यूरोपीय कंपनियों का आगमन

यूरोपीय कंपनियों का आगमन

प्रिंस हेनरी ‘द नेवीगेटर’: यह पुर्तगाल राजकुमार था जिसके सतत् प्रयासों से भौगोलिक खोजों का कार्य आसान हुआ तथा पुर्तगाल के नाविक बार्थोलोमियोडियाज ने 1487 ई. में उत्तमाशा अंतरीप की खोज की। 1498 में पुर्तगाली वास्कोडिगामा ने उत्तमाशा अंतरीप का चक्कर लगाकर भारत तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की।

कोलम्बस:


यह स्पेन का निवासी था जिसने 1494 में अमेरिका की खोज की।

जमोरिनः


यह कालीकट का हिन्दू राज्य था जिसकी उपाधि जमोरिन थी। इसने 1498 में वास्कोडिगामा के कालीकट आगमन पर उसका स्वागत किया एवं उसे मसालें इत्यादि ले जाने की इजाजत दी

फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505-09):


यह भारत का प्रथम पुर्तगाली गवर्नर था। इसका मुख्य उद्देश्य था भारत में पुर्तगाली साम्राज्य की स्थापना करना तथा हिन्द महासागर के व्यापार पर पूर्ण अधिकार कायम करना उसने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शान्त जल की नीति (Blue water policy)

अफ्फांसो डी अल्बुकर्क (1509-1515):


यह भारत में पुर्तगीज सेना का गवर्नर था। इसे भारत में पुत्तगीज शक्ति का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। इसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया। इसने गोवा, मलक्का तथा हरमूज पर विजय प्राप्त की जो कि सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थे। इसने भारत में स्थायी पुर्तगीज बस्ती बनाने की कोशिश की तथा पुर्तगीज वासियों को भारतीय महिलाओं से विवाह के लिए प्रेरित किया।

नीनो डी कुन्हा (1529-1538):


यह भारत में पुर्तगाली गवर्नरों में प्रमुख था इसने गोवा को भारत में पुर्तगाली राज्य की राजधानी बनाई इसने मद्रास के निकट सेन्थोम, बंगाल में हुगली तथा इसके अलावा समुद्र तट की ओर बेसीन तथा दीव पर अधिकार कर पुर्तगाली शक्ति का विस्तार किया। गुजरात के मुस्लिम शासक बहादुरशाह के साथ युद्ध करते हुए यह मारा गया।

एस्तादो दा इंडिया:


भारत में पुर्तगाली सामुद्रिक साम्राज्य का नाम एस्तादो द इंडिया दिया गया। इसकी स्वायत्तता का मुख्य उद्देश्य था हिन्द महासागर के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करना तथा इससे होकर जाने वाले अन्य देश के जहाजों पर कर उगाहना। इसके लिए पुर्तगाली शक्ति ने कार्टेज आर्मडा व्यवस्था कायम की थी। कार्टेज का अर्थ था परमिट जिसके बिना कोई भी अरबी अथवा भारतीय जहाज अरब सागर में प्रवेश नहीं कर सकता था। कार्टेज के बदले शुल्क देना पड़ता था। चूँकि पुर्तगाली नौसेना शक्तिशाली थी अत: एशिया के शासक इस व्यवस्था को मानने के लिए मजबूर थे।

काफिला व्यवस्थाः


यह पुर्तगालियों द्वारा हिन्दू महासागर के व्यापार पर नियंत्रण स्थापित करने का एक उपाय था। काफिला के अंतर्गत स्थानीय व्यापारियों के जहाज का काफिला होता था जिसकी रक्षा पर्तगाली बेड़ा करता था ताकि डाकुओं से काफिला की रक्षा हो सके साथ ही कोई अन्य जहाज काफिला व्यवस्था के बाहर रहकर स्वतंत्र रूप से व्यापार नहीं कर सके।

ब्लू वाटर पॉलिसी:

पुर्तगाली गवर्नर अल्मीडा द्वारा अपनाई गयी नीति, शांत जल की नीति कहलाई जिसके तहत उसका उद्देश्य शांतिपूर्वक समुद्री व्यापार संचालित करना था।

डच का भारत आगमन यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैंड:

पुर्तगालियों के बाद डच भारत आए और पहला डच अभियान कान्नेलियस हाउटमैन के नेतृत्व में हुआ। बाद में 1545 से 1601 के बीच कई ऐसे अभियान हुए। 1602 में विभिन्न डच कंपनियों को मिलाकर यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ नीदरलैंड के नाम से एक विशाल व्यापारिक संस्थान की स्थापना की गई। प्रारंभ में डच मूल रूप से काली मिर्च तथा अन्य मसालों के व्यापार में रुचि रखते थे। ये मसाले मूलत: इंडोनेशिया में मिलते थे इसलिए डच कंपनी का वह प्रमुख केंद्र बन गया डचों ने 1605 में मसूलीपट्टनम में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना की।

गुस्ताव फोर्ट:


1613 में चिनसूरा में डचों ने अपनी फैक्ट्री स्थापित की। चिनसुरा के डच किले को गुस्ताव फोर्ट का नाम दिया गया। सहकारिता अर्थात कार्टेलः भारत में डच व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता अर्थात् कार्टेल पर आधारित थी। डच कंपनी साझेदारों को अत्यधिक लाभ देती थी। भारत से भारतीय वस्त्र को निर्यात की वस्तु बनाने का श्रेय डचों को ही दिया जाता है।

बेदारा का युद्ध (1759):


यह युद्ध भारत में डच एवं अंग्रेजी सेना के बीच हुआ था जिसमें डचों की हार हुई तथा भारत में उनकी शक्ति समाप्त हो गई ।

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