बढ़ता NPA(non performing asset : कारण एवं निवारण

बढ़ता NPA (non performing asset : कारण एवं निवारण 

एनपीए (गैर-निष्पादित परिसम्पत्तियाँ) बैंक के लिए हितकर नहीं होती हैं. इससे बैंक की लाभप्रदत्ता प्रभावित होती है. आज बढ़ता एनपीए बैंकों के लिए एक चुनौती है..

बढ़ते एनपीए के कारण

০ सामान्यतः ऋण प्रस्तावों एवं खातों में बैंक की निर्धारित प्रक्रिया एवं मानदण्डों में कहीं चूक अथवा अभाव रह जाता है,.इससे खाते एनपीए हो जाते हैं.

० खातों में ब्याज एवं किश्तें नियमित रूप से जमा नहीं होती हैं जिसके कारण, अतिदेय.होने से खाते एनपीए हो जाते हैं. खातों के डयू डिलिजेंस पर ध्यान नहीं.देने के कारण खाते एनपीए हो जाते हैं. खातों के एनपीए होने से बैंकों को हानि

○ जिन खातों की एनपीए के रूप में पहचान की जाती है, उनके लिए बैंक को अपनी बहियों में प्रावधान करना पड़ता है. जिससे बैंक का तुलनपत्र प्रभावित होता है एवं लाभ में कमी आती है.

○ एनपीए खातों पर व्याज प्रभारित नहीं किया जा सकता है, जिससे बैंक की ब्याज आय कम होती है.ऋण खाते के एनपीए होने के पूर्व चेतावनी संकेत कोई भी खाता. अचानक खराब नहीं होता है. इस तरह के खातों में पूर्व में कुछ.संकेत प्राप्त होने शुरू हो जाते हैं, इसलिए इन्हें

चेतावनी संकेत मानते हुए, यथेष्ठ समय पूर्व.सुधारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए जिससे.कि खाता को स्लीपेज होने से बचाया जा सके..यह संकेत निम्नवत् हो सकते हैं-

उधारकर्ता द्वारा आरम्भ से ही अथवा कुछ समय बाद मंजूरी श्तों का पालन नहीं करना..मार्जिन की राशि के लिए अनियोजित तरीके से उधार लेना. ब्याज की राशि के भुगतान को 15 दिन।से भी अधिक समय तक बकाया रखना. 30 दिन से भी अधिक समय तक किश्तों

का भुगतान नहीं करना. वित्तीय कारणों से उधारकर्ता के चेक वापस होना ,उधारकर्ता द्वारा संव्यवहारों को आंशिक अथवा पूर्ण रूप से बैक खाते के माध्यम से नहीं करते हुए, सक्षम।अधिकारी की अनुमति के बिना किसी।अन्य बैंक के खाते से संग्रहण के लिए भेजने की प्रक्रिया शुरू करना.

बिल्स परचेज्ड खाते में बकाया लम्बित रहना. बैंक के माध्यम से वसूली हेतु प्रेषित बिलों का देय तिथि के बाद भी बकाया रहना एवं ऐसे बिलों का बार-बार वापस आना

और/अथवा राशि की वसूली नहीं होना. वर्किंग केपिटल लिमिट का लगातार अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जाना. स्टॉक स्टेटमेंट एवं अन्य आवधिक विवरण की प्रस्तुति में अनावश्यक विलम्ब करना. खाते में सीमा से अधिक आहरण/अतिरिक्त सीमा स्वीकृत करने या व्याज/किश्त जमा करने हेतु समय बढ़ाने का बार-बार अनुरोध करना. उधारकर्ता द्वारा बैंक के साथ छल- कपटपूर्ण व्यवहार करना एवं बैंक अधिकारियों से मिलने से बचने हेतु बार-बार बहाने बनाना. स्टॉक स्टेटमेंट में अनपेड़ स्टॉक का उल्लेख नहीं करना अथवा बुक डेट विवरण में बुक डेट की अवधि का उल्लेख नहीं करना. इसके अलावा कुछ भौतिक चेतावनी संकेत भी प्राप्त होते है, जो उधारकर्ता की यूनिट।का निरीक्षण करने अथवा बाजार में चल रही चर्चा एवं संस्थान में कार्यरत् कर्मचारियों की बातचीत से प्राप्त होते हैं, इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है- प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन में देरी. प्रोजेक्ट रिपोर्ट/अनुमोदित कोटेशन के अनुसार मशीनों को स्थापित नहीं करना.

प्लांट एवं मशीनरी बार-बार बन्द होना. उत्पादन/निर्माण, पूर्ण क्षमता से कम होना अथवा नहीं होना, उत्पादन/निर्माण में बार-बार रुकावट आना एवं श्रम समस्याएं पैदा होना. कच्चा माल/स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं होना. बैंक की जानकारी के बिना, निर्धारित।मापदण्ड के अलावा कार्य/उत्पादन करना. बैंक की जानकारी के बिना प्लांट/मशीनरी के किसी भाग अथवा पूरे प्लांट/मशीनरी को बेचना/बदलाव करना अथवा बन्द करना. विक्रय में लगातार गिरावट होना. सांविधिक देयताओं के भुगतान में चूक/ विलम्ब होना. वर्किंग केपिटल का पूँजीगत व्ययों अथवा अन्य कार्यों के लिए उपयोग करना. देनदारों एवं लेनदारों की राशि में बहुत अधिक अन्तर आना. ग्राहक/लेनदारों/कर्मचारियों आदि के द्वारा संस्थान के विरुद्ध विधिक प्रकरण दर्ज कराना. आर्थिक मंदी के कारण उद्योग/व्यवसाय में गिरावट. अनावश्यक माल का संग्रहण. प्रबंधक वर्ग में बार-बार एवं अनावश्यक परिवर्तन करना. प्रबंधन/कर्मचारी विवादों में वृद्धि लाभप्रदता कम होना. यूनिट द्वारा घाटा दिखाया जाना.

केन्द्रीय/सरकार/स्थानीय निकायों द्वारा, निर्धारित मापदण्डों/नियमों/शर्तो/निबन्धों के अनुरूप कार्य नहीं करने पर नोटिस आदि प्राप्त होना.

एकमात्र अथवा कुछ थोड़े से खरीददारों पर निर्भरता. उत्पाद के लिए कोई वैकल्पिक बाजार उपलब्ध नहीं होना. नियमित एवं महत्वपूर्ण ग्राहकों का संस्थान। से दूर होना. संस्थान में निर्धारित एवं प्रभावी योजना का अभाव. ऋण खातों को एनपीए से बचाने के लिए ।

बैंकों को ध्यान देने वाली बातें-

ड्यू डिलिजेंस

ऋण खाता एनपीए होने के अनेक कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण खाते के ड्यू डिलिजेंस पर ध्यान नही देना है. वास्तव में ड्यू डिलिजेंस का अर्थ होता है कि जब हम किसी ऋ्ण खाते की प्रोसेसिंग करते हैं, तब स्वविवेक से ऐसी कार्यप्रणाली अपनाएं जिससे बैंक के हित सर्वोपरि रहें एवं खाते के एनपीए होने के मौके न्यूनतम अथवा नगण्य रहे. यदि ऋण प्रोसेस एवं स्वीकृति के समय निम्नवत् बिन्दुओं पर।ध्यान दिया जाए, तो खाता एनपीए होने की सम्भावनाएं कम हो जाती हैं- सम्बन्धित पार्टियों/साझेदारों/निदेशकों के बारे में बाजार में पूछताछ की जाए एवं उनकी प्रतिष्ठा के बारे में पूरी जानकारी ली जाए. निरीक्षण प्रणाली को प्रभावी बनाया जाए, इसके अन्तर्गत ऋण मंजूरी के पहले एवं ऋण मंजूरी के बाद पार्टियों के संस्थानों का नियमित निरीक्षण किया जाए. यदि ऋणी ने पहले किसी अन्य बैंक से भी ऋण ले रखा है, तो उसकी जानकारी सिविल साइट से ली जाए. इस सम्बन्ध में हाल ही में निम्न दिशा-निर्देश भी सरकार ने जारी किए हैं सरकार चाहती है कि बैंकों से एक तो गलत ऋण नहीं लिए जा सकें और लिए गए ऋण एनपीए नहीं हों.

इसी के साथ सरकार यह भी प्रयास कर रही है कि बैंकों से गलत ऋण नहीं लिए जा सकें. इसके लिए सरकार का यह प्रयास है कि कोई व्यक्ति पहले से ऋण ली गई सम्पत्ति पर फिर से किसी अन्य बैंक अथवा संस्था से ऋण नहीं ले सके. इसके लिए सेंट्रल रजिस्ट्री ऑफ सेक्युराइटेशन एसेट रिकंस्ट्रक्शन एण्ड सेक्युरिटी इंटरेस्ट।ऑफ इंडिया (सरसाई) और क्रेडिट।इंफॉरमेशन व्यूरो इंडिया लिमिटेड (सिविल) के बीच एक समझौता हुआ है. अब इन दोनों एजेंसियों की रिपोर्टहबैंक को बहुत कम शुल्क पर प्राप्त हो।जाएगी.इससे बैंक सम्पत्ति को गिरवी रखकर ऋण देने से पहले सरसाई और सिविल।से रिपोर्ट लेकर यह पता लगा लेगी कि इस सम्पत्ति पर किसी अन्य बैंक अथवा वित्तीय संस्था से ऋण तो नहीं।लिया गया है तथा सिविल की रिपोर्ट में ऋण लेने वाले के फाइनेंशियल ट्रेक रिकॉर्ड की जानकारी मिल जाएगी.

अभी तक खातों के एनपीए होने के पीछे एक कारण यह भी था कि ऋणी एक ही सम्पत्ति पर कई जगह से ऋण ले लेता था और फिर वह लिए गए ऋण का पुनर्भुगतान नहीं करता था एव उसकी सम्पत्ति भी विवादास्पद होती थी इसलिए ऋण वसूली में दिक्कत आती थी और कानूनी समस्याएं भी।पैदा होती थीं. नए प्रावधानों में यह भी व्यवस्था है कि- अब तक ऋणी द्वारा किसी।सम्पत्ति को इक्विटिबल मार्गेज कर कई बैंकों से ऋण लेने कीघटनाएं प्रकाश में आई हैं, जिससे बैंकों में धोखाधड़ी एवं खातों के एनपीए होने की घटनाएँ बढ़ी हैं, अब सरसाई एवं सिविल की व्यवस्था से इस पर रोक लग सकगी. अब सरसाई की रिपोर्ट से यह मालूम पड़ जाएगा कि सम्बन्धित सम्पत्ति पर पहले कभी कहीं से ऋण लिया गया है अथवा नहीं. इसी के साथ सरफेसी एक्ट 2002 में भी यह प्रावधान किया गया है कि किसी सम्पत्ति को गिरवीं रखकर ऋण देने पर, इसकी सूचना सरसाई को देना आवश्यक है. ड्यू डिलिजेंस की प्रक्रिया उधारकर्ता की।पहचान एवं चयन से आरम्मभ होती है. इसमें निम्नवत् बातों को शामिल किया जा सकता है- क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों/संस्थानों से सम्बन्धित उधारकर्ता के बारे में जानकारी प्राप्त करना.

– उधारकर्ता के वर्तमान बैंकर से साख रिपोर्ट प्राप्त करना.

– उधारकर्ता के ट्रेक रिकॉर्ड एवं पूर्व चाल-चलन आदि के बारे में जानकारी लेना. उधारकर्ता के आपूर्तिकर्ता/क्रेता एवं कर्मचारियों से संस्थान की साख के बारे में जानकारी लेना. रेटिंग देने वाली संस्थाओं से सम्बन्धित उधारकर्ता के बारे में रिपोर्ट प्राप्तकरना.

– वित्तीय विवरणों/लेखा परीक्षण रिपोर्ट/ सम्पत्ति के मूल्यांकन आदि की जाँच करना.

– ईसीजीसी की विशेष अनुमोदित सूची/ भारतीय रिजर्व बैंक के देनदारों की सूची/भारतीय रिजर्व बैंक की निर्यातकों की सतर्कता सूची आदि की गहनता से जाँच करना.

– उधारकर्ता से व्यक्तिगत भेंट एवं उसका विस्तृत साक्षात्कार होना.।ड्यू डिजिलेंस केवल उधारकर्ता पर ही।नहीं किया जाए, अपितु बंधक के लिए प्रस्तावित सम्पत्ति/बंधककर्ता और गारंटर पर भी किया जाना आवश्यक है. इसके।अन्तर्गत इनसे केवाईसी का कड़ाई से।पालन करवाया जाए एवं बंधक सम्पत्त।के स्वामित्व/कब्जा (पजेशन)/मूल्यांकन/।विपणनियता आदि के बारे पूर्ण जानकारी प्राप्त की जाए.

उधारकर्ता के ऋण प्रकरण में भौतिक (फिजिकल) सत्यापन प्रोसेसिंग करने वाले अधिकारी के अलावा किसी अन्य।बैंक अधिकारी से करवाए जाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.।उधारकर्ता के बारे में, उधारकर्ता से जुड़े।सभी बैंकों से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।एवं अपने पास उपलब्ध सूचना उन्हें देनी चाहिए ताकि प्रकरण के वास्तविक तथ्य उजागर हो सकें.

कृषि अग्रिमों के अन्तर्गत ऋण प्रस्तावों के।अन्तर्गत ऋण मंजूरी-पूर्व निरीक्षण किए।जाएं, केवाईसी मानदण्डों का पालन करवाया जाए एवं सम्बन्धित व्यक्ति के।गाँव में रहने/प्रतिष्ठा आदि के बारे में।पूछताछ की जाए. इसके।अलावा आस्ति।सत्यापन, कृषि उत्पाद की बिक्री, वसूली, अनुवर्ती कार्यवाही हेतु खाते का ऋण।वितरण के बाद अर्द्धवार्षिक निरीक्षण किया जाना चाहिए. बैंक मॉक रन’ के माध्यम से सिस्टम में सूची जनरेट कर रहे हैं, जिससे यह मालूम किया जा सके कि ऐसे कौनसे एनपीए खातों के निवारण हेतु प्रयास ऋण खातों को स्वस्थ रखने/स्लीपेज से

बचाने के लिए यह जरूरी है कि-

> उधारकर्ता से ऋण-मंजूरी शर्तो/निबन्धनों का कड़ाई से पालन करवाया जाए.  उधारकर्ता के वास्तविक कार्य निष्पादन का अनुश्रवण किया जाए, जिसमें पार्टी के विक्रय, परिचालन, लाभ, इन्वेंटरी, देनदारों का स्तर, नकदी प्रवाह, ब्रेक- ईवन पॉइंट आदि का विशेष ध्यान रखा

जाए. यदि उधारकर्ता के प्रस्तुतिकरण (प्रोजेक्शन) एवं वास्तविक स्थिति में बहुत ज्यादा अन्तर हो, तो ऐसे समय में उधारकर्ता द्वारा महसूस की जा रही कठिनाइयों पर चर्चा करते हुए रिशेड्यूलिंग एवं रिस्ट्रक्चरिंग जैसे सुधारात्मक उपाय किए जाने चाहिए.

> ऋण-वितरण-पूर्व एवं पश्चात् निरीक्षणपर विशेष ध्यान दिया जाए एवं कमियों से कोई समझौता नहीं किया जाए.

> खाते का संचालन नियमित रूप से हो, इसका ध्यान रखा जाए.

> नियमित अन्तराल से स्टॉक स्टेटमेंट पार्टी से प्राप्त किए जाएं एवं उनका फिजिकल वेरीफिकेशन किया जाए. स्टॉक ऑडिट एवं ऑडिट निरीक्षण रिपोर्ट की कमियों को तुरन्त दूर किया जाए.

> खाते में यदि व्याज अथवा किश्त की राशि अतिदेय हो गई है, तो तुरन्त उसकी।वसूली की कार्यवाही की जाए.

यदि खाते में सीमा से अधिक आहरण कर लिया गया है, तो उसे तुरन्त समायोजित करवाया जाए.

वर्किंग केपिटल के मामले में : ॠण मंजूरी शर्तों का अनुपालन करवाया जाए, आहरण अधिकार की उपलब्धता देखी जाए, स्टॉक निरीक्षण/स्टॉक का मूवमेंट/ स्टॉक निरस्तीकरण आदि पर ध्यान दिया जाए. स्टॉक का पर्याप्त बीमा किया जाए. खाते में असम्बन्धित के नाम की गई प्रविष्टियों का पता लगाया जाए और बड़ी राशि के नकदी आहरणों की जाँच की जाए.

टर्म लोन के सम्बन्ध में

प्रोफार्मा इनवाईसेस प्राप्त की जाए/ प्रमोटर्स के मार्जिन के साथ टर्म लोन का वितरण सीधे किया जाए/लागत में वृद्धि होने की स्थिति में वित्तीय व्यवस्थाएं की जाएं/ संस्थान के प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन में प्रगति के सम्बन्ध में स्वतंत्र एजेन्सियों जैसे-आर्किटेक्ट. कान्ट्रेक्टर, सी.ए. आदि से प्रमाण पत्र प्राप्त।किए जाएं.

इसके अलावा कई बार ऋणी, ॠण।चुकाना तो चाहता है, परन्तु अनियोजन एवं मजबूरी के कारण वह समय पर ऋण नहीं चुका पाते हैं और खाता एनपीए हो जाता है. इस सम्बन्ध में ऋणी की भी यह जिम्मेदारी है। कि वह ऋण लेने के बाद योजनाबद्ध तरीके से ऋण चुकाने की व्यवस्था करे. इसमें निम्नवत् उपाय कारगर हो सकते हैं-

● अपने लोन खाते में एक से तीन महीने की ईएमआई एडवांस में जमा रखें, इससे आपात परिस्थितियों में निपटने में आसानी रहेगी.।अचानक हुए बड़े लाभ को लोन एकाउंट

में डालें, जिससे नियत समय पर ऋण की किश्त का भुगतान किया जा सके. एक अलग खाता खोलना लाभप्रद रहता है, जिससे लोन की अदायगी की जा सके. इससे लोन का रिपेमेंट नियंत्रण में रहता है और इस खाते में लोन एवं रिपेमेंट की पूरी जानकारी मिल जाती है, जिससे आगामी योजना बनाने में आसानी होगी.. इस तरह से हम देखते हैं कि किसी भी खाते को एनपीए से बचाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है. यदि सामूहिक प्रयास किए।जाएं, तो निश्चित रूप से भविष्य में एनपीए में कमी आएगी

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