मष्तिष्क से निकलती हैं गामा से डेल्टा तक तरंगे
मष्तिष्क से निकलती हैं गामा से डेल्टा तक तरंगे
आधुनिक शोधकर्ताओं ने मानव मस्तिष्क के अध्ययन में यह पाया है कि वहां भिन्न-भिन्न आवृत्तियों की तरंगें उत्पन्न होती हैं एवं उनकी गति में उतार-चढ़ाव होता रहता है। आधुनिक भाषा में उन्हें क्रमशः गामा, बीटा, अल्फ़ा, थीटा और डेल्टा तरंग अवस्था नाम दिया गया है। विभिन्न अध्ययनों में यह समझने का प्रयास किया गया है कि इनका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। इनमें गामा तरंगों की तीव्रता सबसे अधिक तथा डेल्टा तरंगों की तीव्रता सबसे कम मापी गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार, मानव विचार, भावनाएं और व्यवहार, सभी मस्तिष्क कोशिकाओं की गतिविधि से उत्पन्न होते हैं, जिन्हें न्यूरॉन कहा जाता है। जब एक न्यूरॉन सक्रिय होता है तो उसके अक्षतंतु के माध्यम से एक बायो इलेक्ट्रिक करंट तरंगित होता है।
जब एक ही समय में कई कोशिकाएं सक्रिय होती हैं तो खोपड़ी पर लगे इलेक्ट्रॉड वोल्टेज में हुए बदलाव का पता लगा सकते हैं। यही प्रक्रिया ईईजी का आधार बनती है। कुछ वर्ष पहले आईआईटी मद्रास में कुछ व्यक्तियों की मस्तिष्क तरंगों को मापकर किसी आपात स्थिति से निपटने में उनकी मानसिक सक्रियता का पता लगाने का प्रयास किया गया। मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एरिज़ोना विश्वविद्यालय- संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विश्वविद्यालयों में भी इन तरंगों पर शोध हुए हैं।
क्या हैं तरंगों की ख़ूबियां ?
● गामा तरंगें
ये 28 हर्ट्ज से अधिक की होती हैं। यह ज्ञात तरंगों में से सबसे नवीन है। यह अधिक क्रियाशील अवस्था का द्योतक है। इस क्रियाशीलता की कोई निश्चित अवस्था नहीं होती। यह किसी इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए सबकुछ भूलकर प्रयत्नशील हो जाना है। यह अवस्था आपको किसी विधा में पारंगत बना सकती है, इसलिए इसे सुपर लर्निंग अवस्था भी कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर, यह आपको चिंता, तनाव, अवसाद में भी धकेल सकती है। किसी इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए सबकुछ भूलकर प्रयत्नशील होने पर ध्यान केवल वहीं केंद्रित होता है। इसके दो परिणाम होंगे- या तो सफलता मिलेगी या विफलता। यदि सफल हो गए तो बहुत प्रसन्नता होगी, किंतु यदि विफल रहे तो आप फिर से प्रयास करेंगे। बार-बार प्रयास करेंगे। यहां भी दो परिणाम होंगे- या तो सफल होंगे या विफलता से निराश होकर खिन्न हो जाएंगे। प्रत्येक मनुष्य को स्वयं को सबसे अधिक संभालने की आवश्यकता इसी स्तर पर होती है। अनियंत्रित सफलता और विफलता दोनों ही मनुष्य को क्षिप्त बनाती है।
इस अवस्था में या तो लोग सफलता पाकर भोग-विलास में लिप्त हो जाते हैं, या विफल होकर चिंता, तनाव, अवसाद में चले जाते हैं, यह वर्तमान की मुख्य समस्या है। अत्यधिक सोचना या कार्य का अत्यधिक दबाव इसका दूसरा उदाहरण है। जैसे कि किसी परीक्षा में अच्छे अंक लाने का दबाव | सबकुछ भूलकर प्रतिभागी उसे प्राप्त करने में लगा होता है। भूख-प्यास की चिंता के बिना उसका लक्ष्य होता है अच्छे अंक अर्जित करना। इस प्रक्रिया में वह उस अवस्था से भी गुज़रेगा जहां उसकी मस्तिष्क तरंगों की तीव्रता में उतार- चढ़ाव अधिक होगा। उस तीव्रता को नियंत्रित न कर पाने की स्थिति में वह तनाव का शिकार होगा। इसी प्रकार आपने कई बार किसी को यह कहते सुना होगा- आज टेंशन से नींद नहीं आई। नींद क्यों नहीं आई, क्योंकि विचार अनियंत्रित थे। तरंगें तीव्र थीं। आप किसी विषय के बारे में असामान्य रूप से सोच रहे थे। यही योग-विज्ञान में वर्णित क्षिप्तावस्था है।
● बीटा तरंगें
ये 13 से 28 हर्ट्ज तक की होती हैं। इनकी खोज जर्मन मनोचिकित्सक हैंस बर्जर ने की थी। मस्तिष्क में बीटा तरंगों का प्रभुत्व मनुष्य की सामान्य जाग्रत अवस्था है। कोई कार्य सामान्य रूप से हो रहा है। यह हमारे दैनिक जीवन का प्रतिबिंब है। विषयों में मन है, मस्तिष्क में गतिविधि अधिक है पर विशिष्ट ज्ञान नहीं है। विचार स्थायी और विशेष नहीं हैं। विषय बदलता रहता है। यह औसत या उससे थोड़ी अधिक बुद्धि को व्यक्त करता है। यह मूढ़ावस्था है।
अल्फ़ा तरंगें
ये 8 से 12 हर्ट्ज तक होती हैं। इनकी खोज भी हैंस बर्जर ने की थी। इस अवस्था में सेरोटोनिन हॉर्मोन का स्रावण शांतिकी भावना लाता है। इस अवस्था का सबसे अच्छा उदाहरण है नेत्र बंद करके किसी कल्पना में खो जाना। एक विचार है, नेत्र बंद है, आपने कुछ समय उसमें ध्यान लगाया है। जैसा कि ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर बैठने पर उनके रूप का ध्यान करते हैं, उनसे कुछ विचार ग्रहण करते हैं। कल्पना करते हैं कि उनकी कृपा आपको प्राप्त हो रही है। आधुनिक भाषा में यही हीलिंग है। इस अवस्था में आप अधिक कल्पनाशील होते हैं। आप तनाव में नहीं होते, विचार में होते हैं। आप ध्यान में नहीं हैं, ध्यान जैसी स्थिति में होते हैं। इसमें निरंतरता का अभाव है। जैसे कि सुबह उठकर कुछ समय ध्यान का अभ्यास कर लिया, फिर उस प्रक्रिया से बाहर आ गए। कुछ देर ईश्वर का स्मरण किया और फिर सांसारिक कार्यों की ओर प्रवृत्त हो गए। इससे तरंगों की गति नियंत्रित हो जाती है। आप अच्छा अनुभव करते हैं। इस अवस्था में न तो पूर्ण रूप से योगी होते हैं और न भोगी ।
थीटा तरंगें
ये 3 से 8 हर्ट्ज की तरंगें हैं। यह अल्फ़ा तरंगों के बाद की अवस्था है। यह ध्यान या नींद की अवस्था है। थीटा तरंगें ध्यान, प्रार्थना, अंतर्ज्ञान, आध्यत्मिक जागरूकता के समय सक्रिय एवं मज़बूत होती हैं। इसे REM नींद की अवस्था भी कहते हैं। इस अवस्था में विचारों का प्रवाह एवं श्वास की गति अत्यंत धीमी हो जाती है। उपयोगी विषय में ध्यान केंद्रित होता है तथा निरंतरता बनी रहती है। जब चित्त किसी एक बिंदु पर लंबे समय के लिए स्थिर हो जाए तो ध्यान घटित होता है। निरंतर ध्यान की यह अवस्था ही एकाग्रावस्था कहलाती है। पतंजलि योगसूत्र कहता है कि एक वृत्ति निवृत होने पर यदि उसके बाद वैसी ही वृत्ति उठे और उसी प्रकार की वृत्तियों का प्रवाह चलता रहे तो ऐसा चित्त एकाग्र चित्त कहलाता है।
डेल्टा तरंगें
ये 4 हर्ट्ज़ तक मानी गई हैं। डेल्टा तरंगों का वर्णन 1930 के दशक में अमेरिका में जन्मे ब्रिटिश मूल के न्यूरो फिजियोलॉजिस्ट डब्ल्यू ग्रे वाल्टर ने किया था। इस अवस्था में वृद्धि हॉर्मोन का त्रावण एवं तनाव के लिए उत्तरदायी हॉर्मोन पर नियंत्रण होता है। यह हमारे अचेतन मन से संबंधित है। यह नींद की वह अवस्था है जिसमें स्वप्न नहीं आते। ज्ञात तरंगों में ये सबसे धीमी होती हैं। समाधिस्थ योगी तथा दो वर्ष तक के शिशु की मस्तिष्क तरंगों की गति भी इतनी ही होती है। अर्थात दो वर्ष का नटखट शिशु और ध्यानस्थ योगी मानसिक शांति के समान स्तर पर होते हैं। इसका एक कारण यह है कि छोटे शिशु अधिकांश समय निद्रा में होते हैं। उस समय उनकी दिमाग़ी तरंगों में उतार-चढ़ाव न के बराबर होता है। एक योगी जब प्रयासपूर्वक इस अवस्था में होता है तो उसमें भी तरंगों का उतार-चढ़ाव बंद हो जाता है और वह परम शांति का अनुभव करता है। यही निरुद्धावस्था है।
इनमें संतुलन होगा, तो जीवन आनंदपूर्ण होगा
ऐसा नहीं है कि हमारा दिमाग़ एक बार में एक ही प्रकार की तरंगें उत्पन्न करता है। हमारी समग्र मस्तिष्कीय गतिविधि किसी भी समय में सभी तरंगों का समुच्चय होती है। हां, कुछ की मात्रा और प्रबलता अन्य से अधिक होती है। सामान्य जीवन में इन सभी अवस्थाओं की आवश्यकता होती है। किसी भी अवस्था का असंतुलन जीवन को अव्यवस्थित बनाता है। इन अवस्थाओं के प्रति जागरूकता और इन्हें संतुलित करने की कला हमें आनी चाहिए। इनमें संतुलन होगा, तो जीवन आनंदपूर्ण होगा। चित्त की अवस्थाओं और तरंगों की अवस्था में समानता के अंश विद्यमान हैं। बावजूद इसके कुछ शाब्दिक भिन्नताओं की उपस्थिति को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
योग और ध्यान का मस्तिष्क तरंग गतिविधियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है
मस्तिष्क की तरंगों में असंतुलन मुख्यतः छह कारणों से होता है। इनमें शामिल हैं- चोट, दवाएं/अल्कोहल, थकान, भावनात्मक हलचल, दर्द और तनाव। यदि अधिक हर्ट्ज की तरंगें लंबे समय तक प्रभावशाली रहेंगी तो तनाव और दबाव को जन्म देंगी। कई प्रयोगों से सिद्ध हो चुका है कि योग और ध्यान का मस्तिष्क तरंग गतिविधियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो अनुभूति में सुधार के साथ जुड़ा है। एक शोध के अनुसार, नियमित ध्यान से अल्फ़ा तरंगों में वृद्धि होती है और यह अवस्था लगभग स्थायी हो जाती है। यानी बाह्य परिस्थितियों का आपकी मनोदशा पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। इससे चिंता और तनाव में कमी पाई गई है। योग और ध्यान का नियमित अभ्यास स्थायी शांति और सुख की अवस्था लाने में सहायक है। सामान्य जीवन में अल्फ़ा तरंगों से मिलने वाली शांति और स्थिरता को उपयोगी माना गया है। लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी का शोध कहता है कि अल्फ़ा तरंगों की उच्च गतिविधि का संबंध रचनात्मक शक्ति से है। द आर्ट ऑफ़ स्मार्ट थिंकिंग नामक पुस्तक के लेखक जेम्स हार्ड का दावा है कि अल्फ़ा और थीटा ब्रेन वेव्स समस्या समाधान की क्षमता बढ़ाने के लिए भी ज़रूरी हैं।
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