बीटी बैंगन क्यों विवादों में है ?
बीटी बैंगन क्यों विवादों में है ?
मई 2019 में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को कानूनी नोटिस भेजकर हरियाणा में अवैध रूप से बीटी बैंगन की खेती किए जाने के प्रति आगाह किया। कई पर्यावरणविदों ने प्रतिबंध के बावजूद इसकी खेती किए जाने को भारत की बायोसेफ्टी, बैंगन जैव विविधता और इस प्रकार
जैव सुरक्षा पर खतरा बताया। हरियाणा के फतेहाबाद जिला में एक किसान को बीटी ब्रिंजल की खेती करते पाया गया था हालांकि हरियाणा सरकार का कहना है कि नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनटिक रिसोर्सेज ने बैंगन की उपर्युक्त फसल को जीएम फसल जरूर माना है परंतु इसमें माहयाको द्वारा विकसित क्राई। एसी जीन नहीं है जिसकी वाणिज्यिक खेती पर रोक है । फिर भी भारत में बीटी कॉटन को छोड़कर किसी भी जीएम फसल की दाणिज्यिक खेली
की अनुमति नहीं है ऐसे में हरियाणा के किसान द्वारा इसकी खेती किये जाने पर सवाल उठना लाजिमी है। विवाद को शांत करने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक टीम ने उस किसान की पूरी बीटी ब्रिंजल फसल को हटाने की सिफारिश की है। परंतु मामला अभी सामने आया है। फतेहाबाद के किसान के अनुसार वह इसकी खेती वर्ष 2017 से ही करता आ रहा है और उसे बीटी बैंगन की सैपलिंग पास की नर्सरी से प्राप्त होती रही है।
उसके मुताबिक उसका बैंगन फसल फ्रूट एंड शूट बोरेर (Shoot and Fruit Borer: BFSB) नामक कीट से सुरक्षित रहा है।
क्या है बीटी ब्रिंजल?
बीटी से तात्पर्य है बैसिलिस थुरिंगजिएंसिस यह एक मृदा बैक्टीरिया है जिसमें विषाक्त जीन क्रिस्टल प्रोटीन जीन (क्राई1एसी) होता है जो उसे कीटों के खिलाफ प्रतिरोधक बनाता है। बीटी बैंगन का विकास इसी प्रोटीन से किया जाता है । यह प्रोटीन बैंगन की फसल को फूट एंड शूट बोरेर कीट से बचाता है। यह बैंगन के लिए सर्वाधिक हानिकारक कीट है । बीटी फसलों को इस आधार पर समर्थन किया जाता है कि कीटनाशकों के इस्तेमाल नहीं होने के कारण कृषि लागत में कमी आती है और इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होती है। कई विशेषज्ञों के मुताबिक जीपम फसलो के इस्तेमाल रसायनों एवं कीटनाशको के इस्तेमाल में 50 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। सर्वे में यह भी सामने आया कि कीटनाशको के प्रयोग से किसानों के स्वास्थ्य पर वूरा असर पड़ने की संभावना अभी क्षीण हो गयी है। क्योंकि बीटी बैंगन की खेती में कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए इससे प्रभावित होने की संभावना
नहीं रहती।
वर्ष
2007 में जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रैजल कमेटी (जीईएसी) ने माहयाको, धारवाड़ कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय तथा तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से विकसित बीटी ब्रिंजल के वाणिज्यिक रूप से जारी करने की अनुमति दी थी। हालांकि ग्रीनपीस एवं जीन कैंपेन के विरोध के कारण केंद्र सरकार ने वर्ष
2010 में इसके उपयोग पर 10 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया अर्थात वर्ष 2020 तक इसका उपयोग प्रतिबंधित है। वैसे वर्ष 2014
में तत्कालीन यूपीए-2 सरकार ने 11
फसलों के फील्ड परीक्षण की अनुमति प्रदान की जिनमें मक्का, धान, सोरघम, गेहूं, मूंगफलां मां शामिल था हालांकि इसके वाणिज्यिक उपयोग पर प्रतिबंध जारी
रहा। वैसे परीक्षण की अनुमति दिए जाने के बावजूद इसमें कर विशेष प्रगति नहीं हो सकी है। जहां तक बीटी ब्रिंजल का सवाल है तो माहयाको वर्ष
2000 में इसे लाकर आया था परंतु सिविल सोसायटी द्वारा भारत में इसके फील्ड ट्रायल का विरोध किए जाने के पश्चात वर्ष 2006 में इसके बीज को बांग्लादेश एवं फिलीपींस में निर्यात कर दिया गया। वर्ष
2014 से बांग्लादेश में इसकी वाणिज्यिक खेती आरंभ हुयी पांच वर्ष की खेती के पश्चात हाल के सर्वे में बांग्लादेश में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। ढ़ाका ट्रिब्यून में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश कृषि मंत्रालय के तत्वावधान में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) द्वारा
1200 किसानों पर
किए सर्वे में बीटी बैंगन से किसानों को आर्थिक लाभ मिलता हुआ पाया । इस सर्वे के मुताबिक गैर-बीटी ब्रिंजल की खेती करने वाले किसानों की तुलना में बीटी-ब्रिंजल की खेती करने वाले किसानों को 50
प्रतिशत अधिक आय की प्राप्ति हुई।
भारत में जीएम फसल की खेती
भारत में अभी केवल बीटी कॉटन की खेती की ही अनुमति है शेष सभी जीएम फसलों की खेती पर 10 साल का प्रतिबंध लगाया गया है और यह प्रतिबंध फरवरी 2020 तक वैध है । अर्थात जीएम कॉटन के अलावा कोई भी जीएम फसल भारत में उगाया नहीं जा सकता। इसमें बीटी बैंगन एवं बीटी सरसो भी शामिल है। वैसे जीएम फसलों का फील्ड परीक्षा की अनुमति है परंतु इसके बीजों के बेचने एवं वाणिज्यिक खेती की अनुमति नहीं है।
भारत में बीटी कॉटन की खेती वर्ष
2002 में शुरू की गई थी।
आरंभ में इसके बॉलगार्ड किस्म की खेती शुरू की गई परंतु वाद में किसान बॉलगार्ड-2 वेराइटी की ओर रूख कर गए जो बूलवार्म एवं स्पोडोप्टेरा कीटों के खिलाफ मा प्रदान करती थी। वर्तमान में
10.8 मिलियन हैक्टेयर में इसकी खेती की जाती है जो भारत में कॉटन के 90 प्रतिशत उत्पादन के लिए जिम्मेदार है। वैसे 2015 में पंजाब एवं हरियाणा में व्हाइटफ्लाइ के कारण बीटी कॉटन का उत्पादन प्रभावित हुआ था।
GEAC
जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेसल कमेटी
(Genetic Engineering Appraisal Committee GEAC) केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करती है। वर्ष 2006 में इसकी स्थापना जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी के रूप में हुयी थी और 2010 में इसका नाम बदलकर जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेजल कमेटी कर दिया गया। वर्ष 1989 के नियम के अनुसार पर्यावरणीय दृष्टिकोण से शोध एवं औद्योगिक उत्पादन के लिए खतरनाक
सूक्ष्मजीवों या रिकॉम्बिनेंट्स के बड़े पैमाने पर उपयोग की गतिविधियों
का मूल्यांकन करती है। भारत के पर्यावरण में जेनेटिक इंजीनियरिंग
जीवों एवं उत्पादों को अनुमति देने के लिए यह कमेटी जिम्मेदार है।
– जीएम फसल जीन
बीटी कॉटनः बोलगार्ड, बोलगार्ड-2
बीटी सरसोः डीएमएच 11
बीटी बिजलः क्राइ। एसी
जीएम फसल
जीएम से तात्पर्य है जेनेटिकली मोडिफायड अर्थात आनुवंशिक रूप से संवर्द्धित । यह जैव प्रौद्योगिकी का हिस्सा है। ऐसे जीवों को जेनेटिकली मोडीफायड ऑर्गेनिज्म कहते हैं जिसे रिकॉम्बिनेंट डीएनए प्रौद्योगिकी या आनुवंशिक अभियांत्रिकी (जेनेटिक्स इंजीनियरिंग) के द्वारा संवर्द्धित या मोडिफायड किया गया हो। यह वह तकनीक है
जिसमें किसी सजीव के आनुवंशिक लक्षणों में सुधार किया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी की दिशा में व्यापक प्रगति होने के पश्चात कई जीएम फसलों या ट्रांसजेनिक फसलों, जो कि विशिष्ट लक्षणों से युक्त हैं, का विकास किया गया है और वाणिज्यिक कृषि उत्पादन के लिए उपयोग किया जा रहा है। कॉटन, मक्का, कैनोला इत्यादि। जीएम फसल का मुख्य लक्षण शाकनाशक एवं कीटनाशक है ।
GM फसल के समर्थन में तर्क
– अपने समर्थन में निम्नलिखित तर्क देते हैं
• यह पर्यावरणानुकुल हैं क्योंकि इसकी खेती के लिए शाकनाशी
(हर्बीसाइड) या कीटनाशकों (इनसेक्टिसाइड) की जरूरत नहीं पड़ती है।
• यह अधिक उत्पादक है और अधिक उपज देती है जो विश्व में भूख
की समस्या को मिटाने में काफी मददगार साबित हो सकती है।
• खराब मृदा या प्रतिकूल जलवायु में भी यह फसल अच्छी उपज दे।
सकती है।
. कीटों, बीमारियों एवं घासों की प्रतिरोधकता इसमें अंतर्निहित है।।
• इसमें पोषण मूल्य अधिक होता है और इसका स्वाद भी अच्छा होता है।।
• जीएम फसल के खाद्य अधिक प्रतिरोधी होते हैं और अधिक समय
तक पका हुआ रहता है जिससे लंबी दूरी तक व दीर्घ समय तक
इसका उपयोग किया जा सकता है।
कुछ खाद्य पदार्थों में अंतर्निहित एलर्जी कारक तत्वों को यह नष्ट
कर सकती है।
जीएम फसल के विरोध में तर्क
• अंतर-प्रजातीय जीन को युग्मित करने की प्रक्रिया, जिसे रिकॉम्बिनेंट डीएन टैक्नोलॉजी कहते हैं, पर नजर रखने का कोई तरीका उपलब्ध नहीं है जैसा कि परंपरागत ब्रीडिंग पर प्रकृति की हर समय नजर होती है। इसका मतलब यह है कि बिना निगरानी के यह आनुवंशिक अस्थिरता को जन्म दे सकती है। इसका मतलब यह भी है कि मानव
व पर्यावरण पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में कोई भी पूर्वानुमान नहीं कर सकता।
• वैज्ञानिक उस जीन का चुनाव जरूर कर सकते हैं कि जिसके साथ उन्हें छेड़छाड़ करना होता है परंतु वे यह नहीं जानते कि डीएनए में। किस सटीक जगह पर इसे स्थापित किया जाए। इसकी अभिव्यक्ति पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता। चूंकि जीन पृथक रूप स का
नहीं करता इसलिए इसकी प्रकृति में परिवर्तन पूरी तस्वीर को बदल सकती है।
• भूख की समस्या का समाधान सही तर्क नहीं है क्योंकि वैश्विक पर भूख संकट खाद्य पदार्थों की कमी के कारण नहीं है वरन् । कुप्रबंधन व राजनीतिक संकट के कारण है। जीएम प्रौद्योगिकी कंपनियां विकसित बीजों का पेटेंट कर तथा फसल की इंजीनियरिंग भी कर देती हैं ।
भूख की समस्या का समाधान सही तर्क नहीं है क्योंकि वैश्विक स्तर पर भूख संकट खाद्य पदार्थों की कमी के कारण नहीं है वरन् इसके कुप्रबंधन व राजनीतिक संकट के कारण है। जीएम प्रौद्योगिकी कंपनियां विकसित बीजों का पेटेंट करवा लेती है। तथा फसल की इंजीनियरिंग भी कर देती हैं जिस वजह से फसडा बीज का उपयोग भी नहीं किया जा सकता। भारत जैसे विकासशील देशों में किसानों में फसल के बीज संग्रह करने की परंपरा रही हैं। अतः गरीब किसानों के लिए बार-बार जीएम बीजों को खरीदना लागत प्रभावी नहीं है।
एक और तर्क यह दिया जाता है कि बीटी फसल अपनी जड़ं के द्वारा मृदा में विष छोड़ता है और जो लाभकारी मृदा माइक्रोफ्लोरा को प्रभावित करता है।