जम्मू-कश्मीर : इतिहास और वर्तमान

जम्मूकश्मीर : इतिहास और वर्तमान

5 अगस्त को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित “संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए लागू) आदेश, 2019 पर हस्ताक्षर कर अनुच्छेद 370 के उन प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया जो जम्मू व कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देते थे। इस आदेश द्वारा संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए लागू). 1954 के आदेश को निरस्त किया गया तथा जम्मू व कश्मीर राज्य में भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेद लागू करने का प्रावधान किया गया।

स्थिति में हुए बदलाव

राष्ट्रपति के इस आदेश द्वारा संविधान के अनुच्छेद 367 में एक उपधारा जोड़ी गई है जो अनुच्छेद 370 के खंड (3) को संशोधित करती है। इस संशोधन द्वारा ‘राज्य की संविधान सभा’ के स्थान पर खंड (2) में लिखित ‘राज्य की विधान सभा’ पढ़ा जाएगा।

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019, 5 अगस्त, 2019 को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू कश्मीर को विशेष प्रावधान देने वाले अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को हटाने के लिए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के अंतर्गत 2 संकल्प विधेयक पेश किए जिसे अंततः 6 अगस्त, 2019 को लोकसभा द्वारा भी पारित कर दिया गया। इस विधेयक के निम्न प्रावधान हैं:

जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन के लिए विधेयक इस संशोधन से अनुच्छेद 370 के केवल खंड (1) को छोड़कर शेष खंड लागू नहीं होंगे। अनुच्छद 370 के खंड (1) द्वारा जम्मू-कश्मीर को भारत के राज्यों को सूची में शामिल किया गया है। यह विधेयक दोनों सदनों में प्रारित किया गया, जिसे राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत कर दिया गया। 2 अलग-अलग केन्द्रशासित प्रदेशः जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन
विधेयक, 2019 द्वारा जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र को बिना विधानसभा वाले जबकि शेष जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाले केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया है। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर पर केन्द्र का सीधे नियंत्रण होगा। दो अलग-अलग कंद्रशासित प्रदेश- जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख का प्रशासन, राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त लेफि्टिनेंट गवर्नर के माध्यम से संचालित किया जाएगा।

अधिनियम में जम्मू एवं कश्मीर कंद्रशासित प्रदेश के लिए विधानसभा का प्रावधान किया गया है जिसके सदस्यों की संख्या 107 होगी। इन 107 सदस्यों में से 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के लिए रिक्त रहेंगी।

जम्मूकश्मीर की प्रारंभिक स्थितिः

अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी मिली। जूनागढ़, हैदराबाद जम्मू-कश्मीर की रियासत को भारत भारत में शामिल होने या स्वतंत्र होने का विकल्प दिया गया। महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया और स्वतंत्र राष्ट्र बनने का विकल्प चुना। विलय पत्र पर हस्ताक्षरः अक्टूबर 1947 मे जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी कबाइलियों की घुसपैठ के बाद महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और तब भारत ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव दिया। जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया और भारत ने अपनी सेना को जम्मू-कश्मीर भेजा। समझौते द्वारा भारत को जम्मू-कश्मीर की रक्षा, विदेशी मामले और संचार तंत्र पर नियंत्रण मिला।


संयुक्त राष्ट्र में मामला: जनवरी 1948 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र पहुंचकर जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के अनाधिकृत कब्जे को लेकर चिंता जाहिर की तो संयुक्त राष्ट्र ने जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव दिया लेकिन दोनों पक्ष अपनी सेनाएँ हटाने को तैयार नहीं हुए। अनुच्छेद 370 पर चर्चा: जुलाई 1949 में शेख अब्दुल्ला ने संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 370 के प्रस्तावों पर चर्चा की
और 1950 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया। अलग संविधान: 1956 में जम्मू-कश्मीर को अपना अलग संविधान मिला और राज्य ने खुद को भारत का अभिन्न अंग बताया। कश्मीर समझौता: प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 को महत्व देते हुए कश्मीर समझौते पर हस्ताक्षर किए।

26 अक्टूबर, 1947 के पहले का जम्मू कश्मीर


देश की आजादी के समय भारत में छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 565 रियासतें अस्तित्व में थीं। जम्मू-कश्मीर भी उनमें से एक थी। उस समय कश्मीर के राजा हरि सिंह थे। यह राज्य मुस्लिम बाहुल्प था जबकि शासक हरि सिंह हिंद थे। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के प्रावधानों के अनुसार 15 अगस्त, 1947 तक शामिल होने या स्वतंत्र होने का विकल्प दिया गया। जब वल्लभ भाई पटेल और रियासत मामलों के सचिव वी पी मेनन की राजनीतिक कुशलता और समझ से समय से पूर्व लगभग सभी रियासतों ने अपनी सुविधानुसार या पाकिस्तान में अपना विलय करने की घोषणा कर दी , हालांकि कश्मीर के राजा हरि सिंह अभी तक अनिर्णय की स्थिति में थे और वे अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के पक्षधर थे ।

अनिर्णय और संक्रमणकालीन स्थिति के बीच पाकिस्तान एक अप्रत्याशित और षडयंत्रकारी कदम उठाया गया। अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान के कबीलाई लड़ाकों ने आजाद कश्मीर नाम की सेना बनाकर कश्मीर पर आक्रमण दिया। इनकी संख्या लगभग 10000 थी और इसमें पाकिस्तान के सैनिक भी भेश बदलकर शामिल थे (इस तथ्य को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जिन्ना ने संयुक्त राष्ट्र के सामने स्वीकार भी किया था।

इस घटनाक्रम ने जम्मू-कश्मीर का इतिहास और भूगोल हमेशा के लिए परिवर्तित कर दिया। 25 अक्टूबर, 1947 को कबीलाई लड़ाके बारामुला ( श्रीनगर से लगभग 50 किमी दूर) पहुंच गये और कश्मीर की स्थिति राजा हरि सिंह के नियंत्रण से बाहर हो गई।

इन बदली हुई परिस्थितियों में राजा हरि सिंह के पास भारत में विलय के अलावा कोई अन्य विकल्प शेष नहीं रहा। उन्होंने 26 अक्टूबर, 1947 को भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया और इसी के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का एक अभिन्न अंग बन गया। विलय पत्र के अनुसार जम्मू-कश्मीर के विदेश संबंध, संचार और सुरक्षा का दायित्व भारत सरकार के पास आ गया और शेष प्रशासन राज्य के पास ही सुरक्षित रहा।

26 अक्टूबर, 1947 से 5 अगस्त, 2019 का जम्मूकश्मीर
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद वहां के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला बने। शेख अब्दुल्ला ने 1931 में नेशनल कांफ्रेस नाम से अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पार्टी का गठन कर राजा के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत की थी।

कश्मीर में भारतीय सेना और कबीलाइयों के बीच चल रहे युद्ध की स्थिति में युद्ध को रोकने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष तरीके से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के उद्देश्य से 31 दिसंबर, 1947 को नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ में अध्याय-6 के तहत एक याचिका दाखिल की (चैप्टर-6 के तहत आने वाले फैसले को मानना बाध्यकारी नहीं होता है)। इस याचिका पर 21 अप्रैल, 1948 को संयुक्त राष्ट्र का एक प्रस्ताव (Resolution) आया जिसमें निम्न तीन बातों का उल्लेख था युद्ध विराम आदेशः इसके अन्तर्गत दोनों देशों को इस आदेश पर अपनी सहमति व्यक्त करती थी और सहमति के तुरत बाद युद्ध रोक देना था। 31 दिसंबर, 1948 को दोनों
पशा ने इस पर सहमति व्यक्त की और । जनवरी, 1949 का सीज फायर आदेश लागू हो गया अर्थात जिस देश की सनाएं जहां पर है उससे आगे नहीं बढ़ेगी और जिस स्थान पर दोनों सेनाये रुकी नहीं आज नियंत्रण रेखा (Line of control) के नाम से जाना जाता है। नियंत्रण रेखा के दूसरी तरफ वाले कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर (POK) के नाम से जाना जाता है।


 युद्ध विराम समझौताः इसके अन्तर्गत पाकिस्तान को कश्मीर से सैनिकों को तथा जनजातीय लोगों को वापस बुलाना था। जब वह सेना हटा लेगा तब भारत को इसकी सूचना संयुक्त राष्ट्र देगा। तदुपरान्त भारत अपनी सेना को वापस करेगा।

जनमत संग्रह: पाकिस्तान द्वारा उपरोक्त स्थिति का पालन करने के बाद स्थानीय प्रशासन के द्वारा जनमत संग्रह कराने का प्रावधान था। परंतु भारत ने इस निर्णय को मानने से इंकार कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र का यह निर्णय अब अप्रासंगिक हो चुका है क्योंकि पाकिस्तान अपनी सेना को वापस करने का इच्छुक नहीं है और यह फैसला बाध्यकारी भी नहीं है।

अनुच्छेद-370

जम्मू-कश्मीर के प्रशासन की दिशा तय करने के लिए जवाहर लाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल और शेख अब्दुल्ला के मध्य जून 1949 में हुई एक बैठक के द्वारा भारतीय संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रतिनिधि के तौर पर 4 सदस्यों को शामिल करने का निर्णय लिया गया। ये सदस्य क्रमशः शेख अब्दुल्ला, मिर्जा अफजल बेग, मसूदी और मोतीराम बागड़ा थे। संविधान सभा की सहमति से अंतत: भारतीय संविधान के भाग-21 में अस्थायी तौर पर अनुच्छेद-370 सम्मिलित किया गया।इसी अनुच्छेद-370 के द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया गया था जिस के द्वारा भारतीय संसद के जम्मू-कश्मीर पर अधिकार की सीमा, संसद के किसी आदेश के जम्मू कश्मीर में लागू होने की प्रक्रिया, सुप्रीम कोर्ट के आदेश किस सीमा तक और कैसे लागू होंगे, जैसे विषयों को पारिभाषित किया गया था।

विशेष प्रावधान जो अब समाप्त

अलग संविधान: 1951 में जम्मू-कश्मीर राज्य की संविधान सभा का गठन किया गया जिसे राज्य के लिए एक अलग संविधान बनाने का दायित्व सौंपा गया। इस सभा द्वारा अक्टूबर 1956 में संविधान निर्माण का कार्य पूरा कर लिया और 17 नवंबर को इसको सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। भारतीय संविधान के लागू होने की तिथि के प्रतीक में यह भी 26 जनवरी, 1959 को लागू कर दिया गया।

विशिष्ट अधिकारः इसके उपरान्त सन् 1952 में कुछ मुद्दों पर सहमति के लिए नेहरू जी और शेख अब्दुल्ला के मध्य एक समझौता हुआ जिसे दिल्ली समझौते के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए एक अलग झंडे की व्यवस्था, सदर-ए-रियासत (राज्यपाल) को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाना, अनुच्छेद 52-62 तथा 372 का लागू होना, राज्य विधानसभा के भंग होने पर राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356) का प्रयोग, राज्य के नागरिकों को अतिरिक्त अधिकार और रियायतें देने जैसे मुद्दों पर सहमति बनी।

अनुच्छेद-35A:

जम्मू-कश्मीर राज्य और भारत सरकार के बीच अन्य शक्तियों के निर्धारण का प्रयास लगातार जारी रहा। वर्ष 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से अनुच्छेद-370 में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ा गया, जो कि राज्य को यह निर्धारित करने की शक्ति देता था कि राज्य का स्थायी या मूल नागरिक कौन है और उन्हें क्या-क्या अधिकार मिले हुए हैं। इसी अनुच्छेद के तहत प्राप्त शक्तियाँं का प्रयोग करके निम्न प्रावधानों का सृजन किया गया है –


* जम्मू-कश्मीर राज्य से बाहर का व्यक्ति राज्य में कोई अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता। अन्य राज्यों का कोई भी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का नागरिक नहीं बन सकता। राज्य की किसी लड़की द्वारा राज्य के बाहर के किसी लक से शादी करने की स्थिति में लड़की को राज्य द्वारा प्राप्त सारे अधिकार समाप्त हो जायेंगे। हालांकि 2002 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि शादी करने वाली लड़की के जीवन तक उसके अधिकार खत्म नहीं होंगे।

* जम्मू-कश्मीर में रह रहे लोग जिनके पास स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं है वे लोकसभा चुनाव में तो वोट दे सकते हैं लेकिन विधानसभा और स्थानीय निकायों में वोट देने का अधिकार उनके पास नहीं होगा।

जम्मू-कश्मीर में बदलाव

केवल स्थायी नागरिक” का दर्जा प्राप्त कश्मीरी ही वहां जमीन खरीद सकते थे लेकिन 370 हटने के बाद उन लोगों के लिए भी भू-संपत्ति खरीदने का रास्ता खुल जाएगा जिनके पास ‘स्थायी नागरिक’ का दर्जा नहीं था। इसके अलावा स्थायी नमरिकों को ही प्रदेश सरकार की नौकरियों मिलती था लेकिन अब यह सबके।लिए खुल सकता है।

* कानून व्यवस्था मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी होती थी, लेकिन अब वह सीधे केंद्र सरकार के अधीन होगी और गृह मंत्री प्रदेश में अपने प्रतिनिधि उपराज्यपाल के जरिये कानून-व्यवस्था संभाल सकते हैं।

* संसद की ओर से बनाए गए हर कानून अब वहां प्रदेश को विधानसभा की मंजूरी के बिना लागू होंगे। प्रदेश में अलग झंडे की अहमियत नहीं रहेगी और इसका भविष्य संसद या केंद्र सरकार आधिकारिक तौर पर तय करेगी।

* जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 से घटकर 5 साल का हो जाएगा। महिलाओं पर लागू स्थानीय व्यक्तिगत कानून का निरस्त किया जा सकता है। संसद या केंद्र सरकार तय करेंगी कि इसके बाद भारतीय दंड संहिता की धाराएं प्रदेश में लागू होगी था स्थानीय रनबीर पीनल कोड (RPC) लागू होगा। इसके अलावा यह भी तय किया जा सकता है कि पहले से लागु स्थानीय पंचायत कानून जारी रहेंगे या उन्हें बदल दिया जाएगा।
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