अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय

अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय

• अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय 1 जुलाई, 2000 को आस्तित्व में आया।
• इसकी मुख्यपीठ हेग (नीदरलैंड) में है, परंतु इसकी कार्यवाही विश्व में कहीं भी हो सकती है।

  • 110 देश वर्तमान में इस न्यायाधिकरण के सदस्य हैं।
  • चीन, भारत, रूस और, संयुक्त राज्य अमेरिका इस न्यायालय के विविध कारणों से आलोचक रहे हैं और इसके सदस्य नहीं हैं।
  • यद्यपि भारत अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय के मूल सिद्धान्तों का समर्थक रहा है तथापि भारत की इस मांग को अस्वीकार कर देने के कारण कि आतंकवाद एवं परमाणु तथा रासायनिक हथियारों के प्रयोग को भी युद्ध अपराध में शामिल किया जाए, वह इसका सदस्य नहीं है।
  • इस न्यायालय में मानवता के विरूद्ध अपराधों के अन्तर्गत शामिल विषय हैं; जानबूझकर नागरिकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हमला उत्पीड़न, बलात्कार, जबरन गर्भधारण तथा नसबंदी शामिल है।
  • जनसंहार की श्रेणी में किसी राष्ट्रीय जाति अथवा धार्मिक समूह को पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से समाप्त करने को अपराध माना गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय के विधान से न जुड़े देश के व्यक्ति के विरूद्ध भी न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय में 18 न्यायधीशों की व्यवस्था की गई है। न्यायालय की कार्यवाही और इसके विधान पर पुनर्विचार करने तथा इसका संशोधन करने का भी प्रावधान है जो कि अदालत के कार्य शुरू कसे 57 वर्ष बाद हो सकेगा। ज्ञातव्य है कि बोस्निया में नरसंहार के मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पहली बार अपराध घोषित किया गया।

(UNIDO) संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन

(U. N. Industrial Development Organisation) की स्थापना वर्ष 1966 में हुई और इसने 1967 से कार्य करना प्रारंभ किया। इसका मुख्यालय आस्ट्रिया को राजधानी वियना में है। वर्तमान में यूनिडो(UNIDO) के सदस्य देशों की कुल संख्या 168 है।
 
 उद्देश्य एवं कार्य


-औद्योगिक विकास के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों के समन्वय को प्रोत्साहित करना एवं उसको समीक्षा करना,
-औद्योगिक तकनीकी के प्रशिक्षण हेतु आधार संरचना का निर्माण
 
-औद्योगिक विकास के लिए समर्थन उपलब्ध कराना तथा निवेश संवर्द्धन को बढ़ावा देना

-औद्योगिक विकास नीतियों के निर्माण, उत्पादन की नवीन पद्धतियाँ के अनुप्रयोग कार्यक्रम एवं नियोजन
-क्षेत्रीय औद्योगिक विकास व भागेदारी हेतु वैश्विक सहयोग की स्थापना करना विशेषकर विकासशील देशों में औद्योगिक वृद्धि की गति में तेजी लाने के लिए जरूरी उपायों की पहचान करना।

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