देश के शीर्ष मीडिया हाऊस आरंभ से आज तक 

देश के शीर्ष मीडिया हाऊस , आरंभ से आज तक 

1838-टाइम्स ऑफ इंडिया 

बॉम्बे के व्यापारी समुदाय केलिए हुई थी इसकी शुरुआत

नवंबर 1838 को बॉम्बे टाइम्स एंड जर्नल ऑफ कॉमर्स नाम के अखबार की शुरुआत हुई। अखबार बंबई के व्यापारी समुदाय के लिए था। शनिवार-बुधवार को प्रकाशित होता था। 1850 से रोजाना प्रकाशन शुरू हुआ।1861 में इसे द टाइम्स ऑफ इंडिया नाम मिला। 1892 में इसे थॉमस ज्वेल बेनेट और फ्रैंक मोरिस कोलमेन ने खरीदा। 1946 में उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया ने इसे खरीदा। इसके बाद उनके दामाद साह शांति प्रसाद जैन ने कमान संभाली। तब से यह जैन परिवार द्वारा संचालित है।

1890-मलयाला मनोरमा

त्रावणकोर दीवान के खिलाफ खबर छापी तो अखबार रोका

22 मार्च 1890 को मलयाला मनोरमा का पहला अंक केरल के कोट्टायम में प्रकाशित हुआ था। वर्गीज मापिल्लई पहले संपादक थे। चार पन्नों का साप्ताहिक अखबार शनिवार को छपता था। 1928 में यह दैनिक अखबार,बना। 1938 में त्रवणकोर राज्य के दीवान के खिलाफ खबर करने पर इसे प्रतिबंधित भी किया गया था। भारत की आजादी और दीवान के पतन के बाद 1947 में मलयाला मनोरमा का नियमित प्रकाशन फिर से शुरू हुआ। ‘मनोरमा ईयर बुक’ के लिए आज इसे देश भर में जाना जाता है।

1923- मातृभूमि 

सैनिकों के दुर्व्यवहार की खबर छापी तो अखबार पर लगी रोक

मातृभूमि 18 मार्च 1923 को पहली बाार कोझिकोड से प्रकाशित हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी के.पी.केशवमेनन संपादक थे। राष्ट्रीय आंदोलन की आवाज बुलंद करने के कारण रोक, प्रतिबंध, गिरफ्तारी का दबाव लगातार इस अखवार पर बना रहा। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कोच्चि में महिलाओं के साथ यूरोपीय सैनिकों के दुर्व्यवहार पर लेख छापा तो सरकार ने मातृभूमि पर रोक लगा दी। लेकिन भारी विरोध के कारण रोक हटानी पड़ी।

1948-अमर उजाला

उत्तराखंड आंदोलन के दौरान जलाई अखबार की प्रतियां

18 अप्रैल 1948 को डोरीलाल अग्रवाल और मुरारीलाल माहेश्वरी ने आगरा शहर से यह अखबार शुरू किया था। उत्तराखंड आांदीलन के दौरान मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव खबरों को रोकना चाहते थे, लेकिन अमर उंजाला ने लगातार आदोलन की खबरें कीं।अखबार के खिलाफ हल्लावबोल का सार्वजनिक ऐलानवकिया गया था। अखवार की प्रतियां जलाई जाने लगींवऔर विज्ञापन रोक दिए गए । आज अखबार 6 राज्यों वव2 केंद्र शासित राज्यों में मौजूद है।

1924-हिन्दुस्तान टाइम्स

आजादी की लड़ाई के लिए अकालियों ने की थी शुरुआत

1924 में अकाली दल शिरोमणि के संस्थापक सुंदर सिंह लायलपुरी ने आजादी की लड़ाई में मदद के लिए अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स शुरू किया था। अकालियों को इसे चलाने में दिक्कत होने लगी तो गांधी जी के कहने परशपंडित मदनमोहन मालवीय ने 1925 में लाला लाजपतराय, जेडी बिड़ला की मंदद से 40 हजार रुपए जुटाकर इसे कुछ समय के लिए संभाला। 1933 में जेडी बिड़ला ने इसे ले लिया। गांधीजी के बेटे देवदास गांधी भी 1937 से 1957 तक इसके मैनेजिंग एड़िटर रहे।

1958- दैनिक भास्कर

आजाद भारत की जरूरतों को पूरा करने वाला अखबार

1956 में आज़ाद भारत की जरूरतों को समझते हुए द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने भोपाल से ’सुबह सवेरे’ और ग्वालियर से ‘गुड मॉनिंग इंडिया’ का प्रकाशन शुरू किया ।1957 में इन दोनों अखबारों का नाम बदलकर ‘भास्कर समाचार’ कर दिया गया। फिर 1958 में अखबार का नाम दैनिक भास्कर कर दिया गया। द्वारका प्रसाद अग्रवाल के बाद उनके बेटे रमेश चंद्र अग्रवाल ने इसे संभाला। वे कहते थे पाठक ही अखबार का मालिक हैं। ‘केंद्र में पाठक’ के इसी सिद्धांत पर अखबार प्रकाशित होता है।

1932- इंडियन एक्सप्रेस

इमरजेंसी में संपादकीय खाली छोड़कर जताया था विरोध

5 सितंबर 1932 को आयुर्वेदिक डॉक्टिर पी वरदराजू नायडू ने मद्रास में इंडियन एक्सप्रेस की शुरुआत की। उन्हें दक्षिण भारत का तिलक कहा जाता था। वित्तीय संकट के कारण 1939 में रामनाश गोयनका ने इसे ले लिया। त्रवणकोर और मैसूर राजघरानों का राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति नकारात्मक नजरिया था । इसके खिलाफ लेख लिखने पर कुछ समय के लिए अखबार पर प्रतिबंध भी लगा।ष1975 में इमरजेंसी में इंडियन एक्सप्रेस ने सेंसरशिप के खिलाफ संपादकीय खाली छोड़कर विरोध जताया था।

1965-पंजाब केसरी

जेल में लाला लाजपत राय से मिली थी अखबार की प्रेरणा

पंजाब केसरी के संस्थापक जगत नारायण सिर्फ 21वर्ष के थे, जब उन्होंने कानून की पढ़ाई छोड़ कांग्रेस जॉइन की थी। बाद में नारायण की मुलाकात लाला लाजपत राय से लाहौर जेल में हुई। 1929 में लाला लाज़पत राय द्वारा स्थापित लोक सेवक मंडल ने पंजाब केसरी नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित करना शुरू किया। हालांकि आधिकारिक तौर पर अखबार 1965 में शुरू हुआ था। स्थापना के 16 साल बाद लाला जगतनारायण की आतंकियों ने हत्या कर दी थी।

1878-द हिन्दू

छह युवाओं ने 1 रुपया 12 आना उधार लेकर किया था शुरू

बात 1878 की है। तत्कालीन एग्लो-इंडियन प्रेस मद्रास हाई कोर्ट की जजों की बेंच में सर टी. मुथुस्वामी अय्यर को शामिल करने के खिलाफ था। इस पर लॉ के चार छात्रों और दो शिक्षकों ने चेन्नई से साप्ताहिक ‘द हिन्दू’ अखबार शुरू किया। 23 साल के शिक्षक जी. सुब्रमण्यम अय्यर संपादक व 21 वर्षीय शिक्षक एम. वीर राधवाचार्य मैनेजिंग डायरेक्टर थे। 1 रुपए 12 आने की पूंजी से इसकी शुरुआत हुई थी। 1905 में एस. कस्तूरीरंगा आयंगर ने इसे ले लिया। तब से अखबार कस्तुरी परिवार के पास है।

1922- आनंद बाजार

कट्टर देश भक्ति के कारण अंग्रेजों के लिए बना था चुनौती

1922 में आनंद बाजार पत्रिका पहली बार चार पेज वाले शाम के दैनिक अखबार के रूप में सामने आया था। इसकी कीमत, दो आने थी और रोज इसकी एक हजार प्रतियां बिकती थीं। कट्टर देश भक्ति के कारण यह अंग्रेजों के लिए चुनौती बन गया। 1931 में कुछ महीनों के लिए इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था,लेकिन यह पहले से अधिक मजबूत होकर वापस आया। इसके पहले 1876 में जेसोर (अब बांग्लादेश) से अमृत बाजार पत्रिका अखबार निकालता था।

1942- दैनिक जागरण 

गाधीजी के आह्वान पर तीन महीने रोका था प्रकाशन

आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियों से लोगों को जागरूक रखने के उद्देश्य से 1937 में पूरणचंद गुप्त ने कानपुर के धन्नाकुट्टी में युगांतर नाम की एक प्रिंटिंग प्रेस शुरू की। 1938 में एक साप्ताहिक अखबार के प्रकाशन का विचार आया। 1939 में साप्ताहिक अखबार कानपुर से शुरू किया गया। 1942 में दैनिक जागरण का प्रकाशन झांसी से शुरू किया गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी जी के आह्वान पर अंखबार का प्रकाशन तीन महीने बंद रहा।

1974-इनाडू 

सुबह का अखबार शाम को मिलता था, इसलिए बना इनाडू

चेरुकुरी रामोजी राव ने 1974 में आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तनम से तेलूगु भाषा का अखबार इनाडु शुरू किया। तब विशाखापट्टनम में कोई अखवार नहीं था।आंध्रज्योति अखबार विजयवाड़ा से निकलता और दोपहर में विशांखापत्तनम पहुंचता था। लोग शाम को काम से लौटकर अखवार पढ़ते थे। सुबह के अखवार की कमी को समझते हुए रामोजी राव ने इनाडू की शुरुआत की। 1975 में इनाडू हैदराबाद और 1978 में विजयवाड़ा से भी शुरूकिया गया। अब यह प्रदेश का सबसे बड़ा अखबार है।

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