व्यापारिक कंपनियों के मध्य संघर्ष

व्यापारिक कंपनियों के मध्य संघर्ष

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48):


यह युद्ध आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध से प्रभावित था जो । 740 से प्रारंभ हो चुका था। चूँकि यूरोप में फ्रांस और ब्रिटेन एक-दूसरे के प्रबल विरोधी थे अतः भारत में भी इस विरोध का असर पड़ा जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेज और फ्रांसीसी सेना में 1746 में युद्ध शुरू हो गया। इसके अन्तर्गत सेन्ट डेविड का युद्ध हुआ जिसमें फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले विजयी रहा। इसी युद्ध में सेन्ट टोमें नाम का एक और युद्ध फ्रांसीसी सेना एवं कर्नाटक के नवाब अनवरूदीन के मध्य लड़ा गया जिसका परिणाम फ्रांसीसियों के पक्ष में रहा। आस्ट्रिया का उत्तराधिकार युद्ध एलाशपाल की संधि के द्वारा समाप्त हो गया और इसी के तहत प्रथम कर्नाटक युद्ध समाप्त हुआ और संधि की शर्तों के अनुसार फ्रांसीसियों ने मद्रास को अंग्रेजों को वापस लौटा दिया।

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754):

कर्नाटक का दूसरा युद्ध हैदराबाद तथा कर्नाटक के सिंहासनों के विवादास्पद उत्तराधिकारियों के कारण हुआ फ्रांस तथा ब्रिटिश कंपनियों ने एक-दूसरे के विरोधी गुट को समर्थन देकर इसे भड़काना शुरू किया। इसी युद्ध में अर्काट का घेरा 1751 में क्लाइव के नेतृत्व में डाला गया और क्लाइव को इसमें सफलता भी मिली। डुप्ले को इसमें व्यक्तिगत रूप से काफी असफलता मिली। उसके बदले गोडेहू को फ्रांसीसी गवर्नर बनाकर भेजा गया जिसने इंग्लैंड की कंपनी के साथ साध का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप ।757 में पांडिचेरी की साध हुई तथा दोनों पक्ष युद्ध विराम पर सहमत हो गए। कुल मिलाकर इस युद्ध में अंग्रेजों की स्थिति मजबूत रही।

कर्नाटक का तीसरा युद्ध (1758-1763):

यह युद्ध आस्ट्रिया और प्रशा में 1756 में शुरू हुए सप्तवर्षीय युद्ध का ही एक अंश था। में फ्रांस ने आस्ट्रिया को तथा इंग्लैंड ने प्रशा को समर्थन देना शुरू किया। जिसके परिणामस्वरूप भारत में फ्रांसीसी और अंग्रेजों सेना में युद्ध प्रारंभ हो गया। 1757 में फ्रांसीसी सरकार ने काउन्ट लाली को इस संघर्ष से निपटने के लिए भारत भेजा। लाली ने 1718 में फोर्ट सेंट डेविड को अपने अधिकार में ले सप्तवर्षीय युद्ध लिया। लाली ने बुसी को हैंदरायाद से बुलवाया ताकि वह अपनी स्थिति को इस युद्ध में मजबूत कर सके परन्तु 1760 में अंग्रेजों सेना ने सर आयरकुट के नेतृत्व में बांडिवाश के युद्ध में फ्रांसीसियों को शिकस्त दी।

बाँडिवश का युद्ध (1760):


यह युद्ध भारत में अंग्रेज तथा फ्रांसीसी कंपनियों के बीच लड़ा गया। अंग्रेजों का प्रतिनिधित्व आयरकूट तथा फ्रांसीसियों का प्रतिनिधित्व काउन्ट डी लाली कर रहा था। इस सुद्ध में फ्रांसीसियों की पराजय हुई तथा अंग्रेज पांडिचेरी पर कब्जा करने में सफल रहें। इसके साथ ही जिंजी तथा माही पर मी अंग्रेजो का कब्जा हो गया। बाँडिबश का युद्ध फ्रांसीसियों के लिए निर्णायक युद्ध था। फ्रांसीसियों का प्रभुत्च दक्षिण भारत में एक सीमित क्षेत्र तक रह गया और ब्रिटिश शक्ति का वर्चस्व हमेशा के लिए कायम हो गया।

बंगाल पर अंग्रेजी आधिपत्य

अलीवर्दी खां (1740-56):


मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में बंगाल सर्वाधिक संम्पन्न था 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में यहां के सुबेदारों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर नवाब की पदवी धारण की। 1732 में बंगाल के नवाब द्वारा अलीवदी ख्यां को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया। 1740 में अलीवर्दी खां ने बंगाल के नवाब शुजाउदीन के पुत्र सरफराज को परास्त कर बंगाल की सूचेदारी प्राप्त कर ली और बंगाल, बिहार और उड़ीसा के सम्मिलित प्रदेश का नवाब बन गया। इसने तत्कालीन मुगल सम्राट मुहम्मदशाह से स्वीकृति भी प्राप्त कर ली। इसने ।5 वर्षों तक मराठों से संघर्ष किया तथा इसके काल में अंग्रेजों को भी बंगाल पर अधिपत्य कायम करने का अवसर प्राप्त नहीं हो सका।

मुर्शिद कुली खां (1717-1727):

औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान मुर्शिद कुली की सूबेदारी के अन्तर्गत बंगाल प्रायोगिक दृष्टि से पूर्णतः स्वतंत्र राज्य हो गंया था। मुरशिद कुली खाँ मुगल सम्राट के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन करता रहा। उसने कुशल शासन प्रबंध के द्वारा बंगाल को समृद्धि के उच्चतम शिखर पर पहुंचा दिया। एक तानाशाह के रूप में शासन करते हुए अपना इच्छानुसार अधिकारियों को नियुक्त और निलम्बित करता रहा। उसने वस्तुओं की कीमतों को इतनी कुशलतापूर्वक विनियमित किया कि इन्हें सस्ते दामों पर खरीदा जा सके। उसने न केवल खाद्यान्नों की जमाखोरी पर रोक लगाई बल्कि उनका निर्यात भी समुचित रूप से नियंत्रित किया।

सिराजुदौला (1756-57):


सिराजुद्दौला अलीवर्दी खां का नाती था जो 1752 में बंगाल की गद्दी पर आसीन हुआ। वह महत्वाकांक्षी नवाब था तथा शासन में स्वायत्तता उसकी पहली प्राथमिकता थी। उसने अंग्रेजों और फ्रांसीसियों को अपनी बस्तियों की किलेबंदी तोड़ने का आदेश दिया।

सिराजुदौला ने तीन कारणों से अंग्रेजों के प्रति विरोध प्रकट किया। प्रथम. अंग्रेजों ने कलकत्ते में मजबूत किलाबंदी की थी जो नवाब के कानून की अवहेलना थी। द्वितीय, ब्रिटिश कंपनी दस्तक के विशेषाथिकार का दुरूपयोग कर रही थी। तृतीय, अंग्रेजों ने नवाब के निष्ठाहीन और भ्रष्ट कर्मचारियों एवं प्रजाजनों को संरक्षण प्रदान किया था अंग्रेजों के इन कार्यों से नाराज होकर सिराजुद्दौला ने 13 जून 1756 को फोर्ट विलियम का घेराव कर अंग्रेजों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया

ब्लैक होल घटना (20 जून 1756):

ऐसा माना जाता है कि 146 अंग्रेज बंदियों, जिसमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लम्बे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बंद कर दिया गया। 20 जून की रात बंद करने के बाद 23 जून की प्रात: कोठरी को खोला गया जिसमें मात्र 23 लोग ही जीवित पाए गए। इस घटना को ब्लैक होल घटना कहा गया। सिराजुददौला पर लगे इस घटना के इल्जाम को इतिहासकार विश्वसनीय नहीं मानते। इस घटना की कहानी हॉलवेल ने गढ़ी जो कि कथित तौर पर उस कमरे में केद था।

अलीनगर की संधि (9 फरवरी, 1775):


यह संधि बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और क्लाइव के बीच हुई। इस साँधि के द्वारा कंपनी को व्यापारिक विशेषाधिकार तथा बंगाल के जीते हुए क्षेत्रों पर पुनः अधिकार स्थापित हों गया। बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला द्वारा कंपनी को मुआवजा देना स्वीकार किया गया तथा कंपनी को अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान का वर्गीकरण करने तथा सिक्के ढालने की भी अनुमति प्राप्त हो गई।

प्लासी का युद्ध (23 जून, 1757):

प्लासी का युद्ध अंग्रेजों की सेना तथा सिराजुद्दौला (बंगाल के नवाब) के बीच हुआ। सिराजुद्दौला की सेना में मीरमदन, मोहन लाल सेना की कमान संभाल रहे थे परंतु मीर जाफर जो कि सिराजुद्दौला का सेनापति था, ने विश्वासघात किया और सिराजुदौला की हार हुई। युद्ध की पृष्ठभूमि पहले ही तैयार हो चुकी थी जब अलीनगर की संधि हुई थी। क्लाइव ने कूटनीति के सहारे नवाब के अधिकारियों को मिला लिया था वस्तुतः अंग्रेज बंगाल की गद्दी पर ऐसे नवाब को बिठाना चाहते थे जो उनके इशारे पर चले। युद्ध के बाद मीरजाफर को नवाब बनाया गया। इस युद्ध में विजय के फलस्वरूप क्लाइव बंगाल का गवर्नर बना। इस युद्ध के बाद मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया। इस युद्ध से अंग्रेजों को अपार धन की प्राप्ति हुई जिससे उन्हें आंग्ल-फ्रांसीसी संघर्ष में काफी मदद मिली तथा इस युद्ध के बाद अंग्रेज बंगाल में प्रबल राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गए।

मीरकासिम (1760-1763):


मीरकासिम अलीवर्दी खां के बाद बंगाल का दूसरा सबसे योग्य था। उसने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर स्थापित की। उसने बंगाल की आर्थिक दशा सुधारने केलिए प्रशासन में कई सुधार किए तथा अंग्रेजों द्वारा ‘दस्तक’ के दुरूपयोग पर रोक लगाने की कोशिश- की एवं बंगाल के समस्त आंतरिक व्यापार को कर मुक्त कर दिया। अंग्रेज मीरकासिम की महत्वाकांक्षा को सहन न कर नवाब सके जिसके फलस्वरूप बक्सर का युद्ध अवश्यम्भावी हो गया।

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