बैलाडील खान विवाद

बैलाडील खान विवाद

जून 2019 में छत्तीसगढ़ के बैलाडीला के लौह अयस्क खान में खनन के खिलाफ ‘संयुक्त पंचायत जन संघर्ष समिति’ के बैनर तले आदिवासियों का व्यापक विरोध-प्रदर्शन देखा गया। भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएमडीसी) ने अदानी समूह को
लौह अयस्क खनन का लीज दिया था। अदानी समूह को खान संख्या 13 लीज पर दिया गया था। राज्य के गंगालुर, मातुर, पित्तापल, हुरेपाल एवं मुंदर गांव के जनजाति मांग कर रहे थे कि जब तक इस समूह को दिया गया खनन का लीज रद्द नहीं किया जाता तब तक वे अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। यह खान दक्षिणी बस्तर के किरांदुल क्षेत्र में पड़ता
है। फिलहाल यह विरोध-प्रदर्शन समाप्त हो गया है। राज्य के मुख्यमंत्री श्री भूपेश सिंह बघेल के साथ जनजातीय नेताओं की ।1 जून, 2019 को हुयी बैठक के पश्चात निक्षेप-13 में खनन को बंद करने का आदेश दिया गया। उल्लेखनीय है कि कुछ ऐसा ही नजारा कुछ वर्ष पहले ओडिशा के नियामगिरी में वेदांता द्वारा बाक्साइट खनन के समय भी देखा गया था जब डोंगरिया कोंध आदिवासियों ने व्यापक विरोध-प्रदर्शन किया था।

प्रकृति का उपहार

र्ष 2015 में राज्य वन विभाग ने बैलाडीला निक्षेप संख्या 13 के 315.813 हैक्टेयर भूमि में लौह अयस्क खनन की अनुमति दी थी। यहां एनएमडीसी एवं छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीएमडीसी) द्वारा संयुक्त रूप से खनन किया जाना था इसके लिए ‘एनसीएल’ नामक एक संयुक्त उपक्रम भी सृजित की गई। हालांकि दिसंबर 2018 में यह लौह निक्षेप अदानी समूह को 25 वर्षों के लिए लीज पर दे दी गई। ऐसा अनुमान है कि यहां 25 करोड़ टन का लौह अयस्क निक्षेप है।

विरोध की वजह

बैलाडीला के किरादुल लौह अयस्क क्षेत्र में खनन विरोध की मुख्य वजहें निम्नलिखित हैं:

नंदराज पहाड़ी का धार्मिक महत्वः आदिवासियों का कहना है कि जिस नंदराज पहाड़ी पर लौह अयस्क का खनन किया जाना है वहां भगवान नंदराज निवास करते हैं उनके मुताबिक पहाड़ी की दो चोटियां उनकी दो बेटियां इलोमेता व पालोमेटा है। पहाड़ी में जिस जगह पर लौह अयस्क निक्षेप-13 अवस्थित है वहां उनकी अराध्य देवी पिथौर रानी निवास करती हैं जो कि नंदराज की पत्नी है आदिवासियों के मुताबिक यह पहाड़ी उनकी सैकड़ों वर्षों की परंपरा व पहचान से जुड़ी हुयी है और खनन के लिए इस पहाड़ी को तोड़ने का मतलब है उनके विश्वास को तोड़ना। स्पष्ट है।
कि आदिवासियों के विरोध में धार्मिक स्वरूप वद्यमान है, और भारत में जनजातीयों के आंदोलन में इसकी उपस्थिति नई बात नहीं है। त्रिटिश औपनिवेशिक काल से ही जनजातियों के विरोध में धार्मिक स्वरूप विद्यमान रहा है। मसलन् 1855 के संथाल विद्रोह के नेताओं सिद्ध एवं कान्ह ने यह दावा किया था कि उनके देवता ठाकुर ने स्वप्न में आकर ‘दिकुओं” (बाहरियों) को बाहर करने का आदेश दिया। इसी तरह मुंडा विद्रोह के नेता बिरसा मुंडा ने उल्गुलान के दौरान खुद को भगवान का अवतार घोषित कर दिया था। ओडिशा के नियामगिरी पहाड़ी, जहां वेदांता द्वारा बाक्साइट खनन का आदिवासियों ने विरोध किया, को भी नियाम राजा का आवास बताया गया था विरोध को धार्मिक स्वरूप देने से अधिक से अधिक आदिवासियों को जुटाने में सहायता मिलती रही है। संधाल एवं मुंडा विद्रोह ने यह सिद्ध भी किया। बैलाडीला लौह अयस्क खान में आदिवासियों के
आंदोलन में भी यही प्रवृत्ति दिखायी दी ।

ग्राम सभा से फेक अनुमतिः

आदिवासियों का यह भी आरोप रहा है कि लौह अयस्क का खनन करने के लिए ग्राम सभा से फेक अनुमति ली गई। उल्लेखनीय है कि बैलाडीला पहाड़ी साविधान की अनुसूची-5 का हिस्सा है। यह पंचायत (अनुसूची क्षेत्रों का विस्तार) एक्ट 1996 के तहत शासित क्षेत्र भी है। पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन के तहत यहां किसी भी विकासात्मक परियोजना को मंजूरी दिए जाने से पूर्व ग्राम सभा की अनुमति जरूरी होती है। ओडिशा माइनिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय व अन्य 2011 वाद में सर्वोंच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में निर्णय भी दिया था कि व्यक्तियों एवं समुदायों के धार्मिक अधिकारों का निर्धारण ग्राम सभा द्वारा किया जाएगा और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए और इसलिए वन या अनुसूचित क्षेत्रों में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा किसी विकासात्मक परियोजना को पर्यावरणीय अनुमति देने से पूर्व ग्राम सभा के निर्णय पर विचार किया जाना चाहिए। किलांदुर क्षेत्र में ग्राम सभा की जाली अनुमति संबंधी मामला पर विचार करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं।

पर्यावरण क्षरणः
लौह अयस्क खनन के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जा रही है जो आस-पास के पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। खान के आसपास के ग्रामीणों के अनुसार किरादुल के आसपास का क्षेत्र जो कभी काफी हरा-भरा हुआ करता था, मरुस्थल का रूप ले रहा है, और इसकी वजह है अधिक खनन। निरंतर होने वाले विस्फोट तथा पेड़ों को काटने के कारण क्षेत्र का पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है। स्थानीय जनजातीय समुदायों की कई और भी शिकायतें हैं। मसलन उनका कहना है कि वे वनों से लकड़ी, महुआ, पत्ते एवं अन्य संसाधन जुटाते हैं जो उनकी आजीविका के मुख्य साधन हैं। दूसरी ओर किरांदुल में बैलाडीला लौह अयस्क खान के पास एनएमडीसी की खनन गतिविधियों की वजह से पानी के भी लाल होने की शिकायत ग्रामीणों ने की है। कई आदिवासियों का यह भी कहना है कि इस लाल पानी की वजह से धान की उत्पादकता में कमी आयी है। आसपास के ग्रामीणों ने विरोध करने तथा एनएमडीसी से क्षतिपूर्ति प्राप्ति के लिए ‘बैलाडीला खादान प्रभावित जन संघर्ष समिति’ का भी गठन किया हुआ है।

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