क्यों चर्चा में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी(IAEA)

क्या है अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी(IAEA)

अंतराराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) एक अंतर-सरकारी संगठन है जो परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और परमाणु हथियारों सहित किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए इसके इस्तेमाल को रोकने का प्रयास करता है। इसे 1957 में संयुक्त राष्ट्र भीतर एक स्वायत्त संगठन के रूप में बनाया गयाथा। हालांकि, यह एक स्वायत्तशासी निकाय है। यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों को रिपोर्ट करता है। इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में है। हालांकि, यह एजेंसी UNGA और UNSC को रिपोर्ट करती है, जिसके बाद ये संगठन संबंधित देश पर रोक लगाते हैं। परमाणु ऊर्जा एजेंसी पिछले तीन दशकों में 4,200 से अधिक घटनाओं का हवाला देते हुए परमाणु और रेडियोएक्टिव सामग्रियों की तस्करी के खिलाफ अधिक सावधानी बरतने का आग्रह कर चुकी है। IAEA के महानिदेशक अभी राफेल मारियानो ग्रॉसी हैं।

पाकिस्तान में क्या पहले से है चोलिस्तान

पाकिस्तान में चोलिस्तान रेगिस्तान (Cholistan Desert) लगभग 2000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के दक्षिणी भाग में स्थित है। चोलिस्तान थार रेगिस्तान (Thar Desert) का एक हिस्सा है, जो सिंध प्रांत और भारतीय राज्य राजस्थान तक भी फैला हुआ है। यह चोलिस्तान रेगिस्तान पाकिस्तान के पंजाब प्रांति का एक प्रमुख रेगिस्तानी क्षेत्र है।

भारत-पाकिस्तान के बीच भी है ऐसा समझौता-पेलिंडाबा

यह संधि1996 की अफ्रीकी परमाणु-हथियार -मुक्त क्षेत्र संधि, जिसे आमतौर पर पेलिंडाबा संधि के रूप में जाना जाता है, परमाणु सुविधाओं पर हमलों को भी प्रतिबंधित करती है। इसके अलावा,भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं पर हमले के निषेध पर समझौता भी एक-दूसरे की सुविधाओं पर हमलों को प्रतिबंधित करता है।

 

चेरनोबिल और फुकुशिमा हादसे से सबक नहीं लिया

कुछ शोधकर्ताओं का सुझाव है कि अगर रेडियोएक्टिव तत्व सीजियम-137 लीक होगा तो रिएक्टर दुर्घटनाएं ज्यादा बड़ी होंगी। जैसा कि यूक्रेन के चेरनोबिल और जापान के फुकुशिमा दुर्घटनाओं के दौरान हुआ था। उन दुर्घटनाओं के कारण यूक्रेन में 100,000 से अधिक और जापान में 160,000 से अधिक लोगों को निकालना पड़ा था। सीजियम-137 के तीव्र विकिरण के संपर्क में आने से जलन, बीमारी और मृत्यु हो सकती है। ब्रिटेन में विंडस्केल (अब सेलाफ़ील्ड) में दुनिया की पहली परमाणु ऊर्जा स्टेशन दुर्घटनाओं में से एक तब हुई, जब 1957 में दो ग्रेफाइट रिएक्टरों में से एक में आग लग गई। एजेंसी पर आरोप लगते रहे हैं कि अगर उसने सक्रियता दिखाई होती तो इन जगहों पर हादसों की गंभीरता कम होती।

हर 10 लाख क्यूरी से 2 हजार किमी का इलाका

विस्फोट केंद्र से हवा के साथ नीचे की ओर ले जाए जाने वाले धुएं और मलबे में अतिरिक्त रेडियोधर्मी कण शामिल हो जाएंगे। यह अनुमान लगाया गया है कि रिएक्टर कोर और खर्च किए गए ईथन पूल में मौजूद 100% सीजियम- 137 रेडियोएक्टिव तत्व परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर परमाणु हमले के बाद पर्यावरण में छोड़ दियाजाएगा। संयुक्त प्रभाव से लाखों क्यूरी सीजियम-137 निकलसकता है। यह अनुमान लगाया गया है कि हर 10 लाख क्यूरीनिकलने से 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र रेगिस्तान बन जाएगा। क्यूरी रेडिएशन नापने की इकाई है।

गामा विकिरण से तेजी से फैल सकता है कैंसर

सीजियम-137 छोटे क्णों के रूप में वायुमंडल में छोड़ा जाएगाजो हवा के साथ बहकर जमीन और अन्य सतहों पर जमा हो जाएंगे। जमा हुए कण तीव्र गामा विकिरण उत्सर्जित करेंगे।इससे पूरे शरीर में विकिरण की मात्रा इसके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों तक पहुंचेगी। सीजियम-137 पानी और खाद्य पदाथोंको भी दूषित करेगा, नतीजतन आंतरिक रेडियोधर्मी तत्वनिकलेंगे। इससे कैंसर फैलने की आशंका बढ़ जाएगी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

इतिहास में कई बार हो चुके हैं परमाणु ठिकाने पर हमले

पूरे इतिहास में निर्माणाधीन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर कई बार हमला किया गया है। उदाहरण के लिए, 1984-1987 की अवधिमें ईरान में निर्माणाधीन बिजली संयंत्रों पर इराक द्वारा बार-बार हवाई बमबारी की गई। स्लोवेनिया द्वारा 1991 में स्वतंत्रता की घोषणा करने के कुछ दिनों बाद यूगोस्लाव वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने स्लोवेनिया में क्रस्को परमाणु संयंत्र के ऊपर से एक खतरनाक ओवर पास बनाया, जो उस समय चालू था। इराकमें तथा कथित अनुसंधान रिएक्टरों को 1981 में इजरायल और1991 में अमेरिका ने हवाई बमबारी से नष्ट कर दिया था। बमों ने 1977 में स्पेन और 1982 में दक्षिण अफ्रीका में निर्माणाधीन रिएक्टरों को क्षतिग्रस्त कर दिया। 1982 में फ्रांस में निर्माणाधीन परमाणु संयंत्र पर एंटी- टैंक मिसाइलों ने हमला किया।

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत क्या परमाणु संयंत्र सुरक्षित हैं?

जब भी सशस्त्र संघर्ष के दौरान कोई सैन्य कार्रवाई करने कीसोची जाती है, तो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के सिद्धांत लागू होते हैं। इनमें सैन्य आवश्यकता, भेद और आनुपातिकताजैसे नियम शामिल हैं। 1949 के जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर हमलों से संबंधित कुछ खास प्रावधान हैं। अतिरिक्त प्रोटोकॉल । का अनुच्छेद 56 विशेष रूप से परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर हमलों को प्रतिबंधित करता है। इसका मतलब है कि आम तौर पर इन संयंत्रों पर हमला नहीं किया जा सकता।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के नियम क्या कहते हैं

संयुक्त राष्ट्र परमाणु ऊजा एजेंसी के नियमों के अनुसार, यदि कोई परमाणु सुविधा सैन्य अभियानों के लिए भी बिजली प्रदान करती है और उस बिजली आपूर्ति को बंद करने का यही एकमात्र तरीका है, तो उस पर हमला किया जा सकता है। लेकिन,नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है। यह निषेध अतिरिक्त प्रटोकॉल के अनुच्छेद 15 में बिना किसी आरक्षण के दोहराया गया है। यह गैर- अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों पर लागू होता है।

क्या कहती हैं एजेंसी की शर्ते

नियम की शतों के अनुसार, खतरनाक ताक़तों वाले कार्य या प्रतिष्ठान यानी बांध, डाइक और परमाणु विद्युत उत्पादन स्टैशन हमले का उद्देश्य नहीं होंगे। भले ही ये वस्तुएं सैन्य उद्देश्य के लिए ही क्यों न हों। यदि इस तरह के हमले से खतरनाक तत्वों का रिसाव हो सकता है, जिससे नागरिक आबादी को गंभीर नुकसान हो सकता हैं, तो इस पर हमला नहीं किया जा सकता है।

 

■■

You may also like...