भारत एवं ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और वासेनार अरेंजमेंट
भारत एवं ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और वासेनार अरेंजमेंट
हाल ही में भारत को ऑस्ट्रेलियाई समूह के 43वें सदस्य के रूप में सदस्यता प्रदान की गई। स्मरणीय है कि ऑस्ट्रेलियाई समूह उन देशों का अनौपचारिक समूह है जो रासायनिक एवं जैविक हथियारों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों के निर्यात पर नियंत्रण रखते हैं।
क्या है ऑस्ट्रेलिया समूह?
ऑस्ट्रेलिया समूह 43 देशों (यूरोपीय संघ शामिल) का एक अनौपचारिक समूह है। इसकी स्थापना 1984 में इराक द्वारा रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल के बाद 1985 में की गई थी। इसका उद्देश्य उन निर्यातों की पहचान करने में मदद करना है जिन्हें नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है ताकि रासायनिक व जैविक हथियारों के प्रयोग को रोका जा सके।
इसका यह नाम इसलिये पड़ा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने यह समूह बनाने की पहल की थी और वही इस संगठन के सचिवालय का प्रबंध भी देखता है।
सदस्यता से लाभ
ऑस्ट्रेलियाई समूह में शामिल होने के उपरांत परमाणु अप्रसार संधि-NPT का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत की सामूहिक विनाश के हथियारों के अप्रसार के संदर्भ में साख में बढ़ोतरी होगी जिससे भारत को दोहरे प्रयोग की महत्त्वपूर्ण रासायनिक एवं जैविक प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इस समूह की सदस्यता से भारत का 48-सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकत्ता समूह-NSG में प्रवेश का दावा मज़बूत होगा। वासेनार अरेंजमेंट में सदस्यता प्राप्त करने के बाद ऑस्ट्रेलियाई समू में शामिल होना चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों पर भारत की रणनीतिक व कूटनीतिक जीत है क्योंकि अभी तक ये दोनों देश उपरोक्त संगठनों के सदस्य नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि भारत, 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता करने के बाद से ही NSG, MTCR, आस्ट्रेलियाई समूह एवं वासेनार अरेंजमेंट जैसे निर्यात नियंत्रण समूहों की सदस्यता हासिल करने का प्रयास
करता रहा है। ये चारों संस्थाएं परंपरागत, परमाणु, जैविक व रासायनिक हथियारों तथा प्रौद्योगिकी के निरयात को नियंत्रित करती हैं। इन जाए सें से तीन की सदस्यता हासिल करने के बाद न सिर्फ सामूहिक विनाश के हथियारों के अप्रसार के क्षेत्र में भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख में वृद्धि है बल्कि इससे भारत को दहरे प्रयोग की अत्याधुनिक तकनीक प्राप्त करने में भी सुगमता होगी।
सदस्यता से नुकसान
कुछ विशेषज्ञ इन मंचों को एक लॉबी की संज्ञा देते हुए कहते हैं कि इनका सदस्य बन जाने से भारत अंतराष्ट्रय समुदाय में भले ही अपनी साख बढ़ा लेगा, लेकिन अंततः वह अत्याधुनिक तकनीक पाने के अपने रास्ते बंद कर रहा है, क्योंकि ये सभी मंच किसी-न-किसी प्रकार से प्रतिबंध और नियंत्रण लगाने वाले मंच हैं। उनका मानना है कि ये मंच विकसित देशों के हितो को साधते हैं और विकासशील देशों को प्रतिबंधों एवं नियंत्रणों के माध्यम से आधुनिक तकनीक से वचित करते हैं। उनका कहना है कि इन चारों मंचों से जुड़े विकसित देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियम तैयार करते हैं. लेकिन उनका पालन प्रत्येक सदस्य देश को करना पड़ता है।
उनका यह भी कहना है कि भारत किसी भी मंच का सदस्य क्यों न बन जाए, विकसित देशों ने न तो पहले कभी अत्याधुनिक तकनीक हस्तांतरित की है और न अब करने वाले हैं, क्योंकि इसके लिये द्विपक्षीय समझौतों की आवश्यकता होती है न कि बहुपक्षीय समझौतों की ।
भारत क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा तथा उत्कृष्ट निर्यात नियंत्रण पर निगरानी रखने वाली संस्था वासेनार व्यवस्था (Wassenaar Arangement-W.A) का 42वाँ सदस्य बन गया है। इस निर्यात नियंत्रण निकाय में प्रवेश के बाद परमाणु अप्रसार सधि (NPT) का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत की परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में साख बढ़ जाएगी।
वासेनार अरेंजमेंट
क्या है वासेनार व्यवस्था?
परंपरागत हथियारों और दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं एवं प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण में पारदर्शिता और अधिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देने तथा क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता में योगदान देने के लिये वासेनार व्यवस्था की स्थापना वर्ष 1996 में वासेनार (नीदरलैंड्स) में की गई थी।
* यह परमाणु आपूर्तिकत्त्ता समूह (NSG) और मिसाइल टेक्नोलॉजी कट्रोल रिजीम (MTCR) की तरह ही परमाणु अप्रसार की देखरेख करने वाली एक संस्था है। इसका मुख्यालय वियना में है। वासेनार व्यवस्था सदस्य देशों के बीच परंपरागत हथियारों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में पारदर्शिता को बढ़ावा देती है। इसके सदस्यों को यह सुनिश्चित करना होता है कि परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण का दुरुपयोग न हो और इसका इस्तेमाल सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में न किया जाए। इसका उद्देश्य आतंकवादियों द्वारा इन वस्तुओं के अधिप्रहण को रोकना भी है। 2013 में वासेनार व्यवस्था में इन्टुजन सॉफ्टवेयर शामिल किया गया था जो प्रभावी रूप से निगरानी उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है और साइबर स्पेस में प्रोटेक्टिव काउंटरमेजर्स को विफल करने से संबंधित है। वे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर जो सूचना प्राप्त करने में मदद करते हैं उन्हें भी इस प्रतिबंधित श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
पक्षकार राज्य अपनी राष्ट्रीय नीतियों के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि इन मदों का स्थानांतरण सैन्य क्षमताओं के विकास या वृद्धि में न किया जाए।
सदस्यता से भारत को लाभ
वासेनार व्यवस्था में सदस्यता से परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावजूद भारत आप्रसार के क्षेत्र में अपनी पहचान बना पाएगा और परमाणु अप्रसार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को वैश्विक पहचान मिलेगी। परमाणु अप्रसार क्षेत्र में देश का कद बढ़ने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी। विशेषकर भारत दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और तकनीकों को हासिल कर पाएगा। इसकी सदस्यता प्राप्त कर लेना चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों पर भारत की रणनीतिक विजय है क्योंकि अभी तक ये दोनों देश इसके सदस्य नहीं हैं। परमाणु आपूर्तिकत्ता समूह (एनएसजी) और ऑस्ट्रेलिया समूह में शामिल किये जाने का भारत का दावा भी मज़बूत होगा। पिछले वर्ष भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) समूह में शामिल हुआ था।
निकट भविष्य में ऑस्ट्रेलिया समूह में प्रवेश भारत के NSG में प्रवेश के प्रयास के बारे में कुछ देशों में सशय को समाप्त करने में मदद करेगा। उल्लेखनीय है कि 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता होने के बाद से ही भारत NSG, MTCR, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और वासेनार अरेंजमेंट सहित सभी बड़े निर्यात नियंत्रण समूहों की सदस्यता हासिल करने के लिये प्रयास करता आ रहा है। ये चारों ही संस्थाएँ परंपरागत, परमाणु, जैविक व रासायनिक हथियारों तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात को नियंत्रित करती हैं।
सदस्यता से होने वाले नुकसान
कुछ विशेषज्ञ इन मंचों को एक लॉबी की संज्ञा देते हुए कहते हैं कि इनका सदस्य बन जाने से भारत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भले ही अपनी साख बढ़ा लेगा, लेकिन अंततः वह अत्याधुनिक तकनीक पाने के अपने रास्ते बंद कर रहा है, क्योंकि ये सभी मंच किसी-न-किसी प्रकार से प्रतिबंध और नियंत्रण लगाने वाले मंच हैं। उनका मानना है कि ये मंच विकसित देशों के हितों को साधते हैं और विकासशील देशों को प्रतिबंधों एवं नियंत्रणों के माध्यम से आधुनिक तकनीक से वचित करते हैं। उनका कहना है कि इन चारों मंचों से जुड़े विकसित देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियम तैयार करते हैं. लेकिन उनका पालन प्रत्येक सदस्य देश को करना पड़ता है। उनका यह भी कहना है कि भारत किसी भी मंच का सदस्य क्यों न बन जाए, विकसित देशों ने न तो पहले कभी अत्याधुनिक तकनीक हस्तांतरित की है और न अब करने वाले हैं, क्योंकि इनके लिये द्विपक्षीय समझौतों की आवश्यकता होती है, न कि बहुपक्षीय समझौतों की।
एनएसजी सदस्यता का भारत के लिये महत्त्व
भारत को परमाणु बिजली उत्पादन का विस्तार करने और निर्यात बाजार में प्रवेश करने के लिये NSG का सदस्य बनना आवश्यक है।
NSG
की सदस्यता भारत के परमाणु कार्यक्रम की निश्चितता वढ़ाएगी और इसके लिये एक कानूनी आधार तैयार करेगी जो भारत की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में निवेश हेतु विभिन्न देशों के विश्वास को बढ़ाएगा। भारत जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिये प्रतिबद्ध है और इसके लिये परमाणु बिजली उत्पादन बड़े पैमाने पर बढ़ाने की जरूरत है। नवीनतम तकनीक के उपयोग के साथ भारत परमाणु ऊर्जा उपकरणों के उत्पादन का व्यवसायीकरण कर सकता है। बदले में यह नवाचार और उच्च तकनीक विनिर्माण को बढ़ावा देगा और आर्थिक एवं रणनीतिक लाभ के लिये इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।
NSG में भारत का प्रवेश वैश्विक अप्रसार व्यवस्था को मज़बूत करेगा और 2008 में भारत को NSG से मिली छूट को औपचारिक रूप दे देगा। इसका सदस्य न होने के कारण भविष्य में होने वाले संशोधनों पर भारत का कोई नियंत्रण नहीं होगा। अर्थात् जिस छूट का भार रहा है, बाद में संशोधन करके उसे समाप्त भी किया जा सकता है। 2011 के दिशा-निर्देशों में एक बड़ा परिवर्तन कर एक नया नियम अपनाया गया जिसने परमाणु अप्रसार संधि के रूप में एक कसौटी को पेश किया कि पुनर्प्रसंस्करण और संवर्द्धन (ENR) के उपकरणों के निर्यात के लिये इस संधि पर हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
भारत को NSG की सदस्यता क्यों मिलनी चाहिये?
NPT
का हस्ताक्षरकत्त्ता और NSG का सदस्य न होने के बावजूद इसके प्रावधानों का स्वत: अनुसरण करने का भारत का अभी तक का रिकॉर्ड त्रुटिहीन रहा है।
भारत ने परमाणु व्यापार से संबंधित अपने नियम NSG के दिशा-निर्देशों क अनुसार ही बनाए हैं। इसके सिविलियन परमाणु प्रतिष्ठान भी IAEA के पर्यवेक्षण के तहत हैं।
भारत ने भविष्य में भूमिगत परमाणु परीक्षण पर स्वैच्छिक स्थगन की घोषणा कर दी है। ऐसा करके भारत ने प्रभावी ढंग से NPT और CTBT के उद्देश्यों के अनुसार कदम उठाया है। कई पश्चिमी शक्तियों के विपरीत, भारत का परमाणु सिद्धांत गैर-आक्रामक, विस्तृत न होने वाला और केवल शक्ति संतुलन के लिये ( पहले प्रयोग नहीं करने की नीति) है। इस प्रकार भारत ने स्वयं को एक ज़िम्मेदार परमाणु राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है।
भारत ने परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित उपयोग में उच्चस्तरीय विशेषज्ञता हासिल कर ली है; इसे परमाणु के नागरिक उपयोग से जुड़े परिणामों के प्रभावी नियंत्रण में महारत हासिल है और IAEA के सुरक्षा उपायों का पूर्णतया स्वीकार करने के लिये यह तैयार है।भारत ने उद्योग, बिजली, कृषि और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में परमाणु के शांतिपूर्ण उपयोग में पहले से ही उच्चस्तरीय विशेषज्ञता हासिल कर ली है। NSG में भारत की सदस्यता से केवल भारत को ही लाभ नहीं होगा चाल्क यह विश्व शांति और सद्भाव से समझौता किये बिना विश्व स्तर पर असैन्य परमाण व्यापार को प्रोत्साहित करेंगी।