भारत के पहले लोकपाल, जस्टिस खानविलकर बने नए लोकपाल

 लोकपाल 

परिचय

‘भारत के लोकपाल’ का गठन देश की शासनव्यवस्था में एक ऐतिहासिक घटना है, जो भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए संसद के भीतर और बाहर वर्षों तक चले गहन विचार- विमर्श के बाद अस्तित्व में आया भारत के लोगों ने लोक सेवकों के खिलाफ़ भ्रष्टांचार की शिकायतों से निपटने में “भारत के लोकपाल’ को पूर्ण आज़ादी दे कर इस संस्थान के प्रतिअसीम विश्वास व्यक्त किया है।

भ्रष्टाचार जीवन के हर पक्ष पर कुठराघात करता है। यह विधि के शासन को क्षीण करता है जिसके परिणामस्वरूप मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, बाज़ारों को उँगलियों पर नचाया जाता है, और देश के नागरिकों को अनेक।कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भ्रष्टांचार के कारण देश की न केवल आर्थिक उन्नति बाधित होती है, बल्कि नागरिकों के बीच संसाधरनों के समतापूर्ण वितरण में भी विसंगतियाँ पैदा हो जाती हैं। और, समान्यतः इसका सबसे अधिक दृष्प्रभाव गरीब और बेसहारा लोगों पर पड़ता है। लोक सेवकों से संबन्धित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 देश की संसद द्वारा पारित भ्रष्टचार-निरोधी कानून है, जो पूरे देश में लागू है। इसका उद्देश्य अपने अधिकार क्षेत्र क भीतर संभव सभी प्रयासों के ज़रिये जनता के हितों की रक्षा करना है ताकि देश के नागरिकों की। चिंताओं को दूर कर उनकी आकाक्षाओं को पूरा किया जा सके, और सब प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए भ्रष्टाचार कोजड़ से मिटाया जा किया जा सके।

ऐतिहासिक पृष्ठभुमि

सरकारी दफ़्तरों में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के इरादे से लोकपाल की नियुक्ति संबंधी कल्पना पहली बार 1960 के  दशक के उत्तरार्थ में की गई थी। 3 अप्रैल, 1963 को लोक सभा में विधि एवंन्याय मंत्रालय की अनुदान मांगों पर बहस के दौरान भ्रष्टाचार को मिटाने और लोक शिकायतों के निपटान के लिए ऑम्बड्समैन’ की तर्ज पर एक संसदीय आयोग की स्थापना का सुझाव दिया गया। बहस के दौरान ऐसे संस्थानों के नाम के रूप में “लोकपाल और लोकायुक्त’ शब्द का भी उल्लेख किया गया। ‘लोकपाल शब्द संस्कृत का शब्द है, जिसमें ‘लोक का अर्थ ‘जनता’ और ‘पाल’ का अर्थ ‘रक्षक’ है। इस शब्द की रचना स्कैन्डिनेवियन मूल के सिद्धान्त ऑम्बड़समैन’ – जो सरकारी तंत्र के खिलाफ़ जनता की शिकायतों की जांच करने के लिए नियक्त अधिकारी होता है – के भारतीय समकक्ष के रूप में की गई थी। 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने सरकारी व्यवस्था के खिलाफ़ जनता की शिकायतें दूर करने के लिए ‘लोकपाल’ और ‘लोकायुत्त’ वाले द्वि-स्तरीय जांच-तंत्रसकी सिफारिश की थी। इस सिफारिश के अनुसार, केंद्र में नियुक्त ‘लोकपाल’ को केन्द्र सरकार तथा राज्यों के मंत्रियों और सचिवों के विरूद्ध जन शिकायतों से निपटना था; जबकि प्रत्येक राज्य में नियुक्त किए जाने वाले ‘लोकायुक्त’ को अन्य सभी स्तर के अधिकारियों/ कार्मिकों के विरुद्ध जन शिकायतों से निपटना था। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग, 2002 ने भी ‘लोकपाल’ और ‘लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए संवैधानिक प्रावधान किए जाने की सिफारिश की। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी देश के संविधान में उपयुक्त संशोधन कर यथाशीघ्र ‘लोकपाल’ और ‘लोकायुक्त’ की नियुक्ति की सिफारिश की। लोकपाल की नियुक्ति हेत् पहली बार एक विधेयक “लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक, 1968 के रूप में चौथी लोक सभा में पेश किया गया था। इस तरह के विधेयक अनेक बार अर्थात् 1971, 1977, 1985, 1989, 1996,1998, 2001 में तथा 2011 में दो बार पेश किए गए। लोकपाल विधेयक अंततः 4 अगस्त, 2011 को प्रस्तुत किया गया और फिर उसे 8 अगस्त, 2011 को गहन अध्ययन हेतु विभाग संबंधी संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया गया। इस समिति की सिफारिशों के आधार पर लोकपाल विधेयक, 2011 को वापस ले लिया गया, तथा उसके स्थान पर ‘लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011’ नाम से संशोधित विधेयक 22 दिसंबर, 2011 को पुनः लोक सभा में पेश किया गया।

इस विधेयक को लोक सभा ने कुछ संशोधनों के साथ पारित कर दिया। लोक सभा द्वारा यथा पारित विधेयक को राज्य सभा ने अपनी प्रवर समिति को भेज दिया। प्रवर समिति की रिपोर्ट के अनुरूप सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2011′ को संशोधित किया। तत्पश्चात, राज्य सभा ने कुछ संशोधनों के साथ इस विधेयक को पारित कर दिया, तथा आगे के अनुमोदन के लिए उसे लोक सभा को लौटा दिया। लोक सभा ने भीं राज्य सभा द्वारा यथा संशोधित विधेयक को पास कर दिया। अंततः विधेयक को 1 जनवरी, 2014 को राषट्रपति की भी मंजूरी मिल गई, और उसे उसी दिन ‘लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013’ (2014 का संख्यांक 1) के रूप में अधिसूचित कर दिया गया। अधिनियम की धारा 1 की उप-धारा (4) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत केंद्र सरकार ने अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी होने की तिथि 16 जनवरी, 2014 नियत की। अधिनियम में ‘लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) अधिनियम, 2016 के ज़रिये एक बार संशोधन।किया गया है।

‘लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013′ का उद्देश्य मौजूदा कानूनी और संस्थागत व्यवस्थाओं को और सुदूढ़ कर “भ्रष्टाचार के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र समझौते’ -जिसकी।पुष्टि भारत ने 9मई, 2011 को की – के कुछ प्रावधानों को और असरदार ढंग से लागु करना है। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, ‘लोकपाल’ के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफ़ारिशों के पश्चात की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, लोक सभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का कोई सेवारत न्यायाधीश और राष्ट्रपति द्वारा नामित एक सुविख्यात विधिवेत्ता – जिसे चयन समिति के अन्य सदस्यों की सिफारिश पर नामित किया जाता है-सदस्य होते हैं। न्यायमूर्ति श्री पिनाकी चंद्र घोष को “भारत के लोकपाल का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया। राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में 23 मार्च, 2019 को उन्हें पद की शपथ दिलाई। बाद में, चार न्यायिक सदस्यों और चार अन्य सदस्यों को अध्यक्ष द्वारा 27 मार्च, 2019 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में पद की शपथ दिलाई गई।

कानूनी प्रावधान

“भारत के लोकपाल’ लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अंतर्गत काम करते हैं। संक्षेप में इस कानून की मुख्य विषेशताएं इस प्रकार हैं:

भारत के लोकपाल का क्षेत्राधिकार(धारा14)

‘लोकपाल’ निम्नलिखित के बारे में की गई किसी भ्रष्टाचार संबंधी शिकायत की जांच कर सकता है या जांच करवा सकताहै, अर्थात्:- (क) ऐसा कोई व्यक्ति, जो प्रधानमंत्री है या रहा हो; परंतु ‘लोकपाल’ प्रधानमंत्री के विरूद्ध भ्रष्टाचार संबंधी शिकायत से जुड़े या उससे उत्पन्न होने वाले ऐसे किसी मसले की वहाँ तक जांच नहीं करेगा, जहां तक वह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, बाहरी और आंतरिक सुरक्षा, कानून और व्यवस्था, i.) परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष से संबंधित हो; ii.) बशर्ते कि ‘लोकपाल’ के अध्यक्ष और सभी सदस्यों से मिल कर बनी लोकपाल’ की पूर्ण न्याय पीठ ऐसी जांच शुरू करने के बारे में विचार करे और उसके कम से कम दो-तिहाई सदस्य ऐसी जांच करने का अनुमोदन कर दें।

(ख) कोई व्यक्ति जो संघ का मंत्री है या रहा हो;कोई व्यक्ति जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य है या रहा हो;

(ग) भ्रष्टांचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 2 के खंड (ग) के उपखंड (i) एवं (i) में यथा परिभाषित लोक सेवकों में से समूह ‘क या समूह ख’ का कोई

(घ) अधिकारी या उसके समत्ल्य या उससे उच्चतर अधिकारी, जब वह संघ के कारयों के संबंध में सेवारत है या जिसने सेवा की हो; धारा 20 की उपधारा (1) के प्रावधान के अधीन रहते हुए, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 2 के खंड (ग) के उपखंड (i एवं (ii) में यथा परिभाषित लोक सेवकों में से समूह ग’ या समूह घ’ का कोई पदधारी या उसके समतुल्य पदधारी, जब वह संघ के कार्यों के संबंध में सेवारत है या जिसने सेवा की हो;

(ड.) ऐसा कोई व्यक्ति, जो संसद के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित या केंद्र सरकार द्वारा पूर्णतः या अंशतः वित्तपोषित या उसके द्वारा नियंत्रित निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसायटी या न्यास या स्वशासी निकाय (चाहे वह किसी भी नाम से जाना जाता हो) का अध्यक्ष या सदस्य या अधिकारी या कर्मचारी है या रहा हो;

(च) ऐसा कोई व्यक्ति जो प्रत्येक अन्य सोसाइटी या लोगों की एसोसिएशन या न्यास (चाहे उस समय लागू किसी कानून के तहत पंजीकृत है या नहीं), चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, और जो सरकार द्वारा पूर्णतः या अंशत: वित्तपोषित हो, जिसकी वार्षिक  आय ऐसी रकम से अधिक है, जो केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, उसका निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी है या रहा हो। केंद्र सरकार ने दिनांक 20 जून, 2016 की अधिसूचना द्वारा इस राशि को एक करोड़ रूपये विनिर्दिष्ट किया है। इस उद्देश्य के लिए वार्षिक आय की गणना हेतु केवल केंद्र सरकार द्वारा दिए गए अनुदानों और वित्तीय सहायता पर ही विचार किया जाना होता है; और

(छ) ऐसा कोई व्यक्ति, जो विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत एक वर्षमें किसी विदेशी स्रोत से दस लाख रुपये से अधिक या ऐसी उच्चतर राशि का, जो केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट दान प्राप्त करने वाली प्रत्येक अन्य सोसाइटी या लोगों की एसोसिएशन या न्यास (चाहे उस समय लागू किसी कानून के तहत पंजीकृत है या नहीं) का निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी है या रहा हो।

अध्यक्ष और सदस्योंकी नियुक्त (धारा 4)

लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति – जिसमें प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, लोक सभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का एक वर्तमानन्यायाधीश और चयन समिति के अन्य सदस्यों की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नामित एक विख्यात विधिवेत्ता शामिल होते हैं – की सिफारिश प्राप्त होने के बाद की जाती है। अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य पांच वर्ष की अरवधि के लिए या जब तक कि वे सत्तर वर्ष के न हो जाएं. जो भी पहले हो, पद पर रहेंगे। 

अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्ते (धारा 7) 

अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शतं।क्रमशः भारत के मुख्यन्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान होंगी। अध्यक्ष या सदस्य के वेतन,भत्ते और देय पेंशन तथा सेवा की अन्य शर्ते उनकी नियुक्ति के बाद ऐसे परिवर्तित नहीं की जा सकती हैं, जो उनके लिए अलाभकर हो।

पदसे हटाने की प्रक्रिया (धारा 37)

अध्यक्ष या किसी सदस्य को उसके पद से कदाचार के कारण राषट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है, जो आदेश वे इस बारे में कम से कम एक सौ सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका मिलने पर उच्चतम न्यायालय को किए गए निर्देश के बाद उसके द्वारा, ऐसे मामलों के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप, की गई जांच में अध्यक्ष या उस सदस्य को उक्त आधार पर हटाये जाने की रिपोर्ट दिये जाने के पश्चात जारी करेंगे।

लोकपाल के सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारी (धारा 10)

‘लोकपाल’ के सचिव की नियुक्ति, जो भारत सरकार के सचिव-स्तर का अधिकारी होता है, अध्यक्ष द्वारा इस बारे में केंद्र सरकार से मिले नामों की सूची में से किया जाता है। अध्यक्ष द्वारा जांच निदेशक और अभियोजन निदेशक, जो कम से कम भारत सरकार के अपर सचिव या समतुल्य स्तर के अधिकारी होते हैं, की भी नियुक्ति की जाती है, जो केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए नामों के पैनल से चुने जाते हैं। ‘लोकपाल’ के अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति भी आध्यक्ष या उनके द्वारा तय किसी सदस्य या लोकपाल’ केकिसी अन्य अधिकारी द्वारा की जाती है।

‘लोकपाल’ के ख़र्चों का भुगतान देश की संचित निधि से (धारा 13)

लोकपाल’ के प्रशासनिक ख़र्चों, जिसमें अध्यक्ष, सदस्यों, सचिव, अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, का भुगतान भारत की संचित निधि से किया जाता है।

“लोकपाल’ द्वारा प्रारंभिक जांच और अन्वेषण (धारा 20)

कोई शिकायत प्राप्त होने पर ‘लोकपाल’ यदि अगे कार्यवाही करने का निर्णय करता है, तो वह किसी भी लोक सेवक के खिलाफ़ अपने जांच खंड या किसी अन्य एजेंसी (दिल्ली विषेश पुलिस स्थापन सहित) को यह पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच का आदेश दे सकता है कि क्या इस।मामले में कार्यवाही करने का सरसरी तौर पर मामला बनता है या नहीं। यदि ‘लोकपाल’ प्रारंभिक जांच करने का फैसला करता है।

तो उसे किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा, समूह क, ख, ग या घ के लोक सेवकों के संबंध में मिली शिकायत या शिकायतों या शिकायतों के किसी समूह को केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 की धारा 3 की उपधारा (1) के अंतर्गत गठित केंद्रीय सतर्कता आयोग को भेजना होगा।

प्रारंभिक जांच के दौरान जांच खंड या अन्य एजेंसी (दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन सहित) ठोस जानकारी और इकट्ठा किए गए दस्तावेज़ों के आधार पर सम्बद्ध लोक सेवक और सक्षम प्राधिकारी से शिकायत में लगाए गए आरोपों पर टिप्पणियां मांगेगी, जिसके बाद वह लोकपाल को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, जो निर्देश प्राप्त होने की तिथि से साठ दिनों के भीतर किया जाना होगा।

प्रत्येक प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर “भारत के लोकपाल’ के कम से कम तीन सदस्यों वाली न्यायपीठ विचार करेगी, और लोक सेवक को सुने जाने का अवसर देने के बाद यह तय करेगी कि क्या सरसरी तौर पर मामला बनता है, जिसके बाद वह निम्नलिखित में से एक या अधिक कार्वाई करेगी, अर्थात्

(क) किसी एजेंसी या दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा अन्वेषण, जो मामले पर निर्भर करेगाः

(ख) सक्षम प्राधिकारी द्वारा संबंधित लोक सेवक के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही का या कोई अन्य समुचित कार्रवाई; और

(ग)लोक सेवक के विरूद्ध कार्यवाही समाप्त कर धारा 46 के तहत शिकायत कर्ता के खिलाफ़ कार्यवाही।

‘लोकपाल’ द्वारा अन्वेषण (धारा 20)

यदि ‘लोकपाल’ शिकायत का अन्वेषण करने का निश्चय करता है तो वह किसी एजेंसी (दिल्ली विषेश पुलिस स्थापन सहित) को यथासंभव शीघ्रता के साथ ऐसा करने, और अपने आदेश की तिथि से छह महीने के भीतर अन्वेषण पूरा करने का निदेश देगाः

परंतु यह भी, कि खंड (ख) के तहत अन्वेषण का आदेश देने से पहले ‘लोकपाल’ लोक सेवक से स्पष्टीकरण मांगेगा, ताकि यह निर्धारण किया जा सके कि अन्वेषण के लिए सरसरी तौर पर मामला बनता भी है या नहीं। साथ ही यह भी, कि ‘लोकपाल’ किन्ही कारणों के आधार पर इस अवधि को एक बार में अधिकतम छह महीने के लिए और बढ़ा सकता है, परंतु इन कारणों को लिखित में दर्ज किया जाना होगा।

लोकपाल’ द्वारा अभियोजन (धारा 23)

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 197 या दिल्ली पुलिस विशेष स्थापन अधिनियम, 1946 की धारा 6-क या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 19 मेंहउल्लिखित किसी बात के होते हुए भी, ‘लोकपाल’ को ऐसे लोक सेवक के अभियोजन के लिए मंजूरी देने की शक्ति होगी जिसकेखिलाफ़ उसने अन्वेषण का आदेश दिया हो। “लोकपाल’ द्वारा सौपे गए मामलोंमें अन्वेषण एजेंसी अपनी जांच रिपोर्ट अधिकार क्षेत्र वाली अदालत में पेश करेगी, तथा उसकी एक प्रति ‘लोकपाल को भी भेजेगी। इस रिपोर्ट पर कम से कम तीन सदस्यों की न्यायपीठ विचार करेगी, जिसके बाद वह आरोप पत्र दायर करने की मंजूरी दे सकती है या विशेष अदालत के समक्ष रिपोर्ट को बंद करने का निदेश दे सकती है अथवा सक्षम प्राधिकारी को विभागीय कार्यवाही प्रारम्भ करने का निदेश दे सकती है। लोकपाल’ अपने अभियोजन खंड या अन्वेषण एजेंसी को विशेष अदालत में आअभियोजन प्रारंभ करने का भी निदेश दे सकता ऐसे मामलों में किसी भी लोक सेवक पर अगर उसके शासकीय कर्तव्य के निवहन के दौरान कार्य करते हुए या ऐसा कार्य करने का दावा किए जाते हुए कोई अपराध करने का आरोप लगाया गया हो तो उसके खिलाफ़ कोई अभियोजन प्रारंभ नहीं किया जाएगा, और लोकपाल की पूर्व-मंजूरी के बिना कोई भी अदालत ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।

तलाशी एवं ज़ब्ती (धारा 26)

‘लोकपाल’ अगर किसी कारणवश यह मानता है कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अन्वेषण के लिए उपयोगी याहसार्थक कोई दस्तावेज़ किसी स्थान पर छिपाया गया है, तोसवह मामले का अन्वेषण कर रही किसी भी एजेंसी, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन सहित, को ऐसे दस्तावेजों को खोजने और ज़ब्त करने का अधिकार दे सकता है।

परिसंपत्तियों की कुर्की (धारा 29)

किसी मामले में लोकपाल’ अगर किन्हीं कारणों से यह मानता है कि भ्रष्टांचार से जुड़े अपराध का आरोपी अपने।पास भ्रष्टांचार से मिली कोई संपत्ति रखे हुए है, तो ‘लोकपाल’ ऐसी संपत्ति को अस्थाई तौर पर कुर्क करने का आदेश दे सकता है, और यह कुर्की आदेश की तिथि से

अधिकतम नब्बे दिन के लिए होगी। लोकपाल’ जब किसी संपत्ति को अस्थाई रूप से कुर्क करे तो ऐसी कुर्की के तीस दिनों के भीतर उसे अपने अभियोजन खंड को निदेश देना होगा कि वह विशेष अदालत के समक्ष कुर्की के तथ्यों का उल्लेख करते हुए आवेदन दायर करे, और प्रार्थना करे कि।लोक सेवक के खिलाफ़ विशेष अदालत में कार्यवाही पूरी होने तक संपत्ति की कुर्की की पुष्टि की जाए।

लोक सेवक का स्थानांतरण या निलंबन (धारा 32)

जहां ‘लोकपाल’ सरसरी तौर पर इस बात से संतुष्ट है कि प्रारंभिक जांच के दौरान लोक सेवक का अपने पद पर बने रहना ऐसी प्रारंभिक जांच को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है, या ऐसा लोक सेवक सबूतों को नष्ट या उनसे छेडछाड़ कर सकता है या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, तो ‘लोकपाल’ केंद्र सरकार से ऐसे लोक सेवक को, आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि तक, उसके पद से निलंबित या स्थानांतरित करने की सिफारिश कर सकता है। केंद्र सरकार को सामान्यतः “लोकपाल’ की सिफ़ारिश को मानना होगा, केवल ऐसे मामलों के सिवाय जहां ऐसा करना प्रशासनिक कारणों से, और इन कारणों को लिखित में दर्ज करना होगा, व्यवहार्य नहीं हो।

लोकपाल’ की पर्यवेक्षकीय शक्ति (धारा 25)

लोकपाल’ द्वारा प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के लिए सौपे गए मामलों में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन को निदेश देने और उस पर अधीक्षण की शक्ति होगी। ‘लोकपाल’ द्वारा सौंपे गए किसी मामले का अन्वेषण कर रहे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन के किसी अधिकारी को’लोकपाल’ के अनुमोदन के बिबिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

केंद्रीय सतर्कता आयोग प्रारंभिक जांच के लिए उसे भेजी गई शिकायतों पर की गई कार्रवाई का विवरण लोकपाल को भेजेगा। ऐसा विवरण प्राप्त होने पर ‘लोकपाल’ ऐसे मामलों के प्रभावी और त्वरित निरपटान के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकेिगा।

सरकारी अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग करने की शक्ति (धारा 28)

लोकपाल’ किसी प्रारंभिक जांच या अन्वेषण करने के

प्रयोजन से केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के किसी भी अधिकारी या संगठन या अन्वेषण एजेंसी की सेवाओं का उपयोग कर सकेगा।

सिविल न्यायालय की शक्तियं (धारा 27)

‘लोकपाल’ के समक्ष चलने वाली कोई भी कार्यवाही,भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 की परिभाषा के अंत्गतन्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी। प्रारंभिक जांच के उद्देश्य से लोकपाल के जांच खंड को अधिनियम में विनिर्दिष्ट कुछ मामलों के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के तहत सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी।

मामलों की जांच के लिए विशेष अदालतें(धारा 35)

केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988

(1988 का 49) से या इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई और फ़ैसलों के लिए उतनी संख्या में विशेष अदालतों का गठन करना होगा जितनी लोकपाल सिफ़ारिश करे।

विशेष अदालतों को सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने यहाँ मामला दायर होने की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर प्रत्येक मामले को निपटा देंगी। यदि उसे एक वर्ष में नहीं।निपटाया गया तो विशेष अदालत उसके लिए कारण को। दर्ज करेगी, तथा सुनवाई को अधिकतम और तीन महीने की।अवधि के भीतर या आगे की ऐसी अवधी के भीतर पूरी।करेगी जो प्रत्येक बार अधिकतम तीन माह हो, और ऐसी।सभी त्रैमासिक अवधियों की समाप्ती से पहले इसके कारणों

को लिखित में दर्ज किया जाना होगा, परंतु जो सब मिला।कर अधिकतम दो वर्ष की अवधि से ज्यादान हो।

झठी शिकायत के लिए सज़ा (धारा 46)

कोई व्यक्ति अगर झूठी और तुच्छ या केवल तंग करने के इरादे से शिकायत करता है, तो दोषी पाए जाने पर उसे एक साल तक की जेल की सज़ा और एक लाख रुपये तक काहजुर्माना हो सकता है। झूठी शिकायत करने का दोषी पायेहजाने वाले व्यक्ति को उस लोक सेवक को मुआवज्ञा देने के।साथ ही मुकदमा लड़ने के लिए उस लोक सेवक द्वारा किए।गए कानूनी ख़र्च की रकम भी चुकानी होगी, जिसके।खिलाफ उसने झूठी शिकायत की थी। हालांकि, सच्ची भावना से की गई शिकायतों के मामले में ऐसी कोई कारवाई नहीं की जाएगी। इस धारा के तहत अपराध का संज्ञान केवल किसी विषेश अदालत द्वारा ही लिया जाएगा।

अधिनियम का सर्वोपरि स्थान (धारा 56)

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के विपरीत अगर किसी अन्य कानून या उस कानून से।उत्पन्न किसी लिखित दस्तावेज़ में कोई व्यवस्था है तो भी।इसी अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे।

लोकपाल (परिवाद) नियम 2020

केंद्र सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा-59 (2) (क) के अंतर्गत 2 मार्च, 2020 को लोकपाल (परिवाद) नियम, 2020 अधिसूचित किए। इन नियमों में शिकायतों को दर्ज कराने के प्रारूप और पद्दति की जानकारी के साथ ही ‘लोकपाल द्वारा इन शिकायतों से निपटे जाने की व्यवस्था की जानकारी भी शामिल है।

जांच आयोग अधिनियम, 1952 का संशोधन 

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में प्रावधान है कि जिस मामले में लोकपाल’ को शिकायत की गई हो उसे जांच के लिए जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत नहीं सौंपा जा सकता। इसके लिए जांच आयोग अधिनियम, 1952 में संशोधन किया गया है, ताकि वह लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के इस प्रावधान के अनुरूप हो जाए। इस संशोधन के बाद उसकी धारा 3 की उपधारा (1) में “समुचित सरकार” शबदों के स्थान पर अब “जैसा लोकपाल और लोकायक्त अधिनियम, 2013 में अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, समुचित सरकार” शब्दों का उपयोग कियागया है।

भ्रष्टांचार निवारण अधिनियम, 1988 का संशोधन 

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 में लोकपाल को ऐसे लोक सेवक के अभियोजन के लिए मंजूरी प्रदान करने का अधिकार है जिसके खिलाफ़ अन्वेषण का आदेश दिया गया हो। इस प्रावधान के मद्देनज़र भ्रष्टाचार निवारण।अधिनियम में संशोधन किया गया है और उसकी धारा 19 में “जैसा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय” शब्दों को जोड़ा गया।

 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में संशोधन दंड प्रक्रिया 

संहिता को भी लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के समरूप बनाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-197 में “पर्व मंजूरी के बिना” शब्दों

के पश्चात् “लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम-2013 में अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय” शब्द जोड़े गए हैं।

केंद्रीय सतर्कंता आयोग अधिनियम, 2003

का संशोधन

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के कुछ प्रावधानों को लागू करने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 में निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं:

i) केंद्रीय सतर्कता आयोग को ‘लोकपाल’ द्वारा दिये गए निर्देश पर सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के खिलाफ़ शिकायत की जांच करने की शक्ति प्रदान की गई है। इसके लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 में धारा 8, उपधारा (2) में खंड (ग) जोड़ा गया

i)लोकपाल द्वारा निर्देशित मामलों में आयोग को केंद्र सरकार के समूह ग और समूह ‘घ’ के कर्मचारी लोक सेवकों के खिलाफ़ प्रारंभिक जांच के आधार पर किसी एजेंसी द्वारा अन्वेषण कराने या विभागीय कार्यवाही प्रारंभ करने की शक्ति दी गई है (धारा-

85); लोकपाल’द्वारा निर्देशित मामलों में आयोग को केंद्र सरकार के समूह ग और समूह घ के कर्मचारी लोक सेवकों के खिलाफ़ अन्वेषण रिपोर्ट के आधार पर विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने या विभागीय कार्यवाही प्रारंभ करने की शक्ति प्रदान की

गई है (धारा-8ख); और सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 में एक प्रावधान (धारा 11क) द्वारा जांच निदेशक की नियुक्ति की व्यवस्था की गई है, जो कम से कम भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी हो , और वह लोकपाल’ द्वारा आयोग को निर्देशित मामलों में प्रारंभिक जांच करेगा।

 भारत के लोकपाल : अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति

भारत के राष्ट्रपतिने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में 23 मार्च, 2019 को न्यायमूर्ति श्री पिनाकी चंद्र घोष को “भारत के लोकपाल के सर्वप्रथम अध्यक्ष के रूप में पद की शपथ दिलाई। बाद में, चार न्यायिक सदस्यों और चार अन्य सदस्यों को अध्यक्ष द्वारा 27 मार्च, 2019 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में पद की शपथ दिलाई गई न्यायमूर्तिश्री दिलीप बाबासाहेब भोसले ने व्यक्तिगत कारणों से 12.01.2020 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। दुर्भाग्यवश 2 मई, 2020सको न्यायमूर्ति श्री अजय कुमार त्रिपाठी की मृत्यु हो गई।

अध्यक्ष और सदस्यों का संक्षिप्त जीवनवृत्त इस प्रकार है:

न्यायमूर्ति श्री पिनाकी चंद्र घोष

न्यायमूति श्री पिनाकी चंद्र घोष ने वाणिज्य स्नातक की डिग्री सेंट ज़ेवियर कॉलेज और विधि स्नातक की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वे कलकता उच्च न्यायालय में एटॉर्नी एट लाॅ भी बने। तत्पश्चात उन्होंने 1976 में कलकत्ता बार में कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने पश्चिम बंगाल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और अंडमान एवं निकोबार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष के रूप में योगदान किया। जुलाई 1997 में उन्हें कलकता उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्हें 2012 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और बाद में उनहोंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के स्थायी मुख्य न्यायाधीश की भी ज़िम्मेदारी निभाई। आंध्र

प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने नाल्सार (NALSAR), हैदराबाद के कुलाधिपति के रूप में भी कार्य का निष्पादन किया। 8समार्च, 2013 में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया, जहां से वे 27 मई, 2017 को सेवानिवृत्त हुए। 29.6.2017 से 21.3.2019 तक उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली के सदस्य के रूप में सेवा की। 25 नवंबर, 2019 को उन्हें एमिटी यूनिवर्सिटी, गौतम बुद्ध नगर, उ.प्र.द्वारा मानद डॉक्टरेट डिग्री (एलएल. डी. ओनोरिस कौज़ा) से सम्मानित किया गया।

न्यायमूर्ति श्री प्रदीप कुमार मोहंती

न्यायमूर्ति श्री प्रदीप कुमार मोहंती ने 1978 में बार काउंसिल में कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने मुख्यतः संवैधानिक, आपराधिक और सिविल लॉ में वकालत की, मगर साथ ही कानून की अन्य शाखाओं से जुड़े मामलों में भी सक्रिय रहे। उड़ीसा राज्य बार काउंसिल के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया, जिस पद पर वे तीन कार्यकाल तक सेवारत रहे। वर्ष 2000 में वे उड़ीसा उच्च न्यायालय बार ऐसोसिएशन के सचिव चुने गए। उन्होंने 7.3.2002 को उड़ीसा उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में और फिर 6.3.2004 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें पांच बार उड़ीसा उच्च न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्होंने झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश और बाद में मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी सेवा की। उन्होंने दिसंबर 2012 से अप्रैल 2016 तक उड़ीसा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष के रूप में सेवा की। उन्होंने एन.एल.य.. कटक और एन.यू.एस.आर. एल, रांची के कुलाधिपति के रूप में भी कार्य किया। उन्हें 27 मार्च, 2019को “भारत के लोकपाल’ के न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।

न्यायमूर्ति श्रीमती अभिलाषा कुमारी

न्यायमूर्ति श्रीमती अभिलाषा कुमारी ने 26 मार्च, 1984 को हिमाचल प्रदेश उच्च्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने स्थाई अधिवत्ता के रूप में हिमाचल प्रदेशसके विभिन्न विश्वविद्यालयों, बोडों एवं निगमों का प्रतिनिधित्व किया। वह 1995 से 2002

तक केन्द्र सरकार की स्थायी काउन्सेल भी रहीं। बाद में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के अपर महाधिवक्ता के रूप में सेवा की। उन्होंने सिविल, आपराधिक, संवैधानिक, सर्विस और कंपनी कानून सहित कानून की सभी शखाओं में वकालत की। उन्हें 2 दिसंबर, 2005 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया, जहां उन्होने 9 जनवरी, 2006 को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें 25 सितंबर, 2006 को गुजरात उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 9 फरवरी, 2018 को वे मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुई और उन्हें उस राज्य की पहली महिला मुख्य न्याशधीश बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उन्हें य17 मई, 2018 को गुजरात राज्य मानवाधिकर आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्हें 27 मार्च, 2019 को “भारत,के लोकपाल’ के न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।

श्री महेन्द्र सिंह

श्री महेन्द्र सिंह ने 1980 में इंगलिश में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की। 1981 में उन्होंने भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क एवं केंद्रीय उत्पाद) में कार्य ग्रहण किया। अपने उस सेवा काल में उन्होंने देशभर में तस्कर निवारण, अवैध ड्रग व्यापार निवारण, और केंद्रीय उत्पाद आसूचना के क्षेत्र में चुनौतीपर्ण कार्यभार संभाले। उन्हें बड़ी संख्या में तस्करी और कर अपवंचन के मामलों का पता लगाने और अंतर्राष्ट्रीय ड्रग सिंडिकेट्स को तोड़ने का श्रेय प्राप्त है। उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा दो बार प्रशंसा प्रमाणपत्र’ प्रदान किया गया। उन्हें मई 2017 में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमाशुल्क बोर्ड (सी.बी. आई. सी.) में सदस्य (जी. एस.टी.) के रूप में पदोन्नत किया गया। सदस्य (जी. एस. टी.) के रूप में उन्होंने । जुलाई, 2017 को भारत में सबसे बड़े कर-सुधार के रूप में शुरू किए गए जी. एस. टी. को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने वाले अधिकारियों के दल का नेतृत्व किया। उन्हें 27 मार्च, 2019 को “भारत के लोकपाल’ के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।

डॉ. डंद्रज़ीत प्रसाद गौतम

डॉ. आइ.पी. गौतम ने 1976 में मास्टर्स डिग्री, और 1980 में लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने सीईपीटी विश्वविद्यालय, अहमदाबाद से पीएच.डी. डिग्री प्राप्त की। डॉ. गौतम ने अपनेकरियर की शुरूआत सहायक आयुक्त, आय कर के सरूप में भारतीय राजस्व सेवा से की; बादमें । 986 में उन्होने भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्य ग्रहण किया, और उन्हें गुजरात राज्य काडर आबंटित किया गया। उन्होंने एस.डी.एम. : कलेक्टर, संयुक्त एम.डी. जीआईआईसी; निदेशक (वित्त) सरदार सरोवर नर्मदा परियोजना; एम.डी., गुजरात पावर कारपोरेशन; सचिव ऊर्जा; सचिव, गृह; सचिव, पत्तन; तथा राजकोट और अहमदाबाद के निगमायुक्त सहित अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य निष्पादन किया। गुजरात सरकार के प्रधान सचिव के रूप में उन्होंने अनेक प्रमुख विभागों, जैसे कि शहरी विकास, शहरी गृह निर्माण, पत्तन एवं परिवहन की अध्यक्षता की है। उन्होंने राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय रूप से सुविख्यात परियोजनाओं, जैसे कि साबरमती नदी फ्रंट, बीआरटीएस, कंकड़िया झील फ्रंट और मेट्रो रेल परियोजना अहमदाबाद, आदि का नेतृत्व किया और उन्हें कार्यान्वित किया। उन्होंने गुजरात मेट्रो रेल कारपोरेशन लि, के प्रबंध निदेशक के रूप में भी पाँच वर्ष से अधिक समय तक सेवा की है। उन्हें 27 मार्च, 2019 को “भारत के लोकपाल’ के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है।

श्री दिनेश कुमार जैन

श्री दिनेश कुमार जैन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से बी.टेक एवं एम.टेक किया। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ हल्ल, यूनाइटेड किंगडम से एम.बी. ए. किया। उन्होंने 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइ.ए.एस.) में कार्य ग्रहण किया और उन्हें महाराष्ट्र काडर आबंटित किया गया। भारत सरकार में उन्होंने संयुक्त सचिव (एमजीनरेगा), ग्रामीण विकास मंत्रालय और अपर सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के रूप में काम किया उन्होंने महाराष्ट्र शासन में सचिव, ग्रामीण विकास, सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी एवं वित्त सचिव सहित विभिन्न परदों पर सेवा की उन्हें मई,2018 में महाराष्ट्र शासन का मुख्य सचिव नियुक्त किया गया। उन्हें 27 मार्च, 2019 को “भारत के लोकपाल’ के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।

श्रीमती अर्चना रामासुन्दरम

श्रीमती अर्चना रामासुन्दरम राजस्थान विश्वविद्यालय से अर्थशारू्र में सातकोत्तर हैं और उन्होने यूनिव्सिटी ऑफ सदर्न कैलीफोर्निया, यू एस.ए. से अपराधशास्त्र में एम, एस. डिग्री भी अर्जित की है। उन्होंने 1980 में भारतीय पुलिस सेवा (आइ.पी.एस.) में कार्य ग्रहण किया और उन्हें तमिलनाड़ काडर आबंटित किया गया। उन्होंने पुलिस अधीक्षक, नीलगिरी, पुलिस अधीक्षक (सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोध) और पुलिस उप महानिरीक्षक, वेल्लोर रेंज के रूप में काम्म किया। उन्होंने भारत सरकार में डीआईजी, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के रूप में भी सेवा की; वह पहली महिला थीं, जिन्हे केद्रीय अन्वेषण ब्यूरो में प्रोन्नत किया गया। तमिलनाड़ में अपर पुलिस महानिरीक्षक के रूप में वह अभियोजन निदेशालय, आर्थिक अपराध खंड, अपराध शाखा सीआईडी, प्रशिक्षण और पुलिस आवास निगम, तमिलनाड़ की प्रमुख रहीं। उन्हें 2012 में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में पदोन्नत किया गया और तमिलनाडु वर्दी सेवाभर्ती बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में तैनात किया गया। उन्होंने 2015-16 के दौरान महानिदेशक, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के रूप में भी कार्य किया। फरवरी 2016 में सशस्त्र सीमा बल (एस.एस. बी.) के महानिदेशक के रूप में अपनी नियुक्ति पर उन्होंने भारत में अर्ध सैनिक बल/ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की अध्यक्षता करने वाली पहली महिला होने का गौरव हासिल किया। उन्हें 1995 में मेधावी सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक और 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया। उन्हें 27 मार्च, 2019 को “भारत के लोकपाल’ के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।

देश के नए लोकपाल : जस्टिस खानविलकर

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे और सुप्रीम कोर्ट जज से रिटायर जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर देश के नए लोकपाल होंगे। उनके अलावा न्यायिक और गैर न्यायिक सदस्यों की भी नियुक्ती की गई है ।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, प्रधानमंत्री और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के द्वारा लोकपाल का नाम तय किया गया था। उनके नाम की अनुशंसा के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश की गई थी। जस्टिस एलएन स्वामी, जस्टिस जस्टिस रितुराज ,जस्टिस संजय यादव न्यायिक सदस्य नियुक्त किए गए हैं। जबकि गैर न्यायिक सदस्यों में सुशील चंद्र, पंकज कुमार और अजय तिर्की को नियुक्त किया गया है। □□

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