जय प्रकाश नारायण (1902-1979)

जय प्रकाश नारायण (1902-1979):

एक उत्कट् व अप्रतिम स्वतंत्रता सेनानी तथा एक उत्साही समाज सुधारक जय प्रकाश नारायण को लोग ‘लोकनायक’ के रूप में याद करते हैं। वे 1 अक्टूबर 1902 को पटना के नजदीक सिताबदियारा (बिहार) में पैदा हुए थे। अपने विद्यार्थी जीवन में वह एक मेधावी छात्र थे। अपने गांव
के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने पटना से हाई स्कूल की परीक्षा पास की तथा ‘गोल्ड मेंडल’ तथा मेरिट स्काॅलरशिप प्राप्त की। 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण अस्थायी रूप से कुछ दिनों के लिए अध्ययन कार्य को छोड़ दिए।

1992 में वे अमेरिका गये तथा ओहियो विश्वविद्यालय से एम. ए. की डिग्री प्राप्त की। जयप्रकाश नारायण शुरू में ‘माक्क्सवादी दर्शन’ से विशेष रूप।से प्रभावित थे। भारत वापस आने के बाद वह मजदूरों की समस्याओं हेतु कार्य करते रहे और ‘कम्पयूनिस्ट सेल’ में सम्मिलित हो गये थे। उन्होंने जमींदारी प्रथा समाप्त करने के लिए वकालत की तथा बड़े-बड़े उद्योगों के राष्ट्रीयकरण पर बल दिया। उनके सामाजिक।उत्साह की महता को देखते हुए उन्हें ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ सम्मिलित होने के लिए आग्रह किया गया। तथा श्रम विभाग का उत्तरादागित्व
संभालने के लिए निमंत्रण दिया गया। जय प्रकाश नारायण ने उसमें निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। उसके बाद स्वतंत्रता संग्राम के धर्मयुद्ध में कुद पड़े। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल की यात्रा करनी पड़ी। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने ‘अखिल
भारतीय समाजवादी पार्टी’ की स्थापना की। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ 1942 में पुनः भाग लेने पर अंग्रेजों ने पुनः जेल में बंद कर दिया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोकनायक ने सक्रिय राजनीति में भाग लेना छोड़ दिया। फिर भी सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अपना संघर्ष जारी रख तथा विनोबा भावे के ‘भूदान आंदोलन’ में सक्रिय योगदान देना शुरू कर दिया। किसी तरह उन्होंने देश में ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित करने के खिलाफत स्वरूप सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया।

उन्होंने देश में प्रचलित लोकतंत्र की पुन: बहाली के लिए एक नये तरह के आंदोलन का समर्थन किया। वे जनता पार्टी स्थापित करने के मुख्य सुत्रधार थे। उनके इस आंदोलन की लहर बिहार के विद्यार्थीयों से शुरू होकर पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैल गयी।

इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इन्हें जेल में बंद करवा दिया तथा 1977 में इन्हें रिहा किया गया। जय प्रकाश नारायण की अहम भूमिका लेखन के क्षेत्र में रही है। उन्होंने सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक समस्याओं से संबंधित बहुत सी पुस्तकों की रचना की 1979 में देहांत ।

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