भारत

भारत
भारत विश्व की सबसे पुरानी सम्य ताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृधतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद पिछले 64 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्मसनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। साथ ही उन चंद देशों में भी इसका शुमार होने लगा है, जिनके कदम चांद तक पहुंच चुके हैं। भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्छाहदित हिमालय की ऊंचाइयों से शुरू होकर दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक फैला हुआ है। विश्व का सातवां बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दिखता है जिसकी विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् पर्वत श्रृंखला हिमालय से घिरा यह कर्क रेखा से आगे संकरा होता जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी सीमा निर्धारित करते हैं।
पूरी तरह उत्तलरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्यथभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्त री अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है । उत्तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. है। जबकि मुख्यौभूमि, लक्षद्वीप और अण्डतमान तथा निकोबार द्वीपसमूह की तटरेखा की कुल लम्बा ई 7,516.6 कि.मी है।
पृष्ठभूमि
भारत विश्व की सबसे पुरानी सम्य ताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृटतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद पिछले 65 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्मसनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। साथ ही उन चंद देशों में भी इसका शुमार होने लगा है, जिनके कदम चांद तक पहुंच चुके हैं। भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्छाहदित हिमालय की ऊंचाइयों से शुरू होकर दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक फैला हुआ है। विश्व का सातवां बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दिखता है जिसकी विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् पर्वत श्रृंखला हिमालय से घिरा यह कर्क रेखा से आगे संकरा होता जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर इसकी सीमा निर्धारित करते हैं।
पूरी तरह उत्तलरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्यथभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्त री अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है । उत्तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. है। जबकि मुख्यौभूमि, लक्षद्वीप और अण्डतमान तथा निकोबार द्वीपसमूह की तटरेखा की कुल लम्बा ई 7,516.6 कि.मी है।

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भारत के बारे में भौगोलिक जानकारी
ब्यौरे विवरण
स्थाणन हिमालय द्वारा भारतीय पेनिसुला का मुख्य भूमि एशिया से अलग किया गया है। देश पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिन्द महासागर से घिरा हुआ है।
भौगोलिक समन्वय
यह पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध मे स्थित है, देश का विस्तातर 8° 4′ और 37° 6′ l अक्षांश पर इक्वेतटर के उत्तर में, और 68°7′ और 97°25′ देशान्तर पर है।

स्थालयी मान समय जी एम टी + 05:30
क्षेत्र 3.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर
देश का टेलीफोन कोड +91
सीमाओं में स्थित देश उत्तर पश्चिम में अफगानिस्ता्न और पाकिस्ता न, भूटान और नेपाल उत्तर में; म्यांरमार पूरब में, और पश्चिम बंगाल के पूरब में बंगलादेश। श्रीलंका भारत से समुद्र के संकीर्ण नहर द्वारा अलग किया जाता है जो पाल्क स्ट्रेरट और मनार की खाड़ी द्वारा निर्मित है।

समुद्रतट 7,516.6 किलोमीटर जिसमें मुख्य भूमि, लक्षद्वीप, और अण्डकमान और निकोबार द्वीपसमूह शामिल हैं।

 

जलवायु भारत की जलवायु को मोटे तौर पर उष्ण,कटिबंधीय मानसून के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। परन्तु् भारत का अधिकांश उत्तरी भाग उष्णलकटिबंधीय क्षेत्र के बाहर होने के बावजूद समग्र देश में उष्ण,कटिबंधीय जलवायु है जिसमें अपेक्षाकृत उच्च तापमान और सूखी सर्दी पड़ती है। चार मौसम है:
i. सर्दी (दिसम्बर-फरवरी)
ii. गर्मी (मार्च-जून)
iii. दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम (जून-सितम्बर)
iv. मानसून पश्च मौसम (अक्तूेबर-नवम्बर)
भूभाग मुख्य भूमि में चार क्षेत्र हैं नामत: ग्रेट माउन्टेान जोन, गंगा और सिंधु का मैदान, रेगिस्ता न क्षेत्र और दक्षिणी पेनिंसुला।

प्राकृतिक संसाधन कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज अयस्क, माइका, बॉक्साउइट, पेट्रोलियम, टाइटानियम अयस्क, क्रोमाइट, प्राकृतिक गैस, मैगनेसाइट, चूना पत्थर, अराबल लेण्ड, डोलोमाइट, माऊलिन, जिप्सम, अपादाइट, फोसफोराइट, स्टीसटाइल, फ्लोराइट आदि।

प्राकृतिक आपदा मानसूनी बाढ़, फ्लेश बाढ़, भूकम्प, सूखा, जमीन खिसकना।

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पर्यावरण

– वर्तमान मुद्दे वायु प्रदूषण नियंत्रण, ऊर्जा संरक्षण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, तेल और गैस संरक्षण, वन संरक्षण, आदि।

पर्यावरण-अंतर्राष्ट्री य करार पर्यावरण और विकास पर रीयो की घोषणा, जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राज्य ढांचागत कार्य सम्मेसलन के लिए क्यो,टो प्रोटोकॉल, विश्व व्या्पार करार, नाइट्रोजन ऑक्सामइड के सल्फर उत्पलसर्जन को कम करने सर उनके ट्रांस बाउन्ड्री फ्लेक्सेेस (नोन प्रोटोकॉल) पर एल आर टी ए पी हेन्सिंकी प्रोटोकॉल, वोलाटाइल ऑरगनिक समिश्रण या उनके ट्रांस बाऊन्ड्री फलाक्सेोस (वी वो सी प्रोटोकॉल) के उत्संर्जन से संबंधित एल आर टी ए पी के लिए जेनेवा प्रोटोकॉल।
भूगोल-टिप्प्णी भारत दक्षिण एशिया उप महाद्वीप के बड़े भूभाग पर फैला हुआ है।
व्यतक्ति

भारतीय नागरिकों के बारे में सूचना
ब्यौरे विवरण
(आबादी) जनसंख्याी 1 मार्च, 2011 की स्थिति के अनुसार भारत की जनसंख्याफ 1,210,193,422 (623.7 मिलियन पुरुष और 586.4 मिलियन महिला) की।
जनसंख्याम वृद्धि दर औसत वार्षिक घातांकी वृद्धि दर वर्ष 2001-2011 के दौरान 1.64 प्रतिशत है।
जन्म दर
वर्ष 2009 की जनगणना के अनुसार अनुमानित मृत्यु1 दर 18.3 है।
मृत्युय दर वर्ष 2009 की जनगणना के अनुसार अनुमानित जन्म दर 7.3 है।

संम्भायवित जीवन दर 65.8 वर्ष (पुरुष) 68.1 वर्ष (महिला) (सितम्बर 2006-2011 की स्थिति के अनुसार)

लिंग अनुपात   2011 की जनगणना के अनुसार 940
राष्ट्री यता  भारतीय
जातीय अनुपात सभी पांच मुख्य प्रकार की जातियां, ऑस्ट्रे1लियाड, मोंगोलॉयड, यूरोपॉयड, कोकोसिन और नीग्रोइड को भारत की जनता के बीच प्रतिनिधित्व मिलती है।

धर्म     वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 1,028 मिलियन देश की कुल जनसंख्याप में से 80.5 प्रतिशत के साथ हिन्दुतओं की अधिकांशता है दूसरे स्थाहन पर 13.4 प्रतिशत की जनसंख्यान वाले मुस्लिम इसके बाद ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य आते हैं।

भाषाएं भारतीय संविधान द्वारा 22 विभिन्न भाषाओं को मान्यता दी गई है, जिसमें हिन्दी आधिकारिक भाषा है। अनुच्छेद 343 (3) भारतीय संसद को विधि के अधीन कार्यालयीन उद्देश्यों के लिए अंग्रेजी के उपयोग को जारी रखने का अधिकार देता है।
साक्षरता 2001 की जनसंख्याो के अनंतिम परिणाम के अनुसार देश मे साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है। 82.14 प्रतिशत पुरुषों के लिए और महिलाओं के लिए 65.46 है।
सरकार

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भारत सरकार के बारे में सूचना
ब्यौरे विवरण
देश का नाम रिपब्लिक ऑफ इंडिया; भारत गणराज्य

सरकार का प्रकार संसदीय सरकार पद्धति के साथ सामाजिक प्रजातांत्रिक गणराज्य।

राजधानी नई दिल्लीक
प्रशासनिक प्रभाग 28 राज्य और 7 संघ राज्य क्षेत्र

आजादी 15 अगस्त 1947 (ब्रिटिश उपनिवेशीय शासन से)

संविधान भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।
कानून प्रणाली भारत का संविधान देश की न्याकय प्रणाली का स्रोत है।
कार्यपालिका शाखा भारत का राष्ट्र7पति देश का प्रधान होता है, जबकि प्रधानंत्री सरकार प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद् की सहायता से शासन चलाता है जो मंत्रिमंडल मंत्रालय का गठन करते हैं।
विद्यायिका शाखा भारतीय वि‍द्यायिका में लोक सभा (हाउस ऑफ दि पीपल) और राज्य सभी (राज्य परिषद्) संसद के दोनों सदनों का गठन करते हैं।

न्याीयपालिका शाखा भारत का सर्वोच्च न्या यालय भारतीय कानून व्यावस्थाप का शीर्ष निकाय है इसके बाद अन्य उच्च न्या यालय और अधीनस्थ न्याजयालय आते हैं।

झण्डेय का वर्णन राष्ट्री य झण्डाच आयताकार तिरंगा है जिसमें केसरिया ऊपर है, बीच में सफेद, और बराबर भाग में नीचे गहरा हरा है। सफेद पट्टी के केन्द्रं में गहरा नीला चक्र है जो सारनाथ में अशोक चक्र को दर्शाता है।
राष्ट्री य दिवस 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)
15 अगस्त (स्वातंत्रता दिवस)
2 अक्तू्बर (गांधी जयंती, महात्माा गांधी का जन्म दिवस)

IndianLanguages
भारतीय अर्थव्यरवस्थां के बारे में सूचना
ब्यौरे विवरण
अर्थव्यिवस्थाय सिंहावलोकन स्वहतंत्रता की प्राप्ति के बाद आधी शताब्दी1 में भारत ने सभी बाधाओं को पार करते हुए आर्थिक स्थिरता का स्पदष्ट स्तर, विभिन्न क्षेत्रों का शिष्टाऊचार, अदम्य सहयोग जैसाकि कृषि, पर्याटन, वाणिज्य, विद्युत, संचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी आदि। जिन्हों1ने भारतीय अर्थव्यावस्थाए के सतंभ के रूप में कार्य किया है। आज भारत विश्व की छह सबसे तेजी से विकसित अर्थव्य्वस्थाध में से एक हैं। वर्ष 2001 में शाक्ति समकक्षता खरीदने (पीपीपी) की तर्ज पर भारत का चौथा स्थान है। व्यसवसाय और विनियामक वातावरण विकसित हो राह है और स्थासयी सुधार की ओर आगे बढ़ रहा है।
सकल घरेलू उत्पाीद वर्ष 2005-06 की द्वितीय तिमाही में 8 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई।
सकल घरेलू उत्पाीद खरीद शक्ति समकक्षता भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यदवस्थान है, खरीद शक्ति समकक्षता की तर्ज पर इसका जीडीपी 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह यूएसए, चीन और जापान के बाद आता है।
जीडीपी प्रति व्यकक्ति सितम्बर, 2005 की स्थिति के अनुसार देश का प्रतिव्यिक्ति सकल घरेलू उत्पारद 543 अमेरिकी डॉलर था।

जीडीपी क्षेत्रकों द्वारा निर्माण सेवाएं 56 प्रतिशत कृषि 22 प्रतिशत और उद्योग 22 प्रतिशत (सितम्बर, 2005 की स्थिति के अनुसार

श्रमिक बल इंडिया विजन : 2020 पर समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत का श्रमिक बल 2002 में 375 मिलियन से अधिक पहुंच गई है।
बेरोजगारी की दर 9.1% (सितम्बर 2005 के अनुसार)

गरीबी रेखा के नीचे जनसंख्या 1999-2000 को 26.10%
मुद्रास्फी्ति की दर जुलाई 2005 को 4.1%
सार्वजनिक ऋण 31 मार्च 2002 को कुल ऋण 72117.58 करोड़ रू है
विनियम दर विनिमय दरों के लिए प्रति दिन भारतीय रिजर्व बैंक(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) की वेबसाइट देखें

कृषि उत्पारद चावल, गेहूं, चाय, कपास, गन्ना., आलू, जूट, तिलहन, पोल्ट्री आदि
उद्योग इस्पागत, वस्त्रय, पेट्रोलियम, सीमेंट, मशीनरी, लोकोमोटिव, खाद्य प्रसंस्करण, भैषजिक उत्पानद, खनन आदि

मुद्रा (कोड) भारतीय रूपए (आईएनआर)
वित्तीनय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च

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प्राकृतिक संरचना
मुख्य भूमि चार भागों में बंटी है – विस्तृत पर्वतीय प्रदेश, सिंधु और गंगा के मैदान, रेगिस्तान क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।
हिमालय की तीन श्रृंखलाएं हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े – बड़े पठार और घाटियां हैं, इनमें कश्मीैर और कुल्लू् जैसी कुछ घाटियां उपजाऊ, विस्तृ3त और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्हीं0 पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्य हैं – चुंबी घाटी से होते हुए मुख्य भारत-तिब्बत व्याोपार मार्ग पर जेलप-ला और नाथू-ला दर्रे, उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग तथा कल्पाो (किन्नौचर) के उत्तर – पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी-ला दर्रा। पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांतमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियां उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडि़यों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।
सिंधु और गंगा के मैदान लगभग 2,400 कि.मी. लंबे और 240 से 320 कि.मी. तक चौड़े हैं। ये तीन अलग अलग नदी प्रणालियों – सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के थालों से बने हैं। ये संसार के विशालतम सपाट कछारी विस्तारों और पृथ्वी पर बने सर्वाधिक घने क्षेत्रों में से एक हैं। दिल्ली में यमुना नदी और बंगाल की खाड़ी के बीच लगभग 1600 किमी की दूरी में केवल 200 मीटर की ढलान है।
रेगिस्तानी क्षेत्र को दो भागों में बांटा जा सकता है – विशाल रेगिस्तान और लघु रेगिस्तान। विशाल रेगिस्तान कच्छ के रण के पास से उत्तर की ओर लूनी नदी तक फैला है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा रेखा इसी रेगिस्तान में है। लघु रेगिस्तान जैसलमेर और जोधपुर के बीच में लूनी नदी से शुरू होकर उत्तरी बंजर भूमि तक फैला हुआ है। इन दोनों रेगिस्तानों के बीच बंजर भूमि का क्षेत्र है, जिसमें पथरीली भूमि है। यहां कई स्थानों पर चूने के भंडार हैं।
दक्षिणी प्रायद्वीप का पठार 460 से 1,220 मीटर तक के ऊंचे पर्वत तथा पहाडि़यों की श्रृंखलाओं द्वारा सिंधु और गंगा के मैदानों से पृथक हो जाता है। इसमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्य, सतपुड़ा, मैकाल और अजंता। प्रायद्वीप के एक तरफ पूर्वी घाट है, जहां औसत ऊंचाई 610 मीटर के करीब है और दूसरी तरफ पश्चिमी घाट, जहां यह ऊंचाई साधारणतया 915 से 1,220 मीटर है, कहीं कहीं यह 2,440 मीटर से अधिक है। पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच समुद्र तट की एक संकरी पट्टी है, जबकि पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच चौड़ा तटीय क्षेत्र है। पठार का यह दक्षिणी भाग नीलगिरि की पहाडियों से बना है, जहां पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके पार फैली कार्डामम पहाडि़यां पश्चिमी घाट क विस्तार मानी जाती हैं।

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भूगर्भीय संरचना
भू‍तत्वीय संरचना भी प्राकृतिक संरचना की तरह तीन भागों में बांटी जा सकती है: हिमाचल तथा उससे संबद्ध पहाड़ों का समूह, सिंधु और गंगा का मैदान तथा प्रायद्वीपीय भाग।
उत्तर में हिमालय पर्वत का क्षेत्र, पूर्व में नगालुशाई पहाड़, पर्वत निर्माण प्रक्रिया के क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र का बहुत सा भाग, जो अब संसार में कुछ मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है, लगभग 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्र था। लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले शुरु हुई पर्वत-निर्माण प्रक्रिया के क्रम में तलछट और चट्टानों के तल बहुत ऊंचे उठ गए। उन पर मौसमी और कटाव तत्वों ने काम किया, जिससे वर्तमान उभार अस्तित्व में आए। सिंधु और गंगा के विशाल मैदान कछारी मिट्टी के भाग हैं, जो उत्तर में हिमालय को दक्षिण के प्रायद्वीप से अलग करते हैं।
प्रायद्वीप अपेक्षाकृत स्थायी और भूकंपीय हलचलों से मुक्त क्षेत्र है। इस भाग में प्रागैतिहासिक काल की लगभग 380 करोड़ वर्ष पुरानी रूपांतरित चट्टानें हैं। शेष भाग गोंडवाना का कोयला क्षेत्र तथा बाद के मिट्टी के जमाव से बना भाग और दक्षिणी लावे से बनी चट्टानें हैं।
भारत की नदियां चार समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं -(1), हिमालय की नदियां, (2) प्रायद्वीपीय नदियां, (3) तटवर्ती नदियां और (4) अंतःस्थलीय प्रवाह क्षेत्र की नदियां।
हिमालय की नदियां बारहमासी है, जिन्हें पानी आमतौर पर बर्फ पिघलने से मिलता है। इनमें वर्षभर निर्बाध प्रवाह बना रहता है। मानसून के महीने में हिमालय पर भारी वर्षा होती है, जिससे नदियों में पानी बढ़ जाने के कारण अक्सर बाढ़ आ जाती है। दूसरी तरफ प्रायद्वीप की नदियों में सामान्यतः वर्षा का पानी रहता है, इसलिए पानी की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है। अधिकांश नदियां बारहमासी नहीं हैं। तटीय नदियां, विशेषकर पश्चिमी तट की, कम लंबी हैं और इनका जलग्रहण क्षेत्र सीमित है। इनमें से अधिकतर में एकाएक पानी भर जाता है। पश्चिमी राजस्थान में नदियां बहुत कम हैं। इनमें से अधिकतर थोड़े दिन ही बहती हैं।
सिंधु और गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदियों से हिमालय की मुख्य नदी प्रणालियां बनती हैं। सिंधु नदी विश्व की बड़ी नदियों में से एक है। तिब्बत में मानसरोवर के निकट इसका उद्गम स्थल है। यह भारत से होती हुई पाकिस्तान जाती है और अंत में कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी प्रमुख सहायक नदियों में सतलुज (जिसका उद्गगम तिब्बत में होता है), व्यास, रावी, चेनाब और झेलम हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना अन्य महत्वपूर्ण नदी प्रणाली है और भागीरथी और अलकनंदा जिसकी उप-नदी घाटियां हैं, इनके देवप्रयाग में आपस में मिल जाने से गंगा उत्पन्न होती है। यह उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों से होती हुई बहती है। राजमहल पहाडियों के नीचे भागीरथी बहती है, जो कि पहले कभी मुख्यधारा में थी, जबकि पद्मा पूर्व की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा और सोन नदियां गंगा की प्रमुख सहायक नदियां हैं। चंबल और बेतवा महत्वपूर्ण उपसहायक नदियां हैं जो गंगा से पहले यमुना में मिलती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश के अंदर मिलती हैं और पद्मा या गंगा के रूप में बहती रहती हैं। ब्रह्मपुत्र का उद्भव तिब्बत में होता है जहां इसे ‘सांगपो’ के नाम से जाना जाता है और यह लंबी दूरी तय करके भारत में अरुणाचलप्रदेश में प्रवेश करती है जहां इसे दिहांग नाम मिल जाता है। पासीघाट के निकट, दिबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती हैं, फिर यह नदी असम से होती हुई धुबरी के बाद बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है।
भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियों में सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, पगलादीया और मानस हैं। बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र में तीस्ता आदि नदियां मिलकर अंत में गंगा में मिल जाती हैं। मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्भव मणिपुर की पहाडियों में होता है। इसकी मुख्य सहायक नदियां मक्कू, त्रांग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रुकनी, काटाखल, धनेश्वरी, लंगाचीनी, मदुवा और जटिंगा हैं। बराक बांग्लादेश में तब तक बहती रहती है जब तक कि भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता।
दक्कन क्षेत्र में प्रमुख नदी प्रणालियां बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती हैं। बहने वाली प्रमुख अंतिम नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि हैं। नर्मदा और ताप्ती पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियां हैं।
सबसे बड़ा थाला दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का है। इसमें भारत के कुल क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत भाग शामिल है। प्रायद्वीपीय भारत में दूसरा सबसे बड़ा थाला कृष्णा नदी का है और तीसरा बड़ा थाला महानदी का है। दक्षिण की ऊपरी भूमि में नर्मदा अरब सागर की ओर है और दक्षिण में कावेरी बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इनके थाले बराबर विस्तार के हैं, यद्यपि उनकी विशेषताएं और आकार भिन्न-भिन्न हैं।
कई तटीय नदियां हैं जो तुलनात्मक रूप से छोटी हैं। ऐसी गिनी-चुनी नदियां पूर्वी तट के डेल्टा के निकट समुद्र में मिल जाती हैं जबकि पश्चिमी तट पर ऐसी करीब 600 नदियां हैं।
राजस्थान में कई नदियां समुद्र में नहीं मिलती। वे नमक की झीलों में मिलकर रेत में समा जाती हैं क्योंकि इनका समुद्र की ओर कोई निकास नहीं है। इनके अलावा रेगिस्तानी नदियां लूनी तथा अन्य, माछू रूपेन, सरस्वती, बनांस तथा घग्घर हैं जो कुछ दूरी तक बहकर मरुस्थल में खो जाती हैं।
जलवायु
भारत की जलवायु आमतौर पर उष्णसकटिबंधीय है।
यहां चार ऋतुएं होती हैं:
i. शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी),
ii. ग्रीष्म ऋतु (मार्च-मई)
iii. वर्षा ऋतु या दक्षिण पश्चिमी मानसून का मौसम (जून-सितम्बर) और
iv. मॉनसून पश्च ऋतु (अक्तूबर-दिसम्बर), जिसे दक्षिणी प्रायद्वीप में पूर्वोत्तर मानसून भी कहा जाता है।
भारत की जलवायु पर दो प्रकार की मौसमी हवाओं का प्रभाव पड़ता है – पूर्वोत्तर मानसून और दक्षिण पश्चिमी मानसून। पूर्वोत्तर मानसून को आमतौर पर शीत मानसून कहा जाता है। इस दौरान हवाएं स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं, जो हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करके आती हैं। देश में अधिकांश वर्षा दक्षिण पश्चिमी मानसून की वजह से होती है।
जन्तु
भारत का जंतु विज्ञान संबंधी सर्वेक्षण (जेड एसआई) जिसका मुख्यातलय कोलकाता में है और 16 क्षेत्रीय स्टेञशन है, भारत के जंतु संसाधन के सर्वेक्षण हेतु उत्तजरदायी है। भारत में जलवायु और भौतिक दशाओं की अत्य,धिक विविधता होने के कारण जंतुओं की 89451 प्रजातियों के साथ अत्य धिक विभिन्नषता है जिसमें प्रोटिस्टात, मोलस्काी, एंथ्रोपोडा, एम्फीतबिया, स्तएनधारी, सरिसृप, प्रोटोकोर डाटा के सदस्य पाइसेज, एब्स और अन्य इंवर्टीब्रेट्स शामिल हैं।
स्तरनधारियों में शाही हाथी, गौड़ अथवा भारतीय बाइसन, जो मौजूदा गो जातीय पशुओं में विशालतम होता है, भारतीय गौंडा, हिमाचल की जंगली भेड़, हिरण, चीतल, नील गाय, चार सींगों वाला हिरण, भारतीय बारहसिंहां अथवा काला हिरण, इल वंश का अकेला प्रतिनिधि, शामिल हैं। बिल्लियों में बाघ और शेर सबसे अधिक विशाल हैं ; अन्य शानदार प्राणियों में धब्बेैदार चीता, साह चीता, रेखांकित बिल्लीर आदि भी पाए जाते हैं। स्तरनधारियों की कई अन्य प्रजातियाँ अपनी सुन्दीरता, रंग आभा और विलक्षणता के लिए उल्लेैखनीय हैं। जंगली मुर्गी, हंस, बत्तख, मैना, तोता, कबूतर, सारस, धनेश और सूर्य पक्षी जैसे अनेक पक्षी जंगलों और गीले भू-भागों में रहते हैं।
नदियों और झीलों में मगरमच्छ ओर घडियाल पाये जाते हैं, घडियाल विश्व में मगरमच्छ वर्ग का एक मात्र प्रतिनिधि है। खारे पानी का घडियाल पूर्वी समुद्री तट और अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों में पाया जाता है। वर्ष 1974 में शुरू की गई घडियालों के प्रजनन हेतु परियोजना घडियाल को विलुप्त होने के बचाने में सहायक रही है।
विशाल हिमालय पर्वत जंतुओं की अत्यंात रोधक विभिन्नतताएँ पाई जाती हैं जिन में जंगली भेड़ और बकरियाँ, मारखोर, आई बेकस, थ्रू ओर टेपिर शामिल है। पांडा और साह चीता पर्वतों के ऊपरी भाग में पाए जाते हैं।
कृषि का विस्तारर, पर्यावरण का नाश, अत्य धिक उपयोग, प्रदूषण, सामुदायिक संरचना में विषों का असंतुलन शुरु होने, महामारी, बाढ़, सूखा और तूफानों के कारण वनस्पंति के आच्छाोदन में क्षीणता फलस्ववरूप वनस्प ति और जन्तुर समूह की हानि हुई है। स्तरनधारियों की 39 प्रजातियाँ, पक्षियों की 72 प्रजातियाँ,सरीसृप वर्ग की 17 प्रजातियाँ, एम्फीाबियन की 3 प्रजातियाँ, मछलियों की दो प्रजातियाँ, और तितलियों, शलभों और भृंगों की काफी संख्यात को असुरक्षित और संकट में माना गया है।

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जनगणना
जनगणना 2011(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) देश के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह ऐसे समय में निष्पादित की जा रही है, जब भारत का नाम दुनिया और आधुनिक राष्ट्र के रूप में सशक्त होकर उभर रहा है। हमारे देश का मानव संसाधन दुनिया में अद्वितीय माना जाता है तथा हमारी अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति इसे भविष्य का उन्नत देश बनाने में महत्वपूर्ण रोल निभा रही हैं।
जनगणना 2011(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) को दो चरणों में पूरा किया गया है। पहले चरण में अप्रैल से सितम्बर 2010 के बीच देशभर में घरों की गिनती कई है। दूसरे चरण की शुरुआत 9 फरवरी 2011 को हुई जो 28 फरवरी, 2011 तक चली।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर)(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) की रचना जनगणना 2011 के लिए मील का पत्थर है। यह देश के निवासियों के लिए एक व्यापक पहचान डाटाबेस का निर्माण करेगा। इसे बॉयोमीट्रिक डाटा की तरह सुरक्षित रखकर उपयोग किया जाएगा, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति (15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु वर्ग के लोग) की अद्वितीय पहचान संख्या (यूआईडी)(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) दर्ज रहेगी।
महापंजीयक और जनगणना आयुक्त, भारत सरकार के कार्यालय द्वारा देश के सभी सामान्य निवासियों को चरणबद्ध तरीके से राष्ट्रीय पहचान पत्र वितरित किया जाएगा।
जनसंख्या
एक मार्च 2001 को भारत की जनसंख्यास एक अरब 2 करोड़ 80 लाख (532.1 करोड़ पुरुष और 496.4 करोड़ स्त्रियां) थी। भारत के पास 1357.90 लाख वर्ग कि.मी. भू-भाग है जो विश्व के कुल भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत है फिर भी विश्व की 16.7 प्रतिशत आबादी का भार उसे वहन करना पड़ रहा है।
बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत की आबादी करीब 23 करोड़ 84 लाख थी, जो बढ़कर इक्कींसवीं शताब्दी में एक अरब 2 करोड़ 80 लाख तक पहुंच गई। भारत की जनसंख्या की गणना 1901 के पश्चात हर दस साल बाद होती है। इसमें 1911-21 की अवधि को छोड़कर प्रत्येक दशक में आबादी में वृद्धि दर्ज की गई।
वर्ष 1991-2001 की जनगणना अवधि के दौरान केरल में सबसे कम 9.43 और नागालैंड में सबसे अधिक 64.53 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। दिल्ली में अत्यधिक 47.02 प्रतिशत, चंडीगढ़ में 40.28 प्रतिशत और सिक्किम में 33.06 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। इसके मुकाबले, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में वर्ष 1991-2001 के दौरान जनसंख्या वृद्धि काफी कम रही। हरियाणा उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, नागालैंड, मणिपुर, गुजरात, दमन और दीव तथा दादरा और नागर हवेली आदी को छोड़कर शेष सभी राज्योंा/केंद्रशासित प्रदेशों में वर्ष 1991-2001 के जनगणना दशक के दौरान पिछले जनगणना दशक क तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर कम दर्ज की गई। जिन राज्योंल और केंद्रशासित प्रदेशों में जनगणना दशक के दौरान जनसंख्या के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई, यह भारत की कुल आबादी का लगभग 32 प्रतिशत है।
जनसंख्या घनत्व
जनसंख्या का घनत्व जनसंख्या सांद्रण के महत्व्पूर्ण सूचकांक में एक है। इसे प्रति वर्ग किलो मीटर व्य्क्तियों की संख्यार के रुप में परिभाषित किया गया है। वर्ष 2001 में भारत का जनसंख्या घनत्व 324 प्रति वर्ग कि.मी.था।
वर्ष 1991 और 2001 के बीच सभी राज्योंग और संघ राज्य क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व बढ़ गया। प्रमुख राज्योंण में पश्चिम बंगाल वर्ष 2001 में 903 के जनसंख्याह घनत्व के साथ अभीष भी सर्वाधिक घनी आबादी वाला राज्य बना हुआ है। अब बिहार दूसरा सर्वाधिक घनी आबाषदी वाला राज्य बन गया है और केरल तीसरे स्थाहन पर आ गया है।

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लिंग अनुपात
प्रति हजार पुरुषों में स्त्रियों की संख्याज के रुप में परिभाषित लिंग अनुपात किए गए गए समय बिन्दुय पर एक समाज में पुरुषों और स्त्रियों के बीच व्यालप्त समानता की सीमा को मापने का एक महत्वेपूर्ण सामाजिक सूचक है। इस देश में लिंग अनुपात हमेशा से स्त्रियों के अनुकूल नहीं रहा। बीसवीं सदी की शुरुआत में यह 972 था और तत्पाश्चामत 1941 तक इसमें निरन्तर गिरावट देखी गई।

साक्षरता
जनगणना 2001 के प्रयोजन हेतु 7 वर्ष अथवा इससे अधिक उम्र का कोई व्यगक्ति जो किसी भाषा में समझ के साथ पढ़ और लिख सकता ह़ै, को साक्षर माना जाता है। एक व्यरक्ति जो केवल पढ़ सकता है परन्तुन लिख नहीं सकता, साक्षर नहीं है। वर्ष 1991 के पहले की जनगणनाओं में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों0 को अनिवार्य रूप से साक्षर माना जाता था।
वर्ष 2001 के अनंतिम परिणामों से यह पता चलता है कि देश में साक्षरता में वृद्धि हुई है। देश में साक्षरता दर 64.84 प्रतिशत है 75.26 पुरुषों की और 53.67 स्त्रियों की।
केरल ने 90.86 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ शीर्ष पर अपनी स्थिति बरकरार रखी है, उसके बाद काफी कम अंतर से मिजोरम (88.80 प्रतिशत) और लक्षद्वीप (86.66 प्रतिशत) का स्था न आता है। 47.00 प्रतिशत की साक्षरता दर के साथ देश में बिहार का स्थासन अंतिम है, इसके पहले झारखंड (53.56 प्रतिशत) तथा जम्मूा और कश्मीतर (55.52 प्रतिशत) का स्थाषन है। केरल देश में 94.24 प्रतिशत की पुरुष साक्षरता और 37.72 प्रतिशत की स्त्री साक्षरता दोनों में भी शीर्ष स्थामन रखता है। इसके ठीक विपरीत बिहार में पुरुष (59.68 प्रतिशत) और स्त्रीर (33.12 प्रतिशत) दोनों साक्षरता दरों में निम्नतम स्था न रखता है।
राज्यों की रेंकिंग/संघ राज्य क्षेत्र साक्षरता दर द्वारा व्यक्ति, पुरुष और महिलाएं, जनगणना, 2001

व्यक्ति
पुस्र्ष स्त्री
रैंक राज्य/संघ राज्य क्षेत
साक्षरता दर राज्य/संघ राज्य क्षेत
साक्षरता दर राज्य/संघ राज्य क्षेत्र
साक्षरता दर
1. केरल 90.86 केरल 94.24 केरल 87.72
2. मिजोरम 88.80 लक्षद्वीप 92.53 मिजोरम 86.75
3. लक्षद्वीप 86.66 मिजोरम 90.72 लक्षद्वीप 80.47
4. गोवा 82.01 पुडुचेरी 88.62 चण्डीगढ़
76.47
5. चण्डीगढ़
81.94 गोवा 88.42 गोवा 75.37
6. दिल्ली
81.67 दिल्ली
87.33 अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह 75.24
7. अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह 81.30 दमन एवं दीव 86.76 दिल्ली
74.71
8. पुडुचेरी 81.24 अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह 86.33 पुडुचेरी 73.90
9. दमन एवं दीव 78.18 चण्डीगढ़
86.14 हिमाचल प्रदेश 67.42
10. महाराष्ट्र
76.88 महाराष्ट्र
85.97 महाराष्ट्र
67.03
11. हिमाचल प्रदेश 76.48 हिमाचल प्रदेश 85.35 दमन एवं दीव 65.61
12. तमिलनाडु 73.45 उत्तराखंड 83.28 त्रिपुरा 64.91
13. त्रिपुरा 73.19 तमिलनाडु 82.42 तमिलनाडु 64.33
14. उत्तराखंड 71.62 त्रिपुरा 81.02 पंजाब 63.36
15. मणिपुर1 70.53 मणिपुर1 80.33 नागालैण्ड
61.46
16. पंजाब 69.65 गुजरात 79.66 मणिपुर1 60.53
17. गुजरात 69.14 हरियाणा 78.49 सिक्किम 60.40
18. सिक्किम 68.81 छत्तीसगढ़ 77.38 उत्तराखंड 59.63
19. पश्चिम बंगाल 68.64 पश्चिम बंगाल 77.02 पश्चिम बंगाल 59.61
20. हरियाणा 67.91 कनार्टक 76.10 मेघालय 59.61
21. कनार्टक 66.64 मध्य प्रदेश
76.06 गुजरात 57.80
22. नागालैण्ड
66.59 सिक्किम 76.04 कनार्टक 56.87
23. छत्तीसगढ़ 64.66 राजस्थान
75.70 हरियाणा 55.73
24. मध्य प्रदेश
63.74 ओडिशा 75.35 असम 54.61
25. असम 63.25 पंजाब 75.23 छत्तीसगढ़ 51.85
26. ओडिशा 63.08 असम 71.28 ओडिशा 50.51
27. मेघालय 62.56 दादरा तथा नगर हवेली 71.18 आंध्र प्रदेश 50.43
28. आंध्र प्रदेश 60.47 नागालैण्ड
71.16 मध्य प्रदेश
50.29
29. राजस्थान
60.41 आंध्र प्रदेश 70.32 राजस्थान
43.85
30. दादरा तथा नगर हवेली 57.63 उत्तर प्रदेश
68.82 अरूणाचल प्रदेश 43.53
31. उत्तर प्रदेश
56.27 झारखण्ड
67.30 जम्मू एव कश्मीर
43.00
32. जम्मू एव कश्मीर
55.52 जम्मू एव कश्मीर
66.60 उत्तर प्रदेश
42.22
33. अरूणाचल प्रदेश 54.34 मेघालय 65.43 दादरा तथा नगर हवेली 40.23
34. झारखण्ड
53.56 अरूणाचल प्रदेश 63.83 झारखण्ड
38.87
35. बिहार 47.00 बिहार 59.68 बिहार 33.12
टिप्पणियां : मणिपुर के आंकडों में तीन उप प्रभागों के आंकडे शामिल नहीं हैं जो हैं माओ, मराम, पाओमाटा, जो मणिपुर के सेनापाति जिले में आते हैं क्योंणकि इन तीनों उप प्रभागों की 2001 जनगणना के परिणाम तकनीकी और प्रशासनिक कारणों से रद्द कर दिए गए थे। साक्षरता दरें सात वर्ष और उससे अधिक उम्र की जनसंख्या से संबंधित हैं।

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राजनीतिक व्यवस्था
राज्योंक में सरकार की प्रणाली केन्द्रौ की प्रणाली के निकट सदृश है।

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कार्यपालिका
राज्यपाल
राज्य की कार्यपालिका में राज्यसपाल और मुख्यैमंत्री के नेतृत्व में मंत्री परिषद् होती है। राज्य के राज्य्पाल की नियुक्ति पांच वर्षों के कार्यकाल के लिए राष्ट्रलपति द्वारा की जाती है, और जब तक राष्ट्रापति चाहता है वह अपने पद पर रहता है। केवल भारत के नागरि2क, जिनकी आयु 35 वर्ष हो, इस पद पर नियुक्ति के पात्र होते हैं। राज्य की कार्य पालिका की शक्ति राज्यदपाल के पास होती है।
मंत्री परिषद
मुख्यीमंत्री की नियुक्ति राज्य्पाल द्वारा की जाती है और वह मुख्यपमंत्री की मंत्रणा से अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है। मंत्री परिषद संयुक्त रूप से राज्य के विधान सभा के प्रति उत्तररदायी होती है।
विधायिका
प्रत्येाक राज्य के लिए एक विधायिका होती है, जिसमें राज्यहपाल और एक सदन या दो सदन जैसा भी मामला हो, होते हैं। बिहार, जम्मू5 और कश्मीसर, कर्नाटक, महाराष्ट्रत और उत्तर प्रदेश में दो सदन हैं जिन्हेंल विधान परिषद और विधान सभा के रूप में जाना जता है। संसद कानून बनाकर मौजूदा विधान परिषद को भंग करने या जहां यह नहीं है वहां इसका सृजन करने की व्यतवस्थाि कर सकता है यदि प्रस्तातव संबंधित विधान सभा के संकल्प द्वारा समर्थित हो।
विधान परिषद
राज्य के विधान परिषद (विधान परिषद) में राज्य के विधान सभा में सदस्योंा की कुल संख्याा की एक तिहाई और किसी भी कारणों से 40 सदस्य से कम सदस्य नहीं होते हैं (जम्मू और कश्मीोर के विधान परिषद में जम्मूा और कश्मीार के संविधान के अनुच्छेुद 50 द्वारा 36 सदस्योंू की व्यतवस्थाऊ की गई है)। परिषद के लगभग एक तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्योंल द्वारा ऐसे व्युक्तियों में से चुने जाते हैं जो इसके सदस्य नहीं है, िएक तिहाई निर्वाचिका द्वारा, जिसमें नगरपालिकाओं के सदस्य, जिला बोर्डों और राज्य में अन्य प्राधिकरणों के सदस्योंम द्वारा चुने जाते है, एक बारह का चुनाव निर्वाचिका द्वारा ऐसे व्यकक्तियों में से चुने जाते हैं जिन्हों्ने कम से कम तीन वर्षों तक राज्य के भीतर शैक्षिक संस्थाकओं में अध्यपन में लगा रहा हो जो माध्यामिक विद्यालयों की कक्षों के नीचे न हो और अन्य एक बारह का चुनाव सी पंजीकृत स्नामतकों द्वारा किया जाता है जो तीन वर्ष से अधिक समय पहले पढ़ाई समाप्त कर लिए है। शेष सदस्य राज्यरपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहयोग आन्दोेलन और सामाजिक सेवा में उत्कृाष्ट कार्य करने वाले व्याक्तियों में से नियुक्त किए जाते है। विधान परिषदों को भंग नहीं किया जा सकता परन्तु् उनके एक तिहाई सदस्य प्रत्येंक दूसरे वर्ष में सेवा निवृत्त होते हैं।
विधान सभा
राज्य का विधान सभा (विधान सभा) में 500 से अनधिक और कम से कम 60 सदस्य राज्य में क्षेत्रीय चुनाव क्षेत्रों से प्रत्यकक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं ( संविधान के अनुच्छेमद 371 एक द्वारा सिक्किम के विधान सभा में 32 सदस्योंा की व्यावस्थाा की गई है। क्षेत्रीय चुनाव का सीमांकन ऐसा किया जाना है कि प्रत्येषक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्यार और इसको आबंटित सीटों की संख्यां के बीच अनुपात जहां तक व्या वहारिक हो पूरे राज्य में एक समान हो। संविधान सभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है जब तक कि इसे पहले भंग न किया जाए।
अधिकार और कार्य
राज्य विधान मंडल को संविधान की सातवीं अनुसूची 2 में बताए गए विषयों पर और उसके साथ अनुसूवी 3 में बताए गए विषय में सूचीबद्ध अधिकारों पर विशिष्ट अधिकार हैं जिनमें राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी व्यंयों, कर निर्धारण और उधार लेने के प्राधिकार शामिल हैं। राज्य विधान सभा को अकेले ही यह अधिकार है कि मौद्रिक विधेयक का उदभव करे। विधान सभा से मौद्रिक विधेयक प्राप्त होने के 14 दिनों के अंदर अनिवार्य पाए जाने पर विधान परिषद केवल इसमें किए जाने वाले परिवर्तनों की सिफारिश कर सकती है।विधान सभा इन सिफारिशों को स्वी कार या अस्वी4कार कर सकती है।
विधेयकों का आरक्षण
एक राज्य के राज्यिपाल को अधिकार है कि वह राष्ट्रएपति के पास विचाराधीन किसी विधेयक को आरक्षित करे। सम्पीत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण, उच्च न्याययालय की स्थिति और अधिकारों को प्रभावित करने वाले उपाय और अंतर राज्यीयय नदी या नदी घाटी विकास परियोजना में बिजली वितरण या पानी के भंडारण, वितरण और बिक्री पर कर आरोपण जैसे विषयों पर विधेयकों को अनिवार्यत: इस प्रकार आरक्षित किया जाए। राष्ट्रपपति के पूर्व अनुमोदन के बिना, अंतर राज्यीतय व्याबपार पर प्रतिबंध लगाने वाले किसी विधयेक को राज्य विधान मंडल में प्रस्तुदत नहीं किया जा सकता है।
कार्यपालिका पर नियंत्रण
राज्य विधायिका वित्तीय नियंत्रण के सामान्य अधिकार के उपयोग के अलावा सभी सामान्य संसदीय युक्तियों का उपयोग करता है, कार्यपालिका के दैनिक कार्यों पर नजर रखने के लिए जैसे प्रश्न, चर्चा, वाद-विवाद, स्थवगित करना और अविश्वाकस प्रस्ताीव लाना एवं प्रस्तातव पारित करने का उपयोग करता है। उनकी आकलन और सार्वजनिक लेखा पर समितियां भी हैं, जो सुनिश्वित करती हैं कि विधायिका द्वारा स्वीयकृत अनुदानों का उपयोग उचित रूप से किया जा रहा है।
संघ राज्य क्षेत्र
संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन उस दायरे तक कार्य करते हुए जो वह उचित समझे, उसके द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा किया जाता है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्लीए और पांडिचेरी के प्रशासकों को लेफ्टीनेंट गवर्नर का पद का पद दिया गया है। पंजाब का राज्यिपाल समवर्ती रूप से चंडीगढ़ का प्रशासक है। दादरा और नगर हवेली के प्रशासक समवर्ती रूप से दमन और दीव का प्रशासक है। लक्षद्वीप का अलग प्रशासक है।
दिल्लीर राष्ट्री य राजधानी क्षेत्र और पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र में एक विधान सभा और मंत्रियों की परिषद है। पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र की विधान सभा संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन में लागू होने वाले इन मामलों के विषय में संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची 2 या सूची 3 में बताए गए मामलों के संदर्भ में कानून बना सकती है। दिल्लीन राष्ट्री य राजधानी क्षेत्र की विधान सभा को भी सूची 2 की प्रविष्टि 1, 2 और 18 के अतिरिक्त अधिकार हैं जो विधान सभा की विधायी दक्षता के अंतर्गत नहीं है। विधेयकों की कुछ विशिष्ट श्रेणियों में, यद्यपि विधान सभा में प्रस्तुीत करने के पहले केन्द्री य सरकार के पूर्व अनुमोदन की आवश्याकता होती है। पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र और राष्ट्री य राजधानी क्षेत्र दिल्लीव की विधान सभाओं द्वारा पारित कुछ विधेयकों को राष्ट्रापति महोदय के विचार और अनुमोदन के लिए आरक्षित करने की आवश्यूकता होती है।
स्थानीय सरकार
नगरपालिकाएं
नगर निकायों का भारत में लम्बा् इतिहास है। ऐसे प्रथम नगर निगम की स्थाापना 1688 में भूतपूर्व मद्रास प्रेसीडेंसी नगर में की गई थी। और तब इसी प्रकार के निगमों द्वारा तब बाम्बेए और कलकता में 1726 में अपनाया गया। भारत के संविधान में संसद और राज्य विधायिकों में प्रजातंत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विस्तृतत व्या‍पक प्रावधान किया गया है। तथापि, संविधान द्वारा शहरी क्षेत्र में स्वदशासन की स्पाष्ट सांवधैनिक बाध्यरता नहीं की गई है। जबकि राज्य की नीतियों के नीति निर्देशक तत्व का आशय ग्राम पंचायतों के संदर्भ में है, राज्य सूची की 5 प्रविष्टि में उस्पयष्टनता को छोड़कर नगरपा्लिकाओं के लिए विशिष्ट संदर्भ नहीं है जो स्था1नीय स्वपशासन के विषय को राज्यों् की जिम्मेजदारी निर्दिष्ट करता है।
शहरी स्थाकनीय निकायों के लिए समान ढांचा प्रदान करने के लिए और स्वसशासन के प्रभावशील प्रजातांत्रिक यूनिटों के रूप में निकायों के कार्यों को सुदृढ़ बनाने में सहायता देने के लिए संसद में 1992 में नगरपालिकाओं के संबंध में संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम, 1992 अधिनियमित किया है। अधिनियम पर राष्ट्रेपति की सहमति 20 अप्रैल 1993 को प्राप्त हुई। भारत सरकार ने 1 जून, 1993 जिस तारीख से उक्त अधिनियम लागू हुआ, को अधिसूचित किया। नगरपालिका संबंधी नया भाग IX – क को अन्य चीजों के अतिरिक्त तीन प्रकार की नगर पालिकाओं को व्यावस्थाम करने के लिए संविधान में शामिल किया गया है, अर्थात् ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में मार्गस्थ के लिए नगर पंचायतें, छोटे आकार के शहरी क्षेत्रों के लिए नगरपालिका परिषद और बड़े शहरी क्षेत्रों के लिए नगरपालिकाएं, नगरपलिकाओं की नियत अवधि, राज्य निर्वाचन आयोग की नियुक्ति, राज्य वित्त आयोग की नियुक्ति और मेट्रोपोलिटन एवं जिला योजना समितियों का गठन/राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों ने अपना निर्वाचन आयोग गठित किया है। नगर निकायों का चुनाव झारखंड और पांडिचेरी को छोड़कर सभी राज्यों2/संघ राज्य क्षेत्रों में पूरा किया जा चुका है।
पंचायतें
संविधान का अनुच्छेोद 40, जो राज्य के नीति निदेशक तत्वोंश में से एक को प्रतिष्ठा पित करता है यह निर्धारित करता है कि ग्राम पंचायत की व्यनवस्थान करने का और स्वनशासन के यूनिटों के रूप में कार्य करने के लिए समर्थ बनाने हेतु यथा आवश्यक शक्ति एवं प्राधिकार प्रदान करने के लिए राज्य कदम उठाएंगे।
उपर्युक्त के आलोक में अन्य चीजों के अतिरिक्त गांवों या गांवों के समूह में ग्राम सभा की व्यतवस्थाट करने के लिए ग्राम और अन्य स्तर या स्तेरों पर पंचायतों का गठन, ग्राम और मध्ययवर्ती स्तर पर यदि कोई हो के पंचायतों की सदस्य ता के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण और पंचायतों में प्रत्येेक स्तर पर अध्ययक्ष के पद के लिए आरक्षण; कम से कम एक तिहाई सीटों का आरक्षण महिलाओं के लिए, पंचायतों के लिए पांच वर्णों का कार्यकाल निर्धारित करना और किसी पंचायत की बरखास्तिगी होने पर छह माह की अवधि के अंदर चुनाव कराने की व्यकवस्था, करने के लिए पंचायतों के संबंध में संविधान में नया भाग IX शामिल किया गया।
निर्वाचन आयोग
भारत में संसद और राज्य विधान मंडलों के निर्वाचन और राष्ट्र्पति तथा उप राष्ट्रापति कार्यालय के निर्वाचन आयोजित करने तथा निर्वाचन सूचियां तैयार करने के पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का कार्य निर्वाचन आयोग के सौंपा गया है। यह एक स्व्तंत्र संवैधानिक प्राधिकरण है। वर्ष 1950 में अपने आरंभ से अक्तूयबर 1989 तक आयोग ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित एक एकल सदस्य के रूप में कार्य किया। दिनांक 16 अक्तूाबर 1989 को राष्ट्रापति ने नवम्बर-दिसम्बर 1989 में होने वाले लोक सभा चुनाव के पूर्व दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की। यद्यपि, कथित दो आयुक्तों को 1 जनवरी 1990 से कार्य भार संभालने से रोक दिया गया, जब निर्वाचन आयुक्त के ये दो पद समाप्त कर दिए गए। पुन:, 1 अक्तूथबर 1993 को राष्ट्रापति महोदय ने दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की। इसके साथ, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991 को यह प्रदान करने के लिए संशोधित किया गया कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दो निर्वाचन में आयुक्तों को एक समान अधिकार प्राप्त हों और एक समान वेतन, भत्ते और अन्य पर्क्स प्राप्त हों, जो भारत के उच्चतम न्या यालय के न्या‍यधीश को प्राप्त होते हैं। इस अधिनियम में पुन: यह बताया गया है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और/या दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों के बीच मतभेद होने पर इस मामले का निर्णय बहुमत से किया जाएगा। इस अधिनियम की वैधता की जानकारी (1993 में निर्वाचन आयोग के तौर पर नया नाम) (निर्वाचन आयुक्तों की सेवा शर्तें और व्यषवसाय कार्य) अधिनियम, 1991 को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई। यद्यपि, पांच न्या यधीशों की संवैधानिक पीठ ने याचिका रद्द की और 14 जुलाई 1995 को एक सर्वसम्मत निर्णय द्वारा उपरोक्त कानून के प्रावधानों पर रोक लगा दी।
निर्वाचन आयोग की स्वततंत्रता और कार्यपालिका के हस्त क्षेप को सुरक्षा संविधान की धारा 324 (5) के तहत एक विशिष्ट प्रावधान द्वारा सुनिश्चित की गई है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उनके कार्यालय से इस प्रकार और उच्चतम न्या(यालय के न्या यधीश के समान आधार के अलावा हटाया नहीं जाएगा और उनकी सेवा की शर्तें उनकी नियुक्ति के बाद उन्हेंर हानि पहुंचाने के लिए बदली नहीं जाएंगी। अन्य निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के बिना हटाया नहीं जा सकता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के कार्यालय का कार्यकाल कार्य भार संभालने की तिथि से 6 वर्ष अथवा उनके 65 वर्ष की आयु पर पहुंचने तक होता है, इनमें से जो भी पहले हो।
संशोधन
22 मार्च 2003 को संसद में निर्वाचन कानून (संशोधन) अधिनियम, 2003 को लागू किया और निर्वाचन आयोजन (संशोधन) नियम, 2003, जो 22 सितंबर 2003 से प्रभावी हुआ। अधिनियम और नियमों में इन संशोधनों द्वारा सशस्त्रक बलों के सेवा मतदाताओं और उन बलों के सदस्योंर को प्रॉक्सी के ज़रिए मतदान का अधिकार देता है, जिन पर सेना अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं। ये सेवा मतदाता, जो प्रॉक्सी के माध्यम से मत देने का विकल्प अपनाते हैं, उन्हेंि एक निर्धारित फॉर्मेट में एक प्रॉक्सीक की नियुक्ति करनी होती है और निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचन अधिकारी को सूचित करे।
निर्वाचन और अन्य संबंधित कानून (संशोधन) अधिनियम, 2003 (2003 का 46) को 11 सितंबर 2003 को लागू किया गया था। इस संशोधन द्वारा प्रधान अधिनियम में नई धारा 29बी और 29सी शामिल की गईं, जिनमें बताया गया है कि आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कर राहत के किसी दावे के लिए 20,000 रु. से अधिक किसी अंशदान की जानकारी निर्वाचन आयोग को दी जाएगी, जो किसी सरकारी कम्पकनी के अलावा व्यकक्ति या कम्प नी द्वारा राजनैतिक दलों को दिया जाता है। इस अधिनियम में भाग ए (धारा 78ए और 78बी) भी शामिल किया गया है जो निर्वाचन सूचियों की प्रतियों तथा मान्याताप्राप्त राजनैतिक दलों के प्रत्यामशियों की सूची प्रदान करने के विषय में है। इस अधिनियम में प्रत्याधशियों द्वारा किए जाने वाले चुनावी व्यय के रखरखाव की जानकारी दी गई है, जिसके द्वारा हवाई मार्ग से केवल उस राजनैतिक दल के कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए किसी अन्य मार्ग से परिवहन पर एक राजनैतिक दल के ”नेताओं” की निर्दिष्ट संख्याो द्वारा किए गए व्यय को निर्वाचन के संबंध में प्रत्यातशियों द्वारा किए गए व्यय के खाते में लिया जाएगा।
संसद ने 1 जनवरी 2004 को असीमन (संशोधन) अधिनियम, 2003 को लागू किया, जिसके द्वारा प्रधान अधिनियम की धारा 4 यह बताने के लिए संशोधित की गई कि असीमन का कार्य 2001 जनगणना आंकड़ों के आधार पर किया जाएगा।
संसद ने 28 अगस्त 2003 का लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 2003 को लागू किया, जिसके माध्यम से खुली बैलट प्रणाली राज्यों् की परिषद के निर्वाचनों में शामिल की गई। इस प्रणाली में एक निर्वाचक, जो एक राजनैतिक पार्टी का है, उसे उस राजनैतिक दल के अधिकृत प्रतिनिधि का अपना मतदान करने के बाद बैलट पेपर दिखाना होता है। एक राज्य विशेष से राज्योंा की परिषद में निर्वाचन में भाग वाले एक प्रत्याोशी की आवश्याकता, उस राज्य विशेष में एक निर्वाचक की होनी चाहिए, को भी निपटाया गया था।
निर्वाचन में सुधार
सी. डब्यूतिक . पी. 4912, (कुशरा भारत बनाम भारत संघ और अन्य) में दिल्लीम उच्च न्यानयालय ने निर्देश दिया कि सरकारी आवास, बिजली, पानी, टेलीफोन और परिवहन (हवाई जहाज़ और हेलीकॉप्टर सहित) विभाग में प्रत्याेशी द्वारा देय धनराशि से संबंधित सूचना और प्रत्या्शी द्वारा प्रस्तुात अन्य कोई देश राशि की जानकारी निर्वाचकों की सूचना हेतु स्थाऔनीय वितरण वाले कम से कम दो समाचार पत्रों में आयोग के तहत निर्वाचन प्राधिकारियों द्वारा प्रकाशित की जाएगी। तदनुसार, प्रत्या्शी की पृष्ठ भूमि के विषय में आयोग द्वारा निर्वाचकों की सूचना के अधिकार से संबंधित 27 मार्च 2003 के आदेश में निर्धारित शपथपत्र फॉर्मेट में मद 3 (ए) (iii) को संशोधित किया और प्रत्यागशी द्वारा प्रस्तुषत इस सूचना को जिला निर्वाचन अधिकारियों को अनिवार्य निर्देश भी जारी किए गए, जैसा दिल्लीत उच्च न्या यालय द्वारा निर्देश दिया गया है।

 

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