बद्रीनाथ : यहां हर तरफ बिखरी है प्राकृतिक छटा

बद्रीनाथ : यहां हर तरफ बिखरी है प्राकृतिक छटा

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित 3 बदीनाथ केवल धार्मिक महत्व का स्थल ही नहीं है। यहां प्रकृति भी अपनी भरपूर छटा बिखेरती है। करीब 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ जाने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून के मध्य ही माना जाता है।

वैसे तो भारत में ऐसे कई गांव हैं, जिन्हें अंतिम गांव कहा जाता है। ऐसा ही अंतिम गांव माणा गांव भी कहलाता है। बद्रीनाथ से केवल पांच किलोमीटर दूर होने की बजह से यहां अच्छी-खासी चहल-पहल बनी रहती है। खासकर गर्मी के दिनों में यह शानदार पर्यटन स्थल बन जाता है। अगर आप लंबी यात्राओंषऔर ट्रैकिंग के शौकीन हैं तो माणा गांव आपकोषनिराश नहीं करेगा। यहाँ से कई बेहद रोमांचक ट्रैक्स प्रारंभ होते हैं।

करीब 15,100 फीट की ऊंचाई पर बनी सतोपंथ ताल का रास्ता यहीं से निकलता है। यह ताल चौखंबा, नीलकंठ, स्वगरोहिणी और बालाकुन जैसे पर्वतों से घिरी है। यह त्रिभुज के आकार में बनी हुई है। मान्यता है कि इसके तीनों कोनों पर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव ने तपस्या की थी। इसलिए यहां पर धार्मिक आस्था रखने वाले स्थानीय लोग भी काफी आते हैं।सतोपंथ से आगे स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर है।

वासुधारा झरना

इस झरने तक पहुंचने के लिए आपको माणा गांव से पांच किलोमीटर का पैदल सफर करना होगा।वासू् से गुजरते हुए आप नीलकंठ और सतोपंथ से निकलने वाला स्वरगरोहिणी ग्लेशियरवभी इस यात्रा में आपको नजर आता है। जब आप झरने के पास पहंचते हैं तो चार सौ फीट की ऊंचाई से गिरने वाला यह झरना इस अनुभव को अविस्मरणीय बना देता है। झरने से दूर -दूर तक आने वाली बौछारें यात्रा की सारी थकानव मिटा देती हैं।

फूलों की घाटी

बद्रीनाथ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वेली ऑफ फ्लॉवर यानी फूलों की घाटी। वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा प्राप्त यह घाटी जून माह में खुलती है और सितंबर तक यहां फूलों की बहार देखी जा सकती है। यहां कई प्रकार की दुर्लभ औषधियां भी होती हैं और मान्यता है कि लक्ष्मण के घायल होने पर हनुमानजी यहीं से उनके लिए संजीवनी बूटी लेकर गए थे।

भीम पुल और व्यास-गणेश गुफा

माणा गांव के छोर पर बने भीम पूल को देखा जा सकता है। कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में जब पांडव महाप्रस्थान के लिए निकले तो इसी रास्ते से होकर गुजरे थे। भीम पुल से आपको पहाड़ों से निकलकर पूरे उफान पर छलछलाती सरस्वती नदी के नजारे देखने को मिलते हैं जो बाद में अलकनंदा नदी से मिल जाती है। यहीं आपको दो गुफाएं भी देखने को मिलती हैं। इनमें से एक है गणेश गुफा। मान्यता है कि यही वह जगह थी, जहां गणेश जी ने व्यास जी से सुनकर महामभारत लिखी थी। यहीं पर एक और गुफा है, जिसे व्यास गुफा कहते हैं। कहा जाता है कि व्यास जी ने यहीं चारों वेदों की रचना की थी।

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