हम्बनटोटा बंदरगाह

हम्बनटोटा बंदरगाह

हाल ही में श्रीलंका की सरकार ने ‘हम्बनटोटा बंदरगाह’ में अपनी 70प्रतिशत हिस्सेदारी 1.12 अरब डॉलर में चीन सरकार द्वारा संचालित चाइना मरचेंट पोर्ट होल्डिंग कंपनी’ को 99 वर्षों की लीज़ पर दिये जाने के समझौते को मंजूरी प्रदान की है। हम्बनटोटा समझौते के बारे में अभी तक जितनी जानकारी सामने आई है उससे यह लगता है कि श्रीलंका ने दिसंबर 2016 में भारत द्वारा उठाई गई सुरक्षा संबंधी चिंताओं को संशोधित समझौते में तरजीह दी है। संशोधित समझौते के अनुसार ‘हम्बनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट सर्विस’ नामक एक नई कंपनी बनाई जाएगी। इस कंपनी में नियंत्रक अधिकार श्रीलंका सरकार के पास रहेंगे और यही कंपनी बंदरगाह की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाएगी, जबकि चीनी कंपनी द्वारा केवल बंदरगाह का संचालन किया जाएगा। इस प्रकार बंदरगाह की चीन द्वारा सैन्य उपयोग की संभाव्यता पर रोक लगाना संभव होगा।

हम्बनटोटा का महत्त्व

‘हम्बनटोटा पोर्ट’ श्रीलंका के दक्षिण में अवस्थित होने के कारण हिंद महासागर के सर्वाधिक सामरिक महत्त्व का बंदरगाह बन गया है। गहरे समुद्री बंदरगाह और हवाई अड्डों की विशिष्टता के कारण यह और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है। यह अफ्रीका, मध्य एशिया और पूर्वीं एशिया के हिंद महासागरीय व्यापार मार्ग के लगभग मध्य में स्थित है।

लीज़ की प्रक्रिया : वैसे तो ‘हम्बनटोटा पोर्ट’ का परिचालन वर्ष 2011 में प्रारंभ कर दिया गया था, किंतु बंदरगाह प्रबंधन में अत्यधिक घाटे के कारण चीन से प्राप्त कर्ज़ को चुका पाना मुश्किल हो गया था।

. इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए जुलाई 2017 में श्रीलंका सरकार ने हम्बनटोटा के 70% हिस्से को चीन को बेच दिया। . 99 वर्ष के इस समझौते के लिये श्रीलंका ने 300 मिलियन डॉलर का आरंभिक भुगतान स्वीकार किया है।

श्रीलंका का पक्ष
इस समझौते के बाद श्रीलंका ने अपने भारी कर्ज़ (8 अरब डॉलर) को चुकाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। श्रीलंका का मत है कि हम्बनटोटा के हिंद महासागर क्षेत्र में प्रमुख बंदरगाह बनने से इस क्षेत्र में आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्र में विकास के साथ-साथ पर्यटन का विकास होगा। वैसे, चीनी कंपनियों को भारी कर छूट देने के कारण एवं 300 मिलियन डॉलर की आरंभिक राशि प्राप्त करने के कारण सरकार की आलोचना हुई है। वहीं विपक्ष द्वारा सरकार पर “पट को बेचने’ का आरोप भी लगाया गया है।

चीन के हित
चीन के लिये हम्बनटोटा से गुजरने बाला हिंदू महासागरीय व्यापार मार्ग रणनीतिक और वाणिज्यिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

* हिंद महासागरीय व्यापार मार्ग चीन की ऊर्जा आपूर्ति एवं विनिमित वस्तुओं के निर्यात के लिये महत्त्वपूर्ण है। हम्बनटोटा इस व्यापारिक मार्ग
म के लगभग मध्य में स्थित है। इसके पश्चिम में स्वेज नहर और पूर्व में मलक्का जलसंधि है। इस मार्ग से होने वाली जहाज़ों की आवाजाही पर चीन हम्बनटोटा से निगरानी कर सकता है।
* इसके अतिरिक्त हम्बनटोटा, चीनी राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित मैरीटाइम सिल्क रूट के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।

श्रीलंका की चिंताएँ

हम्बनटोटा बंदरगाह श्रीलंका के दक्षिणी छोर पर स्थित है। इसे चीन के साथ हुए समझौते के तहत विकसित किया जा रहा है। यह अफ्रीका, मध्य एशिया और पूर्वी एशिया के हिंद महासागरीय व्यापार मार्ग के लगभग मध्य में स्थित है। इस बंदरगाह से हिंद महासागरीय व्यापार मार्ग की दूरी लगभग 19 किलोमीटर है। रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण अवस्थति रखने वाले हम्बनटोटा बंदरगाह को श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह का भार कम करने और विदेशी मुद्रा अर्जित करने के दृष्टिकोण से विकसित किया जा रहा है।

श्रीलंका सरकार इस बंदरगाह को माल-पारगमन हब व अनुषंगी क्षेत्रों के विकास के इंजन के तौर पर विकसित करने का प्रयास कर रही है। परंतु वर्तमान में यहाँ जहाज़ों की आवाजाही नगण्य है जिससे बंदरगाह का संचालन घाटा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में श्रीलंका सरकार बंदरगाह के विकास के लिये चीन से लिये गए लगभग 8 अरब डॉलर के ऋण को चुकाने में असमर्थ है। इसके अलावा, हम्बनटोटा के निवासी बंदरगाह के लिये अधिगृहीत की गई ज़मीन के उचित मुआवज़े की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।

भारत की चिंताएँ

भारत हिंद महासागर परिक्षेत्र को अपना स्वाभाविक प्रभाव क्षेत्र मानता है। इस क्षेत्र की सामरिक व रणनीतिक स्थििति भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चीन द्वारा हम्बनटोटा में बंदरगाह का निर्माण व विकास भारत के लिये गंभीर सामरिक खतरे उत्पन्न करता है। वर्ष 2014 में हम्बनटोटा में चीनी पनडुब्बी को डॉकिंग की अनुमति दिये जाने का भारत ने कड़ा विरोध किया था। भारत के ही दबाव के चलते इस वर्ष श्रीलंका ने चीनी पनड़ुब्बी के हम्बनटोटा में रुकने के आग्रह को ठुकरा दिया था। पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के निर्माण व विकास, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विकास एवं अफ्रीका के जिबूती में चीन के पहले सैन्य अड्डे के निर्माण आदि गतिविधियों से चीन लगातार हिंद महासागर में अपनी सामरिक उपस्थिति बढ़ाता जा रहा है।
श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह के संबंध में हुआ ताज़ा समझौता चीन द्वारा अपनाई जा रही ‘डेब्ट-ट्रैप डिप्लोमेंसी’ (Debt-Trap Diplomacy) का नमूना पेश करता है, जिसके तहत चीन द्वारा हिंद महासागर की परिधि पर स्थिति दंशों को अवसरचना विकास के नाम पर ऋण-जाल में फैसाकर उन देशों के रणनीतिक व सामरिक महत्त्व के क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की जाती है।

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