लुक ईस्ट से एक्ट ईस्ट तक

लुक ईस्ट’ से ‘एक्ट ईस्ट’ तक 

भारत की नई केन्द्र सरकार ने मई 2014 में सत्ता ग्रहण की. विदेश नीति की प्राथमिकताओं के तौर पर देखा जाए. इसमें नई सरकार की विदेश नीति में प्रमुख बदलाव दिखाई देते हैं. प्रथम, नई सरकार ने पड़ोसियों के साथ भारत सम्बन्धों को बेहतर बनाने को प्राथमिकता।प्रदान की है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा।सार्क के सदस्य देशों के शासन प्रमुखों को।अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमन्त्रित करना, प्रधानमंत्री द्वारा लम्बे अन्तराल के बाद पहले भूटान तथा बाद में पड़ोसी देश।नेपाल की यात्रा करना आदि घटनाएं विदेश नीति के इस बदलाव के संकेत हैं. नई सरकार द्वारा विदेश नीति में दूसरा बदलाव यह लाया गया है कि भारत की 1991 से चली आ रही लुक ईस्ट अथवा पूरब की ओर देखो नीति को अधिक क्रियाशील बनाने का प्रयास, किया जा रहा है तथा इसका शनाम बदलकर अब एक्ट ईस्ट कर दिया गया है, इसका तात्पर्य यह है कि भारत अब।पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने सम्बन्धों को अधिक गति प्रदान करेगा.

एक्ट ईस्ट शब्द का प्रयोग सबसे पहले

एक्ट ईस्ट शब्द का प्रयोग सबसे पहले अमरीका की विदेश मंत्री हिलेरी कि्लिटन द्वारा जुलाई 2011 में अपनी भारत यात्रा के दौरान किया गया था. हिलेरी ने अपने सम्बोधन में इसको ईस्ट एशिया के साथ सम्बन्धों में अधिक व्यापकता तथा गति।प्रदान करने की सलाह देते हुए इस शब्द का प्रयोग किया था. भारत की नई विदेश।मंत्री ने अगस्त014 में अपनी वियतनाम।यात्रा के दौरान इसी अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया था. तत्पश्चात् सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका उल्लेख किया गया तथा दोनों देशों द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य में इसका लिखित उल्लेख किया गया. नवम्बर 2014 में जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए यात्रा के दौरान उनके द्वारा इसका म्यांमार की यात्रा की, तो इस नीति पर विस्तार से प्रकाश डाला गया. यहां यह बता।देना महत्वपूर्ण है कि कहीं पर औपचारिक रूप से सरकार ने इस नई नीति की विशेषताओं का उल्लेख नहीं किया है, लेकिनहप्रधानमंत्री ने जिस मंतव्य से इसका उल्लेख किया है, उससे इसकी कतिपय विशेषताओं का आभास होता है. अमरीका ने एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में चीन के बढ़ते सामरिक प्रभाव को देखते हुए एशियन धुरी’ तथा ‘एशियन पुनर्सन्तुलन’ जैसी धारणाओं का प्रतिपादन किया था. इनहधारणाओं का मंतव्य था कि अमरीका इस क्षेत्र में चीन के सामरिक प्रभाव को सन्तुलित करने के लिए इस क्षेत्र के देशों के साथ घनिष्ठ सामरिक सम्बन्धों का विकास करेगा. स्वाभाविक है कि चीन अमरीका की इस नीति को पसन्द नहीं करता. इस बदलाव केहसन्दर्भ में भारत की एक्ट ईस्ट नीति का आशय भारत द्वारा इस क्षेत्र के देशों के।साथ सामरिक सम्बन्धों में अधिक व्यापकताहव सक्रियता लाने से है. लेकिन भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक आर्थिक आयाम भी है.

12 नवम्बर, 2014 को एशियान।शिखर सम्मेलन में म्यांमार में दिए गए अपने सम्बोधन में भारतीय प्रधानमंत्री ने अगलेहपाँच वर्षों में आसियान देशों के साथ आर्थिक सम्बन्धों को अधिक व्यापक बनाने की घोषणा की थी. इसके साथ ही उन्होंने इस क्षेत्र के आर्थिक रूपान्तरण को गति।प्रदान करने के लिए सूचना हाई वे, भौतिक सम्पर्कता के साथ-साथ डिजिटल सम्पर्कता को बढ़ाने तथा ढाँचागत सुविधाओं के विकास में सहयोग बढ़ाने पर भी बल दिया था. इसका तात्पर्य यह है कि भारत की लुक ईस्ट नीति का उद्देश्य केवल चीन के बढ़ते सामरिक प्रभाव को सन्तुलित करना ही नहीं, वरन् आसियान देशों तथा पूर्वी एशिया के अन्य देशों के साथ आर्थिक व न सांस्कृतिक सम्बन्धों को भी बदलते परिवेश में गति प्रदान करना है. इस नीति में सक्रियता के साथ बदलते आर्थिक परिवेश के हिसाय से भौतिक य डिजिटल सम्पर्कता जैसे तत्वों को प्राथमिकता प्रदान की गई है तत्व भारत की लुक ईस्ट नीति में प्राथमिकता पर नहीं थे, कुल गिलाकर नई नीति का मंतव्य भारत द्वारा पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपने आर्थिक व सामरिक।सम्बन्धों को प्राथमिकता प्रदान करना है

भारत की एक्ट ईस्ट नीति भारत ह्वारा 1991 में घोषित लुक ईस्ट नीति का संशोधित संस्करण है, तुक ईस्ट नीति की घोषणा शीत युद्ध की समाप्ति के उपरान्त उस समय की गई थी, जब भारत मेंहउदारबादी आर्थिक नीतियों को लागू किया जा रहा था. शीत युद्ध काल में दकषिण-पूर्व।एशिया का क्षेत्र महाशक्तियों की शीत युद्ध की राजनीति का शिकार बना रहा, इस क्षेत्र के वेशों ने यद्यपि आर्थिक सहयोग व विकास के लिए 1967 में ही आसियान की स्थापना कर ली थी, लेकिन यह संगठन भी शीत युद्ध की राजनीति के कारण प्रभायी नहीं हो पाया, चकि आसियान के सभी देश अमरीका के प्रभाय में थे. अतः इन देशों के साथ मारत के सम्बन्धों का समुचित विेकास नहीं हो पाया. यास्तव में कतिपय रागीक्षकों का गानना है कि आसियान की स्थापना अमरीका के इशारे पर इस क्षेत्र में साम्यवादी प्रभाव को सीगित करने के लिए की गई थी, लेकिन जन शीत युद्ध समाप्त हो गया, तो आसियान के सदस्य देशों ने विकास तथा आ्थिक सहयोग का एक नया चरण आरम्भ किया उधर शीत युज्ध की समाप्ति के बाद गारत में जो आर्थिक सुधार दुए, उनके अनुरूप भारत को भी इस क्षेत्र के।देशों के साथ आर्थिक सम्बन्धों को बढ़ाने की आवश्यकता अनुभव हुई भारत की 1991 की लुक ईस्ट नीति इसी आवश्यकता का परिणाम  लुक ईस्ट नीति के अन्तर्गत भारत को आसान सफलता इसलिए भी प्राप्त हो गई, क्यों कि इस क्षेत्र के देश आसियान के अन्तर्गत पहले से सहयोग हेतु संगठित थे. आसियान की सफलता का एक राज यह भी है कि इसे सदस्य देशों के आपसी राजनीतिक विवादों से दूर रखा गया है संक्षेप में भारत  की पूरब की ओर देखों की नीति के मौलिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय स्तर पर व्यापक आर्थिक व्यापारिक, सांस्कृतिक व रणनीतिक सम्बन्धों का विकास करना, ताकि यह दोनों के आपसी हितों को पूरा करने के साथ-साथ भारत के तीव्र आर्थिक विकास तथा विश्व अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के एकीकरण में सहायक हो.

2.दक्षिण पूर्वी एशिया में वर्तमान में चल रही आर्थिक एकीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना, उल्लेखनीय  है कि इस क्षेत्र के देश यूरोपियन स समुदाय की तर्ज पर पुर्वी एशिया में आर्थिक समुदाय के निर्माण हेतु प्रयासरत्है तथा इन प्रयासों में भारत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है.

3. इस क्षेत्र में भारत के रणनीतिक व आर्थिक प्रभाव का वढाना, ताकि वह चीन की बढ़ती हुई आर्थिक व सैनिक शविति को सन्तुलित करने में सहायक हो सकें, उल्लेखनीय है कि घोषित तौर पर भारतीय नीति निर्माताओं द्वारा इस लक्ष्य पर जोर नहीं दिया जाता. लेकिन अघोषित तौर पर यह भारत की पूरव की ओर देखो की नीति का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है. साथ ही यह तत्त्व भारत व दक्षिण-पुर्व एशिया के देशों का साझी अघोषित समझ भी है.

लुक इंस्ट नीति को दो चरणों में लागू

भारत की लुक इंस्ट नीति को दो चरणों में लागू किया गया है. 199। से 20802 तक के प्रथम यरण में भारत द्वारा आसियान देशों के साथ आर्थिक सम्बन्धों को मजबूत बनाने पर बल दिया गया है. 20802 से 2014 तक चलने वाले दूसरे चरण में आसियान।देशों के अतिरिक्त पूर्वी एशिया के अन्य।देशों, जैसे जापान व दक्षिण कोरिया के साथ सम्बन्धो को आगे यहाने का प्रयास किया गया इस चरण में आर्थिक सम्वन्धों।के साथ साथ सामरिक सम्बन्धों पर भी विशेष वल दिया। गया है.

1991 में पूरब की ओर देखो की नीति को अपनाने के बाद 1992 में ही भारत को आसियान में आंशिक वार्ताकार के रूम में शामिल किया गया 1996 में भारत कोहआसियान में पूर्ण वार्ताकार राष्ट्र के रूप मेंहभागीदारी का अवसर प्राप्त हो गया, इसी वर्ष सम्बन्धों को सुदृढ़ वनाने के लिए स

आसियान-भारत संयुक्त सहयोग परिषद् की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य दोनों के मध्य सहयोग के क्षेत्रों व उपायों का पता लगाना था. उसी वर्ष दोनों पक्षों के व्यापारिक समूहों के मध्य सहयोग के लिए आसियान भारत व्यवसाय परिषद् की स्थापना की गई दोनों ने पारस्परिक सहयोग के तीन क्षेत्रों- विकास, विज्ञान एवं तकनीकी तथा व्यापार।एवं निवेश में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तीन अलग-अलग कार्यदलों का गठन किया इस समय भारत के प्रति आसियान के आकर्षण का प्रमुख कारण यह था कि एशियान के देश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे थे तथा उन्हें भारत नें उपलब्ध बड़ा याजार, तकनीकी  मता तथा भारत की निरन्तर आर्थिक प्रगति आपसी सहयोग के लिए प्रेरित कर रही थी.

आसियान और भारत

आसियान और भारत के मध्य सहयोग के दूसरे चरण की शुरूआत तब हुई, जब 2001 में दोनों ने आपसी सहयोग को उच्च स्तर पर गति प्रदान करने के लिए नियमित वार्षिक शिखर सम्मेलन के आयोजन का निर्णय लिया. इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2002 में कम्बोडिया के शहर नामपेन्ह में प्रथम भारत आसियान शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, तब से लेकर अब तक प्रतिवर्ष भारत आसियान शिखर सम्मेलन नियमित रूप से सम्पन्न हो रहे हैं. आठवाँ भारत-आसियान शिखर सम्मेलन 31 अक्टूबर, 2010 को वियतनाम की. राजधानी हनोई में सम्पन्न हुआ था. इस सम्मेलन में भारत आसियान मुक्त व्यापार समझौते को लागू करने की घोषणा की गई. इस समझौते से भारत तथा आसियान के मध्य व्यापार में बढ़ोत्तरी हुई है.

इसी वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री ने जापान और मलेशिया की यात्रा भी की थी. जापान के साथ जहाँ व्यापार आर्थिक साझेदारी सहयोग की वार्ताएं पूरी की गई, वहीं मलेशिया के साथ इसी तरह के समझौते में जनवरी 201। में समझौते पर हस्ताक्षर करने की सहमति बनी. 2011 में मलेशिया के साथ यह समझौता प्रभाव में आ गया है. भारत को विश्वास है कि शीघ्र ही थाइलैण्ड और इण्डोनेशिया के साथ भी इस तरह के द्विपक्षीय व्यापार समझौते पूरे कर लिए जाएंगे. उल्लेखनीय है कि भारत ने दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ पहले ही इस तरह के व्यापक व्यापार साझेदारी समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं. भारतीय प्रधानमंत्री ने इस शिखर सम्मेलन के दौरान यह घोषणा की कि कम्बोडिया, लाओस, वियतनाम व फिलीपीन्स के नागरिकों को भारत पहुँचने के बाद भी वीजा की सुविधा उपलब्ध होगी. ये सम्मेलन एशियान के वार्षिक शिखर सम्मेलन के साथ ही उसी शहर में सम्पादित होते हैं, 2011 में भारत एशियान शिखर सम्मेलन इण्डोनेशिया की राजधानी जकात्ता में सम्पन्न होगा. भारत-आसियान शिखर।सम्मेलन की 20वीं वर्षगाँठ के अवसर पर पहली बार 2012 में यह सम्मेलन भारत में सम्पन्न हुआ.

इस सम्मेलन में दोनों पक्षों द्वारा आगे आने वाले दशक , के लिए रणनीतिक साझेदारी से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया. 12 नवम्बर, 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आसियान सम्मेलन में भाग लेने के लिए म्यांमार की यात्रा की तथा अपने सम्बोधन में एक्ट ईस्ट नीति के कतिपय पक्षों पर प्रकाश डाला. एक्ट ईस्ट तथा चीन-वर्तमान में चीन भी आसियान व्यवस्था का एक सक्रिय सदस्य है. चीन आसियान प्लस थ्री व्यवस्था में शामिल है इसमें चीन के साथ दो अन्य देश जापान तथा दक्षिण कोरिया हैं. ये तीनों देश यद्यपि आसियान के सदस्य नहीं हैं,

लेकिन उसकी गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेते हैं. चीन पूर्वी एशिया को अपने प्राकृतिक प्रभाव का क्षेत्र मानता है तथा वह इस क्षेत्र में भारत के बढते प्रभाव को पसन्द नहीं करता है, लेकिन इसके विपरीत इस क्षेत्र के देश चीन के प्रभाव को सन्तुलित करने के लिए भारत की बढ़ी भूमिका का स्वागत करते हैं. दक्षिण चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर में इन देशों के चीन के साथ सामुद्रिक सीमा सम्बन्धी विवाद भी हैं है। अमरीका भी इस क्षेत्र में अपने सामरिक के सम्बन्धों को मजबूत करने के साथ भारत की सामरिक भूमिका को प्रोत्साहित कर रहा है. अतः स्वाभाविक है कि चीन भारत की एक्ट ईस्ट नीति को शंका की नजर से देख रहा है. इस आशंका का एक प्रमुख कारण यह है कि इस क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा का वर कोई क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचा विकसित नहीं हो पाया है. यद्यपि आसियान क्षेत्रीय मंच द्वारा ऐसा ढाँचा विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन उसमें सफलता मिलना सम्भव नहीं दिखाई देती क्षेत्रीय’ सुरक्षा इस खर क्षेत्र की प्रमुख शक्तियों चीन तथा अमरीका दित के सामरिक समीकरणों पर निर्भर करती है. एक्ट ईस्ट नीति के प्रति चीन का दृष्टिकोण कार्ता कुछ भी हो, लेकिन इस नीति से भारत तथा पूर्वी एशिया के देशों के मध्य सामरिक तथा आर्थिक सम्बन्धों में सक्रियता व मजबूती का समावेश अवश्य होगा ।

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