लाल हरदयाल (1884-1939),लोकमान्य तिलक (1856-1920),रोमेश चंद्र दत्त (1848-1909),लाला लाजपत राय (1865-1928)

लाल हरदयाल (1884-1939)

लाला हरदयाल का जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली में हुआ था तथा वे उन कुछ प्रसिद्ध राष्ट्रवादियों में से एक थे, जिन्होंने विदेश में रहकर भारतीय स्वाधीनता संग्राम के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने का प्रयास किया।।उन्होंने आक्सफोर्ड के सेंट्रजान कॉलेज के अध्ययन के लिए स्कालरशिप भी प्राप्त की थी। उन्होंने डाक्टरेट की डिग्री लंदन विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी।

भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा इंग्लैंड में किये जा रहे संघर्षों से।प्रेरित होकर लाला हरदयाल भी भारत को स्वतंत्र कराने के लिए उस संघर्ष में कुद पड़े। लाला लाजपत ‘राय के संपर्क में आने तथा।इन विश्वास में आने की स्वाधीनता केवल सकारात्मक विरोध के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। सेन फ्रांसिस्को में 1913 में स्थापित गदर पार्टी के वह पहले अध्यक्ष नियुक्त किये गये अमेरिका में उनके कार्यकलापों के विरोध में ब्रिटिश सरकार के आग्रह पर अमेरिकी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया वहां से जमानत पर रिहा होने के बाद डॉ. हरदयाल ने जेनेवा से अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को रखा। जर्मनी में उनके 5 वर्ष के निवास के दौरान भारतीय स्वाधीनता समिति’ की स्थापना की गई तथा एक ‘ओरियन्टल ब्यूरो’ की भी स्थापना की गई, ताकि स्वाधीनता संबंधी समस्याओं का अनुवाद ठीक से हो सके। डॉ. लाला हरदयाल ने अपना कुछ समय स्टॉकहोम तथा स्वीडन में भी बिताया, ताकि भारतीयों की होमरूल के संबंध में एक केन्द्रीय भूमिका को निभाया जा सकें। उन्होंने अमेरिका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर रहते हुए अपने जीवन के 6 वर्ष वहां बिताए। उनका देहांत 4 मार्च 1939 को पेन्सलवानिया में।हुआ। डॉ. लाला हरदयाल का विश्वास था कि केवल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा ही नवयुवकों के मन मस्तिष्क को प्रज्वलित किया जा सकता है। उनके अनुसार भारतीय जनसमूह के पिछड़ने का कारण है। संकीर्णतावाद व जातिवाद उन्होंने बहुत सी पुस्तकों की भी रचना की उनमें से मुख्य है- वेल्थ ऑफ नेशन तथा हिन्ट्स फॉर सेल्फ कल्चर।

 

रोमेश चंद्र दत्त (1848-1909):

ये एक प्रसिद्ध राष्ट्रवादी व अर्थशास्त्री थे, वे लंबे समय तक प्रशासनिक सेवा में सेवारत रहे। नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद वह पूर्णरूपेण राष्ट्रवादी आंदोलनों में सक्रिय रूप से योगदान करने लगे। 1899 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के होने वाले अधिवेशन की अध्यक्षता की दत्त ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में व्यावहारिक रूप देने पर बल दिया, विशेष रूप से भूखमरी व गरीबी से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है। लेखक के रूप में उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं- “द इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया”, इंडिया इन द विक्टोरियन एज’ तथा हिस्ट्री ऑफ सिविलाईजेशन इन एनसियेन्ट इंडिया।

 

लाला लाजपत राय (1865-1928):

एक प्रसिद्ध राष्ट्रवादी तथा समर्पित समाज सुधारक तथा जिनकी उपलब्धियों के फलस्वरूप।पूरा देश उन्हें शेरे पंजाब के नाम से जानता है। पंजाब केसरी लाला।लाजपत राय का जन्म 1865 में लुधियाना में हुआ उन्होंने अपना जीवन वकील के रूप में शुरू किया। लाहौर में रहते हुए उन्होंने अपना राजनैतिक, जीवन शुरू किया शुरू- शुरू में वे महात्मा हंसराज के संपर्क में आए और वहीं उनके प्रेरक पुरूष व गुरू बन गये। एक प्रसिद्ध आर्यसमाजी होते हुए लाला लाजपत राय ने लाहौर में डी.ए.वी. कॉलेज की स्थापना की। उनके क्रांतिकारी विचारों ने बालगंगाधर तिलक तथा विपिनचंद्र पाल के साथ मिलकर एक प्रसिद्ध ग्रुप बाल, पाल, लाल की स्थापना की।

सितंबर 1920 में कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में यह सर्वसम्मति से अध्यक्ष नियुक्त किये गये गांधी का असहयोग आंदोलन वास्तव में लाला लाजपत राय की पहली पसंद नहीं थी। उन्होंने मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास के साथ मिलकर स्वराज पा्टी की स्थापना की। 1923 व 1926 में उन्होंने केनद्रीय विधान परिषद में एक स्वराजवादी के रूप में प्रवेश किया था। साइमन कमीशन के विरोधस्वरूप लाहौर में एक जुलूस का नेतृत्व करते हुए ब्रिटिश सरकार के सिपाहियों ने लाठी से उनके ऊपर प्रहार किये, जिसके फलस्वरूप वह गंभीर।रूप से घायल हो गये तथा 27 नवंबर 1928 को उनका देहांत हो गया। लाला लाजपत राय ‘द बंदे मातरम्’ पत्र के संस्थापक संपादक थे तथा साथ ही साथ ‘पंजाबी’ तथा ‘द पीपुल’ को भी संपादित करते थे। अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन के दौरान वह कई बार जेल गये।

 

लिकायत अली खान (1895-1951 ) :

लियाकत अली खान मुस्लिम लोग के एक ‘प्रसिद्ध नेता थे। 1944 में कांग्रेस व मुस्लिम लीग की बातचीत के माध्यम से एक मंच पर लाने में उन्होंने अहम।भूमिका निभायी जिसे लियाकत देसाई पैक्ट के नाम से जाना गया।।वह 1946-47 में आंतरिक केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में वित्त मंत्री के पद पर रहे। 1947 में देश विभाजन के बाद वह पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किये गये। वह अक्टूबर 1951 में रावलपिण्डी के एक सार्वजनिक सम्मेलन में एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा मार दिये गये।

 

लोकमान्य तिलक (1856-1920):

बाल बंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में 23 जुलाई 1856 को हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के अभियान में भारतीय राजनीति के सबसे जोशीले नेता थे। उनके इसी गुण के कारण उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि से विभूषित किया गया। डेक्कन कॉलेज, पुना से स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन पूना के न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना से शुरू किया। जनसमुदाय की शिक्षा के माध्यम से जागृत करने के लिए पत्रिका ‘मराठा’ का अंग्रेजी में तथा ‘केसरी का ‘मराठी’ में प्रकाशन किया। 1891 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित होने के बाद उन्होंने इसके वार्षिक अधिवेशन में ‘आर्मी एक्ट रिसोल्युशन’ की परिवर्तन करने पर बल दिया, ताकि आर्मी में भारतीयों की भर्ती करने व बंदुक रखने की मंनाही पर से प्रतिबंध हटाया जा सके। वे समाज सुधार की अपेक्षा राजनैतिक जनाधार को बढ़ावा देने में काफी सक्रियतापूर्वक भाग लेते थे। ब्रिटिश संरकार की नीति ‘फूट डालो व राज करो’ जिसके चलते हिन्दु व मुसलमान में वैमनस्यता बढ़ती गयी, इसका उन्होंने काफी जोर शोर से प्रतिरोध किया। वह सार्वजनिक सभाओं के माध्यम से भारतीयों को आधुनिकता के साथ ढालते हुए राष्ट्र के प्रति समर्पित होने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने भारतीयों की चेना को गौरवपूर्ण रूप से हालने के लिए ‘गणपति पूजा त्योहार’ की विशेष रूप से मनाने का आग्रह किया।

तिलक को 1897 में 18 महीने के लिए तथा पुनः 1908 में 6 वर्ष के लिए जेल में भेज दिया गया था इस दौरान उन्होंने पूरा ध्यान ‘भगवदगीता’ पर टीका स्वरूप अपने चिंतन तथा विचारों को लिखने में लगाया तथा विश्व चर्चित पुस्तक गीता रहस्य’ उन्होंने।मांडले जेल में रहने के दौरान लिखी। भारत की समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने ‘होगरूल लीग की स्थापना 1916 में की। उसी वर्ष उन्होंने लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस व मुस्लिम लीग की बीच समझौता कराने में प्रमुख भूमिका निरभायी। वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन के प्रवल समर्थक थे। 1919 के कांग्रेस अधिवेशन में तिलक का मूर्ण प्रयास यह रहा कि सुधार कानून के प्रस्ताव को ब्रिटिश प्रशासन द्वारा उचित उत्तरदायित्च के साथ करवाया जा सके।

बाल गंगाधर तिलक लाला लाजपत राव व विपिन चंद्र पाल के संपर्क में आने के बाद इन तीनों व्यक्तियों ने मिलकर बाल, पाल, लाल नामक सामुहिक ग्रुप बनकर संयुक्त स्तर के साथ सवाधीनता संग्राम की एक नयी दिशा दी। उनके इन संयुक्त स्वर से स्वदेशी आंदोलन राष्ट्रीय शिक्षा और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार आदि कार्यों से ब्रिटिश सरकार बेचैन हो गयी। तिलक का प्रसिद्ध नारा था स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” तिलक के ‘ स्वराज’ का यह अभिप्राय था। लोगों का यह दैवी अधिकार है कि बुरे प्रशासक को दूर भगा दिया जाए या हटा दिया जाए। स्वराज का यह भी अर्थ था कि प्रजा व शासके को एक देश, एक जाति व घर्म का होना चाहिए। आगे वे कहते हैं कि ‘स्वराज’ के अंतर्गत एक ऐसी सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था का प्रबंधन होता है, जिससे आम लोगों के कल्याण को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। स्वराज सिर्फ राजनैतिक अधिकार को ही नहीं ग्रहण किये रहता है, बल्कि इसका आध्यात्मिक व भावनात्मक महत्व भी है।

तिलक के राष्ट्रवाद के सिद्धांत में भारत के गौरवमयी अतीत के साथ-साथ पश्चिम के कला व विज्ञान को जोड़ना था। राष्ट्रवाद की गरिमा को बरकरार रखने के लिए उन्होंने राजनैतिक आंदोलन का प्रबल रूप में महत्व देते हुए कहा कि लोगों को एकता के सुत्र में बांधकर ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सभी अत्याचारपूर्ण बंधन।को तोड़ा जा सकता है तथा उनको देश से बाहर भगाया जा सकता हैं। आगे वे कहते हैं राष्ट्रवाद के इस सिद्धांत में वेदांत के आदर्शों की आध्यात्मिक शक्ति तथा पश्चिम विचारकों व विद्वानों के राष्ट्रवाद की व्याख्या को सामजस्य कर पुरे राष्ट्र को एक धरातल पर लाना है।
——-

 

You may also like...