भारत में विभिन्न पदों पर निर्वाचन प्रक्रिया

भारत में निर्वाचन प्रक्रिया 

किसी देश की लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों द्वारा मतदान कर अपने पसन्द की सरकार का चुनाव जिस प्रक्रिया के तहत होता है वह निर्वाचन प्रक्रिया कहलाती है। प्रत्येक देश की शासन प्रणाली के अनुसार यह प्रक्रिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष होती है। इसके अलावा किसी एक ही देश में विभिन्न राजनीतिक पदों के लिए उनकी प्रकृति के अनुसार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया अपनाई जाती है। प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के अन्तर्गत मतदाता अपने मत के द्वारा सीधे अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं, जैसे भारत में लोकसभा सदस्य विधानसभा सदस्य तथा पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव। अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के अन्तर्गत जनता के चुने गए प्रतिनिधि मतदान करके जनता अन्य प्रतिनिधित्व सम्बन्धित पद के निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में करते हैं जैसे-भारत में राज्यसभा सदस्य का चुनाव। 

निर्वाचन प्रक्रिया के आवश्यक अंग 

किसी भी निर्वाचन प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित अंगों का होना आवश्यक है- 

  • मतदाता
  • राजनीतिक दल
  • लोकतान्त्रिक स्वरूप वाली शासन प्रणाली

भरत में प्राचीन काल में भी होता था निर्वाचन !

प्राचीन भारत में भी निर्वाचन प्रणाली विद्यमान थी। विश्व के सबसेप्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में सभा तथा समिति नामक संस्थाओं का उल्लेख है जिनके द्वारा राजा का निर्वाचन किया जाता था। सभा में कबीले के वरिष्ठ जन तथा स्त्रियाँ होती थीं जबकि समिति आम लोगों का समूह थी। ये संस्थाएँ न केवल राजा का निर्वाचन करती थीं बल्कि यदि राजा शासन करने में तथा कबीले की रक्षा करने में विफल रहता तो उसे पद से हटाकर निर्वासित कर दिया जाता था। इसके उपरान्त बुद्ध काल में भी गणराज्य वाली शासन प्रणाली का उल्लेख है जिसमें विभिन्न गणों के मुखिया अपने मुखिया का चुनाव करते थे तथा गुप्त मतदान करके निर्णय लेते थे जिसके लिए शलाकाओं (धातु या लकड़ी की छोटी छड़ियाँ) का प्रयोग किया जाता था।

भारत में निर्वाचन  प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत संसद, राज्य विधानमण्डल, राष्ट्रपति व उप-राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के लिए संचालन, निर्देशन व नियन्त्रण की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है। भारत चूँकि एक विशाल आबादी वाला देश है जिसमें चुनाव सम्पन्न कराना एक कठिन कार्य है, अतः निर्वाचन आयोग के माध्यम से इस कठिन प्रक्रिया का सम्पादन किया जाता है जिसके अन्तर्गत अनेक चरण होते हैं और उन अनेक चरण के भी उप-चरण होते हैं। चुनाव प्रक्रिया के अन्तर्गत चुनाव आयोग अपने विभिन्न कर्मचारियों के माध्यम से चुनाव कार्य का सम्पादन करता है।

निर्वाचन आयोग के कार्य

भारत निर्वाचन आयोग के निर्वाचन प्रक्रिया को सम्पन्न किए जाने हेतु प्रमुख कार्य निम्न हैं

  • निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन
  • लोकसभा चुनाव के सन्दर्भ में समस्त भारत और विधानसभा चुनाव के सन्दर्भ में सम्बन्धित राज्य को सीटों के आधार पर विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित।किया जाता है ताकि चुनाव प्रक्रिया के अगले चरण का सम्पादन किया जा सके।
  • निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन के समय यह ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक राज्य को लोकसभा में आवण्टित स्थानों की संख्या ऐसी होगी कि उस संख्या से राज्य की।जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो और प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आवण्टित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।
  • परिसीमन आयोग द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन संविधान के अनुच्छेद-82 के अन्तर्गत प्रत्येक जनगणना के पश्चात संसद एक परिसीमन आयोग गठित करती है। परिसीमन आयोग, परिसीमन अधिनियम के उपवन्धों के अनुसारे संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को सीमांकित करता है। निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन संविधान के 87वें संशोधन (2003) के अनुसार जनगणना-2001 के आधार पर किया गया है। इसके लिए परिसीमन अधिनियम 2003 अधिनियमित किया गया। नया परिसीमन वर्ष 2026 तक यथावत रहेगा।

इस अधिनियम के आधार पर चौथा परिसीमन आयोग वर्ष 2001 में गठित किया गया इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह थे। आयोग ने वर्ष 2004 से अपना कार्य प्रारम्भ किया तथा इसका कार्यकाल वर्ष 2008 तक रहा। आयोग ने अपने कार्यकाल में लोकसभा के 543 तथा 24 राज्यों की 4120 विधानसभा क्षेत्रों के लिए परिसीमन किया है। असोम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैण्ड व झारखण्ड का परिसीमन नहीं किया जा सका है, जबकि जम्मू एवं कश्मीर पर इस आयोग के प्रावधान लागू नहीं होते। इससे पूर्व वर्ष 1952, 1963 तथा 1973 में परिसीमन आयोग गठित किए जा चुके हैं। वर्ष 2001 के पूर्व भारत के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार परिसीमित थे।

मतदाता सूची का निर्माण

निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के पश्चात चुनाव आयोग के द्वारा सभी मतदाताओं के नामों एवं सूचनाओं को सम्बन्धित निर्वाचन क्षेत्र के साथ तैयार किया जाता है और तत्पश्चात प्रकाशित किया जाता है। मतदाता सूची निर्मित करते समय यह बखूबी ध्यान दिया जाता है। कि इस संविधान या समुचित विधानमण्डल द्वारा बनाई गई विधि के अन्तर्गत कोई ऐसा मतदाता पंजीकृत न हो जाए जो विधि के अधीन अनिवास, चित्त-विकृति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण वाला हो। साथ ही यह भी कि कोई मतदाता या व्यक्ति केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या इनमें से किसी एक के आधार पर या सभी के आधार पर निव्वाचक सूची से नामांकित होने से वंचित न हो जाए। भारत के कुछ शहरों में मतदाताओं का पंजीकरण ऑनलाइन फॉर्म द्वारा किया जाता है जिसकी एक कॉपी को भरकर नजदीकी निर्वाचन कार्यालय में जमा किया जाता है। लेकिन भारत के अधिकांश क्षेत्रों में यह प्रक्रिया राज्य के निर्वाचन अधिकारी द्वारा बनाए गए पंजीकरण कार्यालयों में सम्पन्न की जाती है।

61वाँ संविधान संशोधन अनिधियम, 1989 अनुच्छेद-326 के अनुसार, लोकसभा तथा राज्य की विधानसभाओं के लिए निर्वाचन का आधार वयस्क मताधिकार है। प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार है। 61वें संविधान संशोधन 1989 से पूर्व वयस्क मताधिकार के लिए 21 वर्ष की सीमा निर्धारित थी किन्तु इस संशोधन के बाद वयस्क मताधिकार की सीमा 18 वर्ष निर्धारित की गई है। वर्तमान समय में देश का युवा राजनीतिक रूप से सक्रिय तथा विवेकशील है जिस कारण 18 वर्ष की न्यूनतम सीमा अधिक प्रासंगिक है।

नामांकन-पत्र और निकासी की जाँच

निर्वाचन आयोग के द्वारा सभी नामांकन पत्रों की सूक्ष्मता से जाँच की जाती है। जाँच के समय यदि कोई भी जानकारी गलत मालूम पड़ती है तो उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द कर दी जाती है। इसके अलावा उम्मीदवार द्वारा अपनी उम्मीदवारी को स्वयं भी वापस लिया जा सकता है। जिसके लिए निर्वाचन आयोग द्वारा एक तिथि सुनिश्चित होती है।

नामांकन-पत्र का दाखिला चुनाव की तिथि, नामांकन-पत्र का दाखिला और उम्मीदवार की उम्मीदवारी को वापस लेने आदि सभी की प्रक्रिया निर्वाचन आयोग सम्पन्न करता है। निर्वाचन आयोग के नियमानुसार कोई भी सदस्य जो चुनाव लड़ना चाहता है वह निर्धारित तिथि के अन्तर्गत अपना पंजीकरण करा सकता है। साथ ही सम्बन्धित निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचन नामावली में उस उम्मीदवार का नाम एक मतदाता के तौर पर होना जरूरी है। इसके अलावा नामांकन के समय उम्मीदवार से कुछ निर्धारित धनराशि की गारण्टी ली जाती है जो लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा आदि सदस्यों के लिए अलग-अलग होती है।

उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक मामले, सम्पत्ति आदि की घोषणा 

वर्ष 2003 में निर्वाचन आयोग ने प्रत्येक उम्मीदवार को आदेश जारी किया कि राज्य विधानसभा या संसद का चुनाव लड़ने के लिए आवेदन-पत्र दाखिल करते समय उम्मीदवार अनिवार्य रूप से निम्न जानकारियाँ भरें

  • क्या पूर्व में उम्मीदवार पर किसी आपराधिक प्रकरण के सन्दर्भ में कोई मुकदमा चलाया गया है या दर्ज किया गया है या नहीं? क्या उसे कारावास या कोई जुर्माना हुआ है?
  • आवेदन-पत्र दाखिल करने के छह माह पहले क्या उम्मीदवार के खिलाफ कोई आपराधिक मामला चल रहा था या उसे किसी अपराध में दो वर्ष या उससे अधिक की कारावास की सजा हुई थी? यदि ऐसा है, तो उसका पूरा विवरण दें।
  • उम्मीदवार को अपने जीवन साथी और आश्रितों के साथ ही अपनी सभी चल एवं अचल सम्पत्तियों, बैंक खातों का ब्यौरा देना है। 
  • क्या उम्मीदघार पर सरकार की किसी प्रकार की देनदारी बाकी है?
  • उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता क्या है?
  • शपथ-पत्र में किसी प्रकार की झूठी सूचना दिए जाने पर उम्मीदवार के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी और उसके न केवल नामांकन को रद्द किया जाएगा बाकि 6 माह की कैद और जुर्माना भी दिया जाएगा।

आदर्श आचार संहिता

चुनाव प्रक्रिया के तहत प्रत्येक राजनीतिक दल या उम्मीदवार द्वारा कुछ आचार संहिता का पालन करना अनिवार्य होता है; जैसे-चुनाव प्रचार-प्रसार के लिए किसी भी धार्मिक स्थान।का प्रयोग नहीं किया जा सकता है, किसी उम्मीदवार के बीते हुए दिनों या व्यक्तिगत तथ्यों को उजागर नहीं किया जा सकता है, सरकारी परिसम्पत्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। आदर्श आचार संहिता के समय किसी मन्त्री द्वारा किसी प्रोजेक्ट की शुरुआत नहीं की जा सकती है। इस प्रक्रिया के लागू होने के दौरान किसी अधिकारी की न तो पदोन्नति की जा सकती है और न ही उसका स्थानान्तरण।

मतदान

चुनाव आयोग के द्वारा निर्धारित तिथि एवं स्थान पर चुनाव की प्रक्रिया (मतदान) सम्पन्न कराई जाती है। इसके लिए पूरी तरह बूथ का निर्माण, बैलट पेपर, कर्मचारियों की व्यवस्था आदि की जाती है। वर्तमान में चुनावों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें सभी उम्मीदवारों के नाम और उनका चुनाव चिह्न अंकित होता है। मतदाताओं द्वारा अपने समर्थित उम्मीदवार के चुनाव चिह्न के आगे का बटन दबाया जाता है।

इलेक्ट्रॉनिक वोरटिंग मशीन 

वर्ष 1989 के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक बोटिंग मशीन (ईवीएम) के उपयोग का उपबंध किया गया। ईवीएम का वर्ष 1998 में प्रथम बार प्रायोगिक तौर पर प्रयोग राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा दिल्ली विधानसभा के चुनावों में चुनिन्दा निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया था। ईवीएम का पहला प्रयोग (पूरे राज्य में) वर्ष 1999 में गोवा विधानसूभा के आम चुनावों में किया गया था।

मतकाताओं को मिला प्रत्याशियों को नकारने का अधिकार

27 सितम्बर, 2013 को सर्योच्य न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए मतदाताओं को राइट-टू रिजेक्ट अर्थात सभी प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार दे दिया। इसके तहत न्यायालय के निर्देशानुसार निर्वाचन आयोग को बोटिंग मशीन में एक अतिरिक्त बटन उपरोक्त में से कोई नहीं लगाना होगा। यह ऐतिहासिक निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खण्डपीठ ने दिया।

मतगणना और परिणाम की घोषणा

मतदान प्रक्रिया के पश्चात बैलट बॉक्स को अच्छे तरीके से सील करके गणना केन्द्रों तक पहुँचा दिया जाता है और पूर्व निर्धारित मतगणना को निर्धारित तिथि पर अन्जाम दिया जाता है। मतगणना का कार्य उम्मीदवार या उसके एजेण्ट के समक्ष निर्वाचन अधिकारी की देख-रेख में साम्पन्न किया जाता है। मतगणना के पश्चात सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित करके प्रमाण-पत्र दिया जाता है।

चुनाव याचिका

यदि किसी उम्मीदवार को ऐसा लगता है कि चुनाव की प्रक्रिया (मतवान, मतगणना) में कोई गलती हुई है या मतगणना सही नहीं हुई हैं तो वह न्यायालय में चुनाव याचिका दाखिल कर सकता है। सुनवाई के दौरान यदि न्यायालय को मामला सही लगता है तो वह चुनाव को निरस्त करके अगले चुनाव की घोषणा करता है, अन्यथा प्रक्रिया पूर्ववत् रहती है।

विशेष

इन्दिरा गाँधी बनाम राज नारायण 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्दिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता को समाप्त करने सम्बन्धी निर्णय सुनाया। वर्ष 1974 में लोकसभा की रायबरेली सीट पर चुनाव राज नारायण की 11 हजार मतों से हार हुई। राज नारायण ने चुनाव में इन्दिरा गाँधी द्वारा धांधली का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की। इस याचिका पर निर्णय आने के बाद तत्कालीन प्रधानमन्त्री हन्दिरा गाँधी के विरुद्ध विरोध तीव्र हुआ, जिसके फलस्वरूप 25 जून, 1975 को सविधान के अनुचछेद-352 के अनुसार आपातकाल की घोषणा की गई। वर्ष 1977 में हुए चुनाव में रायबरेली लोकसभा सीट से राज नारायण ने इन्दिरा गाँधी को हराया तथा मोरारजी देसाई मन्त्रिपरिषद में स्वास्थ्य मन्त्री बने।

राज्य स्तर पर निर्वाचन प्रक्रिया

राज्य स्तर पर भारत निर्वाचन आयोग के सम्पूर्ण अधीक्षण निद्देशन व नियन्त्रण में राज्य के निर्वाचन कार्य की देख- रेख राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा की जाती है जिसकी नियुक्ति सम्बन्धित राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित वरिष्ट सिविल सेवकों में से की जाती है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास सहायक कर्मचारियों की एक छोटी सी टीम होती है।

जिला स्तर पर निर्वाचन प्रक्रिया 

जिला तथा निर्वाचन क्षेत्र स्तरों पर निर्वाचन कार्य, जिला निर्वाचन अधिकार निर्वाचक रजिष्ट्रीकरण अधिकारी तथा रिटर्निंग ऑफिसर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की बड़ी संख्या के माध्यम से सम्पन्न कराते हैं। जिला स्तर पर रिटर्निंग ऑफिसर प्रायः जिलाधिकारी होता है।

निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान जिले के सभी सरकारी कर्मचारी पूर्णकालिक रूप से निर्वाचन आयोग को उपलब्ध होते हैं। देशव्यापी साधारण निर्वाचन संचालन के लिए विशाल कार्यदल के लगभग 50 लाख मतदानकर्मी तथा सिविल पुलिस दल से गठित होता है।

यह विशाल निर्वाचन तन्त्र निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति पर समझे जाते हैं। और तदुनुसार निर्वाचन अवधि, जो 2 या 3 माह की होती है, निर्वाचन आयोग के नियन्त्रण, अधीक्षण और अनुशासन के अधीन होते हैं। अपने कार्यों के निष्पादन के परिप्रेक्ष्य में निर्वाचन आयोग कार्यकारी हस्तक्षेप से सुरक्षित है। यह आयोग ही निर्णय लेता है कि निर्वाचन कार्यक्रम क्या होगा, चाहे वह सामान्य निर्वाचन हो या उप-निर्वाचन।

पंचायत एवं गरीय निकायों के निर्वाचन 

संविधान के अनुच्छेद-243 में पंचायतों तथा नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन की व्यवस्था का उल्लेख हैं।

 पंचायतों का निर्वाचन

अनुच्छेद 243(ट) के अनुसार, पंचायतों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने और पंचायतों के सभी निर्वाचनों के संचालन का जिम्मा राज्य निर्वाचिन आयोग में निहित होता है। राज्य निवांचन आयुक्त की सेवा शर्ते व कालावधि राज्यपाल के द्वारा अवधारित होती हैं।

नगरपालिकाओं का निर्वाचन

नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने और उसके सभी निर्वाचनों का अधीक्षण निदेशन व नियन्त्रण अनुब्हेद-243( द) में निर्दिष्ट राज्य निर्वाचन आयोग में ही निहित होना है।

चुनाव प्रक्रिया का एक प्रमुख भाग चुनाव अभियान का होता है जो अनेक राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी को मजबूत करने और अपनी विजय को हासिल करने के लिए करते हैं। उम्मीदवारों के द्वारा मतदाओं की लुभाने के कई सही गलत तरीके अपनाए जाते हैं। जैसे-सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल, सर्च इंजन्स का इस्तेमाल, अखबार, रेडियो, टेलीविजन आदि का इस्तेमाल।

निर्वाचन आयोग के नियमानुसार मतदान के ठीक 48 घण्टे पूर्व चुनाव प्रचार की प्रक्रिया बन्द कर दी जाती हैं। इसके बाद भी यदि उम्मीदवारों या राजनीतिक दलों के द्वारा कार्य किया जाता है या मतदाताओं को मत देने के लिए धमकाया जाता है, सरकारी परिसम्पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है, धर्म और जाति के नाम पर बोट मांगा जाता है तो उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी जाती है।

राजीतिक दलों को मान्यता 

निर्वाचन आयोग, निर्वाचन के प्रयोजन हेतु राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उनकी चुनाव निष्पादनता के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान करता है। अन्य दलों को केवल  पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल घोषित किया जाता है  आयोग द्वारा दलों को प्रदान की गई मान्यता उनके लिए कुछ विशेषाधिकारों के अधिकारों का निर्धारण करती है, जैसे चुनाव चिह्नों का आवेदन, राज्य नियन्त्रित टेलीविजन और रेडियो स्टेशनों पर राजनीतिक प्रसारण हेतु समय का उपबन्ध और निर्वाचन सूचियों को प्राप्त करने की सुविधा। प्रत्येक राष्ट्रीय दल को एक चुनाव चिह्न प्रदान किया जाता है जो सम्पूर्ण देश में विशिष्टतः उसी के लिए आरक्षित होता है। इसी प्रकार प्रत्येक राज्यस्तरीय दल को एक चुनाव चिह्न प्रदान किया जाता है जो उस राज्य या जिन राज्यों में इसे मान्यता प्राप्त है, विशिष्टतः उसी के लिए आरक्षित होता है।

दूसर ओर, कोई पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल शेष चुनाव चिह्नों की सूची में से चिह्न का चुनाव कर सकता है। दूसरे शब्दों में आयोग कुछ चिह्नों को आरक्षित चिह्नों, के रूप में निर्धारित करता है, जो मान्यता प्राप्त दलों के अभ्यर्थियों हेतु होते हैं और अन्य शेष चिह्न, अन्य अभ्यर्थियों हेतु होते हैं।

राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता के लिए निर्वाचन आयोग की शर्तें

  • जब कोई दल यदि वह लोकसभा अथवा विधानसभा के आम चुनावों में चार अथवा अधिक राज्यों में वैध मतों का 6% मत प्राप्त करता है तथा इसके साथ वह किसी राज्य या राज्यों से लोकसभा में 4 सीट प्राप्त करता है।
  • कोई दल राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त करता है यदि वह लोकसभा में 2% स्थान जीतता है तथा ये सदस्य तीन विभिन्न राज्यों से चुने जाते हैं।
  • यदि कोई दल कम-से-कम चार राज्यों में राज्यस्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।

राज्य स्तरीय दलों की मान्यता के लिए निर्वाचन आयोग की शर्तें

  • यदि कोई दल निम्नलिखित दशाएँ पूरी करता है यदि उस दल ने राज्य की विधानसभा के आम चुनाव में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का 6% प्राप्त किया हो तथा इसके अतिरिक्त।उसने सम्बन्धित राज्य में दो स्थान प्राप्त किए हों। 
  • यदि वह राज्य की लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में उस राज्य से हुए कुल वैध मतों का।6% प्राप्त करता है तथा इसके अतिरिक्त उसने सम्बन्धित राज्य में लोकसभा की।कम-से-कम एक सीट जीती हो।
  • यदि उस दल ने राज्य की विधानसभा के कुल।स्थानों का 3% या तीन सीटें, जो भी ज्यादा हों, प्राप्त किए हों।
  • यदि प्रत्येक 25 सीटों में से उस दल ने।लोकसभा की कम-से-कम एक सीट जीती हो या लोकसभा के चुनाव में उस सम्बन्धित।राज्य में उसे विभाजन से कम-से-कम इतनी सीटें प्राप्त की हों।

विभिन्न  पदों के लिए चुनाव प्रक्रिया

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जिसमें विभिन्न पदों के निर्वाचन की प्रक्रिया, विभिन्न तरीके से सम्पन्न की जाती है और जिसका क्रियान्वयन संविधान में वर्णित नियमों के अन्तर्गत सम्पन्न किया जाता है। भारत में निर्वाचन सम्बन्धी कार्यक्रमों के सुचारू सम्पादन के लिए निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।

राष्ट्रपति – भारत का राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से निर्वाचित होता है। अर्थात आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से एक-एक निर्वाचकगण द्वारा। राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने वाले निर्वाचकगण में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, राज्यों की विधानसभाओं केनिर्वाचित सदस्य, दिल्ली और पॉण्डिचेरी संघ राज्यक्षेत्र की विधानसभाओं के निव्वाचित सदस्य वर्ष 1990 में वीपी सिंह की अध्यक्षता वाली सरकार ने निर्वाचन सुधार के लिए तत्कालीन विधि मन्त्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। गोस्वामी समिति की निर्वाचन सुधार सम्बन्धी व्यवस्था को वर्ष 1996 में लागू कर दिया गया। इस सुधार के बाद राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए।प्रस्तावकों और अनुमोदकों की संख्या 10 से बढ़ाकर 50 कर दी गई और जमानत राशि 2500 से बढ़ाकर 15000 कर दी गई।

उप-राष्ट्रपति–  राष्ट्रपति के समान ही उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन भी अप्रत्यक्ष होता है और आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धत्ति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। किन्तु उसका निर्वाचन राष्ट्रपति से भिन्न है क्योंकि उसमें राज्य विधानमण्डल भाग नहीं लेते हैं। उप-राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों से मिलकर।बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों से निर्वाचित होता है। जमानत राशि के रूप में उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति के समान ही 15000 की धनराशि जमा करनी होती है। किन्तु प्रस्तावकों की संख्या 5 से 20 की गई है।

लोकसभा सदस्य – लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के द्वारा होता है जिसमें सम्बन्धित निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदाता, जो मतदाता सूची में अंकित हों, मतदान करते हैं। लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों द्वारा अदा की जाने वाली जमानत राशि सामान्य जाति के उम्मीदवारों के लिए 10000 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए 5000 की धनराशि निर्धारित की गई है।

राज्यसभा सदस्य – राज्यसभा के लिए राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन स्वीकार किया गया है जिससे अल्संख्यक समुदायों और दलों का प्रतिनिधित्व हो सके। विधानसभा सदस्य विधानसभा सदस्यों का चुनाव लोकसभा के चुनाव की भाँति प्रत्यक्ष प्रणाली द्वारा किया जाता है जिसमें राज्य के सम्बनिधत निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता भाग लेते हैं। 

विधानसभा – के लिए जमानत राशि सामान्य उम्मीदवारों के लिए 5000 तथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए 2500 निर्धारित की गई है।

विधानपरिषद सदस्य – राज्य की विधानपरिषद के सदस्यों का निर्वाचन नगरपालिका, जिला बोर्ड और।अन्य स्थानीय प्राधिकारी तथा उस राज्य में निवासी तीन वर्ष के स्नातकों और अध्यापकों से मिलकर बने।निर्वाचकगण से मिलकर बने निर्वाचक गण से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से किया जाएगा।

स्थानीय निकायों के सदस्य एवं अध्यक्ष – ग्राम, माध्यमिक तथा जिला स्तर पर पंचायतों के सभी।सदस्य लोगों द्वारा सीधे चुने जाएँगे। इसके अलावा माध्यमिक एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का।चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्हीं में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा। जबकि ग्राम स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमण्डल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाता है।

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