कैननास्किस(कनाडा)। जी-7 समिट के 50 साल पूरे हो गए हैं। इस साल यह समिट कनाडा के कैननास्किस में हो रही है। 7 बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस समिट में कनाडा पहुंच गए। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य क्या है, इतिहासऔर वर्तमान में प्रासंगिकता क्या है? जानते हैं। यह समिट ऐसे समय हो रही है, जब दुनिया कई युद्धों में उलझी है। इस बार का एजेंडा युक्रेन युद्ध के बीच रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने पर केंद्रित रहेगा। वहीं चीन के प्रभुत्व, कारोबारी नीतियों, साइबर खतरों से निपटने के उपायों पर जी-7 के विकसित देश जोर देंगे। एआई और नई तकनीकों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई मजबूत नियमन ढांचा नहीं है, इसके निर्माण और सहयोग के अवसरों पर चर्चा होगी। इसके अलावा आंतरिक व्यापार व जलवायु वैश्विक जलवायु संकट भी इस सम्मेलन में प्रमुख मुद्दा रहेगा।
जी-7 कब बना, इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
1975 में फ्रांस के रामबुई में जी-7 की शुरुआत हुई। ये वो दौर था, जब पश्चिमी देशों की तूती बोलती थी। अमेरिका व यूरोप के देश तेल संकट, महंगाई और मंदी से जूझ रहे थे। शीत युद्ध के दौर में आर्थिक संकटों से निपटने व आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए जी-7 का गठन हुआ। इससे पहले यह जी-6 कहा जाता था। बाद में कनाडा भी शामिल हो गया। पचास साल में कितना बदला जी-7 संगठन ? गठन के शुरुआती दशकों में जी-7 दुनिया का सबसे ताकतवर संगठन था। लेकिन 50 वर्षों में वैश्विकशक्ति संरचना बदली। हालांकि वैश्विक जीडीपी में जी-7 का हिस्सा 45% से अधिक है। तकनीकी, आर्थिक व रणनीति निर्धांरण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। लेकिन चीन के नाटकीय उदय, ग्लोबल साउथ में भारत व अन्यदे शों की बढ़ती भूमिका व कई धुरियों में बंटी वैश्किक परिस्थितियों ने जी-7 की अहमियत को कम कर दिया है। जी-7 में वर्तमान सदस्य अमेरिका, यूके, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली,कनाडा जैसे किकिसित देश शामिल हैं।