मध्य प्रदेश के धाबा से 74000 वर्ष पुराने मानव का अवशेष
मध्य प्रदेश के धाबा से 74000 वर्ष पुराने मानव का अवशेष
मध्य प्रदेश में सोन नदी के तट पर धाबा से नये पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त हुये हैं जो जिससे ज्ञात होता है कि दक्षिण एशिया की महत्वपूर्ण आबादी आज से 74000 वर्ष पहले के इंडोनेशियाई टोबा ज्वालामुखी विस्फोट के विध्वंस से बचने में सफल रही थी। नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित इस शोध आलेख ने उस पूर्व अवधारणा को समाप्त कर दिया है जिसमें माना जाता रहा है। कि माउंट टोबा ज्वालामुखी से अधिकांश लोगों की मौत हो गई थी। इस अध्ययन में आस्ट्रेलिया, यूएसए, यूके, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ता शामिल रहे हैं। धाबा से पत्थरों के जो उपकरण प्राप्त हुये हैं, वे इस बात के संकेत देते हैं कि इस स्थल पर विगत 80,000 वर्षों से मानव रहते रहे हैं जो पूर्व के अनुमान से काफी पहले का समय है। पत्थरों के जो औजार प्राप्त हुये हैं वे अफ्रीका एवं अरब के मध्य पाषाणकालीन औजारों जैसे हैं जो इस बात का प्रमाण है कि पत्थर के इन औजारों का निर्माण होमो सैपिएंस ने किया था ।
माउंट टोबा विस्फोट
विगत 20 लाख वर्षों में माउंट टोबा ज्वालामुखी विस्फोट को सर्वाधिक विनाशकारी माना जाता है। इंडोनेशिया के सुमात्रा में यह आज से 74000 वर्ष पहले विस्फोट हुआ था यह 1981 में इटली के माउंट संत हेलेंस की तुलना में 1000 गुणा अधिक सामग्रियां छोड़ा था। ऐसा अनुमान है कि इस विस्फोट की वजह से पृथ्वी के कई हिस्सों में एक दशक तक शीतकालीन मौसम बना रहा, जिसे वोल्कैनो विंटर भी कहा जाता है। इसके प्रभाव से पृथ्वी पर अधिकांश मानव आबादी नष्ट हो गई। इसके पीछे तर्क यह है कि वोल्कैनिक विंटर की वजह से मानव के ‘जीन पूल’ को तोड़कर रख दिया और केवल अफ्रीका में रह रहे कुछ मानव इससे बचने में सफल रहे। यही मानव बाद में अफ्रीका से अन्य महादेशों में प्रस्थान किये। परंतु नया अध्ययन इस अवधारणा से सहमत नहीं दिखता। इसके मुताबिक मध्य भारत में माउंट टोबा विस्फोट से पहले भी मानव रह रहे थे और इसके पश्चात भी मानव की निरंतरता बनी रही।