ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह

ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह , 1857 के विद्रोह के नेता

सम्राट बहादुर शाहः

 वह अंतिम मुगल सम्राट और दिल्ली में 1857 के विद्रोह का नेता थे। उन्हें हिंदुस्तान का शहंशाह घोषित किया गया था। वह हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में एक प्रतिभाशाली कवि और काव्यों तथा साहित्यकारों के संरक्षक थे। वे जफर उपनाम से कविताएं लिखते थे। विद्रोह के दौरान उन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगों को एकजूट रखने, अंगरेजों द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के दौरान नगर में व्यवस्था बनाए रखने अपनी प्रजा का मनोबल ऊंचा रखने तथा।अपनी सेनाओं को आखिरी दम तक लड़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने का भरसक प्रयत्न किया।

नाना साहब:

इनका वास्तविक नाम घोंटू पंडित था और वह अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। विद्रोह के समय वह अपने परिवार के साथ बिठूर में रहते थे। कानपुर में विद्रोह के नेता नाना साहिब थे और उन्हें तात्या टोपे का सक्रिय सहयोग प्राप्त था। लगातार पराजय का सामना करने के बाद वह बचकर नेपाल चले गए और मरते दम तक अंग्रेजों का विरोध करते रहे।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई:

 वह झांसी के अंतिम मराठा राजा गंगाधर राव की विधवा थीं। जब किसी उत्तराधिकारी के अभाव में उनकी मृत्यु हो गयी तो डलहौजी ने 1817 की संधि का उल्लंघन करते हुए झांसी की ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया। 4 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई को राज्य का प्रधान घोषित किया गया और उन्होंने विद्रोहियों को साहसी नेतृत्व प्रदान किया और अंग्रेजी सेनाओं के साथ वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।

बेगम हजरत महल:

अवध के नवाब वाजिद अली शाह जिसे अंग्रेजों ने 1856 में अपदस्थ कर दिया था. की पत्नी ने अवध में विद्रोह का नेतृत्व करके अविस्मरणीय भूमिका निभाई। उसने अपने 11 वर्षीय पुत्र बिरजस कादिर के नाम से अत्यंत बुद्धिमत्ता पूर्वक शासन किया और प्रशासनिक व्यवस्था को पुनर्गठित किया। लखनऊ के पतन के बाद, वह शाहजहांपुर में मौलवी अहमदुल्ला के साथ शामिल हो गई, किन्तु पराजित हो गई और नेपाल चली गई।

कुंवर सिंहः

वह विहार में आरा जिले के एक प्रमुख जमींदार थे और जगदीशपुर नामक गांव के निवासी थे। जब उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह का झंडा बुलंद किया, उस समय वे अस्सी वर्ष के वयोवृद्ध थे। उन्होंने शाहाबाद जिले में अंग्रेजों की सत्ता का तख्ता पलट दिया और अपनी सरकार स्थापित की। कानपुर पर संयुक्त आक्रमण के लिएनाना साहब की मदद के लिए काल्पी की ओर बढ़े। अपनी अंतिम सफलता के रूप में उन्होंने अपने गृह नगर जगदीशपुर के निकट अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित किया। इस बुद्ध में कुंवर सिंह घायल हो गए और 26 अप्रैल, 1858 को उनकी मृत्यु हो गई।

मौलवी अहमदुल्लाः

वह उन विख्यात मौलवियों में से एक थे जिन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध प्रसिद्ध विद्रोह के लिए आधार तैयार किया। वह मूलत: तमिलनाडु में आर्कट के रहने वाले थे पर फैजाबाद में आकर बस गए थे। अवध में 1857 के विद्रोह के इस प्रमुख व्यक्तित्व को अंग्रेज शत्रुओं तक ने अदम्य साहस के गुणों से परिपूर्ण और दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति तथा विद्रोहियों में सर्योत्तम सैनिक के रूप में स्वीकार किया। लखनऊ के बाद वे रूहेलखंड निकल भागे और कई स्थानों पर अंग्रेजों का कड़ा मुकाबला क्रिया। 5 जून, 1858 को अवध रूहेलखंड सीमा पर गोली मारकर इनकी हत्या कर दी गई।

शहजादा फिरोजशाहः

 वह मुगल शाही परिवार के थे 1857 के विद्रोह के समय उनकी आयु 20 वर्ष के आस- पास थी । उन्होंने मंदसौर में विद्रोह का झण्डा बुलंद किया और मध्य भारत में अंग्रेज सेनाओं से युद्ध किया। उन्होंने राजपूताना में तात्या टोपे की सेनाओं का मी साथ दिया। एक साहसी योद्धा के रूप में वह अंत तक अंग्रेजों का विरोध करते रहे। निर्वासित जीवन के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।

खान बहादुर खानः

वह रूहेला सरदार हाफिज रहमत खां के पौत्र थे और उन्होंने रूहेलखंड में विद्रोह का नेतृत्व किया। इनकी गतिविधियों का केंद्र बरेली (उत्तर प्रदेश) था। यद्यपि उस समय उनकी आयु सत्तर।वर्ष की थी तथापि उन्होंने बरेली की ओर बढ़ रहे अंग्रेजी सेना के चार सैनिक दस्तों को पराजित किया। परन्तु अन्ततः उन्हें हिमालय की तराई के जंगलों में शरण लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने उन्हें वायसराय के पद पर नियुक्त किया। उन्हें धोखेबाजी से पकड़ लिया गया तथा उनपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी।की सजा दे दी गई।

तात्या टोपेः

इनका वास्तविक नाम राम चंद्र पांडुरंग था। वह मराठा गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में निपुण एक अदम्य योद्धा थे। उन्होंने कानपुर के विद्रोह में नाना साहिब की और ग्वालियर पर आक्रमण के दौरान रानी लक्ष्मीबाई की सहायता की। एक मित्र ने उनके साथ धोखा किया तथा उन्हें अंग्रेजों के हाथ सौंप दिया। उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा दी गई।

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