भारत-चीन सीमा विवाद का क्या करण है ,आपसी झड़प में लाठी- डंडो और पत्थरों का इस्तेमाल

भारतचीन सीमा विवाद का क्या करण है , आपसी झड़प में लाठीडंडो और पत्थरों का इस्तेमाल

पूर्वी लद्दाख में हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। भारत और चीन सीमा पर करीब 45 साल बाद सैन्य कर्मियों की जान गई है। गोली नहीं चली। लेकिन सैनिकों का खून बहा। चीनी और भारतीय सैनिकों ने आपसी झड़प में लाठी- डंडो और पत्थरों का इस्तेमाल किया। परमाणु हथियारों की ताकत से लैस दोनों देशों के जवानों ने 14,000 फीट की ऊंचाई पर लाठी-डंडों और।पत्थरों से लड़ाई लड़ी।

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विवाद का कारण-255 किमी लंबी सड़क

1962 का युद्ध गलवान घाटी से ही शुरू हुआ था। इससे सटे अक्साई चिन इलाके पर चीन का कब्जा है। भारतीय सैनिक गलवान नदी में नाव से गश्त करते हैं। चीन की बौखलाहट का कारण 255 किमी की सड़क है, जो भारतीय सैनिकों की पूर्वी लद्दख में आवाजाही सुगम बनाती है।

सीमा के अंतिम गांव श्योक से दौलत बेग ओल्डी तक की सड़क पर 15 साल।पहले काम शुरू हुआ था और अब यह
पूरी होने के करीब है। इसके छोटे से टुकड़े था, इस पर अमल के दौरान हिंसा हुई। पर गलवान में चल रहे काम पर चीन को।आपत्ति है। इस सड़क के 200 किलोमीटर के हिस्से पर सरफेसिंग भी हो चुकी है। चीन की आपत्तियों के बावजूद भारत ने सड़क का काम तेज किया है। विवाद हल करने के लिए दोनों देशों के अधिकारियों के बीच दो महीने में 10।से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं। 6 जून को।लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर हुई बातचीत में सेनाओं को पीछे हटाने का फैसला हुआ
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भारत-चीन सीमा पर करीब 45 साल बाद सैनिकों की जान गई है। वर्ष 1975 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आखिरी बार चीन के हमले में भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। तब अरुणाचल प्रदेश में चीन ने घात लगाकर हमला किया था, जिसमें चार सैनिक शहीद हुए थे। भारत ने चीन पर सीमा पार कर हमला प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था, लेकिन चीन मुकर गया था।

उसके बाद से सीमा पर झड़पें तो होती रहीं, लेकिन कोई जान नहीं गई थी। दोनों देशों ने तय किया था कि जवान हथियारबंद नहीं होंगे। चीन के साथ करीब 3500 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा 1993, 1996, 2003 और 2005 तक समझौतों में तय किए गए थे ।

वास्तविक नियंत्रण रेखा के पर बड़े से बड़े तनाव के बावजूद बात हाथापाई तक ही सीमित रहती है। भारत और चीन ने तय किया है कि दोनों के बीच चाहे कितने गहरे मतभेद हो, सीमा पर इसका असर नही पड़ना चाहिए। दोनों देशों ने अब तक इसका पूरी तरह पालनहकिया था। दोनों देशों ने अरसा पहले यह तय किया कि सीमा पर अग्रिम चौकियों पर जो भी सैनिक तैनात होंगे, उनके पास या तो हथियार नहीं होंगे। अगर रैंक के मुताबिक अफसरों के पास हथियार (बंदूक आदि) होंगे भी तो उसका मुंह जमीन की तरफ होगा। यही वजह है कि एलएसी(LAC) पर दोनों तरफ के सैनिक निहत्थे एक- दूसरे को अपने इलाके से खदेड़ते हैं और हथियारों का इस्तेमाल नहीं होता है। एलएसी पर तैनात दोनों तरफ के सैनिकों को इसका खास प्रशिक्षण दिया जाता है अब तक दोनों देशों ने लगातार बातचीत से एलएसी पर कभी स्थिति बेकाबू नही होने दी। अब तक दोनों देशों ने लगातार बातचीत से एलएसी पर कभी स्थिति बेकाबू नहीं होने दी।

1993 में नरसिंह राव के प्रधानमंत्री रहते हुए ‘मेनटेनेंस ऑफ पीस एंड ट्रैक्विलिटी’ समझौते पर दस्तखत किए गए। उसके बाद 1996 में दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ाने के उपायों पर समझौता हुआ। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार और 2005 में डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के दौर में भी चीन से समझौते हुए। इसके बाद 2013 में ‘बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन’ समझौता हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वुहान वार्ता में भी सीमा विवाद निपटारे के प्रोटोकॉल को विस्तृत रूप दिया गया। इन समझौतों के जरिए भारत और चीन के बीच यह समझ बनी थी कि जब हमारे आर्थिक और नागरिक संबंध अच्छे और परिवक्व हो जाएंगे तब जाकर सीमा के मसले सुलझाए जाएंगे । लेकिन पूर्वी लद्दाख में मई के शुरुआती दिनों में चीनी सैनिकों ने एलएसी पर आक्रामक रुख अपनाना शुरू किया था। पूर्वी लद्दख में चार जगहों पर चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की। बड़ी संख्या में चीनी सैनिक तोपखाने और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ एलएसी पर मौजूद है.

 

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