमोरियल फण्ड के कोषाध्यक्ष व सचिव के रूप में भी कार्य किया।

आनन्द मोहन बोस (1847-1906):


बंगाल के चर्चित राष्ट्रवादी आनन्द मोहन बोस ने 1876 में कलकत्ता में भारतीय संस्था को स्थापित करने में एक अग्रणी भूमिका निभायी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था- आम राजनैतिक योजनाओं को कार्यन्वित करने के लिए लोगों में एकता लाना तथा ब्रिटिश सरकार के अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए सदैव कार्यशील रहना’ सुरेन्द्र नाथ बनर्जी के साथ संस्था में घनिष्टतापूर्वक कार्य करते हुए उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सभा की स्थापना की जिसका पहला अधिवेशन 1883 में सम्पन्न हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिसकी स्थापना 1885 में की गयी, की प्रस्तावना के रूप में भारतीय राष्ट्रीय सभा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। बोस भी कांग्रेस पार्टी के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने 1898 के मद्रास अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। उन्होंने ‘इलबर्ट बिल’ वर्नाकुलर प्रेस एक्ट’ तथा बंगाल विभाजन आदि के विरोध में चलाए जा रहे आंदोलनों में भी भाग लिया और लोगों को बहुत प्रोत्साहित किया।

अरूणा आसफ अली (1909-1996):


अरूणा गांगुली का जन्म 16 जुलाई 1909 को अविभाजित पंजाब के कालका में हुआ था। उनका परिवार एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार था तथा वे रवीन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से संबंधित थे। 19 वर्ष की आयु में उन्होंने समाज की रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुए 1928 में दिल्ली के एक कांग्रेसी नेता आसफ अली से शादी कर ली, जो कि अमेरिका में भारत के प्रथम राजदूत थे तथा बाद में उड़ीसा के राज्यपाल बनाये गये।

अरूणा 1930 व 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल गयीं तथा 1940 में गांधी द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह के आझ्लान पर पुन: जेल गयीं। 1942 में मौलाना अब्युल कलाम आजाद की गिरफ्तारी के बाद, अरूणा ने अगस्त क्रांति आंदोलन के तिरंगे झंडे का भार अपने कधों पर उठाया 1947 में वह दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कर्मटी की अध्यक्षा चुनी गयीं। 1950 में वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गई ताकि अपनी इच्छानुसार उसमें स्थायी रूप से एक क्रांति लाई जा सके, पर उसमें केवल 2 वर्ष तक ही रहीं, उसके बाद पार्टी छोड़ दी। वर्ष 1958 में दिल्ली की पहली महिला मेयर चुनी गई। मेयर रहते हुए वह एक यंत्र की तरह कार्य करती रही, ताकि लोक प्रशासन में बहुत सुधार किये जा सकें। पर शीघ्र ही उनका मोह व भ्रम नौकरशाही तथा सरकार से टूट गया और 14 महीने बाद इस पद से इस्तीफा दे दिया। वह 1964 में पुनः कांग्रेस में सम्मिलित हो गई। उन्हें 1964 में राष्ट्रों के बीच शांति स्थापना करने के प्रयासों के कारण अंतराष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार से सम्मानित किया गया और में जवाहर लाला नेहरू पुरस्कार से सम्मनित किया गया। बहुत-सी महिला संस्थाओं को संचालित करते हुए वह इसके विरुद्ध थी कि कार्य क्षेत्र में या नौकरी में महिलाओं को आरक्षण दिया जाये, क्योंकि यह कमजोरी व पिछड़ापन की बढ़ावा देगी। इस कारण उनमें प्रतियोगिता
करके आगे बढ़ने की भावना ही समाप्त हो जायेगी, जिसका समाज के विकास पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। वे नेशनल फेडरेशन ऑफ इण्डियन वूमेन और आल इण्डिया वूमेन कांफ्रेस की अध्यक्षता के रूप में देश की सेवा करती रहीं। उन्होंने आदित्य नारायण तथा ए.वी. बालिक के सहयोग से और ‘लिंक’, ‘पट्रियाट’ समाचार पत्र समूह की स्थापना की। लंबी बीमारी के बाद अरूणा आसफ आली।का 29 जूलाई 1996 को देहांत हो गया।

अबुल कलाम आजाद (1888-1958):

इनका जन्म मक्का में हुआ और किशोरावस्था के कई वर्ष वहीं बिताऐ । अरबी, फारसी अपने पिता से पढ़ी और बाल्यवस्था में ही असाधारण ज्ञान प्राप्त कर लिया। केवल 12 वर्ष की आयु में एक पत्रिका कलकत्ता से निकाली और 1902 में पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख छपने लगे। 1902 में कलकत्ता से ही एक साहित्यक पत्रिका ‘लिलानुस सिंदक’ निकाली। 1905 में लखनऊ की प्रसिद्ध पत्रिका ‘अन नदवा’ के संपादक नियुक्त हुए। 1942 में कलकत्ता से स्वयं अपना साप्ताहिक ‘अल हिलाल’ निकाला। अपने राजनीतिक विचारों के कारण यह कई वार।जेल भी गए। 1923 में करांग्रस के सभपति चुने गए। 1930 में अंग्रेजी राज्य ने सभी नेताओं के साथ मौलाना आजाद को भी बंदी बना लिया। 1936 में फिर कांग्रेस के सभापति नियुक्त किए गए और 1946 तक इसका नेतृत्व करते रहें। 1942 में अंतिम बार कैद किए गए। स्वतंत्रता मिलने पर केन्द्र में जो राष्ट्रीय मंत्रीमंडल बना, मौलाना आजाद उसमें शिक्षामत्री बनाए गए। 22 फरवरी 1958 को उनका देहांत हो गया। उनकी रचनाओं में ‘तजकेरा, तरजुमानुल कोरान’, ‘गुब्बारे-खातिर’ ,’कौले -कैसल’, ‘दास्ताने करबला’, ‘इंसानियत मौत के दरवाजे पर’, मजामीने अल हिलाल’ इत्यादि हैं।

व्योमेश चन्द्र बनर्जी (1844-1906) :

व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जन्म कलकत्ता के सभ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने परिवार के परंपरागत शैलियों का अनुसरण करते हुए उन्होंने ‘लंदन के मिडिल टेम्पल’ में कानून का अध्ययन किया। इसके बाद वे एक प्रसिद्ध वकील के रूप में चर्चित हो गये। अपने लंदन आवास के दौरान ‘लंदन भारतीय समाज की स्थापना हंतु।उन्होंने अपना पूरा योगदान दिया, जिसका बाद में नाम ‘ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन’ रखा गया। भारत वापस आने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना की स्थापना हेतु उनकी भूमिका सर्वोपरि थी। इसके परिणामस्वरूप।वे इसके प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किये गये तथा 1885 में कांग्रेस।के प्रथम अधिवेशन की इन्होंने अध्यक्षता की। 189। में उन्हें पुन: एक बार कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। एक राजनीतिज्ञ के रूप में बनर्जी ने आधुनिक पहुंच को प्रोत्साहित किया। जहां एक तरफ बनर्जी ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्णं नीतियों के प्रबल विरोधी थे, वहीं दूसरी तरफ वह ब्रिटेन के साथ काम करते हुए सुविधा का भी आनंद लेना पसंद करते थे। वे चाहते थे कि जिस तरह भारत।के लोगों को ब्रिटेन में सुविधा प्रदान की जाती है, उसी तरह की।सुविधा ब्रिटिश सरकार राष्ट्रीय जीवन जीने हेतु प्रदान करती रहे। वे अपने देशवासियों को विकास के पथ पर अग्रसर होने के लिए पश्चिमी शिक्षा पद्धति के समर्थक थे। 1902 में वे इंग्लैण्ड चले गये तथा स्थायी रूप से वहीं बस गये।

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