पुनर्जागरण (Renaissance) का अर्थ एवं पृष्ठभूमि
पुनर्जागरण (Renaissance) का अर्थ एवं पृष्ठभूमि
पुनर्जागरण (Renaissance) शब्द का सामान्य अर्थ होता है. फिर से जागना’ अर्थात् पुनर्जागरण से तात्पर्य उस बौद्धिक आन्दोलन से है. जिसके तहत पश्चिम के राष्ट्र मध्ययुग की प्रवृत्तियों अर्थात् चर्चवाद, धर्मान्धता, सामंतवाद एवं रूढिवादिता जैसे विचारों से निकलकर वर्तमान युग के तार्किक विचार, पंथनिरपेक्षता तथा व्यावहारिक जीवन की पद्धतियों को ग्रहण करने लगे इस अर्थ में पुनर्जागरण शब्द का यथार्थ नाम मध्य- कालीन पुनर्जागरण होना चाहिए, क्योंकि कला, साहित्य एवं ज्ञान का पुनर्जन्म केवल यूनानी ज्ञान एवं संस्कृति की पुनः स्थापना के सन्दर्भ में ही ठीक है. इस प्रकार पुनर्जागरण उन सांस्कृतिक मान्यताओं का क्रमिक विकास मात्र था. जिसकी शुरूआत कैलोलिगन युग में ही हो गई थी.
पुनर्जागरण का शुभारम्भ धर्मयुद्ध के बाद इटली के फ्लोरेन्स नगर में हुआ था. फ्लोरेन्स निवासी दाँते (1265-1321 ई) को पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है
जिन्होंने स्थानीय भाषा टस्कन में ‘डिवाइन कामेडी’ एवं ‘डिमोनार्किया’ लिखकर संकीर्ण विचारधाराओं की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. इस प्रकार पुनर्जागरण शब्द का प्रयोग इतिहासकारों ने रेनेसा की जन्म- भूमि इटली में 14वीं शताब्दी में हुए कला एवं ज्ञान के उस जागरण से लगाया है, जो 16वीं शताब्दी तक आल्पस पर्वत को पार कर सम्पूर्ण यूरोप महाद्वीप तथा बाद के काल में उपनिवेशों में फैल गया. यह कोई राजनैतिक अथवा धार्मिक आन्दोलन नहीं था बल्कि यह मानव की एक विशिष्ट मनोदशा को उजागर करता है. इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन की तरह यह एक बौद्धिक आन्दोलन था जिसका सम्बन्ध यूरोप के सामाजिक, धार्मिक राज- नैतिक एवं सांस्कृतिक विकास से था. यूरोप के सांस्कृतिक इतिहास में 15वीं एवं ।6 वीं शताब्दी एक नवीन युग का परिचायक है, क्योंकि इस युग में कला, साहित्य, विज्ञान, दर्शन एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में नवीन आदर्शों की स्थापना हुई जिसके फलस्वरूप यूरोपीय लोगों ने अंधविश्वास. भाग्यवाद, तन्त्रवाद आदि से निक लेकर तर्कवाद, विज्ञानवाद, पंथनिरपेक्षता एवं शिक्षा आदि को ग्रहण किया इससे पहले यूरोपीय जनता सामतवाद, पवित्र रोमन साम्राज्य, अशिक्षा, अंधविश्वास एवं ईसाई धर्म के कर्मकाण्डों की प्रगाढ निदा में सोई हुई थी. अर्थात् सम्पूर्ण यूरोप में चारों ओर अशिक्षा, अंधविश्वास, संकीर्णता. चर्चवाद एवं सामंतवाद का बोलबाला था जिस यूनानी भाषा एवं विज्ञान से पाश्चात्य विद्वान परिचित थे वह भी लुप्त सी हो गई थी और लैटिन भाषा का ज्ञान भी अत्यन्त सीमित था. ईसाई धर्म एवं मठों का इतना बोलबाला था कि लोग इनके अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे बाइबिल का अध्ययन एवं मनन की सर्वश्रेष्ठ ज्ञान एवं विद्वता मानी जाती थी. पादरी वर्ग लोगों के दिन प्रतिदिन की जिंदगी में न केवल जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करते थे, बल्कि धर्मग्रन्थों के स्वतन्त्र मनन एवं चिन्तन के घोर विरोधी थे. राजनीतिक जीवन में भी सर्वत्र अराजकता व्याप्त थी.
समाज पूर्णतया गतिहीनसा हो गया था संक्षेप में कह सकते हैं कि यूरोपीय समाज में बौद्धिक विकास की सभी दशाएं अवरुद्ध हो गई थीं, लेकिन यह स्थिति बहुत दिनों तक नहीं चल सकी और धीरे-धीरे लोग कूपमंडूक स्थिति से बाहर निकलने लगे परिणामस्वरूप मानव जीवन में चहुँओर ज्ञान-विज्ञान की किरण फूटने लगी जिससे यूरोपीय देशों में भौगोलिक अन्वेषण, खोजें, आविष्कार एवं महत्वाकांक्षी सामुद्रिक अभियानों को बढ़ावा मिला. इससे न केवल यूरोपीय देश विविध संस्कृतियों के सम्पर्क में आए, बल्कि उनकी मानसिकता संकीर्ण न रहकर सर्वग्राही बनने लगी. इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह पड़ा कि यूरोपीय देश औद्योगिक विकास के उस मार्ग पर अग्रसर हुए जिस पर चलकर उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को अपना गुलाम अर्थात् उपनिवेश स्थापित किए. रेनेसां अर्थात् पुनर्जागरण के लिए उर्वर भूमि इटली ने ही प्रारम्भ की, जोकि स्वयं छोटी-छोटी रियासतों तथा रजवाड़ों में बंटी थी गौरवपूर्ण रोमन साम्राज्य की स्मृतियों ही अब तक भव्य खण्डहरों के रूप में शेष रह गई थीं. रोमन कैथोलिक चर्च ही एक मात्र ऐसी संस्था थी. जो सम्पूर्ण यूरोप को धार्मिक एवं सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोती थी संकीर्ण प्रवृत्तियों, सामंतों के अत्याचारों, श्रेष्ठ वर्ग की मानसिकता तथा राज्य के शोषणकारी चरित्र ने ही सोई हुई जनता के आत्मसम्मान को जगाकर रेनेंसा को गतिशील बनाया.
इस समय इंगलैण्ड में महारानी एलिजाबेथ प्रथम तथा रूस में पीटर महान् का शासन था, जागरण से जितने बड़े-बड़े नाम जुड़े हैं, जैसे दांते, लियोनार्दों दा विंसी, माइकेल एंजलो, बोकेशियो, निकोलो मैकियावली एवं राफेल आदि सभी इटालवी भूमि की पौधशाला में पनपे थे और सभी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थी. जैसेकि दांते ने ‘डिवाइन कॉमेडी’ एवं डि मोनार्किया’, लियानोर्दो विंसी ने ‘लास्ट सफर’ एवं ‘मोनालिसा’, माइकल एंजलो ने ‘लास्ट जजमेंट’ एवं ‘दा फॉल ऑफ मैन. बोकेशियो ने ‘डेकामैरोन’ मैकियावली ने ‘दा प्रिन्स’ एवं राफेल ने मेडोना का चित्र आदि के माध्यम से सोई हुई जनता में ज्ञान एवं तर्क का विगुल बजाया यद्यपि रेनेसां से पहले 12वीं एवं 13वीं शताब्दी के महान् विद्वान् अरस्तू के लुप्तप्राय ग्रंथ अरब लोगों के माध्यम से लौट आए थे. संत टॉमस एक्विनास जैसे दार्शनिक अपनी.प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके थे, लेकिन.वास्तविक बौद्धिक आन्दोलन जिसे नवजागरण या पुनर्जागरण या रेनेसां कहते हैं. का प्रारम्भ 14वीं शताब्दी से ही प्रारम्भ हो सका लेकिन पुन- पुनर्जागरण की समस्त परिभाषाओं एवं लक्षणों, जोकि पहले जिन पर विचार किया जा चुका है, उनको ध्यान में रखते हुए यह ही कहा जा सकता है कि पुनर्जागरण के फलस्वरूप रचनात्मक शक्ति जीवन की सभी दिशाओं में उमड़ पड़ी और सभ्यता एवं संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में न केवल आशातीत विकास हुआ, बल्कि विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कारों ने व्यापार एवं वाणिज्य को बढ़ाकर सम्पूर्ण यूरोप में ज्ञान एवं आर्थिक समृद्धि का वह मार्ग प्रशस्त किया.जोकि सम्पूर्ण यूरोप, सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपनी अलग पहचान बना सका. संक्षेप में कह सकते हैं कि रेनेसां उस धर्मनिरपेक्ष, जिज्ञासू और आत्मनिर्भर मनोदशा का पुनर्जन्म था, जो प्राचीन यूरोपीय सभ्यता और जीवन प्रणाली का प्रमुख लक्षण था. पुनर्जागरण इटली में ही क्यों? इटली द्वारा पथप्रदर्शन पुनर्जागरण के प्रारम्भ से पूर्व एक अलविजेनसियम (बुद्धिवादी) आन्दोलन हो.चुका था, लेकिन दुर्भाग्यवश यह आन्दोलन धार्मिक प्रतिक्रियावादी तत्वों के कारण असमय बंद हो गया. यद्यपि यह आन्दोलन बंद.हो गया, लेकिन इस आन्दोलन ने पुनर्जागरण के लिए पथप्रदर्शन का कार्य किया. पुन-.जागरण का वास्तविक रूप में प्रारम्भ इटली में ही हुआ था. जिस प्रकार धर्म सुधार आन्दोलन का प्रारम्भ जर्मनी में हुआ था. पुनर्जागरण का प्रारम्भ इटली में ही होने के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-
(1) इटली वस्तुत: भूमध्यसागर में अवस्थित होने के कारण वहाँ व्यापार एवं वाणिज्य की असाधारण उन्नति हुई और बड़े-बड़े नगरों का उदय हुआ. इन नगरों के धनी लोग न केवल विद्वानों एवं दार्शनिकों के आश्रयदाता थे, बल्कि इन इटालियन का राजनीतिक, बौद्धिक और कलात्मक जीवन भी प्राचीन नगरवासियों की तरह था. उदाहरणार्थ फ्लोरेन्स नगर इटली का एथेन्स प्रतीत होता था. इस प्रकार का वातावरण अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण विभिन्न संस्कृतियों के साथ आदान-प्रदान के लिए सदैव तत्पर रहता था. संक्षेप में कह सकते हैं कि यूरोप अन्य देशों की अपेक्षा इटली का वातावरण पुनर्जागरण के लिए पूर्णतया अनुकूल था.
पुनर्जागरण इटली में ही क्यों?
1. अनुकूल भौगोलिक दशाएँ.
2. विभिन्न जातियों तथा सभ्यताओं का मिश्रण
3. शिक्षा का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप.
4. रोमन सभ्यता से निकट सम्बन्ध.
5. प्राचीन रोमन साम्राज्य के खण्डहरों पर इटली की भौगोलिक स्थिति,
6. कांन्सटेटीनोपुल का पतन और विद्वानों द्वारा इटली में शरण लेना.
7. पुनर्जागरण के अग्रदूत दांते एवं अन्य विद्वानों का इटली में जन्म,
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(2) इटली में विभिन्न जातियों के सम्मिश्रण, जैसे- गाथ, लोग्बार्ड, फ्रैक, अरव और जर्मन ने भी महत्वपूर्ण पुनर्जागरण के लिए अनुकूल भूमि तैयार की इन जातियों के एक साथ रहने के कारण रोमन, बैजेन्टाइन एवं अरब सभ्यताएँ न केवल एक-दूसरे के सम्पर्क में आई, बल्कि इससे लोगों का मानसिक एवं बौद्धिक उत्थान भी प्रारम्भ हुआ. परिणामस्वरूप इटली में बौद्धिक आन्दोलन के लिए भूमि तैयार हुई.
(3) पुनर्जागरण इटली से प्रारम्भ होने में शिक्षा के धर्मनिरपेक्षीय स्वरूप ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यूरोप के अन्य देशों के स्कूल एवं महाविद्यालयों में जहाँ शिक्षा सिर्फ धर्मशास्त्रों से सम्बन्धित दी जाती थी, वहीं इटली में रोमन विधि (कानून) एवं चिकित्सा- शास्त्र जैसे पंथनिरपेक्षीय एवं उपयोगी विषयों के अध्ययन पर जोर दिया जाता था. शिक्षा के इस पंथनिरपेक्षीय स्वरूप ने इटलीवासियों के बौद्धिक चिंतन को बढ़ाने के साथ-साथ पुनर्जागरण को भी प्रोत्साहित किया.
(4) यूरोप के अन्य देशों की अपेक्षा इटलीवासी भाषा, रक्त एवं संस्कृति की दृष्टि से प्राचीन महान रोमन संस्कृति के अधिक निकट थे रोगन संस्कृति से निकटता के कारण उन्हें अपनी खोई गरिमा को प्राप्त की कल्पना को पख लगा देती थी और वे अपनी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए स्वत प्रेरित होते थे
(5) इटालियन नगर वस्तुत प्राचीन रोमन साम्राज्य के खण्डहरों पर ही फेले जस कारण सम्पूर्ण प्राचीन रोमन स्मारकों के खण्डहरों से भरा पड़ा था इटली की नवोदित आत्मा पूर्णकालिक महानता के समारकों को देखकर स्वयं प्रेरित होती थी तथा इटालवी मानसों पर गहरा प्रभाव डालती थी
(6) महान् यूनानी सभ्यता के सर्वाधिकमहत्वपूर्ण शहर कान्सटेंटीनोपुल के पतन के कारण वहाँ के विद्वानों ने इटली में आकर आश्रय लिया ये विद्वान् न केवल संख्या में बहुत अधिक थे, बल्कि अपने साथ प्राचीन यूनानी साहित्य की पाण्डुलिपियाँ भी लाए जिससे इटली में प्राचीन यूनानी विद्या एवं ज्ञान का प्रसार हुआ. इनमें से कई विद्वानों को तो इटली के विद्यालयों में शिक्षक भी नियुक्त किया गया था. इस प्रकार यूनानी पांडित्य ने इटालियन लोगों को बहुत अधिक प्रभावित किया था.
(7) पुनर्जागरण के अग्रदूत महान् कवि एवं दार्शनिक दांते का जन्म इटली के फ्लोरेन्स नगर में हुआ था. उनकी हार्दिक इच्छा थी कि एक ऐसा शक्तिशाली सम्राट हो जो सम्पूर्ण इटली को एकता के सूत्र में बाँध सके जब उनकी यह इच्छा पूर्ण नहीं हुई. तो वह तत्कालीन समाज एवं संस्कृति के कटु आलोचक बन गए. उन्होंने अपनी पुस्तक डिवाइन कॉमेडी’ के माध्यम से पोप तथा सामंतों के शोषणकारी चरित्र एवं नैतिक पतन की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया और कहा कि “राज्य का अस्तित्व मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए है और उसे जनता के कल्याण में हाथ बैटाना चाहिए.” वह इस बात का घोर विरोधी था कि मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में राज्य हस्तक्षेप करे इस प्रकार दाते के आधुनिक विचारों ने इटली की जनता को व्यक्तिवाद, मानववाद स्वतन्त्रता एवं समानता आदि विचारों से अवगत कराया, जोकि आगे चलकर नवीन संस्कृति तथा पुनर्जागरण के केन्द्र बिन्दु बन गए तथा यह नवीन तत्व आधुनिक शासन प्रणाली के हर पहलू में पाए जाते हैं इस प्रकार उप्युक्त सभी कारणों ने पुनर्जागरण के लिए इटली में उर्वरा भूमि को तैयार किया, बस आधुनिक विचारों के बीज पड़ते ही नवजागरण के पौधे उग खड़े हुए पुनर्जागरण के कारण 14वीं शताब्दी में प्रारम्भ हुए बौद्धिक आंदोलन की पृष्ठभूमि यद्यपि बहुत पहले से ही प्रारम्भ हो रही थी, लेकिन इस समय तक आते आते यूरोपीय महाद्वीप के एक प्रायद्वीप इटली में वे सभी दशाएँ उत्पन्न हो गई जिन्होंने पुनर्जागरण को जन्म दिया इटली में हुए पुनर्जागरण के लिए निम्न- लिखित कारण उत्तरदायी थे-
पुनर्जागरण के कारण
1. कागज एवं छापाखाना का आविष्कार
2. शिक्षा एवं साहित्य का विकास
3. तुकों का कुस्तुनतुनिया पर अधिकार
4. व्यापार एवं वाणिज्य की उन्नत स्थिति
5. धर्मयुद्ध का प्रभाव.
6. सामंतवाद का पतन
7. मंगोल साम्राज्य का सांस्कृतिक महत्व
8. महत्वपूर्ण भौगोलिक खोजें.
9. इटली में महान् विद्वानों का उदय
10. महान् रोमन साम्राज्य के खण्डहरों की शेष स्मृतियाँ,
बौद्धिक आन्दोलन को गति देने में कागज एवं छापाखाना के विकास ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन आविष्कारों के फलस्वरूप साहित्य का तीव्रता से विकास सम्भव हो सका तथा प्राचीन सड़ी-गली मान्यताओं के विरुद्ध भी प्रचार-प्रसार तीव्र हुआ. साहित्य के सुलभतापूर्वक प्राप्त हो जाने के कारण पुनर्जागरण का आधार और भी तीव्रता से तैयार हुआ. कागज एवं छापाखाने के आविष्कार ने शिक्षा एवं साहित्य की उन्नति में भी महत्वपूर्ण।भूमिका निभाई. शिक्षा एवं साहित्य की उन्नति के कारण प्राचीन ज्ञान एवं मान्यताओं को तर्कवाद की कसौटी पर कसा जाने लगा.
फलस्वरूप अज्ञान, अंधविश्वास एवं पुरानी सड़ी-गली परम्पराओं का पतन प्रारम्भ हुआ. 13वीं एवं 14वीं शताब्दी के कई विद्वानों ने प्राचीन साहित्य को पुनर्जीवित करने एवं नवीन साहित्य के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन विद्वानों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे- दांते, फ्रांसिस बेकन एवं पेत्राक आदि. इन विद्वानों ने न केवल अपने साहित्य के माध्यम से तत्कालीन समाज में फैली बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया, बल्कि प्राचीन धर्मग्रन्थों का अनुवाद कर बहुमूल्य प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति को लोगों तक पहुँचाया. परिणामस्वरूप लोगों की चिन्तन शैली में परिवर्तन के साथ-साथ पुनर्जागरण के लिए भी भूमि तैयार हुई. 14वीं एवं 15वीं शताब्दी में हुई भौगोलिक खोजों ने भी पुनर्जागरण के कारणों के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया. इस समय भौगोलिक खोजों के तहत् इटली के क्रिस्टोफर कोलम्बस ने 1492 ई. में अटलांटिक महासागर पार कर लैटिन अमरीका (बहामा द्वीप) की खोज की इसी प्रकार इटली का निवासी अमेरिगो विस्पुस्सी ने 1499 ई. में अमरीका की खोज की और उसी के नाम पर अमरीका का नाम अमरीका रखा गया.
बास्कोडिगामा ने भारत की खोज की. इसी प्रकार मार्कोपोलो एवं फ्रांसिस ड्रेक आदि ने भी नए जलमार्गों की खोज की. इन खोजों के परिणामस्वरूप भारत, चीन एवं अरब आदि तक नवीन जलमार्ग खुल गए. इन भौगोलिक खोजों से न केवल व्यापार वाणिज्य को बढावा मिला, बल्कि विभिन्न धर्म एवं संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आए. जिससे लोगों की चिंतन शैली का विकास हुआ. पुनर्जागरण के उदय में व्यापार-वाणिज्य की उन्नत स्थिति ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यूरोपीय व्यापारियों का आवागमन व्यापार वाणिज्य के उद्देश्य से यूरोप के साथ- साथ विश्व के भी अनेक देशों में हुआ जिससे विभिन्न देशों का ज्ञान-विज्ञान, परम्पराएं एवं संस्कृतियाँ सम्पर्क में आईं. परस्पर संस्कृतियों के सम्पर्क में आने के कारण न केवल विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय शहरों का विकास हुआ, बल्कि नई तकनीकी, औजार एवं ज्ञान-विज्ञान का प्रसार भी हुआ. इन अन्तर्राष्ट्रीय शहरों के भद्रजन विभिन्न विद्वानों एवं लेखकों को संरक्षण भी प्रदान करते थे जिससे शिक्षा
साहित्य का विकास भी तीव्रगति से हुआ । 14वीं शताब्दी में ईसाइयों के पवित्र धार्मिक स्थल जेरुसलम पर तुर्कों ने अधिकार कर लिया. परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच धर्मयुद्ध प्रारम्भ हुआ जिससे यूरोपीय विद्वानों को पूर्वी ज्ञान-विज्ञान के सम्पर्क में आने का अवसर प्राप्त हुआ. इस धर्मयुद्ध से जहाँ यूरोपीय अलगाववाद समाप्त हुआ, वहीं अज्ञानता में डूबी कूपमंडूक यूरोपीय जनता की चर्च एवं पोप के प्रति प्रतिष्ठा में भी कमी आई और चर्च की सर्वसत्ता को गहरा धक्का लगा. इस प्रकार इस धर्मयुद्ध ने व्यक्तिवादी एवं मानवतावादी मूल्यों को बढ़ावा देकर पुनर्जागरण की जड़ें और भी गहरी कर दीं और यूरोपीय जनता सामंतों, पादरियों एवं नौकरशाहों के चंगुल से मुक्त होकर।जीवन के क्षेत्र में स्वतन्त्र चिन्तन करने लगीं और तर्कवाद को बढ़ावा मिला. पुनर्जागरण काल में मंगोल शासक कुबलई खाँ का दरबार पूर्व एवं पश्चिम के विद्वानों का मिलन स्थल था. इस दरबार में विभिन्न देशों से आए विद्वान् अपनी-अपनी सभ्यता एवं संस्कृतियों के विषय में वाद- विवाद करते थे जिससे सभी धर्मों के अच्छे एवं बुरे तत्व उभर कर सामने आते थे. इस प्रकार मंगोल साम्राज्य में इस सांस्कृतिक मिलन ने पुनर्जागरण के लिए आधार प्रदान किया तथा विभिन्न संस्कृतियों को फलने- फूलने का अवसर प्राप्त हुआ. चूँकि इटली में महाकवि दांते, पेट्राक (मानवतावाद का संस्थापक), लियोनादोदो द विंसी, माइकल एंजलो, राफेल एवं मैकियावेली आदि विद्वानों का जन्म हुआ था. ये सभी विद्वान् विभिन्न प्रतिभाओं के धनी थे. दांते ने अपने साहित्य के माध्यम से, लियोनार्दो द विंसी, माइकल एंजिलो एवं राफेल ने अपने चित्रों के माध्यम से एवं आधुनिक राजनीति के जनक ‘दा प्रिन्स’ के रचना-।कार मैकियावेली ने अपने ग्रन्थों के माध्यम से न केवल विद्यमान बुराइयों पर कुठाराघात किया, बल्कि यूरोपीय जनता जोकि सदियों।से गहरी निद्रा में सोई थी, उसे भी जगाया.
इसी प्रकार यूरोप के अन्य देशों में भी अनेक देशों में विभिन्न विद्वानों, में महान् लेखक चौसर एवं विलियम शेक्सपीयर, जर्मनी में मार्टिन लूथर, इंगलैण्ड में फ्रांसिस बेकन आदि का उदय हुआ.।मॉण्टेस्क्यू प्रथम दार्शनिक थे जिन्होंने शक्ति के पृथक्करण का सिद्धान्त पारित किया तथा महान् अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘दि वैल्य ऑफ नेशन्स’ के द्वारा अहस्तक्षेप की नीति प्रतिपादित की इन।सभी विद्वानों ने अंधविश्वासों पर कुठाराघात कर तर्कवाद को बढ़ावा दिया.
पुनर्जागरण को प्रेरित करने में महान् रोमन साम्राज्य के खण्डहरों की शेष स्मृतियों।ने भी योगदान दिया. वस्तुतः इटली का।विस्तार रोमन साम्राज्य के खण्डहरों पर ही था, जोकि उन्हें अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता रहता था. अतीत की इस।गौरवशाली परम्परा ने उन्हें अपने वर्तमान।को सुधारने के लिए प्रेरित किया. जैसे-ब्रिटेन।इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उपर्युक्त सभी कारणों ने पुनर्जागरण के लिए अनुकूल दशाओं का निर्माण कर पुनर्जागरण के लिए मार्ग प्रशस्त किया. इन कारणों के सम्मिलित प्रभाव ने यूरोपीय जनमानस को एक नई सोच एव वैज्ञानिक विचारधारा प्रदान की जिससे यूरोपीय जनता पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं तथा मध्यकालीन प्रवृत्तियों से निकलकर नवीन, स्फूर्तिदायक एवं प्रवाहशील विचारों को ग्रहण कर विकास के मार्ग की ओर अग्रसर हुई.