शहरी सहकारी बैंकों के लिए आरबीआई ने आर गांधी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति का गठन किया
शहरी सहकारी बैंकों के लिए आरबीआई ने आर गांधी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति का गठन किया
30 जनवरी 2015 को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शहरी सहकरी बैंकिंग (यूसीबी) क्षेत्र के लिए व्यापार, आकार, रूपांतरण और लाइसेंस देने की शर्तों की फिर से जांच और उचित सिफारिशों हेतु आर गांधी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति का गठन किया.
आठ सदस्यी इस समिति के अध्यक्ष भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर आर गांधी होंगे. समिति अपनी पहली बैठक की तारीख से तीन महीनों के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी.
उच्चाधिकार समिति के सदस्य होंगे
•आर गांधी
•एम ए नार्मावाला
•एमवी तंकसाले
•डॉ. एमएल अभ्यंकर
•एसके बनर्जी
•डी कृष्णा
•जोसेफ राज
उच्चाधिकार प्राप्त समिति के विचारार्थ
• शहरी सरकारी बैंकों को शुरु करने के लिए दिए जाने वाले बिजनेस लाइन्स की अनुमति और व्यापार, पूंजी जरूरतों, नियामक व्यवस्था और अन्य बातों में उनके लिए बेंचमार्क की जांच.
•समिति मौजूदा नियामक रूपरेखा के तहत उन सीमित कानूनी शक्तियों और संकल्पों के विकल्पों की जांच करेगा जो बिना किसी जोखिम के एक यूसीबी किस वास्तविक आकार तक बढ़ने में सक्षम हो सकता है.
•एक यूसीबी द्वारा स्वैच्छित रूपांतरण की अनुमति देने के लिए मापदंड (कानूनी रूपरेखा) और यूसीबी का ज्वाइंट स्टॉक बैंक में अनिवार्य रूपांतरण के लिए बेंचमार्क क्या हो, पर सुझाव देना.
•इस बात की जांच कि क्या नए यूसीबी का लाइसेंस देना नए यूसीबी के लाइसेंस देने पर बनी विशेषज्ञ समिति (मालेगम समिति)की सिफारिशों के मुताबिक समय के लिहाज से उपयुक्त है और अगर ऐसा है तो मालेगम समिति की सिफारिशों का पालन करना.
•निवेशकों के बीच उचित प्रबंधन का विश्वास पैदा हुआ है, को सुनिश्चित करना.
•मालेगाम समिति के सुझावों को लागू करने के तरीकों का निर्धारण करने के लिए. वैकल्पिक रूप से एक व्यवहार्य संरचना का प्रस्ताव देना जो बहुमत वोटिंग फंड के योगदानकर्ताओं के हाथों में दे दे.
पृष्ठभूमि
समिति के गठन का फैसला 20 अक्टूबर 2014 को यूसीबी पर बनी स्थायी सलाहकार समिति ( सैक) की सिफारिशों के अनुसार किया गया है.
सैक एक सलाहकार निकाय है जो समय– समय पर आरबीआई द्वारा संचालित किया जाता है. इसके अध्यक्ष सहकारी बैंक नियमन विभाग (डीसीबीआर) के प्रभारी– महानिदेशक होते हैं और इसमें सहकारी क्षेत्र, चुने गए राज्यों के सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार और आईबीए के प्रतिनिधि इसके सदस्य होते हैं.
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संघीय सरकार ने कोल इंडिया लिमिटेड में अपनी 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची
संघीय सरकार ने 30 जनवरी 2015 को महारत्न के दर्ज़े वाले कोल इंडिया लिमिटेड में अपनी 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची.सीआईएल में सरकार की हिस्सेदारी घटकर 79.65 हो गई.
सरकार ने ऑफर फॉर सेल के द्वारा 358 रूपये प्रति अंश की फ्लोर प्राइस पर सीआईएल में अपनी 10 प्रतिशत हिस्सेदारी यानी 63.16 करोड़ अंश बेच दिये. विनिवेश की इस प्रक्रिया से सरकार को राजस्व के तौर पर 22,557.63 करोड़ रूपए की प्राप्ति हुई.
बिक्री के लिए ऑफर की गई सीआईएल के कुल अंशों की सब्सक्रिप्शन करीब 5 प्रतिशत अधिक हुई.बिक्री के लिए ऑफर की गई 63.16 करोड़ अंशों के मुकाबले कुल 67.5 करोड़ अंशों के लिए बोली लगाई गई.
केंद्रीय लोक उद्यमों के बीच यह अब तक की सबसे बड़ी विनिवेश थी और इसमें बेची गई हिस्सेदारी वर्ष 2010 में सीआईएल की इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग से जुटाई गई 15,000 करोड़ रूपये की राशि से कहीं अधिक थी.
टिप्पणी-
विनिवेश के जरिये मिली इस बड़ी राशि की प्राप्ति से सरकार अपने राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.1 प्रतिशत तक करने के अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति कर सकती है . इस लक्ष्य का निर्धारण 2014-15 के बजट में किया गया था.
सरकार ने केंद्रीय बजट 2014-15 में सरकारी स्वामित्व वाली औद्योगिक ईकाईयों के विनिवेश से 43,425 करोड़ रूपये जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया था.
वित्तीय वर्ष 2014-15 के पहले विनिवेश में सरकार नें स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की स्टॉक बेचकर 1,700 करोड़ रूपये जुटाये. इसके अधिकांश स्टॉक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और भारतीय जीवन बीमा निगम ने खरीद लिया .
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सहकारी बैंक खाता धारकों को प्रधानमंत्री जन धन योजना की सुविधा देने की घोषणा
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की सुविधा सहकारी बैंक खाता धारकों को देने की घोषणा 18 सितंबर 2014 को की गई. इसकी जानकारी ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ के मिशन निदेशक एवं वित्तीय सेवाएं विभाग के संयुक्त सचिव अनुराग जैन ने की. इसके अनुसार, सहकारी बैंक खाताधारकों को अन्य बैंक खाताधारकों की तरह रुपे कार्ड, बीमा और 5000 रुपए तक के ओवरड्राफ्ट की सुविधा मिलेगी. इस तरह के खाताधारकों को इसके लिए नया खाता खोलने की जरूरत नहीं होगी.
प्रधानमंत्री जन धन योजना से संबंधित मुख्य तथ्य
देश में व्याप्त वित्तीय असमानता को समाप्त करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ (पीएमजेडीवाई) का शुभारंभ किया. इस योजना के तहत देश के सभी परिवारों को बैंक खाते से जोड़ना है.
अन्य मुख्य तथ्य
• प्रत्येक परिवार में कम से कम एक बैंक खाते के साथ उन्हें बैंकिंग तंत्र से से जोड़ना.
• प्रत्येक खाते के साथ खाताधारक का एक लाख रुपये का दुर्घटना बीमा एवं ‘रुपे’ डेबिट कार्ड की सुविधा.
• 26 जनवरी 2015 से पूर्व बैंक खाता खुलवाने वालों को एक लाख रुपये के दुर्घटना बीमा के साथ ही 30000 रुपये का जीवन बीमा मुफ्त सुविधा.
• छः महीने तक खाता संचालन के बाद खाताधारक को 5000 रुपये के ओवरड्राफ्ट की सुविधा.
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सीबीडीटी ने पूर्वव्यापी कर संशोधन की समीक्षा के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की
सीबीडीटी ने 28 अगस्त 2014 को पूर्वव्यापी कर संशोधन की समीक्षा के लिए चार सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया.
इस समिति की अध्यक्षता सीबीडीटी की इकाई विदेशी कर एवं कर अनुसंधान-1 के संयुक्त सचिव करेंगे. इसके अन्य सदस्य संयुक्त सचिव (कर योजना एवं विधान-1), आई-टी अपील के आयुक्त एवं निदेशक (विदेशी कर एवं कर शोध-1) होंगे. निदेशक (विदेशी कर एवं कर शोध-1) इस समिति के सचिव होंगे.
इस समिति का गठन वित्त मंत्री अरूण जेटली की 10 जुलाई 2014 के बजट भाषण में की गई घोषणा के बाद किया गया.
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सीसीईए ने एचडीएफसी बैंक में 74 प्रतिशत तक विदेशी निवेश के प्रस्ताव को मंजूरी दी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने एचडीएफसी बैंक लिमिटेड के 74 प्रतिशत तक विदेशी निवेश के प्रस्ताव को 28 जनवरी 2015 को मंजूरी दी.
विदित हो कि एचडीएफसी बैंक ने अपने प्रस्ताव में इस बात का जिक्र किया था कि इस बैंक में कुल चुकता पूंजी (पेड अप कैपिटल) के 74 प्रतिशत तक स्वीकृत विदेशी निवेश को बरकरार रखने की इजाजत दी जाए. एचडीएफसी ने अपने प्रस्ताव में इस बात का भी उल्लेख किया था कि उसे एनआरआई/एफआईआई/एफपीआई को कुल मिलाकर 10000 करोड़ रुपये के इक्विटी शेयर जारी करने की अनुमति दी जाए, बशर्ते कि इस बैंक में कुल विदेशी अंशभागिता निर्गम (इश्यू) उपरांत चुकता पूंजी के 74 प्रतिशत के दायरे में ही रहे. इस मंजूरी से देश में तकरीबन 10000 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश आने की संभावना है
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सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को आरबीआई और सेबी में करोड़ों रूपये के चिट-फंड घोटाले की जांच के निर्देश दिए
13 फरवरी 2015 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की करोड़ों रुपयों के चिट -फंड घोटाले में भूमिका की जांच करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने सीबीआई को तंत्र को प्रभावित करने में उनकी भूमिका जांचने का निर्देश दिया है.
जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने आदेश में कहा है कि ये नियामक निकाय कई राज्यों में फैले करोड़ों रूपयों के चिट-फंड घोटाले पर आंख मूंदे नहीं बैठ सकतीं. खंडपीठ ने कहा कि इसकी जांच होनी चाहिए और ऐसा कुछ भी नहीं है जो जांच के दायरे से बाहर है.
खंडपीठ ने अपने आदेश में 9 मई 2014 के अपने आदेश का हवाला दिया जिसमें उसने जांच एजेंसियों को पश्चिम बंगाल, ओडीशा और असम में कई नकली ( पोंजी) योजनाओं के जरिए 10000 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की गई थी.
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